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'''राधेश्याम कथावाचक''' (जन्म- [[1890]], [[बरेली]], [[उत्तर प्रदेश]]) ने [[रामायण]] की कथा को खड़ी बोली पद्य के द्वारा कई खंडों में लिपिबद्ध किया है। यह रचना [[हिंदी]] क्षेत्रों, विशेषत: उत्तर-प्रदेश के गांवों में पिछले अनेक दशकों में अत्यंत लोकप्रिय रही है। 'राधेश्याम रामायण' में वर्णित नेतिक मुल्यों को जनसाधारण तक पहुँचाने में आपका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आपने अपनी [[आत्मकथा]] भी लिखी है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=720|url=}}</ref> 
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'''रामकृष्ण देवदत्त भांडारकर''' (जन्म- [[1875]], मृत्यु- [[1950]]) जाने-माने एक प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद थे। भांडारकर दीर्घकाल तक [[भारत]] के [[पुरातत्त्व]] सर्वेक्षण विभाग से संबद्ध रहे। [[विदिशा]] के निकट खुदाई कराई जिसमें ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए। अनेक शोध कार्य किये हैं। भारतीय [[जनगणना]] के लिए [[धर्म]] और संप्रदाय तथा जातियां और कबीले विषयों के शोधपरक [[ग्रंथ]] तैयार किए।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
राधेश्याम कथावाचक का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली में सन्‌ 1890 में हुआ था। आपने एक अन्य क्षेत्र में बड़ा ही प्रशंसनीय कार्य यह किया है कि  'न्यू एल्फ्रेंड कंपनी' आदि पारसी नाटक कंपनियां प्राय: अंग्रेजी और फारसी प्रेमाख्यान पर आधारित नाटकों का प्रदर्शन करके धन कमाया करती थीं। इसका लोकरुचि पर बड़ा प्रतिकूल प्रभाव पढ़ता था। राधेश्याम ने ऐसी कंपनियों द्वारा अभिनय करने के लिए पौराणिक आख्यानों के आधार पर सुरुचिपूर्ण नाटकों की रचना की है।
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रामकृष्ण देवदत्त भांडारकर का जन्म 1875 ई0 को हुआ था। आपने पालि भाषा में पुरालिप विषय को लेकर शिक्षा पूरी की। आपने गुजरात राष्ट्रकूट कुमार कर्क प्रथम, कुशाण शिलालेख और शक संवत के उद्भव का प्रश्न तथा इंडोसीथियन राजाओं के वंशक्रम विषयक रचनाएं की। उक्त रचनाओं ने विद्वानों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट किया। भांडारकर ने भारतीय जनगणना के लिए धर्म और संप्रदाय तथा जातियां और कबीले विषयों पर शोध के साथ-साथ [[अहीर|अहीरों]], [[गुर्जर|गुर्जरों]] तथा गहलोतों पर भी विशेष अध्ययन किया। आपने [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] में प्राचीन भारतीय इतिहास और [[संस्कृति]] के प्रोफेसर के पद पर रह कर सेवा की। 
 
==रचनाएं==
 
==रचनाएं==
राधेश्याम कथावाचक ने नाटकों के साथ-साथ अपनी आत्मकथा भी लिखी है। आपके द्वारा लिखित [[नाटक|नाटकों]] में प्रमुख हैं:
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उनकी लिखी पुस्तकें विशेष रूप से चर्चित हुईं-  
#'श्री कृष्णावतार',
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#'भारतीय मुद्रा विज्ञान'  
#'रुकमणी मंगल',
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#'अशोक'
#'ईश्वर भक्ति',
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#'प्राचीन भारत में राजतंत्र एवं लोकतंत्रात्मक संस्थाएं'  
#'द्रौपदी स्वयंवर',
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गुप्त शिलालेखों संबंधी ग्रंथ के संशोधन में भी आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
#'परिवर्तन',
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==मृत्यु==
#'सूर्य विजय',
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[[1950]] ईस्वी में भांडारकर का देहांत हो गया।
#'उषा अनिरुद्ध',
 
#'वीर अभिमन्यु 
 
उपरोक्त नाटकों में 'उषा अनिरुद्ध', और वीर अभिमन्यु विशेष उल्लेखनीय हैं।
 
  
 
