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'''मणि कौल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mani Kaul'', जन्म: [[25 दिसम्बर]] [[1944]] – मृत्यु: [[6 जुलाई]] [[2011]]) एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक थे। उसकी रोटी, आषाढ़ का एक दिन और सतह से उठता आदमी जैसी यथार्थ की पृष्ठभूमि से जुड़ी लीक से हटकर फ़िल्में बनाने वाले प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक मणि कौल को  नए [[भारतीय सिनेमा]] के पुरोधाओं में से एक माना जाता है। जल्दी ही दुनिया में उन्होंने बड़े फिल्मकारों के रूप में अपनी छवि बना ली। संसार के सभी श्रेष्ठ फिल्मकारों की फिल्में वे देखते थे और उन पर घंटों बात कर सकते थे। उन्होंने बर्कले विश्वविद्यालय में सिनेमा के छात्रों को पढ़ाया भी था।  
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'''मणि कौल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mani Kaul'', जन्म: [[25 दिसम्बर]] [[1944]] – मृत्यु: [[6 जुलाई]] [[2011]]) एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक थे। उसकी रोटी, आषाढ़ का एक दिन और सतह से उठता आदमी जैसी यथार्थ की पृष्ठभूमि से जुड़ी लीक से हटकर फ़िल्में बनाने वाले प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक मणि कौल को  नए [[भारतीय सिनेमा]] के पुरोधाओं में से एक माना जाता है। जल्दी ही दुनिया में उन्होंने बड़े फ़िल्मकारों के रूप में अपनी छवि बना ली। संसार के सभी श्रेष्ठ फ़िल्मकारों की फ़िल्में वे देखते थे और उन पर घंटों बात कर सकते थे। उन्होंने बर्कले विश्वविद्यालय में सिनेमा के छात्रों को पढ़ाया भी था।  
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
मणि कौल का जन्म  [[25 दिसम्बर]] [[1944]] को [[राजस्थान]] राज्य के [[जोधपुर]] शहर में हुआ था। मणि कौल [[पुणे]] के फ़िल्म संस्थान में ऋत्विक घटक के छात्र थे। उन्होंने पहले अभिनय और फिर निर्देशन का कोर्स किया और निर्देशन को ही अपना रचनात्मक जुनून बनाया। मुंबइया फिल्मों से जुड़े लोग प्रायः उनके काम को उसी तरह कभी सराह नहीं पाए। ऋत्विक घटक के साथ-साथ रूसी फिल्मकार तारकोव्स्की की फिल्मों से भी मणि कौल प्रभावित रहे। उन्होंने [[सिनेमा]] का नया व्याकरण गढ़ा, जबकि उनके यहाँ तकनीक और नैरेटिव (आख्यान) का इस्तेमाल भी नए तरीके से होता है। उनके सिनेमा में डॉक्यूमेंटरी (वृत्तचित्र) और फीचर फ़िल्म के बीच की रेखा धुँधली हो जाती है, मगर यह उनकी फ़िल्म की ताकत है, कमज़ोरी नहीं।<ref name="वेब दुनिया हिंदी">{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%B2-%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%A4/%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF-%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A5%81%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-1110709028_1.htm|title=मणि कौल का अद्भुत सिनेमा |accessmonthday=3 जनवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वेब दुनिया हिंदी |language= हिंदी }} </ref>
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==मणि कौल का सिनेमा==
 
