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*अतिसार:- कच्चा आंवला पीस कर रोगी की नाभि के चारों ओर कटोरी जैसी बनाकर इस नाभि में अदरक का रस भर दें।
 
*अतिसार:- कच्चा आंवला पीस कर रोगी की नाभि के चारों ओर कटोरी जैसी बनाकर इस नाभि में अदरक का रस भर दें।
 
*हिचकी:- आंवला, कैथ का गूदा, छोटी पीपर का चूर्ण, शहद से चटाएं तो हिचकियां मिट जाएंगी।
 
*हिचकी:- आंवला, कैथ का गूदा, छोटी पीपर का चूर्ण, शहद से चटाएं तो हिचकियां मिट जाएंगी।
*अजीर्ण:- ताजा आंवला, अदरक, हरा धनिया मिलाकर चटनी बनावें इसमें सेंधा नमक, काला नमक, हींग, जीरा, काली मिर्च मिला चटावें। डकारें आएंगी, भूख खुलेगी, हाजमा बढ़ेगा।
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*अजीर्ण:- ताजा आंवला, अदरक, हरा धनिया मिलाकर चटनी बनावें इसमें [[नमक|सेंधा नमक]], काला नमक, हींग, जीरा, [[काली मिर्च]] मिला चटावें। डकारें आएंगी, भूख खुलेगी, हाजमा बढ़ेगा।
*स्त्रियों का बहुमूत्र [सोमरोग]:- आंवले का रस, पका हुआ केले का गूदा, शहद व मिश्री चारों मिलाकर चटाएं।
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*स्त्रियों का बहुमूत्र [सोमरोग]:- आंवले का रस, पका हुआ केले का गूदा, [[शहद]] व मिश्री चारों मिलाकर चटाएं।
 
*मूत्र कष्ट:- आंवले का 25 ग्राम ताजा रस, छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण बुरक कर पिलाएं। मूत्र आने लगेगा।
 
*मूत्र कष्ट:- आंवले का 25 ग्राम ताजा रस, छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण बुरक कर पिलाएं। मूत्र आने लगेगा।
*बवासीर:- आंवले पीस कर पीठी को मिट्टी के बर्तन में लेप कर दें। इसमें गाय की ताजा छाछ भर रोगी को पिलाएं।
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*बवासीर:- आंवले पीस कर पीठी को [[मिट्टी]] के बर्तन में लेप कर दें। इसमें गाय की ताजा छाछ भर रोगी को पिलाएं।
 
*मुंह के छाले और घाव:- आंवले के पत्तों के काढे से दिन में 2 से 3 बार कुल्ले कराएं।
 
*मुंह के छाले और घाव:- आंवले के पत्तों के काढे से दिन में 2 से 3 बार कुल्ले कराएं।
 
*कब्ज़:- कब्ज़ में आँवला रात को एक चम्मच पिसा हुआ पानी या दूध के साथ लेने से सुबह शौच साफ़ आता है, कब्ज़ नहीं रहती। इससे आंते और पेट हलकी और साफ़ रहता है।  
 
*कब्ज़:- कब्ज़ में आँवला रात को एक चम्मच पिसा हुआ पानी या दूध के साथ लेने से सुबह शौच साफ़ आता है, कब्ज़ नहीं रहती। इससे आंते और पेट हलकी और साफ़ रहता है।  
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*नेत्रों के रोग:- आंवला छिलका दरदरा कूट कर पानी में भिगोकर रखें। इसे कपड़े से [साफ] छान कर दिन में तीन बार 2-2 बूंद आंखों में टपकाएं।
 
*नेत्रों के रोग:- आंवला छिलका दरदरा कूट कर पानी में भिगोकर रखें। इसे कपड़े से [साफ] छान कर दिन में तीन बार 2-2 बूंद आंखों में टपकाएं।
 
*बाल झड़ना:- आंवला रस और नारियल तेल बराबर मात्रा में मिलाकर बालों की जड़ों में मालिश करें।
 
*बाल झड़ना:- आंवला रस और नारियल तेल बराबर मात्रा में मिलाकर बालों की जड़ों में मालिश करें।
*नाक से खून आना:- नाक से खून आने पर नाक में आंवले के रस की दो बूंद डालें तथा आंवले को पीस कर सिर पर लेप करें।
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*नाक से खून आना:- [[नाक]] से खून आने पर नाक में आंवले के रस की दो बूंद डालें तथा आंवले को पीस कर सिर पर लेप करें।
 
*उल्टियों की शिकायत में आंवला (5 ग्राम) के साथ छोटी पीपल (आधा ग्राम) को शहद के साथ लेने से राहत मिलती है।  
 
*उल्टियों की शिकायत में आंवला (5 ग्राम) के साथ छोटी पीपल (आधा ग्राम) को शहद के साथ लेने से राहत मिलती है।  
 
*मोटापा:- प्रतिदिन आंवले का रस और शहद पचास-पचास ग्राम सुबह तथा रात सोते समय लेने से पेट का मोटापा दूर हो जाता है। सूखी खांसी में भी आंवला रस और शहद फायदेमंद है।
 
*मोटापा:- प्रतिदिन आंवले का रस और शहद पचास-पचास ग्राम सुबह तथा रात सोते समय लेने से पेट का मोटापा दूर हो जाता है। सूखी खांसी में भी आंवला रस और शहद फायदेमंद है।
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*मूत्र त्याग में दर्द के लिए:- 150 ग्राम आंवले का रस लीजिये, बिना कुछ मिलाये पी जाएं, बस दो दिनों तक।
 
*मूत्र त्याग में दर्द के लिए:- 150 ग्राम आंवले का रस लीजिये, बिना कुछ मिलाये पी जाएं, बस दो दिनों तक।
 
