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==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म [[27 मई]], [[1894]], [[राजनांदगांव]], [[छत्तीसगढ़]], [[भारत]] में हुआ था। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी खैरागढ़ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति उपन्यास के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर पंडित रविशंकर शुक्ल (मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये।  
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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म [[27 मई]], [[1894]], [[राजनांदगाँव ज़िला|राजनांदगाँव]], [[छत्तीसगढ़]], [[भारत]] में हुआ था। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी [[खेरागढ़]] के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी चंद्रकांता संतति उपन्यास के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर पंडित रविशंकर शुक्ल (मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये।  
 
==शिक्षा==
 
==शिक्षा==
[[1911]] में [[जबलपुर]] से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। इसके एक साल बाद अर्थात् [[1912]] में वे मेट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण हुए और आगे की पढ़ाई के लिए बनारस के सेंट्रल कॉलेज में भर्ती हो गये। इसी बीच सन [[1913]] में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। [[1916]] में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि के रूप में किया था। 1916 ई. से लेकर लगभग 1925 ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में 'शतदल' नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्वविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।  
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[[1911]] में [[जबलपुर]] से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। इसके एक साल बाद [[1912]] में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए बनारस के सेंट्रल कॉलेज में भर्ती हो गये। इसी बीच सन [[1913]] में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। [[1916]] में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि के रूप में किया था। 1916 ई. से लेकर लगभग [[1925]] ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में 'शतदल' नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्वविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।  
 
==कार्यक्षेत्र==
 
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पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से [[1919]] तक [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] शिक्षक के रूप में सेवा की। सन [[1920]] में यह सरस्वती के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही [[1921]] में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने ([[1925]]) तक उस पद पर बने रहे। सन [[1929]] से [[1949]] तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कांकेर में भी कुछ समय तक उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया।  
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से [[1919]] तक [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] शिक्षक के रूप में सेवा की। सन 1920 में सरस्वती के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने (1925) तक उस पद पर बने रहे। सन [[1929]] से [[1949]] तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कांकेर में भी कुछ समय तक उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया।  
 
 
==कृतियाँ==
 
==कृतियाँ==
 
आरम्भ में इनकी दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं-  
 
आरम्भ में इनकी दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं-  
*'हिन्दी साहित्य विमर्श' (1924 ई.)  
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*'हिन्दी साहित्य विमर्श' ([[1924]] ई.)  
*'विश्व साहित्य' (1924 ई.)।  
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*'विश्व साहित्य' ([[1924]] ई.)।  
  
इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। 'विश्व साहित्य' में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों के अतिरिक्त बख्शी की दो अन्य आलोचनात्मक कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं- 'हिन्दी कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में नाटक की सी रमणीयता और कहानी जैसी रंजकता पायी जाती है। यत्र-तत्र शिष्ट तथा गम्भीर व्यंग्य-विनोद की अवतारणा करते चलना इनके शैलीकार की एक प्रमुख विशेषता है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने 1929 से 1934 तक अनेक महत्वपूर्ण पाठ्यपुस्तकों यथा- पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। मास्टर जी की उल्लेखनीय सेवा को देखते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन 1949 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से इनको अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।
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इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। 'विश्व साहित्य' में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों के अतिरिक्त बख्शी की दो अन्य आलोचनात्मक कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं- 'हिन्दी कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में नाटक की सी रमणीयता और कहानी जैसी रंजकता पायी जाती है। यत्र-तत्र शिष्ट तथा गम्भीर व्यंग्य-विनोद की अवतारणा करते चलना इनके शैलीकार की एक प्रमुख विशेषता है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने [[1929]] से [[1934]] तक अनेक महत्वपूर्ण पाठ्यपुस्तकों यथा- पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। मास्टर जी की उल्लेखनीय सेवा को देखते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन [[1949]] में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से इनको अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे [[मध्य प्रदेश]] हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।
  
