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'''मुकेश''' अथवा '''मुकेश चन्द्र माथुर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mukesh'' अथवा ''Mukesh Chandra Mathur'') (जन्म- [[22 जुलाई]] 1923, [[दिल्ली]] [[भारत]]; मृत्यु- [[27 अगस्त]] 1976) भारतीय संगीत इतिहास के सर्वश्रेष्‍ठ गायकों में से एक हैं।
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'''मुकेश''' अथवा '''मुकेश चन्द्र माथुर''' (जन्म- [[22 जुलाई]], [[1923]], [[दिल्ली]]; मृत्यु- [[27 अगस्त]], [[1976]]) [[भारत]] में [[संगीत]] इतिहास के सर्वश्रेष्‍ठ गायकों में से एक थे। पेशे से एक इन्जीनियर के घर में पैदा होने वाले मुकेश चन्द माथुर के अन्दर वह सलाहियत थी कि वह एक अच्छे गायक बन कर उभरें। और हुआ भी यही। कुदरत ने उनके अंदर जो काबलियत दी थी, वह लोगों के सामने आई और मुकेश की आवाज़ का जादू पूरी दुनिया के सिर चढ़ कर बोला।
 
==जन्म और परिवार==
 
==जन्म और परिवार==
मुकेश का जन्म 22 जुलाई 1923, को दिल्ली, भारत में हुआ था। इनका विवाह सरल के साथ हुआ था। मुकेश और सरल की शादी 1946 में हुई थी। मुकेश के एक बेटा और दो बेटियाँ है जिनके नाम है:- नितिन, रीटा और नलिनी।
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मुकेश का जन्म 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली में हुआ था। इनका [[विवाह]] 'सरल' के साथ हुआ था। मुकेश और सरल की शादी [[1946]] में हुई थी। मुकेश के एक बेटा और दो बेटियाँ हैं, जिनके नाम है:- नितिन, रीटा और नलिनी।
==कला जगत के क्षेत्र में प्रवेश==
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====फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश====
मुकेश की आवाज़ की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने तब पहचाना जब उन्होंने उसे अपने बहन की शादी में गाते हुए सुना। मोतीलाल उन्हे [[बम्बई]] ले गये और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं उन्होंने मुकेश के लिये रियाज़ का पूरा इन्तज़ाम किया।  
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मुकेश की आवाज़ की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने तब पहचाना, जब उन्होंने उन्हें अपनी बहन की शादी में गाते हुए सुना। मोतीलाल उन्हे [[बम्बई]] ले गये और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं उन्होंने मुकेश के लिये रियाज़ का पूरा इन्तज़ाम किया। सुरों के बादशाह मुकेश ने अपना सफर [[1941]] में शुरू किया। 'निर्दोष' फ़िल्म में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी खुद गाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'माशूका', 'आह', 'अनुराग' और 'दुल्हन' में भी बतौर अभिनेता काम किया। उन्होंने सब से पहला गाना "दिल ही बुझा हुआ हो तो" गाया था। इसमें कोई शक नहीं कि मुकेश एक सुरीली आवाज़ के मालिक थे और यही वजह है कि उनके चाहने वाले सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि [[अमरीका]] के संगीत प्रेमियों के दिलों को भी ख़ुश करते थे। के. एल. सहगल से मुतअस्सिर मुकेश ने अपने शरूआती दिनों में उन्हीं के अंदाज़ में गाने गाए। मुकेश का सफर तो 1941 से ही शुरू हो गया था, मगर एक गायक के रूप में उन्होंने अपना पहला गाना 1945 में फिल्म 'पहली नजर' में गाया। उस वक्त के सुपर स्टार माने जाने वाले 'मोती लाल' पर फ़िल्माया जाने वाला गाना 'दिल जल्ता है तो जलने दे' हिट हुआ था।
==अभिनेता के रूप में==
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==प्रसिद्धि==
बतौर अभिनेता और गायक 1941 में मुकेश ने निर्दोष में काम किया। लोकप्रिय गायक मुकेश ने निर्दोष के अलावा अभिनेता के रूप में माशूका, आह, अनुराग और दुल्‍हन में बतौर अभिनेता काम किया।
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शायद उस वक्त मोतीलाल को उनकी मेहनत भी कामयाब होती नज़र आई होगी। क्योंकि वह ही वह जौहरी थे, जिन्होंने मुकेश के अंदर छुपी सलाहियत को परखा था और फिर मुम्बई ले आए थे। के. एल. सहगल की आवाज़ में गाने वाले मुकेश ने पहली बार [[1949]] में फ़िल्म 'अंदाज' से अपनी आवाज़ को अपना अंदाज़ दिया। उसके बाद तो मुकेश की आवाज़ हर गली हर नुक्कड़ और हर चौराहे पर गूंजने लगी। 'प्यार छुपा है इतना इस दिल में, जितने सागर में मोती' और 'ड़म ड़म ड़िगा ड़िगा' जैसे गाने संगीत प्रेमियों के ज़बान पर चलते रहते थे। इन्हें गीतों ने मुकेश को प्रसिद्धि की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया।
==पहला गीत==
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====राजकपूर का साथ====
पार्श्व गायक के तौर पर उन्हे अपना पहला काम 1945 में फ़िल्म पहली नज़र में मिला। मुकेश ने हिन्दी फ़िल्म में जो पहला गाना गाया वह था "दिल जलता है तो जलने दे" जिसमें अदाकारी मोतीलाल ने की। इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक के. एल. सहगल के प्रभाव का असर साफ साफ नज़र आता है।
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फ़िल्मी दुनिया के बेताज बादशाह रहे [[राजकपूर]] का फ़िल्मी सफर मुकेश के बगैर अधूरा है। मुकेश ने राजकपूर की अधिकांश फ़िल्मों के गानों को अपनी मधुर आवाज से सजाया था। 1948 से शुरू होने वाला ये साथ आख़िरी दम तक बाकी रहा। राजकपूर ने मुकेश के इस दुनिया से चले जाने के बाद 'मैंने अपनी आवाज़ कहीं खो दी है' कहकर इस रिश्ते को पेश भी किया था। ऐसा भी नही था कि मुकेश ने सिर्फ राजकपूर के लिए ही गाने गाये हों, बल्कि राजकपूर का साथ होने से पहले ही मुकेश की आवाज़ फ़िल्मी दुनिया में मशहूर हो चुकी थी।
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====अभिनय की इच्छा====
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मुकेश के दिल के अरमान अदाकार बनने के थे और यही वजह है कि गायकी में कामयाब होने के बावजूद भी वह अदाकारी करने के इच्छुक थे। उन्होंने यह किया भी, मगर एक के बाद एक तीन फ़्लॉप फ़िल्मों ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया और मुकेश यहूदी फ़िल्म के गाने में अपनी आवाज़ देकर फिर से फ़िल्मी दुनिया पर छा गए।
 