*खांसी में:- सूखे आंवले के एक चम्मच पावडर में थोड़ा घी मिला कर पेस्ट बना लीजिये, दिन में दो बार चाटिये। सूखी खांसी होने पर आंवले के रस में शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार लेने से काफी आराम मिलता है।
 
*खांसी में:- सूखे आंवले के एक चम्मच पावडर में थोड़ा घी मिला कर पेस्ट बना लीजिये, दिन में दो बार चाटिये। सूखी खांसी होने पर आंवले के रस में शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार लेने से काफी आराम मिलता है।
*सुगर के मरीजों के लिए:- आंवला और हल्दी का पावडर बराबर मात्रा में लीजिये, अच्छी तरह मिक्स कीजिए। जितनी बार भी भोजन करें उसके बाद एक चम्मच पावडर पानी से निगल लीजिये सुगर कभी परेशान नहीं करेगी।
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*सुगर के मरीजों के लिए:- आंवला और [[हल्दी]] का पावडर बराबर मात्रा में लीजिये, अच्छी तरह मिक्स कीजिए। जितनी बार भी भोजन करें उसके बाद एक चम्मच पावडर पानी से निगल लीजिये सुगर कभी परेशान नहीं करेगी।
 
*हकलाहट हो तो:- 100 ग्राम गाय के दूध में एक चम्मच सूखे आंवले का पावडर मिला कर लगातार 15 दिन पीयें, आवाज बराबर से निकलेगी और कंठ सुरीला भी होगा।
 
*हकलाहट हो तो:- 100 ग्राम गाय के दूध में एक चम्मच सूखे आंवले का पावडर मिला कर लगातार 15 दिन पीयें, आवाज बराबर से निकलेगी और कंठ सुरीला भी होगा।
 
*छाती (सीने) में जलन के लिए:- सूखे आंवले का एक चम्मच पावडर शहद मिला कर सुबह चाटिये। या एक चम्मच पावडर में दो चम्मच चीनी और दो ही चम्मच घी मिलाकर चाटिये।
 
*छाती (सीने) में जलन के लिए:- सूखे आंवले का एक चम्मच पावडर शहद मिला कर सुबह चाटिये। या एक चम्मच पावडर में दो चम्मच चीनी और दो ही चम्मच घी मिलाकर चाटिये।
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===आंवले के खेती का तरीका===
 
===आंवले के खेती का तरीका===
'''वृद्धि --''' एशिया और यूरोप में बड़े पैमाने पर आंवला की खेती होती है। इसकी खेती भारत में सामान्‍य है तथा विशेषतौर पर उत्‍तर प्रदेश के प्रतापगढ़, रायबरेली, वाराणसी, जौनपुर, सुल्‍तानपुर, कानपुर, आगरा तथा मथुरा में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी सघन रोपाई आगरा, मथुरा, इटावा, फतेहपुर तथा बुंदेलखंड के समशीतोष्‍ण इलाके सहित उत्‍तर प्रदेश के क्षारीयता प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है। आंवला की खेती महाराष्‍ट्र, गुजरात, राजस्‍थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के समशीतोष्‍ण क्षेत्रों में भी तेजी से फैलती जा रही है। हरियाणा के अरावली तथा पंजाब की कांडी क्षेत्र के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी इसकी खेती जोर पकड़ती जा रही है।
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'''वृद्धि --''' [[एशिया]] और [[यूरोप]] में बड़े पैमाने पर आंवला की खेती होती है। इसकी खेती भारत में सामान्‍य है तथा विशेषतौर पर उत्‍तर प्रदेश के प्रतापगढ़, [[रायबरेली]], [[वाराणसी]], [[जौनपुर]], सुल्‍तानपुर, [[कानपुर]], [[आगरा]] तथा [[मथुरा]] में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी सघन रोपाई आगरा, मथुरा, [[इटावा]], फतेहपुर तथा [[बुंदेलखंड]] के समशीतोष्‍ण इलाके सहित उत्‍तर प्रदेश के क्षारीयता प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है। आंवला की खेती [[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[आंध्र प्रदेश]], [[कर्नाटक]] और [[तमिलनाडु]] के समशीतोष्‍ण क्षेत्रों में भी तेजी से फैलती जा रही है। [[हरियाणा]] के अरावली तथा [[पंजाब]] की कांडी क्षेत्र के अलावा [[हिमाचल प्रदेश]] में भी इसकी खेती जोर पकड़ती जा रही है।
  
 
आंवला के फल औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, इसलिए इसकी व्यवसायिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद होता है। यूं तो आंवला के पौधे का लगभग हर भाग उपयोगी है लेकिन मुख्य रूप से इसके फलों की वजह से ही आंवला की पहचान औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। आंवला के फलों को कच्चा अथवा पकने के बाद अपने उपयोग के लिए काम में लाया जा सकता है। सख्‍त प्रकृति को देखते हुए यह विविध बंजर भूमि, अत्‍यधिक उत्‍पादक/इकाई क्षेत्र (15-20 टन/हेक्‍टेयर) के लिये उपयुक्‍त है। अत्‍यधिक पोषक तत्‍वों तथा चिकित्‍सीय महत्‍ता के कारण आंवला महत्‍वपूर्ण फल बन गया है।
 
आंवला के फल औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, इसलिए इसकी व्यवसायिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद होता है। यूं तो आंवला के पौधे का लगभग हर भाग उपयोगी है लेकिन मुख्य रूप से इसके फलों की वजह से ही आंवला की पहचान औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। आंवला के फलों को कच्चा अथवा पकने के बाद अपने उपयोग के लिए काम में लाया जा सकता है। सख्‍त प्रकृति को देखते हुए यह विविध बंजर भूमि, अत्‍यधिक उत्‍पादक/इकाई क्षेत्र (15-20 टन/हेक्‍टेयर) के लिये उपयुक्‍त है। अत्‍यधिक पोषक तत्‍वों तथा चिकित्‍सीय महत्‍ता के कारण आंवला महत्‍वपूर्ण फल बन गया है।
  
