एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

"दासबोध" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
'''दासबोध''' [[मराठी भाषा|मराठी]] [[संत साहित्य]] का एक प्रमुख [[ग्रंथ]] है। इसकी रचना 17वीं [[शताब्दी]] में [[महाराष्ट्र]] के तेजस्वी संत [[समर्थ रामदास|श्रीसमर्थ रामदास]] ने की थी। इनका मूल नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी (ठोसर) था।
+
'''दासबोध''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Dasbodh'') [[मराठी भाषा|मराठी]] [[संत साहित्य]] का एक प्रमुख [[ग्रंथ]] है। इसकी रचना 17वीं [[शताब्दी]] में [[महाराष्ट्र]] के तेजस्वी संत [[समर्थ रामदास|श्रीसमर्थ रामदास]] ने की थी। इनका मूल नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी (ठोसर) था।
 
==समर्थ रामदास==
 
==समर्थ रामदास==
 
{{main|समर्थ रामदास}}
 
{{main|समर्थ रामदास}}

14:26, 21 सितम्बर 2015 के समय का अवतरण

दासबोध
दासबोध का आवरण पृष्ठ
विवरण 'दासबोध' मराठी संत साहित्य का प्रसिद्ध ग्रंथ है। महाराष्ट्र में यह ग्रंथ बड़ा ही पवित्र माना जाता है।
रचयिता समर्थ रामदास
रचना काल 17वीं शताब्दी
विषय इस ग्रंथ को समर्थ रामदास ने 20 दशकों में विभाजित किया है। प्रत्येक दशक में नाम के अनुसार 10 समास हैं। एक समास में एक विषय वर्णित है। इस प्रकार संपूर्ण ग्रंथ में दो सौ विषय हैं।
विशेष 'दासबोध' ग्रंथ का महाराष्ट्र में बहुत अधिक सम्मान है। जिस प्रकार हिन्दीभाषी 'श्रीरामचरित मानस' को आदर देते हैं, उतना ही आदर मराठी जानने वाले दासबोध को देते हैं।
अन्य जानकारी इस ग्रंथ में साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए भी ग्रहण करने योग्य चीजें हैं और उच्च से उच्च अधिकार प्राप्त राजा, योगी, सिद्ध, साधक लोगों के लिए भी इसमें परमोपयोगी उपदेश हैं।

दासबोध (अंग्रेज़ी: Dasbodh) मराठी संत साहित्य का एक प्रमुख ग्रंथ है। इसकी रचना 17वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के तेजस्वी संत श्रीसमर्थ रामदास ने की थी। इनका मूल नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी (ठोसर) था।

समर्थ रामदास

समर्थ रामदास का जन्म महाराष्ट्र में जांब नामक स्थान पर शके 1530 ई. में हुआ था। आख्यायिका है कि 12 वर्ष की अवस्था में अपने विवाह के समय 'शुभमंगल सावधान' में 'सावधान' शब्द सुनकर वे विवाहमंडप से निकल गए और टाकली नामक स्थान पर श्रीरामचंद्र की उपासना में संलग्न हो गए। उपासना में 12 वर्ष तक वे लीन रहे। यहीं उनका नाम 'रामदास' पड़ा। इसके बाद 12 वर्ष तक वे भारतवर्ष का भ्रमण करते रहे। इस प्रवास में उन्होंने जनता की जो दुर्दशा देखी उससे उनका हृदय संतप्त हो उठा।

स्वराज्य की स्थापना

समर्थ रामदास ने मोक्षसाधना के स्थान पर अपने जीवन का लक्ष्य स्वराज्य की स्थापना द्वारा आततायी शासकों के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाना बनाया। शासन के विरुद्ध जनता को संघटित होने का उपदेश देते हुए वे घूमने लगे। कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1100 मठ तथा अखाड़े स्थापित कर स्वराज्य स्थापना के लिए जनता को तैयार करने का प्रयत्न किया। इसी प्रयत्न में उन्हें छत्रपति श्रीशिवाजी महाराज जैसे योग्य शिष्य का लाभ हुआ और स्वराज्य स्थापना के स्वप्न को साकार होते हुए देखने का सौभाग्य उन्हें अपने जीवन काल में ही प्राप्त हो सका। उन्होंने शके 1603 में 73 वर्ष की अवस्था में महाराष्ट्र में सज्जनगढ़ नामक स्थान पर समाधि ली।

ग्रंथ की भाषा व विषय

संत समर्थ रामदास के उपदेश 'दासबोध' ग्रंथ में हैं। उनका जीवनदर्शन अत्यंत प्रौढ़, प्रांजल तथा सरल भाषा में इस ग्रंथ में प्रकट हुआ है। साधारण से साधारण व्यक्ति के लिए भी इसमें ग्रहण करने योग्य चीजें हैं और उच्च से उच्च अधिकार प्राप्त राजा, योगी, सिद्ध, साधक लोगों के लिए भी इसमें परमोपयोगी उपदेश हैं। इसे उन्होंने गुरु-शिष्य संवाद के रूप में रचा है। पूरा ग्रंथ 'ओवी' नामक मराठी छंद में है। इसे उन्होंने 20 दशकों में विभाजित किया है। प्रत्येक दशक में नाम के अनुसार 10 समास हैं। एक समास में एक विषय वर्णित है। इस प्रकार संपूर्ण ग्रंथ में दो सौ विषय हैं।

इन विषयों में जीवन की शायद ही कोई छूटाछूटी हो। इनमें स्वार्थ है, परमार्थ है, अध्यात्म है, सामाजिक तथा वैयक्तिक गुण, अवगुण, शक्ति, अधिकार, आहार, विहार, विचार, व्यवहार सभी कुछ है। 'अक्षर कैसा होना (लिखना) चाहिए' से लेकर 'आत्मज्ञान कैसे प्राप्त हो सकता हैं', तक सभी विषयों पर ग्रंथ अनुभवसिद्ध पक्के विचार प्रस्तुत करता है। पूरे ग्रंथ में कुल 7751 ओवियाँ हैं।

महत्त्व

'दासबोध' ग्रंथ का महाराष्ट्र में बहुत अधिक सम्मान है। हिन्दी भाषा जानने वाले 'श्रीरामचरित मानस' को जितने आदर की दृष्टि से देखते हैं, उतने ही आदर की दृष्टि से मराठी जानने वाले दासबोध को देखते हैं। महाराष्ट्र का व्यक्तित्व गढ़ने में इस ग्रंथ का महत्व सर्वाधिक है।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दासबोध (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2015।