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    प्रसिद्ध पुरातत्वविद रामकृष्ण देवदत्त भांडारकर का जन्म 1875 ईसवी में हुआ था। पालि भाषा तथा पुरालिप विषय लेकर शिक्षा पूरी करने के बाद आप शोध कार्य में लगे। गुजरात राष्ट्रकूट कुमार कर्क प्रथम, कुशाण शिलालेख और शक संवत के उद्भव का प्रश्न तथा इंडोसीथियन राजाओं  के वंशक्रम विषयक उनकी रचनाओं ने विद्वानों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट किया। इन्होंने भारतीय जनगणना के लिए धर्म और संप्रदाय तथा जातियां और कबीले विषयों के शोधपरक ग्रंथ तैयार किए। अहीरों, गुर्जरों तथा गहलोतों पर भी उनका विशेष अध्ययन था।
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      भांडारकर दीर्घकाल तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से संबद्ध रहे। विदिशा के निकट खुदाई कराई जिसमें ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अनेक महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया। उनकी लिखी  पुस्तकें विशेष रूप से चर्चित हुईं- 'भारतीय मुद्रा विज्ञान' 'अशोक' और 'प्राचीन भारत में राजतंत्र एवं लोकतंत्रात्मक संस्थाएं' गुप्त शिलालेखों संबंधी ग्रंथ के संशोधन में भी आपका बहुमूल्य योगदान था 1950 ईस्वी में भांडारकर का निधन हो गया|
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भारतीय चरित कोश 727

09:20, 31 मई 2018 का अवतरण

रामकृष्ण देवदत्त भांडारकर (जन्म- 1875, मृत्यु- 1950) जाने-माने एक प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद थे। भांडारकर दीर्घकाल तक भारत के पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग से संबद्ध रहे। विदिशा के निकट खुदाई कराई जिसमें ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अनेक महत्त्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए। अनेक शोध कार्य किये हैं। भारतीय जनगणना के लिए धर्म और संप्रदाय तथा जातियां और कबीले विषयों के शोधपरक ग्रंथ तैयार किए।

परिचय

रामकृष्ण देवदत्त भांडारकर का जन्म 1875 ई0 को हुआ था। आपने पालि भाषा में पुरालिप विषय को लेकर शिक्षा पूरी की। आपने गुजरात राष्ट्रकूट कुमार कर्क प्रथम, कुशाण शिलालेख और शक संवत के उद्भव का प्रश्न तथा इंडोसीथियन राजाओं के वंशक्रम विषयक रचनाएं की। उक्त रचनाओं ने विद्वानों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट किया। भांडारकर ने भारतीय जनगणना के लिए धर्म और संप्रदाय तथा जातियां और कबीले विषयों पर शोध के साथ-साथ अहीरों, गुर्जरों तथा गहलोतों पर भी विशेष अध्ययन किया। आपने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रोफेसर के पद पर रह कर सेवा की।

रचनाएं

उनकी लिखी पुस्तकें विशेष रूप से चर्चित हुईं-

  1. 'भारतीय मुद्रा विज्ञान'
  2. 'अशोक'
  3. 'प्राचीन भारत में राजतंत्र एवं लोकतंत्रात्मक संस्थाएं'

गुप्त शिलालेखों संबंधी ग्रंथ के संशोधन में भी आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

मृत्यु

1950 ईस्वी में भांडारकर का देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

Categoryभारतीय चरित कोश:



    प्रसिद्ध पुरातत्वविद रामकृष्ण देवदत्त भांडारकर का जन्म 1875 ईसवी में हुआ था। पालि भाषा तथा पुरालिप विषय लेकर शिक्षा पूरी करने के बाद आप शोध कार्य में लगे। गुजरात राष्ट्रकूट कुमार कर्क प्रथम, कुशाण शिलालेख और शक संवत के उद्भव का प्रश्न तथा इंडोसीथियन राजाओं  के वंशक्रम विषयक उनकी रचनाओं ने विद्वानों का ध्यान इनकी ओर आकृष्ट किया। इन्होंने भारतीय जनगणना के लिए धर्म और संप्रदाय तथा जातियां और कबीले विषयों के शोधपरक ग्रंथ तैयार किए। अहीरों, गुर्जरों तथा गहलोतों पर भी उनका विशेष अध्ययन था।
     भांडारकर दीर्घकाल तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से संबद्ध रहे। विदिशा के निकट खुदाई कराई जिसमें ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अनेक महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रोफेसर के रूप में भी कार्य किया। उनकी लिखी  पुस्तकें विशेष रूप से चर्चित हुईं- 'भारतीय मुद्रा विज्ञान' 'अशोक' और 'प्राचीन भारत में राजतंत्र एवं लोकतंत्रात्मक संस्थाएं' गुप्त शिलालेखों संबंधी ग्रंथ के संशोधन में भी आपका बहुमूल्य योगदान था 1950 ईस्वी में भांडारकर का निधन हो गया|
भारतीय चरित कोश 727