'''जलवायु --''' भारत की जलवायु आंवले की खेती के लिहाज से सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बावजूद ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्कॉटलैंड, नॉर्वे आदि देशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इसके फलों को विकसित होने के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक माना जाता है। हालांकि आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। यह पौधा सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है। एक ओर जहां यह 45 डिग्री से भी अधिक तापमान सहन कर सकता है वहीं दूसरी ओर अधिक-से-अधिक शीत और कुहरे का भी इस पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। यही कारण है कि यह नमक युक्त मिट्टी से लेकर पोषक तत्वों से भरपूर उपजाऊ भूमि अथवा अपेक्षाकृत सूखी जलवायु और मिट्टी में भी बेहतर तरीके से विकास करने में सक्षम है।  
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'''जलवायु --''' [[भारत की जलवायु]] आंवले की खेती के लिहाज से सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बावजूद ब्रिटेन, [[फ्रांस]], [[इटली]], स्कॉटलैंड, नॉर्वे आदि देशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इसके फलों को विकसित होने के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक माना जाता है। हालांकि आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। यह पौधा सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है। एक ओर जहां यह 45 डिग्री से भी अधिक तापमान सहन कर सकता है वहीं दूसरी ओर अधिक-से-अधिक शीत और कुहरे का भी इस पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। यही कारण है कि यह नमक युक्त मिट्टी से लेकर पोषक तत्वों से भरपूर उपजाऊ भूमि अथवा अपेक्षाकृत सूखी जलवायु और मिट्टी में भी बेहतर तरीके से विकास करने में सक्षम है।  
  
 
'''खेती --''' आंवले का पौधा सीधे मिट्टी में रोपा जाता है। इसके अलावा आंवला के बीजों से भी नए पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है। कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें जल्द फल लग जाते हैं। कस्पोस्ट खाद का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में फल पाए जा सकते हैं। आंवले के फल विभिन्न आकार के होते हैं। छोटे फल बड़े फल की अपेक्षा ज्यादा तीखे होते हैं।  
 
'''खेती --''' आंवले का पौधा सीधे मिट्टी में रोपा जाता है। इसके अलावा आंवला के बीजों से भी नए पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है। कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें जल्द फल लग जाते हैं। कस्पोस्ट खाद का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में फल पाए जा सकते हैं। आंवले के फल विभिन्न आकार के होते हैं। छोटे फल बड़े फल की अपेक्षा ज्यादा तीखे होते हैं।  
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09:21, 11 अगस्त 2011 का अवतरण

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आंवला
Indian gooseberry.jpg
जगत पादप
संघ मैंगोलियोफाइटा
वर्ग मैंगोलियोफाइटा
गण सक्सीफ्रैगल्स
कुल ग्रोसुलैरीसी
जाति रिबीस
प्रजाति आर यूवा-क्रिस्पा
द्विपद नाम रिबीस यूवा-क्रिस्पा

परिचय

आंवले को मनुष्य के लिए प्रकृति का वरदान कहा जाता है। आंवला यूफॉरबियेसी फैमिली का पेड़ है। आंवला या इंडियन गूसबेरी एक देशज फल है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। आंवला एशिया के अलावा यूरोप अफ्रीका में भी पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र और प्राद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं। इसकी उत्पत्ति और विकास मुख्य रूप से भारत में मानी जाती है। आंवले का पेड़ भारत के प्राय: सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ भी धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती हैं। कार्तिक के महीने में आंवले का सेवन बहुत शुभ और गुणकारी माना जाता है। इसके पेड़ की छाया तक में एंटीवायरस गुण हैं और गज़ब की जीवनी शक्ति है। कार्तिक के महीने में इस पेड़ के ये दोनों गुण चरम पर होते हैं, अगर आप श्वास की किसी भी बीमारी से परेशान है तो सिर्फ इसके पेड़ के नीचे खड़े होकर 5 मिनट गहरी गहरी श्वासें लीजिये, 10 - 15 दिन में ही बीमारी आपका पीछा छोड़ देगी।

यह कहा जाता है कि जो भगवान् विष्णु को आंवले का बना मुरब्बा एवं नैवेध्य अर्पण करता है, उस पर वे बहुत संतुष्ट होते हैं। यह भी कहा जाता है कि नवमी को आंवला पूजन स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्यौहारों पर खाये, गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।

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आंवले का वनस्पतिक परिचय

आंवले का पेड़ 6 से 8 मीटर ऊंचा झारीय पौधा होता है तथा इसका तना टेढ़ा-मेढ़ा और 150 से 300 सेमी तक मोटा होता है। आंवले के पेड़ की छाल पतली और परत छोड़ती हुई होती है। आंवले के पत्ते इमली के पत्तों की तरह छोटी और नुकीली और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। जिससे नींबू के पत्तियां सी खुशबू आती है। इस पेड़ में फरवरी से मई के दौरान फूल लगते हैं जो आगे चल कर अक्टूबर से अप्रैल तक फल बनाते हैं। इसके पुष्प हरे-पीले रंग के बहुत छोटे गुच्छों में लगते हैं तथा घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्य रूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। फल गोलाकार लगभग 2.5 से 5 सेमी व्यास के चिकने, गूदेदार हरे, पीले रंग के होते हैं। पके फलों का रंग लालिमायुक्त होता है। ख़रबूज़े की भांति फल पर 6 रेखाएं 6 खंडों का प्रतीक होती हैं। फल की गुठली में 6 कोष (षट्कोषीय बीज) होते हैं, छोटे आंवलों में गूदा कम, रेशेदार और गुठली बड़ी होती है, औषधीय प्रयोग के लिए छोटे आंवले ही अधिक उपयुक्त होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं। आंवले का स्वाद भले ही कसैला होता है परंतु इसके गुणों के कारण इसे "धातृ फल" भी कहा जाता है, धातृ का अर्थ होता है पालन पोषण करने वाला अर्थात "मां"। इसे अमर फल और आदिफल भी कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम है - एम्ब्लिका आफीसिनेलिस।