==दर्द का बादशाह==
 
==दर्द का बादशाह==
मुकेश द्वारा गाई गई तुलसी  रामायण आज भी लोगों को भक्ति भाव से झूमने को मजबूर कर देती है, क़रीब 200 से अधिक फ़िल्‍मो में आवाज़ देने वाले मुकेश ने [[संगीत]] की दुनिया में अपने आपको दर्द का बादशाह तो साबित किया ही इसके साथ साथ वैश्विक गायक के रूप में अपनी पहचान बनाई। फ़िल्‍मफ़ेयर पुरस्‍कार पाने वाले वह पहले पुरुष गायक थे।  
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मुकेश ने गाने तो हर किस्म के गाये, मगर दर्द भरे गीतों की चर्चा मुकेश के गीतों के बिना अधूरी है। उनकी आवाज़ ने दर्द भरे गीतों में जो [[रंग]] भरा, उसे दुनिया कभी भुला नहीं सकेगी। "दर्द का बादशाह" कहे जाने वाले मुकेश ने 'अगर ज़िन्दा हूँ मै इस तरह से', 'ये मेरा दीवानापन है' (फ़िल्म यहुदी से), 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना' (फ़िल्म बन्दिनी से), 'दोस्त दोस्त ना रहा' (फ़िल्म सन्गम से), जैसे गानों को अपनी आवाज़ के जरिए दर्द में ड़ुबो दिया तो वही 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' (फ़िल्म अन्दाज़ से), 'जाने कहाँ गये वो दिन' (फ़िल्म मेरा नाम जोकर से), 'मैंने तेरे लिये ही सात रंग के सपने चुने' (फ़िल्म आनन्द से), 'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है' (फ़िल्म कभी कभी से), 'चन्चल शीतल निर्मल कोमल' (फिल्म 'सत्यम शिवम सुन्दरम्' से) जैसे गाने गाकर प्यार के एहसास को और गहरा करने में कोई कसर ना छोड़ी। यही नहीं मकेश ने अपनी आवाज़ 'में मेरा जूता है जापानी' (फ़िल्म आवारा से) जैसा गाना गाकर लोगों को सारा गम भूल कर मस्त हो जाने का भी मौका दिया। मुकेश द्वारा गाई गई 'तुलसी  रामायण' आज भी लोगों को भक्ति भाव से झूमने को मजबूर कर देती है। क़रीब 200 से अधिक फ़िल्‍मो में आवाज़ देने वाले मुकेश ने [[संगीत]] की दुनिया में अपने आपको 'दर्द का बादशाह' तो साबित किया ही, इसके साथ साथ वैश्विक गायक के रूप में अपनी पहचान भी बनाई। 'फ़िल्‍म फ़ेयर पुरस्‍कार' पाने वाले वह पहले पुरुष गायक थे।  
 
