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'''वजीर हसन''' (जन्म- [[1 मई]], [[1872]], [[जौनपुर]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[अगस्त]], [[1947]]) प्रमुख राष्ट्रवादी [[मुस्लिम]] नेता थे। वे [[अवध]] के मुख्य न्यायाधीश और [[मुस्लिम लीग]] के [[अध्यक्ष]] रहे थे।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
प्रमुख राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता सर वजीर हसन का जन्म [[1 मई]] [[1872]] ई. [[उत्तर प्रदेश]] के [[जौनपुर]] जिले में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा [[बलिया]], [[अलीगढ़]] और [[इलाहाबाद]] में हुई। [[1903]] में वजीर हसन ने वकालत शुरु की और शीघ्र ही उनकी गणना अपने समय के सफल वकीलों में होने लगी। वे बाद में न्यायिक सेवा में आ गए और [[1930]] से [[1934]] तक [[अवध]] के मुख्य न्यायाधीश रहे। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=773|url=}}</ref>
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==सार्वजनिक जीवन==
 
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वजीर हसन वकालत शुरू करने के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेने लगे थे। [[1903]] में वे [[कांग्रेस]] में शामिल हो गये। जब [[मुस्लिम लीग]] की स्थापना हुई तो वे उसमें चले गए। लीग के सचिव की हैसियत से उन्होंने [[1916]] में [[कांग्रेस]] और लीग के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वजीर हसन ने [[खिलाफत आंदोलन]] में भाग नहीं लिया। वे धार्मिक विषयों को राजनीति से मिलाने के विरोधी थे।   
==एकता के पक्षधर==
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==हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर==
राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता सर वजीर हसन हिंदू-मुस्लिम और अन्य समुदायों में एकता के पक्षधर थे। न्यायिक सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे फिर सक्रिय राजनीति में आए और [[1936]] में [[मुस्लिम लीग]] के [[अध्यक्ष]] बन गए। 1936 में लीग के अधिवेशन में उन्होंने हिंदू मुसलमान तथा देश में रहने वाले सभी समुदायों के बीच एकता पर बल दिया। वे [[पाकिस्तान]] की विचारधारा के विरोधी थे। इस बात से नाराज [[मोहम्मद अली जिन्ना]] ने उन्हें मुस्लिम लीग से निकाल दिया था। मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] में वकालत करने लगे थे। [[1937]] में उन्होंने [[कांग्रेस]] की सदस्यता भी ग्रहण कर ली थी।
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वजीर हसन (जन्म- 1 मई, 1872, जौनपुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- अगस्त, 1947) प्रमुख राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता थे। वे अवध के मुख्य न्यायाधीश और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रहे थे।

परिचय

प्रमुख राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता सर वजीर हसन का जन्म 1 मई, 1872 ई. को उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा बलिया, अलीगढ़ और इलाहाबाद में हुई। 1903 में वजीर हसन ने वकालत शुरु की और शीघ्र ही उनकी गणना अपने समय के सफल वकीलों में होने लगी। वे बाद में न्यायिक सेवा में आ गए और 1930 से 1934 तक अवध के मुख्य न्यायाधीश रहे।[1]

सार्वजनिक जीवन

वजीर हसन वकालत शुरू करने के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेने लगे थे। 1903 में वे कांग्रेस में शामिल हो गये। जब मुस्लिम लीग की स्थापना हुई तो वे उसमें चले गए। लीग के सचिव की हैसियत से उन्होंने 1916 में कांग्रेस और लीग के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वजीर हसन ने खिलाफत आंदोलन में भाग नहीं लिया। वे धार्मिक विषयों को राजनीति से मिलाने के विरोधी थे।

हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर

वजीर हसन हिंदू-मुस्लिम और अन्य समुदायों में एकता के पक्षधर थे। न्यायिक सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे फिर सक्रिय राजनीति में आए और 1936 में मुस्लिम लीग के अध्यक्ष बन गए। 1936 में लीग के अधिवेशन में उन्होंने हिंदू-मुसलमान तथा देश में रहने वाले सभी समुदायों के बीच एकता पर बल दिया। वे पाकिस्तान की विचारधारा के विरोधी थे। इस बात से नाराज मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें मुस्लिम लीग से निकाल दिया था।

मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे थे। 1937 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता भी ग्रहण कर ली थी।

मृत्यु

राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता सर वजीर हसन का अगस्त 1947 में इंतकाल हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 773 |

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