आंवला में उपस्थित तत्व

आंवला गर्मियों और सर्दियों दोनों मौसम में पाया जाता है। आंवला एक ऎसा फल है जिसमें अम्ल, क्षार, लवण, तिक्त, मधु और कषाय गुण एक साथ होते हैं। यह त्रिदोष से बचाता है। आंवला शरीर में षट्रसों की पूर्ति कर रोग प्रतिरोधक शक्ति प्रदान करता है। चरक संहितानुसार आंवले के 100 ग्राम रस में 921 मिलीग्राम और 100 ग्राम गूदे [फल का चूरा] में 720 मिलीग्राम विटामिन सी और अन्य शरीर के लिए आवश्यक खनिज तत्व पाए जाते हैं। आकर में बड़ा, बेदाग़ और हलकी-सी लाली लिए हुए हो, वह आँवला सबसे उत्तम होता है। एक आँवला एक अंण्डे से अधिक बल देता है। एक आँवले में विटामिन- सी की मात्रा चार नारंगी और आठ टमाटर या चार केले के बराबर मिलता है। फलों के अलावा, पत्तियां, छाल और यहां तक कि बीज का उपयोग भी विविध उद्देश्‍य से किया जाता है। इसके ताजे फल में प्रोटीन, कर्बोहाईड्रेट, रेशा (फाइबर), वसा, विटामिन-सी, विटमिन डी, विटामिन बी-1, थायोमिन, रिबोफ्लोविन, नियासिन, एस्कार्बिक एसिड, निकोटेनिक एसिड, टैनिन्स, ग्लूकोज, फ्लेविन, गेलिक एसिड, इलैजिक एसिड और कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटिन के अलावा 80 प्रतिशत पानी पाया जाता है। इन सबके अलावा इसमें गैफिक एसिड भी पाया जाता है जिसमें पोलिफिनोल होता हैं। इसके बीजों में आलिक एसिड लिनोलिक एसिड और लिनोलेनिक एसिड पाए जाते हैं।

औषधीय उपयोग

आंवला (Emblic Myrobalan, Indian Gooseberry, Emblica Officinalis) एक कसैला स्वाद वाला अत्यन्त गुणकारी पोसक शीतल विटामिन सी से भरपूर वृद्धावस्था को रोकने में समर्थ धातृ फल है। आंवला के फलों की देशी दवाओं में अत्‍यधिक महत्‍ता है। यह तीता, शीतल, तापहर, मूत्रवर्धक और मृदुविरेचक होता है। आंवला युवकों को यौवन और बड़ों को युवा जैसी शक्ति प्रदान करता है। एक टॉनिक के रूप में आंवला शरीर और स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान है। दिमागी परिश्रम करने वाले व्यक्तियों को वर्ष भर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है। कसैला आंवला खाने के बाद पानी पीने पर मीठा लगता है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान आंवला को विटामिन सी का भंडार मानता है। बार-बार होने वाली बीमारियों से बचाव करने वाला आंवला के फलों में विटामिन "सी" का सबसे बड़ा भण्डार है। आंवले का एक खास गुण यह है कि इसका विटामिन "सी" और अन्य पोषक तत्व पकाने, सुखाने, तलने, पुराना होने या अचार बनाने पर भी नष्ट नहीं होते। आंवला हरा, ताजा हो या प्राकृतिक रूप से सुखाया हुआ पुराना हो, इसके गुण नष्ट नहीं होते। इसकी अम्लता इसके गुणों की रक्षा करती है। आंवला ताजा व सुखा दोनों रूप में मिलता है हो सके तो ताजा आंवला इस्तेमाल करे वरना धुल रहित शुष्क स्थान पर छाया में सुखा कर प्रयोग करे। जिससे विटामिन सी कम से कम नष्ट होता है। आंवलों की सुरक्षित अवधि एक साल मानी गयी है। उसके बाद इसके गुणों में कमी आने लगती है। आंवला का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभप्रद माना गया है। यह शरीर में विटामिन सी की कमी को पूरा करता है और इस तरह विटामिन सी की कमी से होने वाले रोगों से यह बचाव करने में सक्षम है।

भारत में आंवला का उपयोग एक कॉस्मेटिक के रूप में भी किया जाता है। बालों के लिए यह एक हेल्थ टॉनिक है। केशों के स्वास्थ्य के लिए आंवले के तेल का प्रयोग लाभप्रद माना गया है। इसके नियमित उपयोग से बाल काले होते हैं और उनकी चमक भी बढती है। इसके सेवन से त्वचा सम्बन्धी रोग में लाभ मिलता है, त्वचा स्वस्थ और जवां बनी रहती है। आंवला आपके स्नायु तंत्र को मजबूती देता है। सौन्दर्य के साथ साथ आपकी स्मरण शक्ति को भी बढ़ाता है। आप जंक फूड का सेवन करने वालों में से हैं तो आपको आंवला जरूर खाना चाहिए, रात को सोने से पहले आंवला खाएं इससे पेट में हानिकारक तत्व इकट्ठा नहीं हो पाएंगे व पेट साफ रहेगा। आंवला हानिकारक टांक्सिन को शरीर से बाहर निकालने में सहायक होता है व रक्त को साफ करता है। गर्मियों के मौसम में सुबह खाली पेट में एक आंवले का मुरब्बा खा कर पानी पीने से शरीर अंदर से शीतल रहता है।

