विनोद खन्ना

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
विनोद खन्ना
Vinod-Khanna.jpg
पूरा नाम विनोद खन्ना
जन्म 6 अक्टूबर, 1946
जन्म भूमि पेशावर, पाकिस्तान
मृत्यु 27 अप्रैल, 2017
मृत्यु स्थान मुंबई, महाराष्ट्र
अभिभावक किशनचन्द्र खन्ना और कमला खन्ना
पति/पत्नी गीतांजलि और कविता
संतान अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना, साक्षी खन्ना (तीन पुत्र) और एक पुत्री श्रद्धा खन्ना
कर्म भूमि मुंबई
कर्म-क्षेत्र अभिनेता, राजनीतिज्ञ
मुख्य फ़िल्में 'दयावान', 'कुर्बानी', 'अमर अकबर एंथनी', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'मेरे अपने', 'पूरब और पश्चिम', 'रेशमा और शेरा', 'हाथ की सफाई', 'हेरा फेरी' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' (1999), 'फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता' (1974), दादा साहब फाल्के पुरस्कार (2017)।
विशेष योगदान भारतीय जनता पार्टी से लोकसभा सांसद रहे विनोद खन्ना ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार में पर्यटन और संस्कृति मंत्री के तौर भी पर काम किया।
नागरिकता भारतीय
पहली फ़िल्म मन का मीत (1968)
अन्य जानकारी विनोद खन्ना का नाम ऐसे अभिनेताओं में शुमार था, जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी, लेकिन बाद में हीरो बन गए। अपने करियर के शिखर दौर में विनोद खन्ना अचानक अभिनय को विदा कहकर आध्यात्मिक गुरु रजनीश के शिष्य हो गए थे।

विनोद खन्ना (अंग्रेज़ी: Vinod Khanna, जन्म: 6 अक्टूबर, 1946 - मृत्यु: 27 अप्रैल, 2017) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। वर्ष 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की ओर से लोकसभा सांसद भी चुने गए। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार में उन्होंने पर्यटन और संस्कृति मंत्री के तौर पर काम किया। बाद में उन्हें विदेश राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी दी गई थी। विनोद खन्ना अपने वक्त के सबसे हैंडसम अभिनेताओं में गिने जाते थे। उन्होंने कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों में काम किया। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत नकारात्मक किरदारों से की। बाद में वह मुख्यधारा के हीरो बन गए। उन्होंने सुनील दत्त की 1968 में आई फिल्म 'मन का मीत' में विलेन का किरदार निभाया।

जीवन परिचय

विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 में पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था, लेकिन विभाजन के बाद इनका परिवार मुंबई आकर बस गया था। इनके पिता किशनचन्द्र खन्ना एक बिजनेसमैन रहे और माता कमला खन्ना एक कुशल गृहणी रहीं। विनोद खन्ना ने दो विवाह किये थे। पहली पत्नी गीतांजलि थीं, जिनसे 1985 में तलाक हो गया। बाद में उन्होंने उन्होंने कविता से शादी की। उनके तीन बेटे अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना और साक्षी खन्ना हैं। उनकी एक बेटी है, जिसका नाम श्रद्धा खन्ना है।

फ़िल्मी सफर

1968 में सुनील दत्त की फिल्म 'मन का मीत' से विनोद खन्ना ने अपना फिल्मी कॅरियर शुरू किया था। विनोद खन्ना का नाम ऐसे अभिनेताओं में शुमार था जिन्होंने शुरुआत तो विलेन के किरदार से की थी लेकिन बाद में हीरो बन गए। ये फिल्में थीं, पूरब और पश्चिम, सच्चा झूठा, आन मिलो सजन, मस्ताना, मेरा गांव मेरा देश, ऐलान आदि। 'मेरे अपने', 'दयावान', 'कुर्बानी', 'मेरा गांव मेरा देश' जैसी फिल्मों को उनकी यादगार भूमिकाओं के लिए याद किया जाता है। विनोद खन्ना ने 1971 में सोलो लीड रोल में फिल्म 'हम तुम और वो' में काम किया था। अपने करियर के शिखर दौर में विनोद खन्ना अचानक अभिनय को विदा कहकर आध्यात्मिक गुरु रजनीश के शिष्य हो गए थे।

