"परवीन सुल्ताना" के अवतरणों में अंतर

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'''परवीन सुल्ताना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Parveen Sultana'', जन्म- [[10 जुलाई]], [[1950]], [[असम]]) [[भारत]] की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका हैं। वह '[[पटियाला घराना|पटियाला घराने]]' से सम्बन्धित हैं। परवीन सुल्ताना ऐसी विलक्षण प्रतिभाशाली गायिका हैं, जिन्हें वर्ष [[1976]] में '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित किया गया था। असमिया पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली परवीन सुल्ताना ने पटियाला घराने की गायकी में अपना अलग मुकाम बनाया है। उनके [[परिवार]] में कई पीढ़ियों से [[शास्त्रीय संगीत]] की परम्परा रही है। उनके गुरुओं में आचार्य चिनमोय लाहिरी और उस्ताद दिलशाद ख़ान प्रमुख रहे हैं। गीत को अपनी अन्तरात्मा मानने वाली परवीन सुल्ताना की जन्म-भूमि असम और कर्म-भूमि [[मुम्बई]] रही है।
'''बेगम परवीन सुल्ताना''' (जन्म- [[10 जुलाई]], [[1950]], [[असम]]) [[भारत]] की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका हैं। वह 'पटियाला घराने' से सम्बन्धित हैं। परवीन सुल्ताना ऐसी विलक्षण प्रतिभाशाली गायिका हैं, जिन्हें वर्ष [[1976]] में '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित किया गया था। असमिया पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली परवीन सुल्ताना ने पटियाला घराने की गायकी में अपना अलग मुकाम बनाया है। उनके परिवार में कई पीढ़ियों से [[शास्त्रीय संगीत]] की परम्परा रही है। उनके गुरुओं में आचार्य चिन्मय लाहिरी और उस्ताद दिलशाद ख़ान प्रमुख रहे हैं। गीत को अपनी अन्तरात्मा मानने वाली परवीन सुल्ताना की जन्म-भूमि असम और कर्म-भूमि [[मुम्बई]] रही है।
 
 
==जन्म तथा शिक्षा==
 
==जन्म तथा शिक्षा==
 
परवीन सुल्ताना का जन्म 10 जुलाई, 1950 को नोगोंग ग्राम, असम में हुआ था। इनके पिता का नाम इकरामुल माजिद तथा माता का नाम मारूफ़ा माजिद था। परवीन सुल्तान ने सबसे पहले [[संगीत]] अपने दादाजी मोहम्मद नजीफ़ ख़ाँ साहब तथा पिता इकरामुल से सीखना शुरू किया। पिता और दादाजी की छत्रछाया ने उनकी प्रतिभा को विकसित कर उन्हें 12 वर्ष कि अल्पायु में ही अपनी प्रथम प्रस्तुति देने के लिये परिपक्व बना दिया था। इसके बाद परवीन सुल्ताना [[कोलकाता]] (भूतपूर्व कलकत्ता) में स्वर्गीय पंडित चिनमोय लाहिरी के पास संगीत सीखने गयीं तथा [[1973]] से वे 'पटियाला घराने' के उस्ताद दिलशाद ख़ाँ साहब की शागिर्द बन गयीं।
 
परवीन सुल्ताना का जन्म 10 जुलाई, 1950 को नोगोंग ग्राम, असम में हुआ था। इनके पिता का नाम इकरामुल माजिद तथा माता का नाम मारूफ़ा माजिद था। परवीन सुल्तान ने सबसे पहले [[संगीत]] अपने दादाजी मोहम्मद नजीफ़ ख़ाँ साहब तथा पिता इकरामुल से सीखना शुरू किया। पिता और दादाजी की छत्रछाया ने उनकी प्रतिभा को विकसित कर उन्हें 12 वर्ष कि अल्पायु में ही अपनी प्रथम प्रस्तुति देने के लिये परिपक्व बना दिया था। इसके बाद परवीन सुल्ताना [[कोलकाता]] (भूतपूर्व कलकत्ता) में स्वर्गीय पंडित चिनमोय लाहिरी के पास संगीत सीखने गयीं तथा [[1973]] से वे 'पटियाला घराने' के उस्ताद दिलशाद ख़ाँ साहब की शागिर्द बन गयीं।
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[[चित्र:Begum-Parveen-Sultana.jpg|thumb|left|बेगम परवीन सुल्ताना]]
 