आयुर्वेद में आंवले को बहुत महत्ता प्रदान की गई है, जिससे इसे रसायन माना जाता है। च्यवनप्राश आयुर्वेद का प्रसिद्ध रसायन है, जो टॉनिक के रूप में आम आदमी भी प्रयोग करता है। इसमें आंवले की अधिकता के कारण ही विटामिन 'सी' भरपूर होता है। यह शरीर में आरोग्य शक्ति बढ़ाता है। त्वचा, नेत्र रोग और केश (बालों) के लिए विटामिन सी बहुत उपयोगी है। संक्रमण से बचाने, मसूढ़ों को स्वस्थ रखने, घाव भरने और खून बनाने में भी विटामिन सी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसके अलावा आंवला का उपयोग त्रिफला बनाने में किया जाता है जो कब्ज या पेट में गैस की समस्या को दूर करने के लिए उपयुक्त दवा है। त्रिफला स्वास्थ्य को बहेतर बनाने के साथ ही शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता को भी बढाता है। इस फल में आयरन व कैल्शियम भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। आयरन रक्त को बढ़ाता है। आंवला आयुर्वेद और यूनानी पैथी की प्रसिद्ध दवाइयों, च्यवन प्राश, ब्राह्म रसायन, धात्री रसायन, अनोशदारू, त्रिफला रसायन, आमलकी रसायन, त्रिफला चूर्ण, धायरिष्ट, त्रिफलारिष्ट, त्रिफला घृत आदि के साथ मुरब्बे, शर्बत, केश तेल आदि निर्माण में प्रयुक्त होता है। रक्तवर्धक नवायस लौह, धात्री लौह, योगराज रसायन, त्रिफला मंडूर भी आंवले से बनाए जाते हैं। ये सभी आंवले के प्रमुख शक्तिवर्धक व रोग-निवारक उत्पाद हैं। मानव शरीर में सिर्फ श्वेत कुष्ठ [ल्यूकोडर्मा] में आंवला उपयोग में नहीं लिया जाता। इसके अलावा सिर से पैर तक का कोई ऎसा रोग नहीं जहां आंवला दवा या खुराक के रूप में उपयोगी न रहता हो।

विटमिन सी से भरपूर आंवला का प्रयोग कई रूपों में किया जाता है। स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक होने के कारण ही प्राचीन काल से ही भारतीय गृहिणी की रसोई में आंवला, चटनी, सब्जी, आचार, मुरब्बे, जैम के रूप में सदा से विराजमान है। बढ़ती उम्र के प्रभावों को धीमा करने का अद्भुत गुण इसे "रसायन" बनाता है। इसके निरंतर प्रयोग से बाल टूटना, रूसी, सफेद होना रूक जाते हैं। नेत्र ज्योति सुरक्षित रहती है। दांत मजबूत बने रहते हैं तथा नेत्र, हाथ पांव के तलुओं, मूत्रमार्ग, आमाशय, आंतों तथा मलमार्ग की जलन समाप्त हो जाती है। इसके प्रयोग से इम्युनिटी पावर सुरक्षित रहती है। आजकल आंवला+ पालक+ गाजर का मिश्रित रस जूस बेचने वालों व पीने वालों का सर्वप्रिय स्वास्थ्यवर्धक पेय है। आंवले का मुरब्बा अगर चूने के पानी में उबाल कर बनाया गया है तो सिर्फ सुस्वादु ही हो सकता है, गुणकारी नहीं। इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि हरा आंवला ही ज्यादा प्रयोग किया जाए। ये चार महीने बाजार में उपलब्ध रहता है। अगर हम चार महीने इसका सेवन कर लें तो शेष आठ महीने तक तो रोग रहित होकर जीवनयापन कर ही सकते हैं।

अपने अनेक गुणों के कारण आयुर्वेद में आंवला को अमृत फल कहा गया है। आंवले का इस्तेमाल आर्युवेदिक दवाइयों में ज्यादा किया जाता है। आयुर्वेद के विद्वानों एवं ग्रंथों में वनौषधियों में हरड़ और आंवले को सर्वश्रेष्ठ माना है। इसमें हरड़ रोगनाशक तथा आंवला सर्वोत्तम स्वास्थ्य रक्षक माने गए हैं। आंवले में खट्टापन एवं कसैलापन प्रधान रूप से है पर इसमें मिठास, कडुवापन और खारापन भी गौण रूप से विद्यमान है। आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार आंवला कब्जकारक, मूत्रल, रक्त शोधक, पाचक, रूचिवर्धक तथा अतिसार, प्रमेह, दाह, पीलिया, अम्ल पित्त, रक्त विकार, रक्त स्त्राव, बवासीर, कब्ज, अजीर्ण, बदहजमी, श्वास, खांसी, वीर्य क्षीणता, रक्त प्रदर नाशक तथा आयुवर्धक है। यह फल पितनाश्क होने के कारण पित-प्रधान रोगों की प्रधान औषधि है। यह फल मधुरता और शीतलता के कारण पित को शान्त करता है। आंवला तीनो दोषों (वाट पित काफ) को संतुलित करता है। यह पाचक, अरुचि नाशक वमन में लाभकारी है। यह नाड़ी तंत्र व इन्द्रियों को ताकत देने वाला पोष्टिक रसायन है। यह रक्तवाहिनियों के विकारों को नष्ट करने में सक्षम है।

शहद और बादाम का तेल आंवले के दोषों को दूर करता है तथा इसके गुणों में सहायक होता है। आंवला प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक होता है लेकिन शहद के साथ सेवन करने से यह दुष्प्रभाव खत्म हो जाता है। जो लोग शीत प्रकृति के है या जिन लोगों को सर्दी अधिक लगती है या जिनका हाजमा कमजोर है, उन्हे कच्चे आंवले का सेवन नहीं करना चाहिए। मात्रा :- आंवले का रस 10 से 20 मिलीलीटर। चूर्ण 5 से 10 ग्राम। आंवले के रस को कांच एवं प्लास्टिक के बर्तन में रख सकते हैं। हरा ताजा आंवला नहीं मिलने पर सूखे आंवले का चूर्ण बनाकर सुबह और शाम दूध या ताजा पानी के साथ लेना चाहिए।

