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− | + | * [[सैनी]] | |
− | + | * [[कायस्थ]] | |
− | + | * [[ब्राह्मण]] | |
− | + | * [[क्षत्रिय]] | |
− | + | * [[शूद्र]] | |
− | + | [[ब्रहमा]] जी से पैदा होनऐ वालऐ ब्राह्मन कहलाऐ,विश्नु से पेदा होने वाले वैश ,शकर जी से पैदा होने वाले छतिरय ,इसलिये आज भी ब्राह्मन अपनी मात्ता सरसवती,वैश लकश्मी,छतरी मा दुर्गे की पुजा करते है। | |
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11:32, 6 दिसम्बर 2011 का अवतरण
हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में वैश्य का तीसरा स्थान है।वैश्य वर्ण के लोग मुख्यतया वाणिज्य व्यवसाय और कृषि करते थे। हिंदुओं की जाति व्यवस्था के अंतर्गत वैश्य वर्णाश्रम का तीसरा महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस वर्ग में मुख्य रूप से भारतीय समाज के किसान, पशुपालक, और व्यापारी समुदाय शामिल है।
अर्थ की दृष्टि से इस शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है जिसका मूल अर्थ "बसना" होता है। मनु के मनुस्मृति के अनुसार वैश्यों की उत्पत्ति ब्रम्हा के उदर यानि पेट से हुई है।
यह भी देखें
ब्रहमा जी से पैदा होनऐ वालऐ ब्राह्मन कहलाऐ,विश्नु से पेदा होने वाले वैश ,शकर जी से पैदा होने वाले छतिरय ,इसलिये आज भी ब्राह्मन अपनी मात्ता सरसवती,वैश लकश्मी,छतरी मा दुर्गे की पुजा करते है।