महाकौशल के रविवासरीय अंक का संपादन कार्य भी मास्टर जी ने 1952 से 1956 तक किया तथा 1955 से 1956 तक खैरागढ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया । तीसरी बार आप 20 अगस्त 1959 में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगाँव में हिंदी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य 1949 से 1957 के दरमियान ही मास्टरजी की महत्वपूर्ण संग्रह- कुछ, और कुछ, यात्री, हिंदी कथा साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। 1968 का वर्ष उनके लिए अत्य़न्त महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी बीच उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम- मेरी अपनी कथा, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, वे दिन, समस्या और समाधान, नवरात्र, जिन्हें नहीं भूलूंगा, हिंदी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा, अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं ।
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महाकौशल के रविवासरीय अंक का संपादन कार्य भी मास्टर जी ने [[1952]] से [[1956]] तक किया तथा [[1955]] से 1956 तक खैरागढ़ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार यह [[20 अगस्त]], [[1959]] में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगाँव में हिंदी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य [[1949]] से [[1957]] के दरमियान ही मास्टरजी की महत्वपूर्ण संग्रह- कुछ, और कुछ, यात्री, हिंदी कथा साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। [[1968]] का वर्ष उनके लिए अत्य़न्त महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी बीच उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम-मेरी अपनी कथा, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, वे दिन, समस्या और समाधान, नवरात्र, जिन्हें नहीं भूलूंगा, हिंदी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा, अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं ।
  
 
बख्शी जी की एक पुस्तक 'यात्री' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक यात्रा वृत्तान्त है और इसमें 'अनन्त पथ की यात्रा' का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की सेवाएँ उल्लेखनीय हैं। इन्होंने [[1920]] ई. से [[1927]] ई. तक 'सरस्वती' का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक 'छाया' ([[इलाहाबाद]]) के भी सम्पादक रहे।  
 
बख्शी जी की एक पुस्तक 'यात्री' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक यात्रा वृत्तान्त है और इसमें 'अनन्त पथ की यात्रा' का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की सेवाएँ उल्लेखनीय हैं। इन्होंने [[1920]] ई. से [[1927]] ई. तक 'सरस्वती' का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक 'छाया' ([[इलाहाबाद]]) के भी सम्पादक रहे।  
 
==सम्मान==
 
==सम्मान==
1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा, उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता रहा जिसमें म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन, मध्यप्रदेश शासन, आदि प्रमुख हैं ।
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[[1969]] में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा, उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता रहा जिसमें मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, मध्यप्रदेश शासन, आदि प्रमुख हैं ।
 
==मृत्यु==
 
==मृत्यु==
 
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की मृत्यु 18 दिसम्बर, 1971 को रायपुर के शासकीय डी. के हॉस्पिटल में हो गई।  
 
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की मृत्यु 18 दिसम्बर, 1971 को रायपुर के शासकीय डी. के हॉस्पिटल में हो गई।  
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11:52, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी (जन्म- 27 मई, 1894, राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़, भारत; मृत्यु- 18 दिसंबर, रायपुर, छत्तीसगढ़, भारत) सरस्वती के कुशल संपादक, साहित्य वाचस्पति और मास्टरजी के नाम से प्रसिद्ध है। यह एक प्रसिद्ध निबंधकार हैं।

जीवन परिचय

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का जन्म 27 मई, 1894, राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़, भारत में हुआ था। इनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी खेरागढ़ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी चंद्रकांता संतति उपन्यास के प्रति विशेष आसक्ति के कारण स्कूल से भाग खड़े हुए तथा हेडमास्टर पंडित रविशंकर शुक्ल (मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री) द्वारा जमकर बेतों से पीटे गये।

शिक्षा

1911 में जबलपुर से निकलने वाली ‘हितकारिणी’ में बख्शी की प्रथम कहानी ‘तारिणी’ प्रकाशित हो चुकी थी। इसके एक साल बाद 1912 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए बनारस के सेंट्रल कॉलेज में भर्ती हो गये। इसी बीच सन 1913 में लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हो गया। 1916 में उन्होंने बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी बी. ए. तक शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ साहित्य सेवा के क्षेत्र में आये और सरस्वती में लिखना प्रारम्भ किया। इनका नाम द्विवेदी युग के प्रमुख साहित्यकारों में लिया जाता है। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने अपने साहित्यिक जीवन का शुभारम्भ कवि के रूप में किया था। 1916 ई. से लेकर लगभग 1925 ई. तक इनकी स्वच्छन्दतावादी प्रकृति की फुटकर कविताएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। बाद में 'शतदल' नाम से इनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी को वास्वविक ख्याति आलोचक तथा निबन्धकार के रूप में मिली।

कार्यक्षेत्र

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने राजनांदगाँव के स्टेट हाई स्कूल में सर्वप्रथम 1916 से 1919 तक संस्कृत शिक्षक के रूप में सेवा की। सन 1920 में यह सरस्वती के सहायक संपादक के रूप में नियुक्त किये गये और एक वर्ष के भीतर ही 1921 में वे सरस्वती के प्रधान संपादक बनाये गये जहाँ वे अपने स्वेच्छा से त्यागपत्र देने (1925) तक उस पद पर बने रहे। सन 1929 से 1949 तक खैरागढ़ विक्टोरिया हाई स्कूल में अंगेज़ी शिक्षक के रूप में नियुक्त रहे। कांकेर में भी कुछ समय तक उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया।