दिल को सेहतमंद रखने के लिए रोज आंवला खाने की आदत डालें। इससे आपके दिल की मांसपेशियां मजबूत होंगी, जिससे दिल शरीर को ज्यादा व साफ खून सप्लाई कर पाएगा। हमारे शरीर में कॉलेस्ट्राल काफी महत्व रखता है। मनुष्य का लिवर कोलेस्ट्राल का मुख्य स्रोत माना जाता है। शरीर में उपयोग न होने वाला कोलेस्ट्राल खून की नलिकाओं में जम जाता है जिससे हार्ट अटैक होने का खतरा रहता हैं। आंवले में मौजूद विटामिन 'सी' इस कॉलेस्ट्राल को खून की नलिकाओं से घुलाने में मदद करता है जिससे शरीर का ब्लड प्रेशर कम होता है।

शरीर में पैनक्रियाज का ब्लड ग्लूकोज स्तर कंट्रोल न कर पाना डायबिटिज होने का संकेत देता हैं। आज हमारे देश में मधुमेह के मरीज बढ़ रहे हैं। अगर आप भी इस बीमारी से ग्रस्त हैं जो आंवला आपके लिए अचूक दवा है। आंवला, जामुन और करेले की बराबर मात्रा मिलाकर एक-दो चम्मच हर दिन लें तो यह काफी फायदा पहुंचाता है। यह आपके मधुमेह को काबू में रखने में मदद करेगा। आंवले में क्रोमियम काफी मात्रा में होता है, जो डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद है। दरअसल, क्रोमियम इंसुलिन बनाने वाले सेल्स को ऐक्टिवेट करता है और इस हॉर्मोन का काम शरीर में ब्लड शुगर को कंट्रोल करना होता है।

ज्यादा मीठा, खट्टा, तीखा और तैलीय खाना खाने से एसिडिटी हो जाती है। जरूरत से ज्यादा कॉफी, चाय और सिगरेट से भी एसिडिटी या गैस होने का खतरा होता है। इससे गुस्सा, दु:ख और निराशा हो जाती है। जब पेट में बहुत ज्यादा जलन हो तो बस आंवला ले लीजिए। अगर जरूरत से ज्यादा एसिडिटी हो तो एक ग्राम आंवला पाउडर में थोड़ी सी चीनी मिलाकर पानी या दूध के साथ ले लें तो इससे काफी आराम मिलता है। एक रिसर्च से पता चला है कि खाना खाने से पहले आंवले का पाउडर, शहद और मक्खन मिलाकर खाने से भूख अच्छी लगती है। अगर आपका पेट खराब है, तो आंवला खाएं। दरअसल, लेक्सेटिव क्वॉलिटीज की वजह से यह डायरिया जैसी परेशानियों को दूर करने में बहुत फायदेमंद है। बालों का झड़ना, बेजान व रूखे होने या उम्र के साथ सफेद होना इन सबमें आंवला बेहद फायदेमंद साबित होता हैं। बालों के जितने भी उत्पाद बाजार में मिलते हैं उन सबमें आंवले का मुख्यतया से इस्तेमाल किया जाता है। अगर आप अपनी आईसाइट इंप्रूव करना चाहते हैं, तो आंवले के जूस में शहद मिलाकर पीएं। यह मोतियाबिंद की परेशानी में भी फायदेमंद रहता है। इसमें मौजूद एंटी-इंम्फ्लामेटरी एजेंट तत्व अर्थराइटिस के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इसका रस ब्रेन टॉनिक के रूप में काम करता है जो याददाश्त बढाता है और एनर्जी प्रदान करता है।

