बिन्दुसार

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बिन्दुसार मौर्य सम्राट था जो 297 ई.पू. के आसपास गद्दी पर बैठा था। यूनानी सूत्रों में उनका उल्लेख ‘अमिट्रोचेट्स’ नाम से हुआ है, जो संभवत: संस्कृत शब्द 'अमित्रघट' से लिया गया है, जिसका अर्थ है, 'शत्रुनाशक'। यह उपाधि दक्षिण में उनके सफल सैनिक अभियानों के लिये दी गई होगी, क्योंकि उत्तर भारत पर तो उनके पिता चंद्रगुप्त मौर्य ने पहले ही विजय प्राप्त कर ली थी। बिंदुसार का विजय अभियान कर्नाटक के आसपास जाकर रूका और वह भी संभवत: इसलिये कि दक्षिण के चोल, पांड्यचेर सरदारों और राजाओं के मौर्यो से अच्छे संबंध थे। इसका पुत्र अशोक महान था।

जीवन परिचय

चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार सम्राट बना। यूनानी लेखों के अनुसार इसका नाम अमित्रकेटे था। विद्वानों के अनुसार अमित्रकेटे का संस्कृत रूप है अमित्रघात या अमित्रखाद (शत्रुओं का नाश करने वाला)। सम्भवतः यह बिन्दुसार का विरुद रहा होगा। तिब्बती लामा तारनाथ तथा जैन अनुश्रुति के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार का भी मंत्री रहा। चाणक्य ने 16 राज्य के राजाओं और सामंतों का नाश किया और बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र पर्यन्त भू-भाग का अधीश बनाया। हो सकता है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात कुछ राज्यों ने मौर्य सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया हो। चाणक्य ने सफलतापूर्वक उनका दमन किया। दिव्यावदान में उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में ऐसे ही विद्रोह का उल्लेख है। इस विद्रोह को शान्त करने के लिए बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था। इसके पश्चात अशोक खस देश गया। 'खस' सम्भवतः नेपाल के आस-पास के प्रदेश के खस रहे होंगे। तारनाथ के अनुसार खस्या और नेपाल के लोगों ने विद्रोह किया और अशोक ने इन प्रदेशों को जीता।

विदेशों के साथ अशोक ने शान्ति और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखा। सेल्यूकस वंश के राजाओं तथा अन्य यूनानी शासकों के साथ चंद्रगुप्त के समय के सम्बन्ध बने रहे। स्टैवो के अनुसार सेल्यूकस के उत्तराधिकारी एण्टियोकस प्रथम ने अपना राजदूत डायमेकस बिन्दुसार के दरबार में भेजा। प्लिनी के अनुसार टोलमी द्वितीय फिलेडेल्फस ने डायोनियस को बिन्दुसार के दरबार में नियुक्त किया।

व्यक्तित्व

अपने पिता की भाँति बिन्दुसार भी जिज्ञासु था और विद्वानों तथा दार्शनिकों का आदर करता था। ऐथेनियस के अनुसार बिन्दुसार ने एण्टियोकस (सीरिया का शासक) को एक यूनानी दार्शनिक भेजने के लिए लिखा था। दिव्यावदान की एक कथा के अनुसार आजीवक परिव्राजक बिन्दुसार की सभा को सुशोभित करते थे।

इसके साथ ही हमें कुछ ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं जिनसे एक विजेता के रूप में बिंदुसार की क्षमता पर से विश्वास कुछ उठ-सा जाता है, क्योंकि उसके शासनकाल में उसके साम्राज्य के उत्तर-पश्चिमी प्रांत तक्षशिला में विद्रोह उठ खड़ा हुआ था और इस विद्रोह का दमन करने के लिए उसे अपने सुयोग्य पुत्र अशोक को नियुक्त करना पड़ा था। यह बात मानी जा सकती है जो विस्तृत सामाज्य उसे अपने पिता से उत्तराधिकार में मिला था, उसे सँभालना ही उस-जैसे ऐश्वर्यप्रिय व्यक्ति के लिए बहुत बड़ा काम था जिसके लिए जीवन का सबसे बड़ा सुख "अंजीरों और अंगूर की शराब" में था, जो उसने अपने मित्र यूनान के राजा ऐंटिओकस से मँगवाई थीं। उसे इस बात का श्रेय देना कठिन है कि उसने स्वयं कोई विजय प्राप्त करके अपने राज्य में कोई वृद्धि की होगी।[1]

निधन

पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने 24 वर्ष तक, किन्तु महावंश के अनुसार 27 वर्ष तक राज्य किया। डॉ. राधा कुमुद मुकर्जी ने बिन्दुसार की मृत्यु तिथि ईसा पूर्व 272 निर्धारित की है। कुछ अन्य विद्वान यह मानते हैं कि बिन्दुसार की मृत्यु ईसा पूर्व 270 में हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चंद्रगुप्त मौर्य और उसका काल |लेखक: राधाकुमुद मुखर्जी |प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन |पृष्ठ संख्या: 57 |

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