वाराणसी पर्यटन

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 28 नवम्बर 2010 का अवतरण (Text replace - "पेशवा" to "पेशवा")
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

वाराणसी एक पर्यटन स्थल हैं। वाराणसी में देखने के लिए बहुत कुछ है। वाराणसी में करीब 2000 मंदिर हैं। वाराणसी में शाम के समय गंगा के किनारे होने वाली आरती काफ़ी आकर्षक होती है। हिन्‍दुओं के अलावा बौद्ध धर्म के अनुयायी भी वाराणसी में घूमने आते हैं।

गंगा नदी

भारत की सबसे बड़ी नदी गंगा करीब 2525 किलोमीटर की दूरी तय कर गोमुख से गंगासागर तक जाती है। गंगा इस पूरे रास्‍ते में उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। गंगा नदी दक्षिण से उत्तर दिशा में केवल वाराणसी में ही बहती है। गंगा नदी बनारस के लोगों की जीवनरेखा है। यहां सुबह से ही घाट पर लोगों का आनाजाना शुरु हो जाता है। दश्‍वमेद्यघाट पर होने वाली आरती को जरुर देखना चाहिए। यह आरती सुबह और शाम 6:30 बजे होती है।

वाराणसी के घाट

वाराणसी (काशी) में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं। मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी शांत नहीं होती, क्योंकि बनारस के बाहर मरने वालों की अन्त्येष्टी पुण्य प्राप्ति के लिये यहीं की जाती है । कई हिन्दू मानते हैं कि वाराणसी में मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है ।

वाराणसी में लगभग 84 घाट हैं। ये घाट लगभग 4 मील लम्‍बे तट पर बने हुए हैं। इन 84 घाटों में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्‍हें सामूहिक रुप से 'पंचतीर्थी' कहा जाता है। ये हैं अस्‍सीघाट, दश्‍वमेद्यघाट, आदिकेशवघाट, पंचगंगाघाट तथा मणिकर्णिकघाट। अस्‍सीघाट सबसे दक्षिण में स्थित है जबकि आदिकेशवघाट सबसे उत्तर में स्थित हैं। हर घाट की अपनी अलग-अलग कहानी है।

  • तुलसीघाट प्रसिद्ध कवि तुलसीदास से संबंधित है। तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपना आख़िरी समय यहीं व्‍यतीत किया था।
  • इसी के समीप बच्‍चाराजा घाट है। यहीं पर जैनों के सातवें तीर्थंकर सुपर्श्‍वनाथ का जन्‍म हुआ था। अब यह जैनघाट के नाम से जाना जाता है।
  • चेत सिंह घाट एक किला की तरह लगता है। चेत सिंह बनारस के एक साहसी राजा थे जिन्‍होंने 1781 ई. में वॉरेन हेस्टिंगस की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
  • महानिर्वाणी घाट में महात्‍मा बुद्ध ने स्‍नान किया था।
  • हरिश्‍चंद्र घाट का संबंध राजा हरिश्‍चंद्र से है।
  • मणिकर्णिघाट पर स्थित भवनों का निर्माण पेशवा बाजीराव तथा अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने करवाया था।

दूध का कर्ज' मंदिर

वाराणसी में 'दूध का कर्ज' मंदिर को जरुर देखना चाहिए। लोक कथाओं के अनुसार एक अमीर घमण्‍डी पुत्र ने इस मंदिर को बनवाया और इसे अपनी मां को समर्पित कर दिया। उसने अपनी मां से कहा मैंने तेरे लिए मंदिर बनवाकर तेरा कर्ज चुका दिया। तब उसकी मां ने कहा कि दूध का कर्ज कभी चुकाया नहीं जा सकता। तभी से इस मंदिर का नाम दूध का कर्ज मंदिर पड़ गया।

काशी विश्‍वनाथ मंदिर

मूल काशी विश्‍वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्‍दी में इंदौरा की रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इसे भव्‍य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्‍य नाम गोल्‍डेन टेम्‍पल भी पड़ा।

यह मंदिर कई बार ध्‍वस्‍त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। कुतुबुद्दीन ऐबक ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्‍वस्‍त किया था। रजिया सुल्‍तान (1236-1240) ने इसके ध्‍वंसावशेष पर रजिया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर के नजदीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तोड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को सिंकदर लोदी ने ध्‍वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्‍यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्‍वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।

मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी जाना वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक जाना वापी कुंआ भी है। विश्‍वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्‍वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्‍थापित विश्‍वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्‍वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्‍थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्‍य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर विष्‍णु, अभिमुक्‍ता विनायक, दण्‍डपाणिश्‍वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है। दश्‍वमेद्यघाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घण्‍टे खुला रहता है।

अन्‍य सांस्‍कृतिक उत्‍सव

फागुन (फरवरी-मार्च) में शिवरात्रि के उत्‍सव के दौरान यहां जरुर आना चाहिए। इस दौरान मंदिर के देवता का श्रृंगार किया जाता है। रंगभरी एकादशी भी यहां बहुत उत्‍साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान शिवभक्‍त भगवान शिव की मूर्त्ति को लाल रंग के चूर्ण से रंग देते है। पंचकरोशी यात्रा प्रत्‍येक साल अप्रैल के महीने में होती है। दुर्गा पूजा (सितम्‍बर-अक्‍टूबर) के दौरान मनाया जाता है। भरत मिलाप उत्‍सव विजयादशमी को मनाया जाता है। इस दिन संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय के समीप मेला लगता है। दीपावली के समय का यहां का गंगा स्‍नान भी काफी प्रसिद्ध है। दीपावली के अगले दिन यहां अन्‍नाकूता उत्‍सव मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहां सभी घाटों को मृत्‍यु के देवता यमराज के सम्‍मान में दीयों से सजाया जाता है।

अन्‍नपूर्णा का मंदिर

काशी विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्‍नपूर्णा का मंदिर है। इन्‍हें तीनों लोकों की माता माना जाता है। कहा जाता है कि इन्‍होंने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। इस मंदिर की दीवाल पर चित्र बने हुए हैं। एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई हैं। विश्‍वनाथ मंदिर परिसर से 100 मीटर उत्तर में। सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक।

साक्षी गणेश मंदिर

पंचकरोशी यात्रा को पूरा कर तीर्थयात्री साक्षी गणेश मंदिर को देखने जरुर आते हैं। इस मंदिर के दर्शन के बाद ही वे अपनी यात्रा को पूर्ण मानते हैं। विश्‍वनाथ गेट। सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक।

काशी विशालाक्षी मंदिर

विश्‍वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है। यह पवित्र 51 शक्‍ितपीठों में से एक है। कहा जाता है कि यहां शिव की पत्‍नी सती का आंख गिरा था। विश्‍वनाथ मंदिर से 50 मीटर आगे। सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक।

केदारेश्‍वर मंदिर

केदार घाट के पास केदारेश्‍वर मंदिर है। यह मंदिर 17वीं श्‍ाताब्‍दी में औरंगजेब के कहर से बच गया था। इसी के समीप गौरी कुण्‍ड है। इसी को आदि मणिकार्णिका या मूल मणिकार्णिका कहा जाता है।

विष्‍णु चरणपादुका

मणिकार्णिका घाट के समीप विष्‍णु चरणपादुका है। इसे मार्बल से चिन्हित किया गया है। इसे काशी का पवित्रतम स्‍थान कहा जाता है। अनुश्रुति है कि भगवान विष्‍णु ने यहां ध्‍यान लगाया था। इसी के समीप मणिकार्णिका कुण्‍ड है। माना जाता है कि भगवान शिव का मणि तथा देवी पार्वती का कर्णफूल इस कुण्‍ड में गिरा था। चक्रपुष्‍करर्णी एक चौकोर कुण्‍ड है। इसके चारो ओर लोहे की रेलिंग बनी हूई है। इसे विश्‍व को पहला कुण्‍ड माना जाता है।

भैरव मंदिर

यहां का काली भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर गोदौलिया चौक से 2 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में टाउन हॉल के पास स्थित है। इसमें भगवान शिव की रौद्र मूर्त्ति स्‍थापित है। इसी के नजदीक बिंदू महावीर मंदिर है। यह मंदिर भगवान विष्‍णु को समर्पित है।

सीता मंदिर

यहां देवी सीता का दोमंजिला मंदिर है। यह मंदिर मानसून के मौसम में चारों तरफ से पानी से घिर जाता है। माना जाता है कि देवी सीता यहीं पर धरती में समा गई थीं। इस मंदिर में देवी सीता की एक मूर्त्ति स्‍थापित है।