==मणि कौल का सिनेमा==
जिस तरह अच्छा साहित्य आपको नए यथार्थबोध और सौंदर्यबोध से संपन्न करता है, उसी तरह मणि कौल का सिनेमा भी यही काम करता है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि उनकी फिल्में साहित्य के उस बोध को रूपांतरित भर करती हैं। सिनेमा का अपना स्वायत्त संसार है, इसलिए यहाँ आकर साहित्य का यथार्थबोध और सौंदर्यबोध एक बिल्कुल नई दीप्ति से जगमगा उठता है। यह दीप्ति ही आभासी संसार का अतिक्रमण करती है। लेकिन मणि कौल कला-फिल्मों के फिल्मकार ही नहीं हैं, उनका सिनेमा भारतीय सिनेमा की नई धारा का सिनेमा है, जिसे समांतर सिनेमा या न्यू वेव सिनेमा के रूप में भी जाना जाता है।  
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जिस तरह अच्छा साहित्य आपको नए यथार्थबोध और सौंदर्यबोध से संपन्न करता है, उसी तरह मणि कौल का सिनेमा भी यही काम करता है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि उनकी फ़िल्में साहित्य के उस बोध को रूपांतरित भर करती हैं। सिनेमा का अपना स्वायत्त संसार है, इसलिए यहाँ आकर साहित्य का यथार्थबोध और सौंदर्यबोध एक बिल्कुल नई दीप्ति से जगमगा उठता है। यह दीप्ति ही आभासी संसार का अतिक्रमण करती है। लेकिन मणि कौल कला-फ़िल्मों के फ़िल्मकार ही नहीं हैं, उनका सिनेमा भारतीय सिनेमा की नई धारा का सिनेमा है, जिसे समांतर सिनेमा या न्यू वेव सिनेमा के रूप में भी जाना जाता है।  
भूत दांपत्य जीवन के आधार पर बनाई 'दुविधा' नामक फ़िल्म जिसमें भूत व्यापारी के पिता को रोजाना सोने की एक मोहर देता है। लेकिन फ़िल्म नहीं चली। मगर भारत में गंभीर सिनेमा के प्रेमियों और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में इस फ़िल्म को काफ़ी सराहा गया। मणि कौल की लगभग सभी फिल्मों के साथ आमतौर पर ऐसा ही हुआ है, चाहे वह "उसकी रोटी" हो , "आषाढ़ का एक दिन" हो, "सतह से उठता आदमी" हो, "इडियट" हो या "नौकर की कमीज" हो। यह बात सिर्फ उन पर ही लागू नहीं होती। [[सत्यजीत राय]], ऋत्विक घटक और "[[मृणाल सेन]]" जैसे महान भारतीय फिल्मकारों पर भी लागू होती है जिनको अंतरराष्ट्रीय ख्याति तो खूब मिली, मगर [[गुरुदत्त]] या [[राजकपूर]] की फिल्मों की तरह वे [[भारत]] में ज्यादा चल नहीं पाईं।<ref name="वेब दुनिया हिंदी"/>  
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भूत दांपत्य जीवन के आधार पर बनाई 'दुविधा' नामक फ़िल्म जिसमें भूत व्यापारी के पिता को रोजाना सोने की एक मोहर देता है। लेकिन फ़िल्म नहीं चली। मगर भारत में गंभीर सिनेमा के प्रेमियों और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में इस फ़िल्म को काफ़ी सराहा गया। मणि कौल की लगभग सभी फ़िल्मों के साथ आमतौर पर ऐसा ही हुआ है, चाहे वह "उसकी रोटी" हो , "आषाढ़ का एक दिन" हो, "सतह से उठता आदमी" हो, "इडियट" हो या "नौकर की कमीज" हो। यह बात सिर्फ उन पर ही लागू नहीं होती। [[सत्यजीत राय]], [[ऋत्विक घटक]] और "[[मृणाल सेन]]" जैसे महान् भारतीय फ़िल्मकारों पर भी लागू होती है जिनको अंतरराष्ट्रीय ख्याति तो खूब मिली, मगर [[गुरुदत्त]] या [[राजकपूर]] की फ़िल्मों की तरह वे [[भारत]] में ज्यादा चल नहीं पाईं।<ref name="वेब दुनिया हिंदी"/>  
 
==साहित्य और संगीत प्रेमी==
 
==साहित्य और संगीत प्रेमी==
मणि कौल उत्कृष्ट साहित्य को अपनी फिल्मों के लिए चुनते हैं, चाहे वह "नौकर की कमीज" (विनोद कुमार शुक्ल), "सतह से उठता आदमी" ([[मुक्तिबोध गजानन माधव|मुक्तिबोध]]), "आषाढ़ का एक दिन" ([[मोहन राकेश]]) हो या फिर "इडियट" (फ्योदोर दोस्तोव्स्की)। यहाँ आकर साहित्य के परिचित पात्र नया रूप, नया अर्थ और नई दीप्ति पाते हैं, मगर उसी सीमा तक जिसमें मणि कौल का सौंदर्य बोध क़ायम रहे। मणि कौल संगीत प्रेमी भी थे। [[ध्रुपद]] पर उन्होंने एक वृत्तचित्र भी बनाया था। उनकी फ़िल्म "सिद्धेश्वरी" को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। "उसकी रोटी" एकदम नई तरह की फ़िल्म थी, जिसके जरिए उन्होंने पहली बार फ़िल्म के प्रचलित फॉर्म या रूप को तोड़ा था। इस फ़िल्म को फिल्मफेयर क्रिटिक अवॉर्ड मिला था।<ref name="वेब दुनिया हिंदी"/>  
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मणि कौल उत्कृष्ट साहित्य को अपनी फ़िल्मों के लिए चुनते हैं, चाहे वह "नौकर की कमीज" (विनोद कुमार शुक्ल), "सतह से उठता आदमी" ([[मुक्तिबोध गजानन माधव|मुक्तिबोध]]), "आषाढ़ का एक दिन" ([[मोहन राकेश]]) हो या फिर "इडियट" (फ्योदोर दोस्तोव्स्की)। यहाँ आकर साहित्य के परिचित पात्र नया रूप, नया अर्थ और नई दीप्ति पाते हैं, मगर उसी सीमा तक जिसमें मणि कौल का सौंदर्य बोध क़ायम रहे। मणि कौल संगीत प्रेमी भी थे। [[ध्रुपद]] पर उन्होंने एक वृत्तचित्र भी बनाया था। उनकी फ़िल्म "सिद्धेश्वरी" को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। "उसकी रोटी" एकदम नई तरह की फ़िल्म थी, जिसके जरिए उन्होंने पहली बार फ़िल्म के प्रचलित फॉर्म या रूप को तोड़ा था। इस फ़िल्म को फ़िल्मफेयर क्रिटिक अवॉर्ड मिला था।<ref name="वेब दुनिया हिंदी"/>  
 