====विवाह====
 
====विवाह====
 
दो वर्ष बाद ही परवीन सुल्ताना ने दिलशाद ख़ाँ से [[विवाह]] किया और परिणय सूत्र में बँध गयीं। इनकी एक पुत्री भी है। परवीन सुल्ताना उन चुनिन्दा शास्त्रीय गायिकाओं में से एक हैं, जिन्हें ईश्वर ने एक ऐसी अनोखी और खूबसूरत आवाज़ से नवाजा, जिसका कोई सानी नहीं था। उनकी लगन और तालीम ने उन्हें खूबसूरत आवाज़ और एक गरिमामय व्यक्तित्व का धनी बनाया था, इसीलिए उन्हें 'भारतीय शास्त्रीय संगीत की रानी' कहा जाता है।
 
दो वर्ष बाद ही परवीन सुल्ताना ने दिलशाद ख़ाँ से [[विवाह]] किया और परिणय सूत्र में बँध गयीं। इनकी एक पुत्री भी है। परवीन सुल्ताना उन चुनिन्दा शास्त्रीय गायिकाओं में से एक हैं, जिन्हें ईश्वर ने एक ऐसी अनोखी और खूबसूरत आवाज़ से नवाजा, जिसका कोई सानी नहीं था। उनकी लगन और तालीम ने उन्हें खूबसूरत आवाज़ और एक गरिमामय व्यक्तित्व का धनी बनाया था, इसीलिए उन्हें 'भारतीय शास्त्रीय संगीत की रानी' कहा जाता है।
 
==रागों से सहजता==
 
==रागों से सहजता==
उस्ताद दिल्शाद ख़ाँ साहब की तालीम ने उनकी प्रतिभा की नींव को और भी सुदृढ़ किया, उनकी गायकी को नयी दिशा दी, जिससे उन्हें [[राग|रागों]] और [[शास्त्रीय संगीत]] के अन्य तथ्यों में विशारद प्राप्त हुआ। जीवन में एक गुरु का स्थान क्या है, यह वे भलि-भाँति जानती थीं। अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि- "जितना महत्वपूर्ण एक अच्छा गुरु मिलना होता है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है गुरु के बताए मार्ग पर चलना।" संभवतः इसी कारण वे कठिन से कठिन रागों को सहजता से गा लेती हैं। उनका एक धीमे आलाप से तीव्र तानों और बोल तानों पर जाना, उनके असीम आत्मविश्वास को झलकाता है, जिससे उस राग का अर्क, उसका भाव उभर कर आता है। चाहे [[ख़याल]] हो, [[ठुमरी]] हो या कोई भजन, वे उसे उसके शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लेती हैं।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2011/02/parveen-sultana-indian-classical-singer.html |title=बेगम परवीन सुल्ताना |accessmonthday=23 दिसम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>  
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उस्ताद दिलशाद ख़ाँ साहब की तालीम ने उनकी प्रतिभा की नींव को और भी सुदृढ़ किया, उनकी गायकी को नयी दिशा दी, जिससे उन्हें [[राग|रागों]] और [[शास्त्रीय संगीत]] के अन्य तथ्यों में विशारद प्राप्त हुआ। जीवन में एक गुरु का स्थान क्या है, यह वे भलि-भाँति जानती थीं। अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि- "जितना महत्वपूर्ण एक अच्छा गुरु मिलना होता है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है गुरु के बताए मार्ग पर चलना।" संभवतः इसी कारण वे कठिन से कठिन रागों को सहजता से गा लेती हैं। उनका एक धीमे आलाप से तीव्र तानों और बोल तानों पर जाना, उनके असीम आत्मविश्वास को झलकाता है, जिससे उस राग का अर्क, उसका भाव उभर कर आता है। चाहे [[ख़याल]] हो, [[ठुमरी]] हो या कोई भजन, वे उसे उसके शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लेती हैं।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2011/02/parveen-sultana-indian-classical-singer.html |title=बेगम परवीन सुल्ताना |accessmonthday=23 दिसम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref>  
 
