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'''(1.) ध्रुपद''' - यह गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है। [[ध्रुपद]] गायन शैली में ईश्वर व राजाओं का प्रशस्ति गान किया जाता है। इसमें बृजभाषा की प्रधानता होती है।<br />
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:'''(1.) ध्रुपद''' - यह गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है। [[ध्रुपद]] गायन शैली में ईश्वर व राजाओं का प्रशस्ति गान किया जाता है। इसमें बृजभाषा की प्रधानता होती है।<br />
'''(2.) ख़्याल''' - यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय गायन शैली मानी जाती है। ख़्याल की विषय वस्तु राजस्तुति, नायिका वर्णन और श्रृंगार रस आदि होते हैं।<br />
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:'''(2.) ख़्याल''' - यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय गायन शैली मानी जाती है। ख़्याल की विषय वस्तु राजस्तुति, नायिका वर्णन और श्रृंगार रस आदि होते हैं।<br />
'''(3.) धमार''' - इसका गायन [[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक [[होली]] के अवसर पर होता है। [[धमार]] गायन में प्राय: भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों के होली खेलने का वर्णन किया जाता है।<br />
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:'''(3.) धमार''' - इसका गायन [[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक [[होली]] के अवसर पर होता है। [[धमार]] गायन में प्राय: भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों के होली खेलने का वर्णन किया जाता है।<br />
'''(4.) ठुमरी''' - [[ठुमरी]] गायन में नियमों की अधिक जटिलता नहीं दिखाई देती है। यह एक भाव प्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इस शैली का जन्म [[अवध]] के नवाब वाजिदअली शाह के राज दरबार में हुआ था।<br />
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:'''(4.) ठुमरी''' - [[ठुमरी]] गायन में नियमों की अधिक जटिलता नहीं दिखाई देती है। यह एक भाव प्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इस शैली का जन्म [[अवध]] के नवाब वाजिदअली शाह के राज दरबार में हुआ था।<br />
'''(5.) टप्पा''' - [[हिन्दी]] मिश्रित [[पंजाबी भाषा]] का श्रृंगार प्रधान गीत टप्पा है। यह गायन शैली चंचलता व लच्छेदार तान से युक्त होती है।
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:'''(5.) टप्पा''' - [[हिन्दी]] मिश्रित [[पंजाबी भाषा]] का श्रृंगार प्रधान गीत टप्पा है। यह गायन शैली चंचलता व लच्छेदार तान से युक्त होती है।
 
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कर्नाटक शास्त्रीय शैली में [[राग|रागों]] का गायन अधिक तेज और हिन्दुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में [[पूजा]]-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।
 
कर्नाटक शास्त्रीय शैली में [[राग|रागों]] का गायन अधिक तेज और हिन्दुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में [[पूजा]]-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।
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'''(1.) वर्णम''' - इसके तीन मुख्य भाग 'पल्लवी', 'अनुपल्लवी' तथा 'मुक्तयीश्वर' होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिन्दुस्तानी शैली की [[ठुमरी]] के साथ की जा सकती है।<br />
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:'''(1.) वर्णम''' - इसके तीन मुख्य भाग 'पल्लवी', 'अनुपल्लवी' तथा 'मुक्तयीश्वर' होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिन्दुस्तानी शैली की [[ठुमरी]] के साथ की जा सकती है।<br />
'''(2.) जावाली''' - यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। [[भरतनाट्यम]] के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफ़ी तीव्र होती है।<br />
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:'''(2.) जावाली''' - यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। [[भरतनाट्यम]] के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफ़ी तीव्र होती है।<br />
'''(3.) तिल्लाना''' - [[उत्तरी भारत]] में प्रचलित 'तराना' के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।
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:'''(3.) तिल्लाना''' - [[उत्तरी भारत]] में प्रचलित 'तराना' के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।
  
 
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12:27, 23 नवम्बर 2012 का अवतरण

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य 'मोक्ष' की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्यों ने इसे 'पंचम वेद' या 'गंधर्व वेद' की संज्ञा दी है। भरतमुनि का 'नाट्यशास्त्र' पहला ऐसा ग्रंथ था, जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया था।

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संगीत की शैलियाँ

भारतीय शास्त्रीय संगीत को सम्पूर्ण विश्व में सबसे अधिक जटिल व संपूर्ण संगीत प्रणाली माना जाता है। यहाँ के शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख शैलियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. हिन्दुस्तानी शैली
  2. कर्नाटक शैली

हिन्दुस्तानी शैली

ऋंगार, प्रकृति और भक्ति ये हिन्दुस्तानी शैली के प्रमुख विषय हैं। तबला वादक हिन्दुस्तानी संगीत में लय बनाये रखने में मददगार सिद्ध होते हैं। तानपुरा एक अन्य संगीत वाद्ययंत्र है, जिसे पूरे गायन के दौरान बजाया जाता है। अन्य वाद्ययंत्रों में सारंगीहारमोनियम शामिल हैं। फ़ारसी संगीत के वाद्ययंत्रों और शैली, इन दोनों का ही हिन्दुस्तानी शैली पर काफ़ी हद तक प्रभाव पड़ा है।

प्रमुख रूप

संगीत की हिन्दुस्तानी शैली के निम्न रूप हैं-

(1.) ध्रुपद - यह गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है। ध्रुपद गायन शैली में ईश्वर व राजाओं का प्रशस्ति गान किया जाता है। इसमें बृजभाषा की प्रधानता होती है।
(2.) ख़्याल - यह हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय गायन शैली मानी जाती है। ख़्याल की विषय वस्तु राजस्तुति, नायिका वर्णन और श्रृंगार रस आदि होते हैं।
(3.) धमार - इसका गायन भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक होली के अवसर पर होता है। धमार गायन में प्राय: भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों के होली खेलने का वर्णन किया जाता है।
(4.) ठुमरी - ठुमरी गायन में नियमों की अधिक जटिलता नहीं दिखाई देती है। यह एक भाव प्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इस शैली का जन्म अवध के नवाब वाजिदअली शाह के राज दरबार में हुआ था।
(5.) टप्पा - हिन्दी मिश्रित पंजाबी भाषा का श्रृंगार प्रधान गीत टप्पा है। यह गायन शैली चंचलता व लच्छेदार तान से युक्त होती है।

कर्नाटक शैली

कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिन्दुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।

शैली के प्रमुख रूप

कर्नाटक शैली के प्रमुख रूप इस प्रकार हैं-

(1.) वर्णम - इसके तीन मुख्य भाग 'पल्लवी', 'अनुपल्लवी' तथा 'मुक्तयीश्वर' होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिन्दुस्तानी शैली की ठुमरी के साथ की जा सकती है।
(2.) जावाली - यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफ़ी तीव्र होती है।
(3.) तिल्लाना - उत्तरी भारत में प्रचलित 'तराना' के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।


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