==प्रमुख फ़िल्में==
 
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* उसकी रोटी (1969)
 
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* [[1993]]: इडियट (1992)
 
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==निधन==  
 
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मणि कौल
मणि कौल
पूरा नाम मणि कौल
जन्म 25 दिसम्बर 1944
जन्म भूमि जोधपुर, राजस्थान
मृत्यु 6 जुलाई 2011 (उम्र- 66 वर्ष)
मृत्यु स्थान गुड़गाँव, हरियाणा
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म निर्देशक
मुख्य फ़िल्में उसकी रोटी, आषाढ़ का एक दिन, दुविधा, इडियट, नौकर की कमीज़
पुरस्कार-उपाधि राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (दो बार), फ़िल्मफेयर पुरस्कार (चार बार)
नागरिकता भारतीय

मणि कौल (अंग्रेज़ी: Mani Kaul, जन्म: 25 दिसम्बर 1944 – मृत्यु: 6 जुलाई 2011) एक प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक थे। उसकी रोटी, आषाढ़ का एक दिन और सतह से उठता आदमी जैसी यथार्थ की पृष्ठभूमि से जुड़ी लीक से हटकर फ़िल्में बनाने वाले प्रख्यात फ़िल्म निर्देशक मणि कौल को नए भारतीय सिनेमा के पुरोधाओं में से एक माना जाता है। जल्दी ही दुनिया में उन्होंने बड़े फ़िल्मकारों के रूप में अपनी छवि बना ली। संसार के सभी श्रेष्ठ फ़िल्मकारों की फ़िल्में वे देखते थे और उन पर घंटों बात कर सकते थे। उन्होंने बर्कले विश्वविद्यालय में सिनेमा के छात्रों को पढ़ाया भी था।

जीवन परिचय

मणि कौल का जन्म 25 दिसम्बर 1944 को राजस्थान राज्य के जोधपुर शहर में हुआ था। मणि कौल पुणे के फ़िल्म संस्थान में ऋत्विक घटक के छात्र थे। उन्होंने पहले अभिनय और फिर निर्देशन का कोर्स किया और निर्देशन को ही अपना रचनात्मक जुनून बनाया। मुंबइया फ़िल्मों से जुड़े लोग प्रायः उनके काम को उसी तरह कभी सराह नहीं पाए। ऋत्विक घटक के साथ-साथ रूसी फ़िल्मकार तारकोव्स्की की फ़िल्मों से भी मणि कौल प्रभावित रहे। उन्होंने सिनेमा का नया व्याकरण गढ़ा, जबकि उनके यहाँ तकनीक और नैरेटिव (आख्यान) का इस्तेमाल भी नए तरीके से होता है। उनके सिनेमा में डॉक्यूमेंटरी (वृत्तचित्र) और फीचर फ़िल्म के बीच की रेखा धुँधली हो जाती है, मगर यह उनकी फ़िल्म की ताकत है, कमज़ोरी नहीं।[1]