==फ़िल्मों में गायन==
 
==फ़िल्मों में गायन==
परवीन सुल्ताना ने फ़िल्म 'पाकीज़ा' से फ़िल्मों में गायन की शुरुआत की थी। सोलह वर्ष की उम्र में परवीन [[मुंबई]] आई थीं और यहीं पर इत्तेफाक से मशहूर संगीतकार [[नौशाद|नौशाद साहब]] ने उन्हें फ़िल्म 'पाकिज़ा' के पार्श्वगायन के लिए थोड़ा-सा गाने की गुजारिश की। नौशाद साहब ने परवीन की गायकी को एक शो में देख लिया था, उसी से प्रभावित होकर उन्होंने परवीन को एक खूबसूरत मौका दिया। क़िल्म 'कुदरत' का गीत "हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते" (संगीत निर्देशक [[आर. डी. बर्मन]]) और फ़िल्म 'पाकीज़ा' का 'कौन गली गयो श्याम' सबसे अधिक पसंद किया गया था।
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परवीन सुल्ताना ने फ़िल्म 'पाकीज़ा' से फ़िल्मों में गायन की शुरुआत की थी। सोलह वर्ष की उम्र में परवीन [[मुंबई]] आई थीं और यहीं पर इत्तफ़ाक से मशहूर संगीतकार [[नौशाद|नौशाद साहब]] ने उन्हें फ़िल्म 'पाकीज़ा' के पार्श्वगायन के लिए थोड़ा-सा गाने की गुजारिश की। नौशाद साहब ने परवीन की गायकी को एक शो में देख लिया था, उसी से प्रभावित होकर उन्होंने परवीन को एक ख़ूबसूरत मौका दिया। फ़िल्म 'कुदरत' का गीत "हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते" (संगीत निर्देशक [[आर. डी. बर्मन]]) और फ़िल्म 'पाकीज़ा' का 'कौन गली गयो श्याम' सबसे अधिक पसंद किया गया था।
 
====सफलता====
 
====सफलता====
परवीन सुल्ताना कहती हैं कि- नौशाद साहब के इस प्रस्ताव ने फिल्मों में मेरी गायकी के दरवाज़े खोल दिए। फिल्म 'पाकिजा' के पार्श्वगायन के लिए हम सबने '[[ठुमरी]]', 'मिश्र पिलु', 'खमाज', इन रागों में थोड़ा-थोड़ा गाया। फिल्म 'पाकिजा' के [[संगीत]] के सुपर हिट हो जाने के बाद [[मदन मोहन]] ने फिल्म 'परवाना' के लिए एक गीत को गानें का ऑफर दिया। नौशाद साहब की तरह मदन मोहन भी मेरे फैन थे। परवीन सुल्ताना ने नौशाद, मदन मोहन के अलावा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर जयकिशन तथा आर. डी. बर्मन के लिए भी गाया।<ref>{{cite web |url=http://hindi.oneindia.in/movies/bollywood/music/2007/11/parveen-sultana-music.html |title=रियेलिटी शॉ बच्चों को बिगाड़ रहे हैं, परवीन|accessmonthday=10 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> [[शास्त्रीय संगीत]] में जहाँ [[ख़्याल]] गायन में इनको प्रवीणता हासिल रही, वहीं शास्त्रीय सुगम संगीत में [[ठुमरी]], दादरा, चैती, [[कजरी]] आदि बेहद पसंद की गईं। राग हंसध्वनी का तराना श्रोताओं की विशेष फरमाइश हुआ करता था। वहीँ [[कबीर]] के भजन भी उतनी ही खूबसूरती से प्रस्तुत किये। फ़िल्म 'परवाना' में [[1971]] में [[आशा भोंसले]] के साथ परवीन सुल्ताना ने 'पिया की गली' (संगीतकार [[मदन मोहन]]) गीत गाया था। गज़ल भी वह उतनी ही मधुरता और डूब कर गाती हैं, जितना शास्त्रीय संगीत का ख्याल। 'ये धुआं सा कह से उठता है' उनके द्वारा गाई गई गज़ल काफ़ी चर्चित रही थी।
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परवीन सुल्ताना कहती हैं कि- नौशाद साहब के इस प्रस्ताव ने फ़िल्मों में मेरी गायकी के दरवाज़े खोल दिए। फ़िल्म 'पाकीज़ा' के पार्श्वगायन के लिए हम सबने '[[ठुमरी]]', 'मिश्र पिलु', 'खमाज', इन रागों में थोड़ा-थोड़ा गाया। फ़िल्म 'पाकीज़ा' के [[संगीत]] के सुपर हिट हो जाने के बाद [[मदन मोहन]] ने फ़िल्म 'परवाना' के लिए एक गीत को गानें का ऑफर दिया। नौशाद साहब की तरह [[मदन मोहन]] भी मेरे फैन थे। परवीन सुल्ताना ने नौशाद, मदन मोहन के अलावा [[लक्ष्मीकांत|लक्ष्मीकांत प्यारेलाल]], शंकर जयकिशन तथा [[राहुल देव बर्मन|आर. डी. बर्मन]] के लिए भी गाया।<ref>{{cite web |url=http://hindi.oneindia.in/movies/bollywood/music/2007/11/parveen-sultana-music.html |title=रियेलिटी शॉ बच्चों को बिगाड़ रहे हैं, परवीन|accessmonthday=10 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> [[शास्त्रीय संगीत]] में जहाँ [[ख़्याल]] गायन में इनको प्रवीणता हासिल रही, वहीं शास्त्रीय सुगम संगीत में [[ठुमरी]], दादरा, चैती, [[कजरी]] आदि बेहद पसंद की गईं। राग हंसध्वनी का तराना श्रोताओं की विशेष फरमाइश हुआ करता था। वहीं [[कबीर]] के भजन भी उतनी ही ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किये। फ़िल्म 'परवाना' में [[1971]] में [[आशा भोंसले]] के साथ परवीन सुल्ताना ने 'पिया की गली' (संगीतकार [[मदन मोहन]]) गीत गाया था। गज़ल भी वह उतनी ही मधुरता और डूब कर गाती हैं, जितना शास्त्रीय संगीत का ख्याल। 'ये धुआं सा कह से उठता है' उनके द्वारा गाई गई [[ग़ज़ल]] काफ़ी चर्चित रही थी।
 
====उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता====
 
====उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता====
परवीन सुल्ताना को उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता प्राप्त है। '[[टप्पा]]' एक विधा है, जिसे गाना सभी के वश कि बात नहीं होती। इसकी वजह यह है कि इसमें आवाज़ और स्वरों को घुमाते हुए एक विशेष तरीके से बहुत संतुलित क्रम और सधे हुए स्वरों में गाया जाता है। इस एहतियात के साथ कि जटिल स्वर-संरचना के बाद भी स्वर बिखरें नहीं। परवीन सुल्ताना को टप्पे में भी महारथ हासिल थी। उनकी तानें झरने की तरह बहती तो अलाप उतने ही गंभीर और गहरे होते, जैसे किसी गहरे कूप में से ऊपर को उठती ध्वनियाँ। जितनी मिठास तार सप्तक में उतनी ही बुलंदी मंद्र सप्तक के स्वरों में, ये विविधता निस्संदेह एक कठिन साधना है। कठिन से कठिन तानें वो इतनी आसानी से लेती कि श्रोता आश्चर्य चकित रह जाते थे।
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[[चित्र:Parveen-sultana-3.jpg|thumb|परवीन सुल्ताना]]
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परवीन सुल्ताना को उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता प्राप्त है। '[[टप्पा]]' एक विधा है, जिसे गाना सभी के वश की बात नहीं होती। इसकी वजह यह है कि इसमें आवाज़ और स्वरों को घुमाते हुए एक विशेष तरीक़े से बहुत संतुलित क्रम और सधे हुए स्वरों में गाया जाता है। इस एहतियात के साथ कि जटिल स्वर-संरचना के बाद भी स्वर बिखरें नहीं। परवीन सुल्ताना को टप्पे में भी महारथ हासिल थी। उनकी तानें झरने की तरह बहती तो अलाप उतने ही गंभीर और गहरे होते, जैसे किसी गहरे कूप में से ऊपर को उठती ध्वनियाँ। जितनी मिठास तार सप्तक में उतनी ही बुलंदी मंद्र सप्तक के स्वरों में, ये विविधता निस्संदेह एक कठिन साधना है। कठिन से कठिन तानें वो इतनी आसानी से लेती कि श्रोता आश्चर्य चकित रह जाते थे।
 
==पुरस्कार व सम्मान==
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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08:05, 16 जुलाई 2013 का अवतरण