==पुरस्कार==
 
==पुरस्कार==
*1959 फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - सब कुछ सीखा हमनें (अनाड़ी)
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*[[1959]] - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - सब कुछ सीखा हमनें (अनाड़ी)
*1970 फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - सबसे बड़ा नादान वही है (पहचान)
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*[[1970]] - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - सबसे बड़ा नादान वही है (पहचान)
*1972 फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - जय बोलो बेइमान की जय बोलो (बेइमान)
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*[[1972]] - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - जय बोलो बेइमान की जय बोलो (बेइमान)
*1974 नेशनल अवॉर्ड - कई बार यूँ भी देखा है (रजनी गंधा)
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*[[1974]] - नेशनल अवॉर्ड - कई बार यूँ भी देखा है (रजनी गंधा)
*1976 फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है (कभी कभी)
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*[[1976]] - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है (कभी कभी)
 
 
 
==निधन==
 
==निधन==
मुकेश का निधन 27 अगस्त 1976 को दिल का दौरा पड़ने के कारण हुआ था।
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मुकेश का निधन [[27 अगस्त]], 1976 को दिल का दौरा पड़ने के कारण [[संयुक्त राज्य अमरीका]] में हुआ।
  
 
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09:38, 22 जुलाई 2012 का अवतरण

मुकेश
Mukesh.jpg
पूरा नाम मुकेश चन्द्र माथुर
जन्म 22 जुलाई, 1923
जन्म भूमि दिल्ली, भारत
मृत्यु 27 अगस्त, 1976
संतान नितिन (पुत्र), रीटा और नलिनी (पुत्री)
कर्म भूमि मुम्बई
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म संगीत (पार्श्वगायक)
पुरस्कार-उपाधि राष्ट्रीय पुरस्कार (1) और फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार (4)

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मुकेश अथवा मुकेश चन्द्र माथुर (जन्म- 22 जुलाई, 1923, दिल्ली; मृत्यु- 27 अगस्त, 1976) भारत में संगीत इतिहास के सर्वश्रेष्‍ठ गायकों में से एक थे। पेशे से एक इन्जीनियर के घर में पैदा होने वाले मुकेश चन्द माथुर के अन्दर वह सलाहियत थी कि वह एक अच्छे गायक बन कर उभरें। और हुआ भी यही। कुदरत ने उनके अंदर जो काबलियत दी थी, वह लोगों के सामने आई और मुकेश की आवाज़ का जादू पूरी दुनिया के सिर चढ़ कर बोला।

जन्म और परिवार

मुकेश का जन्म 22 जुलाई, 1923 को दिल्ली में हुआ था। इनका विवाह 'सरल' के साथ हुआ था। मुकेश और सरल की शादी 1946 में हुई थी। मुकेश के एक बेटा और दो बेटियाँ हैं, जिनके नाम है:- नितिन, रीटा और नलिनी।

फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश

मुकेश की आवाज़ की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतीलाल ने तब पहचाना, जब उन्होंने उन्हें अपनी बहन की शादी में गाते हुए सुना। मोतीलाल उन्हे बम्बई ले गये और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं उन्होंने मुकेश के लिये रियाज़ का पूरा इन्तज़ाम किया। सुरों के बादशाह मुकेश ने अपना सफर 1941 में शुरू किया। 'निर्दोष' फ़िल्म में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी खुद गाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'माशूका', 'आह', 'अनुराग' और 'दुल्हन' में भी बतौर अभिनेता काम किया। उन्होंने सब से पहला गाना "दिल ही बुझा हुआ हो तो" गाया था। इसमें कोई शक नहीं कि मुकेश एक सुरीली आवाज़ के मालिक थे और यही वजह है कि उनके चाहने वाले सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि अमरीका के संगीत प्रेमियों के दिलों को भी ख़ुश करते थे। के. एल. सहगल से मुतअस्सिर मुकेश ने अपने शरूआती दिनों में उन्हीं के अंदाज़ में गाने गाए। मुकेश का सफर तो 1941 से ही शुरू हो गया था, मगर एक गायक के रूप में उन्होंने अपना पहला गाना 1945 में फिल्म 'पहली नजर' में गाया। उस वक्त के सुपर स्टार माने जाने वाले 'मोती लाल' पर फ़िल्माया जाने वाला गाना 'दिल जल्ता है तो जलने दे' हिट हुआ था।