कृतियाँ

आरम्भ में इनकी दो आलोचनात्मक कृतियाँ प्रकाशित हुईं-

  • 'हिन्दी साहित्य विमर्श' (1924 ई.)
  • 'विश्व साहित्य' (1924 ई.)।

इन कृतियों में भारतीय एवं पाश्चात्य साहित्य सिद्धान्तों के सामंजस्य एवं विवेचन की चेष्टा की गयी है। 'विश्व साहित्य' में यूरोपीय साहित्य तथा पाश्चात्य काव्य मत पर कुछ फुटकर निबन्ध भी दिये गये हैं। इन पुस्तकों के अतिरिक्त बख्शी की दो अन्य आलोचनात्मक कृतियाँ बाद में प्रकाशित हुईं- 'हिन्दी कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध कहानी साहित्य' और 'हिन्दी उपन्यास साहित्य'। निबन्ध लेखन के क्षेत्र में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एक विशिष्ट शैलीकार के रूप में सामने आते हैं। इन्होंने जीवन, समाज, धर्म, संस्कृति और साहित्य आदि विभिन्न विषयों पर उच्च कोटि के ललित निबन्ध लिखे हैं। इनके निबन्धों में नाटक की सी रमणीयता और कहानी जैसी रंजकता पायी जाती है। यत्र-तत्र शिष्ट तथा गम्भीर व्यंग्य-विनोद की अवतारणा करते चलना इनके शैलीकार की एक प्रमुख विशेषता है। उनका पहला निबंध ‘सोना निकालने वाली चींटियाँ’ सरस्वती में प्रकाशित हुआ। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी ने 1929 से 1934 तक अनेक महत्वपूर्ण पाठ्यपुस्तकों यथा- पंचपात्र, विश्वसाहित्य, प्रदीप की रचना की। मास्टर जी की उल्लेखनीय सेवा को देखते हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सन 1949 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से इनको अलंकृत किया गया। इसके ठीक एक साल बाद वे मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित हुए।

महाकौशल के रविवासरीय अंक का संपादन कार्य भी मास्टर जी ने 1952 से 1956 तक किया तथा 1955 से 1956 तक खैरागढ़ में रहकर ही सरस्वती का संपादन कार्य किया। तीसरी बार यह 20 अगस्त, 1959 में दिग्विजय कॉलेज राजनांदगाँव में हिंदी के प्रोफेसर बने और जीवन पर्यन्त वहीं शिक्षकीय कार्य करते रहे। इसी मध्य 1949 से 1957 के दरमियान ही मास्टरजी की महत्वपूर्ण संग्रह- कुछ, और कुछ, यात्री, हिंदी कथा साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श, बिखरे पन्ने, तुम्हारे लिए, कथानक आदि प्रकाशित हो चुके थे। 1968 का वर्ष उनके लिए अत्य़न्त महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इसी बीच उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध निबंध संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें हम-मेरी अपनी कथा, मेरा देश, मेरे प्रिय निबंध, वे दिन, समस्या और समाधान, नवरात्र, जिन्हें नहीं भूलूंगा, हिंदी साहित्य एक ऐतिहासिक समीक्षा, अंतिम अध्याय को गिना सकते हैं ।

बख्शी जी की एक पुस्तक 'यात्री' नाम से प्रकाशित हुई है। यह एक यात्रा वृत्तान्त है और इसमें 'अनन्त पथ की यात्रा' का रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की सेवाएँ उल्लेखनीय हैं। इन्होंने 1920 ई. से 1927 ई. तक 'सरस्वती' का सम्पादन किया। कुछ वर्षों तक 'छाया' (इलाहाबाद) के भी सम्पादक रहे।

सम्मान

1969 में सागर विश्वविद्यालय से द्वारिका प्रसाद मिश्र (मुख्यमंत्री) द्वारा डी-लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया। इसके बाद उनका लगातार हर स्तर पर अनेक संगठनों द्वारा सम्मान होता रहा, उन्हें उपाधियों से विभूषित किया जाता रहा जिसमें मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, मध्यप्रदेश शासन, आदि प्रमुख हैं ।

मृत्यु

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी की मृत्यु 18 दिसम्बर, 1971 को रायपुर के शासकीय डी. के हॉस्पिटल में हो गई।


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