परवीन सुल्ताना
परवीन सुल्ताना
पूरा नाम बेगम परवीन सुल्ताना
जन्म 10 जुलाई, 1950
जन्म भूमि नोगोंग ग्राम, असम
पति/पत्नी दिलशाद ख़ान
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र शास्त्रीय गायन
मुख्य फ़िल्में 'गदर', 'कुदरत' और 'पाकीज़ा' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री' (1976), 'गंधर्व कला नीधि' (1980), 'मियाँ तानसेन पुरस्कार' (1986)
प्रसिद्धि शास्त्रीय गायिका
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी परवीन सुल्ताना ने मात्र बारह वर्ष की आयु में अपना प्रथम संगीत कार्यक्रम दिया था।
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परवीन सुल्ताना (अंग्रेज़ी: Parveen Sultana, जन्म- 10 जुलाई, 1950, असम) भारत की प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका हैं। वह 'पटियाला घराने' से सम्बन्धित हैं। परवीन सुल्ताना ऐसी विलक्षण प्रतिभाशाली गायिका हैं, जिन्हें वर्ष 1976 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था। असमिया पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली परवीन सुल्ताना ने पटियाला घराने की गायकी में अपना अलग मुकाम बनाया है। उनके परिवार में कई पीढ़ियों से शास्त्रीय संगीत की परम्परा रही है। उनके गुरुओं में आचार्य चिनमोय लाहिरी और उस्ताद दिलशाद ख़ान प्रमुख रहे हैं। गीत को अपनी अन्तरात्मा मानने वाली परवीन सुल्ताना की जन्म-भूमि असम और कर्म-भूमि मुम्बई रही है।

जन्म तथा शिक्षा

परवीन सुल्ताना का जन्म 10 जुलाई, 1950 को नोगोंग ग्राम, असम में हुआ था। इनके पिता का नाम इकरामुल माजिद तथा माता का नाम मारूफ़ा माजिद था। परवीन सुल्तान ने सबसे पहले संगीत अपने दादाजी मोहम्मद नजीफ़ ख़ाँ साहब तथा पिता इकरामुल से सीखना शुरू किया। पिता और दादाजी की छत्रछाया ने उनकी प्रतिभा को विकसित कर उन्हें 12 वर्ष कि अल्पायु में ही अपनी प्रथम प्रस्तुति देने के लिये परिपक्व बना दिया था। इसके बाद परवीन सुल्ताना कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) में स्वर्गीय पंडित चिनमोय लाहिरी के पास संगीत सीखने गयीं तथा 1973 से वे 'पटियाला घराने' के उस्ताद दिलशाद ख़ाँ साहब की शागिर्द बन गयीं।

बेगम परवीन सुल्ताना

विवाह

दो वर्ष बाद ही परवीन सुल्ताना ने दिलशाद ख़ाँ से विवाह किया और परिणय सूत्र में बँध गयीं। इनकी एक पुत्री भी है। परवीन सुल्ताना उन चुनिन्दा शास्त्रीय गायिकाओं में से एक हैं, जिन्हें ईश्वर ने एक ऐसी अनोखी और खूबसूरत आवाज़ से नवाजा, जिसका कोई सानी नहीं था। उनकी लगन और तालीम ने उन्हें खूबसूरत आवाज़ और एक गरिमामय व्यक्तित्व का धनी बनाया था, इसीलिए उन्हें 'भारतीय शास्त्रीय संगीत की रानी' कहा जाता है।

रागों से सहजता

उस्ताद दिलशाद ख़ाँ साहब की तालीम ने उनकी प्रतिभा की नींव को और भी सुदृढ़ किया, उनकी गायकी को नयी दिशा दी, जिससे उन्हें रागों और शास्त्रीय संगीत के अन्य तथ्यों में विशारद प्राप्त हुआ। जीवन में एक गुरु का स्थान क्या है, यह वे भलि-भाँति जानती थीं। अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि- "जितना महत्वपूर्ण एक अच्छा गुरु मिलना होता है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है गुरु के बताए मार्ग पर चलना।" संभवतः इसी कारण वे कठिन से कठिन रागों को सहजता से गा लेती हैं। उनका एक धीमे आलाप से तीव्र तानों और बोल तानों पर जाना, उनके असीम आत्मविश्वास को झलकाता है, जिससे उस राग का अर्क, उसका भाव उभर कर आता है। चाहे ख़याल हो, ठुमरी हो या कोई भजन, वे उसे उसके शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लेती हैं।[1]