आंवला से रोगों के उपचार

  • अतिसार:- कच्चा आंवला पीस कर रोगी की नाभि के चारों ओर कटोरी जैसी बनाकर इस नाभि में अदरक का रस भर दें।
  • हिचकी:- आंवला, कैथ का गूदा, छोटी पीपर का चूर्ण, शहद से चटाएं तो हिचकियां मिट जाएंगी।
  • अजीर्ण:- ताजा आंवला, अदरक, हरा धनिया मिलाकर चटनी बनावें इसमें सेंधा नमक, काला नमक, हींग, जीरा, काली मिर्च मिला चटावें। डकारें आएंगी, भूख खुलेगी, हाजमा बढ़ेगा।
  • स्त्रियों का बहुमूत्र [सोमरोग]:- आंवले का रस, पका हुआ केले का गूदा, शहद व मिश्री चारों मिलाकर चटाएं।
  • मूत्र कष्ट:- आंवले का 25 ग्राम ताजा रस, छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण बुरक कर पिलाएं। मूत्र आने लगेगा।
  • बवासीर:- आंवले पीस कर पीठी को मिट्टी के बर्तन में लेप कर दें। इसमें गाय की ताजा छाछ भर रोगी को पिलाएं।
  • मुंह के छाले और घाव:- आंवले के पत्तों के काढे से दिन में 2 से 3 बार कुल्ले कराएं।
  • कब्ज़:- कब्ज़ में आँवला रात को एक चम्मच पिसा हुआ पानी या दूध के साथ लेने से सुबह शौच साफ़ आता है, कब्ज़ नहीं रहती। इससे आंते और पेट हलकी और साफ़ रहता है।
  • श्वेत प्रदर:- आंवले की गुठली फोड़ कर निकाले बीजों का चूर्ण पानी से पीस कर शहद व मिश्री मिला पिलाएं।
  • नेत्रों के रोग:- आंवला छिलका दरदरा कूट कर पानी में भिगोकर रखें। इसे कपड़े से [साफ] छान कर दिन में तीन बार 2-2 बूंद आंखों में टपकाएं।
  • बाल झड़ना:- आंवला रस और नारियल तेल बराबर मात्रा में मिलाकर बालों की जड़ों में मालिश करें।
  • नाक से खून आना:- नाक से खून आने पर नाक में आंवले के रस की दो बूंद डालें तथा आंवले को पीस कर सिर पर लेप करें।
  • उल्टियों की शिकायत में आंवला (5 ग्राम) के साथ छोटी पीपल (आधा ग्राम) को शहद के साथ लेने से राहत मिलती है।
  • मोटापा:- प्रतिदिन आंवले का रस और शहद पचास-पचास ग्राम सुबह तथा रात सोते समय लेने से पेट का मोटापा दूर हो जाता है। सूखी खांसी में भी आंवला रस और शहद फायदेमंद है।
  • अनिद्रा:- यदि रात में सोने से पहले इसके रस का सेवन किया जाए तो बहुत अच्छी नींद आती है। अनिद्रा के शिकार लोगों को रात में सोने से पहले आधा-एक चम्मच आंवले का रस पीना लाभकारी होता है।
  • ल्यूकोरिया के लिए:- आंवले के बीजों का पावडर बना लीजिये। एक चम्मच पावडर में आधा चम्मच शहद और थोड़ी सी मिश्री मिला कर सवेरे खाली पेट खाएं 15 दिनों तक।
  • बुढापा दूर करने के लिए:- 100 ग्राम आंवले का पावडर और 100 ग्राम काले तिल का पावडर मिलाये। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 100 ग्राम देसी घी मिलाएं . एक चम्मच प्रतिदिन सुबह सिर्फ एक महीने तक खाना है।
  • ज्वर दूर करने के लिए:- दो चम्मच हरे आंवले का रस और दो ही चम्मच अदरक का रस मिश्री मिलाकर दिन में दो बार खाना है।
  • मूत्र त्याग में दर्द के लिए:- 150 ग्राम आंवले का रस लीजिये, बिना कुछ मिलाये पी जाएं, बस दो दिनों तक।
  • खांसी में:- सूखे आंवले के एक चम्मच पावडर में थोड़ा घी मिला कर पेस्ट बना लीजिये, दिन में दो बार चाटिये। सूखी खांसी होने पर आंवले के रस में शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार लेने से काफी आराम मिलता है।
  • सुगर के मरीजों के लिए:- आंवला और हल्दी का पावडर बराबर मात्रा में लीजिये, अच्छी तरह मिक्स कीजिए। जितनी बार भी भोजन करें उसके बाद एक चम्मच पावडर पानी से निगल लीजिये सुगर कभी परेशान नहीं करेगी।
  • हकलाहट हो तो:- 100 ग्राम गाय के दूध में एक चम्मच सूखे आंवले का पावडर मिला कर लगातार 15 दिन पीयें, आवाज बराबर से निकलेगी और कंठ सुरीला भी होगा।
  • छाती (सीने) में जलन के लिए:- सूखे आंवले का एक चम्मच पावडर शहद मिला कर सुबह चाटिये। या एक चम्मच पावडर में दो चम्मच चीनी और दो ही चम्मच घी मिलाकर चाटिये।
  • पीलिया (जांडिस) में:- एक गिलास गन्ने के रस में तीन बड़े चम्मच हरे आंवले का रस और तीन ही चम्मच शहद मिला कर दिन में दो बार पिलाए। 10 दिन तक पिलाना बेहतर रहेगा जबकि रोग तो तीन दिन में ही ख़त्म हो जाएगा।
  • हाई ब्लडप्रैशर, एसिडिटी, दृष्टि दोष, मौसमी बुखार, सिर दर्द, पित्त शूल, वायु विकार, अनिद्रा, उल्टी आना, बार-बार पेशाब जाना, प्रोस्टेट ग्रंथि के विकार, हकलाना, तुतलाना, पेशाब में जलन, ह्वदयशूल [पित्त दोष] आदि रोगों में पचास-पचास ग्राम आंवला रस और शहद मिलाकर रोजाना सोते समय लेने से रोग विकार दूर होकर शरीर स्वस्थ बन जाता है।
  • बवासीर [मस्से], स्वप्न दोष, स्मरण शक्ति का कमजोर होना, औरतों में श्वेत प्रदर, सोमरोग [बूंद-बूंद पेशाब आना मूत्र पर नियंत्रण नहीं रहना] आदि रोगों में भी पूर्व में बताए अनुसार शहद और आंवला रस का सेवन हितकारी है।
आंवला के सेवन का बिलकुल सामान्य और आयुर्वेदिक तरीका –

आप 1 किलोग्राम हरा आंवला लीजिये साथ ही 200 ग्राम हरी मिर्च। दोनों को धो लीजिये। आंवले को काट कर गुठलियाँ बाहर निकाल दीजिये, अब दोनों को ग्राईडर में दरदरा पीस लीजिये (बिना पानी डाले). अब इसमें 100 ग्राम सेंधा नमक मिला दीजिये। इसे परिवार का प्रत्येक सदस्य चटपटी चटनी की तरह मजे से खायेगा। इसी को आप धूप में सुखा कर पूरे वर्ष के लिए सुरक्षित भी रख सकते हैं. जब इच्छा हो दाल या सब्जी में ऊपर से डाल कर खा सकते हैं। हरी मिर्च (कच्ची) हीमोग्लोविन बढाती है और आंवले के साथ उसका मिश्रण सोने में सुहागा हो जाता है। इसका प्रयोग शरीर में एक्टिवनेस को तो 24 घंटे में ही बढ़ा देता है अनगिनत लाभ हैं इससे लीवर मजबूत हो जाता है।