प्रसिद्धि

शायद उस वक्त मोतीलाल को उनकी मेहनत भी कामयाब होती नज़र आई होगी। क्योंकि वह ही वह जौहरी थे, जिन्होंने मुकेश के अंदर छुपी सलाहियत को परखा था और फिर मुम्बई ले आए थे। के. एल. सहगल की आवाज़ में गाने वाले मुकेश ने पहली बार 1949 में फ़िल्म 'अंदाज' से अपनी आवाज़ को अपना अंदाज़ दिया। उसके बाद तो मुकेश की आवाज़ हर गली हर नुक्कड़ और हर चौराहे पर गूंजने लगी। 'प्यार छुपा है इतना इस दिल में, जितने सागर में मोती' और 'ड़म ड़म ड़िगा ड़िगा' जैसे गाने संगीत प्रेमियों के ज़बान पर चलते रहते थे। इन्हें गीतों ने मुकेश को प्रसिद्धि की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया।

राजकपूर का साथ

फ़िल्मी दुनिया के बेताज बादशाह रहे राजकपूर का फ़िल्मी सफर मुकेश के बगैर अधूरा है। मुकेश ने राजकपूर की अधिकांश फ़िल्मों के गानों को अपनी मधुर आवाज से सजाया था। 1948 से शुरू होने वाला ये साथ आख़िरी दम तक बाकी रहा। राजकपूर ने मुकेश के इस दुनिया से चले जाने के बाद 'मैंने अपनी आवाज़ कहीं खो दी है' कहकर इस रिश्ते को पेश भी किया था। ऐसा भी नही था कि मुकेश ने सिर्फ राजकपूर के लिए ही गाने गाये हों, बल्कि राजकपूर का साथ होने से पहले ही मुकेश की आवाज़ फ़िल्मी दुनिया में मशहूर हो चुकी थी।

अभिनय की इच्छा

मुकेश के दिल के अरमान अदाकार बनने के थे और यही वजह है कि गायकी में कामयाब होने के बावजूद भी वह अदाकारी करने के इच्छुक थे। उन्होंने यह किया भी, मगर एक के बाद एक तीन फ़्लॉप फ़िल्मों ने उनके सपने को चकनाचूर कर दिया और मुकेश यहूदी फ़िल्म के गाने में अपनी आवाज़ देकर फिर से फ़िल्मी दुनिया पर छा गए।

दर्द का बादशाह

मुकेश ने गाने तो हर किस्म के गाये, मगर दर्द भरे गीतों की चर्चा मुकेश के गीतों के बिना अधूरी है। उनकी आवाज़ ने दर्द भरे गीतों में जो रंग भरा, उसे दुनिया कभी भुला नहीं सकेगी। "दर्द का बादशाह" कहे जाने वाले मुकेश ने 'अगर ज़िन्दा हूँ मै इस तरह से', 'ये मेरा दीवानापन है' (फ़िल्म यहुदी से), 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना' (फ़िल्म बन्दिनी से), 'दोस्त दोस्त ना रहा' (फ़िल्म सन्गम से), जैसे गानों को अपनी आवाज़ के जरिए दर्द में ड़ुबो दिया तो वही 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' (फ़िल्म अन्दाज़ से), 'जाने कहाँ गये वो दिन' (फ़िल्म मेरा नाम जोकर से), 'मैंने तेरे लिये ही सात रंग के सपने चुने' (फ़िल्म आनन्द से), 'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है' (फ़िल्म कभी कभी से), 'चन्चल शीतल निर्मल कोमल' (फिल्म 'सत्यम शिवम सुन्दरम्' से) जैसे गाने गाकर प्यार के एहसास को और गहरा करने में कोई कसर ना छोड़ी। यही नहीं मकेश ने अपनी आवाज़ 'में मेरा जूता है जापानी' (फ़िल्म आवारा से) जैसा गाना गाकर लोगों को सारा गम भूल कर मस्त हो जाने का भी मौका दिया। मुकेश द्वारा गाई गई 'तुलसी रामायण' आज भी लोगों को भक्ति भाव से झूमने को मजबूर कर देती है। क़रीब 200 से अधिक फ़िल्‍मो में आवाज़ देने वाले मुकेश ने संगीत की दुनिया में अपने आपको 'दर्द का बादशाह' तो साबित किया ही, इसके साथ साथ वैश्विक गायक के रूप में अपनी पहचान भी बनाई। 'फ़िल्‍म फ़ेयर पुरस्‍कार' पाने वाले वह पहले पुरुष गायक थे।

पुरस्कार

  • 1959 - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - सब कुछ सीखा हमनें (अनाड़ी)
  • 1970 - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - सबसे बड़ा नादान वही है (पहचान)
  • 1972 - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - जय बोलो बेइमान की जय बोलो (बेइमान)
  • 1974 - नेशनल अवॉर्ड - कई बार यूँ भी देखा है (रजनी गंधा)
  • 1976 - फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड - कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है (कभी कभी)

निधन

मुकेश का निधन 27 अगस्त, 1976 को दिल का दौरा पड़ने के कारण संयुक्त राज्य अमरीका में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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