मणि कौल का सिनेमा

जिस तरह अच्छा साहित्य आपको नए यथार्थबोध और सौंदर्यबोध से संपन्न करता है, उसी तरह मणि कौल का सिनेमा भी यही काम करता है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि उनकी फ़िल्में साहित्य के उस बोध को रूपांतरित भर करती हैं। सिनेमा का अपना स्वायत्त संसार है, इसलिए यहाँ आकर साहित्य का यथार्थबोध और सौंदर्यबोध एक बिल्कुल नई दीप्ति से जगमगा उठता है। यह दीप्ति ही आभासी संसार का अतिक्रमण करती है। लेकिन मणि कौल कला-फ़िल्मों के फ़िल्मकार ही नहीं हैं, उनका सिनेमा भारतीय सिनेमा की नई धारा का सिनेमा है, जिसे समांतर सिनेमा या न्यू वेव सिनेमा के रूप में भी जाना जाता है। भूत दांपत्य जीवन के आधार पर बनाई 'दुविधा' नामक फ़िल्म जिसमें भूत व्यापारी के पिता को रोजाना सोने की एक मोहर देता है। लेकिन फ़िल्म नहीं चली। मगर भारत में गंभीर सिनेमा के प्रेमियों और अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में इस फ़िल्म को काफ़ी सराहा गया। मणि कौल की लगभग सभी फ़िल्मों के साथ आमतौर पर ऐसा ही हुआ है, चाहे वह "उसकी रोटी" हो , "आषाढ़ का एक दिन" हो, "सतह से उठता आदमी" हो, "इडियट" हो या "नौकर की कमीज" हो। यह बात सिर्फ उन पर ही लागू नहीं होती। सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक और "मृणाल सेन" जैसे महान् भारतीय फ़िल्मकारों पर भी लागू होती है जिनको अंतरराष्ट्रीय ख्याति तो खूब मिली, मगर गुरुदत्त या राजकपूर की फ़िल्मों की तरह वे भारत में ज्यादा चल नहीं पाईं।[1]

साहित्य और संगीत प्रेमी

मणि कौल उत्कृष्ट साहित्य को अपनी फ़िल्मों के लिए चुनते हैं, चाहे वह "नौकर की कमीज" (विनोद कुमार शुक्ल), "सतह से उठता आदमी" (मुक्तिबोध), "आषाढ़ का एक दिन" (मोहन राकेश) हो या फिर "इडियट" (फ्योदोर दोस्तोव्स्की)। यहाँ आकर साहित्य के परिचित पात्र नया रूप, नया अर्थ और नई दीप्ति पाते हैं, मगर उसी सीमा तक जिसमें मणि कौल का सौंदर्य बोध क़ायम रहे। मणि कौल संगीत प्रेमी भी थे। ध्रुपद पर उन्होंने एक वृत्तचित्र भी बनाया था। उनकी फ़िल्म "सिद्धेश्वरी" को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। "उसकी रोटी" एकदम नई तरह की फ़िल्म थी, जिसके जरिए उन्होंने पहली बार फ़िल्म के प्रचलित फॉर्म या रूप को तोड़ा था। इस फ़िल्म को फ़िल्मफेयर क्रिटिक अवॉर्ड मिला था।[1]

प्रमुख फ़िल्में

  • उसकी रोटी (1969)
  • आषाढ़ का एक दिन (1971)
  • दुविधा (1973)
  • घाशीराम कोतवाल (1979)
  • सतह से उठता आदमी (1980)
  • ध्रुपद (1982)
  • मति मानस (1984)
  • सिद्धेश्वरी (1989)
  • इडियट (1992)
  • द क्लाउड डोर (1995)
  • नौकर की कमीज़ (1999)
  • बोझ (2000)

सम्मान और पुरस्कार

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार
  • 1974- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (फ़िल्म- दुविधा)
  • 1989- सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र (फ़िल्म- : सिद्धेश्वरी)
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिए)
  • 1971- उसकी रोटी (1970)
  • 1972: आषाढ़ का एक दिन (1971)
  • 1974: दुविधा (1973)
  • 1993: इडियट (1992)

निधन

मणि कौल का 6 जुलाई 2011 को गुड़गाँव, हरियाणा में निधन हो गया। कई साल तक वे नीदरलैंड्स में भी रहे, जहाँ उन्होंने कुछ फ़िल्में और वृत्तचित्र भी बनाए। उनके निधन से सचमुच एक बड़ा फ़िल्मकार हमारे बीच से चला गया है। मगर भारतीय फ़िल्म विधा के विकास में उनका बिलकुल अलग तरह का योगदान है जिसे गंभीर सिनेमा के प्रेमी हमेशा याद रखेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मणि कौल का अद्भुत सिनेमा (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वेब दुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 3 जनवरी, 2013।

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