रोज के भोजन से हमारे शरीर को कितनी विटमिन सी की जरूरत होती है -

1 वर्ष से कम उम्र : 30-35 मिग्रा. 1-14 वर्ष की उम्र के बच्चे : 40-50 मिग्रा. किशोरावस्था 15-18 वर्ष : 65-75 मिग्रा. पुरुष 18 वर्ष से ऊपर : 90 मिग्रा. स्त्री 18 वर्ष से ऊपर : 75 मिग्रा.।

आंवले के खेती का तरीका

वृद्धि -- एशिया और यूरोप में बड़े पैमाने पर आंवला की खेती होती है। इसकी खेती भारत में सामान्‍य है तथा विशेषतौर पर उत्‍तर प्रदेश के प्रतापगढ़, रायबरेली, वाराणसी, जौनपुर, सुल्‍तानपुर, कानपुर, आगरा तथा मथुरा में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी सघन रोपाई आगरा, मथुरा, इटावा, फतेहपुर तथा बुंदेलखंड के समशीतोष्‍ण इलाके सहित उत्‍तर प्रदेश के क्षारीयता प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है। आंवला की खेती महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के समशीतोष्‍ण क्षेत्रों में भी तेजी से फैलती जा रही है। हरियाणा के अरावली तथा पंजाब की कांडी क्षेत्र के अलावा हिमाचल प्रदेश में भी इसकी खेती जोर पकड़ती जा रही है।

आंवला के फल औषधीय गुणों से युक्त होते हैं, इसलिए इसकी व्यवसायिक खेती किसानों के लिए फायदेमंद होता है। यूं तो आंवला के पौधे का लगभग हर भाग उपयोगी है लेकिन मुख्य रूप से इसके फलों की वजह से ही आंवला की पहचान औषधीय पौधे के रूप में की जाती है। आंवला के फलों को कच्चा अथवा पकने के बाद अपने उपयोग के लिए काम में लाया जा सकता है। सख्‍त प्रकृति को देखते हुए यह विविध बंजर भूमि, अत्‍यधिक उत्‍पादक/इकाई क्षेत्र (15-20 टन/हेक्‍टेयर) के लिये उपयुक्‍त है। अत्‍यधिक पोषक तत्‍वों तथा चिकित्‍सीय महत्‍ता के कारण आंवला महत्‍वपूर्ण फल बन गया है।

जलवायु -- भारत की जलवायु आंवले की खेती के लिहाज से सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बावजूद ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्कॉटलैंड, नॉर्वे आदि देशों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। इसके फलों को विकसित होने के लिए सूर्य का प्रकाश आवश्यक माना जाता है। हालांकि आंवले को किसी भी मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन काली जलोढ़ मिट्टी को इसके लिए उपयुक्त माना जाता है। यह पौधा सभी तरह की जलवायु के लिए उपयुक्त है। एक ओर जहां यह 45 डिग्री से भी अधिक तापमान सहन कर सकता है वहीं दूसरी ओर अधिक-से-अधिक शीत और कुहरे का भी इस पर कोई खास प्रभाव नहीं पडता। यही कारण है कि यह नमक युक्त मिट्टी से लेकर पोषक तत्वों से भरपूर उपजाऊ भूमि अथवा अपेक्षाकृत सूखी जलवायु और मिट्टी में भी बेहतर तरीके से विकास करने में सक्षम है।

खेती -- आंवले का पौधा सीधे मिट्टी में रोपा जाता है। इसके अलावा आंवला के बीजों से भी नए पौधे उत्पन्न किए जा सकते हैं। आंवले को बीज के उगाने की अपेक्षा कलम लगाना ज्यादा अच्छा माना जाता है। कलम पौधा जल्द ही मिट्टी में जड़ जमा लेता है और इसमें जल्द फल लग जाते हैं। कस्पोस्ट खाद का इस्तेमाल कर भारी मात्रा में फल पाए जा सकते हैं। आंवले के फल विभिन्न आकार के होते हैं। छोटे फल बड़े फल की अपेक्षा ज्यादा तीखे होते हैं।

कीटनाशक का प्रयोग -- आंवला के पौधे और फल कोमल प्रकृति के होते हैं, इसलिए इसमें कीड़े जल्दी लग जाते हैं। आंवले की व्यवसायिक खेती के दौरान यह ध्यान रखना होता है कि पौधे और फल को संक्रमण से रोका जाए। शुरुआती दिनों में इनमें लगे कीड़ों और उसके लार्वे को हाथ से हटाया जा सकता है। पोटाशियम सल्फाइड कीटाणुओं और फफुंदियों की रोकथाम के लिए उपयोगी माना जाता है।

आंवले में उपस्थित तत्वों का विवरण
तत्व मात्रा
प्रोटीन 0.5 %
वसा 0.1 %
रेशा 3.4 %
खनिज द्रव्य 0.7 %
कार्बोहाइड्रेट 14.1 %
पानी 81.2 %
विटामिन-"C” लगभग 1/2 ग्राम
कैल्शियम 0.05 %
फास्फोरस 0.02 %
लोहा लगभग 1 ग्राम का 4 भाग/100 ग्रा
विभिन्न भाषाओं में आंवला का नाम
भाषा नाम
हिन्दी आंवला, आमला, आंवरा।
अंग्रेज़ी एमब्लिक माइरोबेलन, इंडियन गोसबेरी।
संस्कृत आमलकी, धात्री, शिवा।
मराठी आंवली, आंवलकांटी, आंवला।
गुजराती आंवला, आमला।
बंगाली आमलकी, आमला, आंगला।
तेलगू असरिकाय, उशीरिकई।
कन्नड़ निल्लकाय, नेल्लि।
द्राविड़ी नेल्लिक्काय्, अमृत फल, वयस्था।
अरबी आमलन्।
लैटिन एमब्लिका ऑफिसिनेलिस।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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