  • इस शहर में अनगिनत मंदिर हैं। जगन्‍नाथ मंदिर अस्‍सीघाट के निकट स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्‍दी में पुरी के प्रसिद्ध मंदिर के अनुकृति के रुप में किया गया था। आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) में यहां भी रथ यात्रा आयोजित की जाती है।
  • लक्ष्‍मीनारायण पंचरत्‍न मंदिर भी अस्‍सीघाट के निकट है।
  • अस्‍सी संगमेश्‍वर मंदिर भी यहीं पर है।

विंध्‍याचल

वाराणसी से विंध्‍याचल 78 किलोमीटर और इलाहाबाद से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक प्रसिद्ध शक्‍ितपीठ है। यहां विंध्‍यवासिनी देवी तथा अष्‍टभुजी देवी का मंदिर है। यहां सीता कुण्‍ड तथा कालीखोह मंदिर है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है।

सारनाथ

सारनाथ वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सारनाथ बौद्धों का एक बड़ा तीर्थस्‍थल है। यहीं महात्‍मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद प्रथम उपदेश दिया था। यहां कई स्‍तूप तथा मंदिर है। चौखण्‍डी स्‍तूप, धमेखा स्‍तूप तथा धर्मराजिका स्‍तूप यहां हैं। धमेखा स्‍तूप उसी जगह पर बना हुआ है जहां पर भगवान बुद्ध ने दूसरी बार उपदेश दिया था। इसे सारनाथ में सबसे पवित्र स्‍थान माना जाता है। चौखण्‍डी स्‍तूप के निकट ही एक थाई मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1976 ई. में हुआ था।

सारनाथ में एक पुरातत्‍वीय संग्रहालय ( समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, प्रवेश शुल्‍क: 5 रु., शुक्रवार बंद) भी है। इस संग्रहालय में कई उत्‍कृष्‍ट मूर्त्तियां हैं। सारनाथ में ही एक अशोक स्‍तंभ है। इसके अलावा यहां बुद्ध की अभयमुद्रा में 287 मीटर ऊंची मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति मूर्तिकला की मथुरा शैली में बनी हुई है। यहां एक हिरण पार्क भी है।

लोलारक कुंड

तुलसीघाट से पैदल दूरी पर पवित्र लोलारक कुंड है। महाभारत में भी इस कुण्‍ड का उल्‍लेख मिलता है। रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इस कुण्‍ड के चारों तरफ कीमती पत्‍थर से सजावट करवाई थी। यहां पर लोलाकेश्‍वर का मंदिर है। भादो महीने (अगस्‍त-सितम्‍बर) में यहां मेला लगता है।

दुर्गा कुण्‍ड

अस्‍सी रोड से कुछ ही दूरी पर आनन्‍द बाग के पास दुर्गा कुण्‍ड है। यहां संत भास्‍करानंद की समाधि है। यहां पर एक दुर्गा मंदिर भी है। मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में भक्‍तों की काफी भीड़ रहती है। इसी के पास हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्‍थान काशी विश्‍वनाथ और अन्‍नपूर्णा मंदिर के बाद आता है।

बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय

अगर आप बनारस आएं तो बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय जरुर घूमें। यह विश्‍वविद्यालय गोदौलिया चौक से 31.5 किलोमीटर दक्षिण में है। इस विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी। यहां का भारत कला भवन संग्रहालय ( समय: 10:30 बजे सुबह से शाम 4:30 बजे तक, जुलाई से अप्रैल महीने तक, 7:30 बजे सुबह से 12:30 दोपहर तक मई से जून महीने के बीच, रविवार तथा विश्‍वविद्यालय में छुट्टी के दिन बंद) काफी समृद्ध है। इस संग्रहालय में लगभग 100000 वस्‍तुएं हैं जो नौ गैलरियों में रखी गई हैं। इसी परिसर में प्रसिद्ध विश्‍वनाथ मंदिर भी है। मानसिंह वेधशाला भी इसी परिसर में स्थित है। पत्‍थरों की बनी यह वेधशाला के अब ध्‍वंशावशेष ही शेष बचे हैं। यह वेधशाला पर्यटकों के लिए सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक खुली रहती है। शुक्रवार तथा सार्वजनिक अवकाश के दिन यह बंद रहता है। मन मंदिर घाट के पास एक स्‍मारक भी है। नदी के दूसरी ओर रामनगर किला तथा संग्रहालय ( समय: सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक) है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