अमिताभ बच्चन के साथ

फ़िल्म- अमर अकबर एंथनी का पोस्टर

1977 में अमिताभ बच्चन के साथ की गई फिल्म 'परवरिश' ने उन्हें बड़ा ब्रेक दिलाया। पहली बार इसी फिल्म से उन्होंने स्टारडम का स्वाद चखा। विनोद को 1971 में पहली सोलो लीड फिल्म 'हम तुम और वो' मिली। बाद में गुलजार के 'मेरे अपने' में शत्रुघ्न सिन्हा के अपोजिट निभाए गए उनके किरदार को आज भी लोग याद करते हैं। गुलजार की ही फिल्म 'अचानक' में मौत की सजा पाए आर्मी अफसर का किरदार निभाने के लिए भी उन्हें काफ़ी तारीफ मिली। बाद में अमिताभ के अपोजिट हेराफेरी, खून पसीना, अमर अकबर एंथनी, मुकद्दर का सिकंदर में भी उन्होंने यादगार रोल निभाया। कहा जाता है कि अगर विनोद खन्ना ओशो के आश्रम न जाते तो आने वाले वक्त में वह अमिताभ बच्चन के स्टारडम को फीका कर देते। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि विनोद खन्ना की सबसे हिट फिल्मों में से एक 'कुर्बानी' का रोल पहले अमिताभ बच्चन को ही ऑफर किया गया था। उन्होंने यह रोल ठुकरा दिया, जिसके बाद विनोद खन्ना ने यह किरदार निभाया। बाद में विनोद को 'रॉकी' फिल्म ऑफर की गई, लेकिन उन्होंने यह फिल्म नहीं की। इस फिल्म से संजय दत्त ने बॉलीवुड में एंट्री ली।

यादगार फ़िल्में

  • 'मेरे अपने'
  • 'कुर्बानी'
  • 'पूरब और पश्चिम'
  • 'रेशमा और शेरा'
  • 'हाथ की सफाई'
  • 'हेरा फेरी'
  • 'मुकद्दर का सिकंदर'
  • ‘अमर अकबर एंथनी’
  • 'दयावान'
  • 'मेरा गांव मेरा देश'

राजनीतिज्ञ

विनोद खन्ना ने 1998 में राजनीति में कदम रखा और उसी साल 12वीं लोकसभा चुनावों में पंजाब के गुरदासपुर से पहली बार भारतीय जनता पार्टी टिकट पर संसद पहुंचे। यह सिलसिला लगातार तीन बार चला। 1999 और 2004 के आम चुनावों में भी वह लगातार इसी सीट से जीते। 2002-03 में वह अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्‍व में केंद्र की बीजेपी सरकार में पर्यटन एवं संस्‍कृति राज्‍यमंत्री और 2003-04 में विदेश राज्‍यमंत्री रहे। 2009 में उन्‍होंने चुनाव नहीं लड़ा। उसके बाद 2014 में एक बार फिर उन्‍होंने बीजेपी के टिकट पर गुरदासपुर से चुनाव जीता और इस तरह चौथी बार मौजूदा 16वीं लोकसभा के सदस्‍य बने। संसद में वह कई कमेटियों के भी सदस्‍य रहे। 1 सितंबर, 2014 से वह रक्षा मामलों पर गठित स्‍टैंडिग कमेटी के सदस्‍य थे। इसके अलावा कृषि मंत्रालय की परामर्श कमेटी के भी सदस्‍य थे।[1]