फ़िल्मों में गायन

परवीन सुल्ताना ने फ़िल्म 'पाकीज़ा' से फ़िल्मों में गायन की शुरुआत की थी। सोलह वर्ष की उम्र में परवीन मुंबई आई थीं और यहीं पर इत्तफ़ाक से मशहूर संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हें फ़िल्म 'पाकीज़ा' के पार्श्वगायन के लिए थोड़ा-सा गाने की गुजारिश की। नौशाद साहब ने परवीन की गायकी को एक शो में देख लिया था, उसी से प्रभावित होकर उन्होंने परवीन को एक ख़ूबसूरत मौका दिया। फ़िल्म 'कुदरत' का गीत "हमें तुमसे प्यार कितना, ये हम नहीं जानते" (संगीत निर्देशक आर. डी. बर्मन) और फ़िल्म 'पाकीज़ा' का 'कौन गली गयो श्याम' सबसे अधिक पसंद किया गया था।

सफलता

परवीन सुल्ताना कहती हैं कि- नौशाद साहब के इस प्रस्ताव ने फ़िल्मों में मेरी गायकी के दरवाज़े खोल दिए। फ़िल्म 'पाकीज़ा' के पार्श्वगायन के लिए हम सबने 'ठुमरी', 'मिश्र पिलु', 'खमाज', इन रागों में थोड़ा-थोड़ा गाया। फ़िल्म 'पाकीज़ा' के संगीत के सुपर हिट हो जाने के बाद मदन मोहन ने फ़िल्म 'परवाना' के लिए एक गीत को गानें का ऑफर दिया। नौशाद साहब की तरह मदन मोहन भी मेरे फैन थे। परवीन सुल्ताना ने नौशाद, मदन मोहन के अलावा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर जयकिशन तथा आर. डी. बर्मन के लिए भी गाया।[2] शास्त्रीय संगीत में जहाँ ख़्याल गायन में इनको प्रवीणता हासिल रही, वहीं शास्त्रीय सुगम संगीत में ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी आदि बेहद पसंद की गईं। राग हंसध्वनी का तराना श्रोताओं की विशेष फरमाइश हुआ करता था। वहीं कबीर के भजन भी उतनी ही ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किये। फ़िल्म 'परवाना' में 1971 में आशा भोंसले के साथ परवीन सुल्ताना ने 'पिया की गली' (संगीतकार मदन मोहन) गीत गाया था। गज़ल भी वह उतनी ही मधुरता और डूब कर गाती हैं, जितना शास्त्रीय संगीत का ख्याल। 'ये धुआं सा कह से उठता है' उनके द्वारा गाई गई ग़ज़ल काफ़ी चर्चित रही थी।

उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता

परवीन सुल्ताना

परवीन सुल्ताना को उपशास्त्रीय संगीत में दक्षता प्राप्त है। 'टप्पा' एक विधा है, जिसे गाना सभी के वश की बात नहीं होती। इसकी वजह यह है कि इसमें आवाज़ और स्वरों को घुमाते हुए एक विशेष तरीक़े से बहुत संतुलित क्रम और सधे हुए स्वरों में गाया जाता है। इस एहतियात के साथ कि जटिल स्वर-संरचना के बाद भी स्वर बिखरें नहीं। परवीन सुल्ताना को टप्पे में भी महारथ हासिल थी। उनकी तानें झरने की तरह बहती तो अलाप उतने ही गंभीर और गहरे होते, जैसे किसी गहरे कूप में से ऊपर को उठती ध्वनियाँ। जितनी मिठास तार सप्तक में उतनी ही बुलंदी मंद्र सप्तक के स्वरों में, ये विविधता निस्संदेह एक कठिन साधना है। कठिन से कठिन तानें वो इतनी आसानी से लेती कि श्रोता आश्चर्य चकित रह जाते थे।

पुरस्कार व सम्मान

  1. क्लियोपेट्रा ऑफ म्यूज़िक - 1972
  2. पद्मश्री - 1976
  3. गंधर्व कला निधि - 1980
  4. मियाँ तानसेन पुरस्कार - 1986
  5. संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार - 1999


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बेगम परवीन सुल्ताना (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 दिसम्बर, 2012।
  2. रियेलिटी शॉ बच्चों को बिगाड़ रहे हैं, परवीन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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