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बांधनी कला [[भारत]] में प्रचलित बांधकर अथवा गांठ लगाकर [[रंगाई]] का तरीक़ा है। रेशमी अथवा सूती कपड़े के भागों को [[रंग]] के कुंड में डालने के पूर्व मोमयुक्त धागे से कसकर बांध दिया जाता है। बाद में धागे खोले जाने पर बंधे हुए भाग रंगहीन रह जाते हैं। यह तकनीक भारत के बहुत से भागों में प्रयोग की जाती है, लेकिन [[गुजरात]] व [[राजस्थान]] में यह बहुत लंबे समय से प्रयोग में रही है और आज भी राज्य इस तकनीक के बेहतरीन काम के लिए जाने जाते हैं। इस तकनीक के सुरक्षित नमूने 18वीं सदी से पहले के नहीं हैं, जिससे इसके प्रारंभिक [[भारत का इतिहास|इतिहास]] का पता लगाना मुश्किल हो गया है।
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'''बांधनी कला''' [[भारत]] में प्रचलित बांधकर अथवा गांठ लगाकर [[रंगाई]] का तरीक़ा है। रेशमी अथवा सूती कपड़े के भागों को [[रंग]] के कुंड में डालने के पूर्व मोमयुक्त धागे से कसकर बांध दिया जाता है। बाद में धागे खोले जाने पर बंधे हुए भाग रंगहीन रह जाते हैं। यह तकनीक भारत के बहुत से भागों में प्रयोग की जाती है, लेकिन [[गुजरात]] व [[राजस्थान]] में यह बहुत लंबे समय से प्रयोग में रही है और आज भी राज्य इस तकनीक के बेहतरीन काम के लिए जाने जाते हैं। इस तकनीक के सुरक्षित नमूने 18वीं [[सदी]] से पहले के नहीं हैं, जिससे इसके प्रारंभिक [[इतिहास]] का पता लगाना मुश्किल हो गया है।
 
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बांधनी एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है और यह काम बहुधा युवा लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो कपड़े पर निपुणता से कार्य करने के लिए लंबे नाखून रखती हैं। इसमें कपड़े को कई स्तरों पर मोड़ना, बांधना और रंगना शामिल है। अंतिम परिणाम [[लाल रंग|लाल]] या [[नीला रंग|नीले रंग]] की पृष्ठभूमि पर [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] अथवा [[पीला रंग|पीली]] बिंदियों वाला वस्त्र होता है, ज्यामितीय आकृतियाँ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, लेकिन पशुओं, मानवीय आकृतियों, [[फूल|फूलों]] तथा [[रासलीला]] आदि दृश्यों को भी कई बार शामिल किया गया है।  
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बांधनी एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है और यह काम बहुधा युवा लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो कपड़े पर निपुणता से कार्य करने के लिए लंबे नाखून रखती हैं। इसमें कपड़े को कई स्तरों पर मोड़ना, बांधना और [[रंगाई|रंगना]] शामिल है। अंतिम परिणाम [[लाल रंग|लाल]] या [[नीला रंग|नीले रंग]] की पृष्ठभूमि पर [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] अथवा [[पीला रंग|पीली]] बिंदियों वाला वस्त्र होता है, ज्यामितीय आकृतियाँ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, लेकिन पशुओं, मानवीय आकृतियों, [[फूल|फूलों]] तथा [[रासलीला]] आदि दृश्यों को भी कई बार शामिल किया गया है।  
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08:47, 12 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

बांधनी कला

बांधनी कला भारत में प्रचलित बांधकर अथवा गांठ लगाकर रंगाई का तरीक़ा है। रेशमी अथवा सूती कपड़े के भागों को रंग के कुंड में डालने के पूर्व मोमयुक्त धागे से कसकर बांध दिया जाता है। बाद में धागे खोले जाने पर बंधे हुए भाग रंगहीन रह जाते हैं। यह तकनीक भारत के बहुत से भागों में प्रयोग की जाती है, लेकिन गुजरातराजस्थान में यह बहुत लंबे समय से प्रयोग में रही है और आज भी राज्य इस तकनीक के बेहतरीन काम के लिए जाने जाते हैं। इस तकनीक के सुरक्षित नमूने 18वीं सदी से पहले के नहीं हैं, जिससे इसके प्रारंभिक इतिहास का पता लगाना मुश्किल हो गया है।

श्रमसाध्य प्रक्रिया

बांधनी एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है और यह काम बहुधा युवा लड़कियों द्वारा किया जाता है, जो कपड़े पर निपुणता से कार्य करने के लिए लंबे नाखून रखती हैं। इसमें कपड़े को कई स्तरों पर मोड़ना, बांधना और रंगना शामिल है। अंतिम परिणाम लाल या नीले रंग की पृष्ठभूमि पर सफ़ेद अथवा पीली बिंदियों वाला वस्त्र होता है, ज्यामितीय आकृतियाँ सर्वाधिक लोकप्रिय हैं, लेकिन पशुओं, मानवीय आकृतियों, फूलों तथा रासलीला आदि दृश्यों को भी कई बार शामिल किया गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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