निधन

विनोद खन्ना का 27 अप्रैल, 2017 को निधन हो गया। वे 70 साल के थे। गुरुदासपुर से सांसद विनोद खन्ना ने मुंबई के रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में अंतिम सांस ली। काफ़ी दिनों से वे कैंसर से जूझ रहे थे। अमिताभ बच्चन 'सरकार 3' के प्रमोशन के ‌ल‌िए एक इंटरव्यू दे रहे थे। जैसे ही उन्हें पता चला कि विनोद खन्ना का निधन हो गया है। उन्होंने अपना ‌इंटरव्यू बीच में ही छोड़ दिया और उनके परिवार से मिलने हॉस्पिटल पहुंच गए। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी विनोद खन्ना के निधन पर दु:ख जताया है। ट्वीट कर उन्होंने लिखा, 'विनोद खन्ना एक पॉपुलर एक्टर के साथ समर्पित नेता और अद्भुत व्यक्ति थे। उनके निधन पर दुखी हूं। मेरी संवदनाएं साथ हैं।'

सम्मान और पुरस्कार

1999 में उनको फिल्मों में उनके 30 वर्ष से भी ज्यादा समय के योगदान के लिए फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। 140 से भी अधिक फिल्‍मों में विविध किरदार निभाने वाले विनोद खन्‍ना को सबसे पहले 1974 में 'हाथ की सफाई' फिल्‍म के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला। उसी साल उनको नेशनल यूथ फिल्‍म अवार्ड भी मिला।

विनोद खन्ना

रोचक तथ्य

  • विनोद खन्ना के पिता का टेक्सटाइल, डाई और केमिकल का बिजनेस था। विनोद खन्ना के एक भाई और तीन बहनें हैं।
  • विनोद खन्ना बचपन में बेहद शर्मीले थे और जब वह स्कूल में पढ़ते थे, तो उन्हें एक टीचर ने जबरदस्ती नाटक में उतार दिया और तभी से उन्हें अभिनय करना अच्छा लगने लगा।
  • स्कूल में पढ़ाई के दौरान विनोद खन्ना ने 'सोलहवां साल' और 'मुग़ल-ए-आजम' जैसी फिल्में देखीं और इन फिल्मों ने उन पर गहरा असर छोड़ा।
  • विनोद खन्ना के पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा फिल्मों में जाए, लेकिन अंत में विनोद की ज़िद के आगे उनके पिता झुक गए और उन्होंने विनोद को दो साल का समय दिया। विनोद ने इन दो सालों में मेहनत कर फिल्म इंडस्ट्री में जगह बना ली।
  • सुपरस्टार राजेश खन्ना, विनोद खन्ना के बेहद पसंदीदा अभिनेताओं में एक थे।
  • विनोद खन्ना को सुनील दत्त ने साल 1968 में फिल्म 'मन का मीत' में विलेन के रूप में लॉन्च किया। दरअसल यह फिल्म सुनील दत्त ने अपने भाई को बतौर हीरो लॉन्च करने के लिए बनाई थी। वह तो पीछे रह गए, लेकिन विनोद ने फिल्म से अपनी अच्छी पहचान बना ली।
  • हीरो के रूप में स्थापित होने के पहले विनोद ने 'आन मिलो सजना', 'पूरब और पश्चिम', 'सच्चा झूठा' जैसी फिल्मों में सहायक या खलनायक के रूप में काम किया।
  • गुलजार द्वारा निर्देशित 'मेरे अपने' (1971) से विनोद खन्ना को चर्चा मिली और बतौर नायक वे नजर आने लगे।
  • मल्टीस्टारर फिल्मों से विनोद को कभी परहेज नहीं रहा और उन्होंने उस दौर के सितारे अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, सुनील दत्त आदि के साथ कई फिल्में साथ में कीं।
  • बागवानी के बेहद शौकीन विनोद खन्‍ना को ध्‍यान, क्रिकेट, खेल, संगीत, फोटोग्राफी और ड्राइविंग का भी बेहद शौक था। उनको बैडमिंटन खेलने का शौक था। स्‍कूल और कॉलेज के दिनों में वह खेलों में हिस्‍सा लेते थे। वह कॉलेज के दिनों में जिमनास्‍ट और बॉक्‍सर भी थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Reel के बाहर Real जिंदगी में विनोद खन्‍ना ने सफल सियासी पारी खेली (हिंदी) एनडीटीवी इंडिया। अभिगमन तिथि: 27 अप्रैल, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख