"संदीप पांडेय" के अवतरणों में अंतर

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'''संदीप पाण्डेय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sandeep Pandey'', जन्म: [[22 जुलाई]], [[1965]]) [[भारत]] के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्हें [[रेमन मैगसेसे पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था। वे डॉ. दीपक गुप्ता और वीजेपी श्रीवास्तव के साथ 'आशा फॉर एजुकेशन' नामक अशासकीय संस्था चलाते हैं। सम्प्रति वे [[भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बी.एच.यू.) वाराणसी|भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, वाराणसी]] में प्राध्यापक हैं। जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के सदस्य हैं।
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'''संदीप पांडेय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sandeep Pandey'', जन्म: [[22 जुलाई]], [[1965]], [[बलिया]], [[उत्तर प्रदेश]]) [[भारत]] के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे देश के सबसे कम उम्र के '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' विजेता हैं। संदीप पांडेय देश के उपेक्षित तथा हाशिए पर जी रहे लोगों की दशा देखकर इतना द्रवित हुए कि उन्होंने उस वर्ग की बेहतरी के लिए काम करने का निर्णय ले लिया। अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए उन्होंने 'आशा परिवार' नाम की एक संस्था खड़ी की तथा उसके माध्यम से देश के दलितों और अल्पसंख्यकों की पक्षधरता के लिए काम करने लगे। उन्होंने अपनी संख्या तथा अपने दल के साथ पूरे जोर-शोर से अपना कार्यक्रम लागू करना शुरू किया और उसके लिए देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाया। देश की दशा में सुधार लाने वाले इस कार्यक्रम के लिए उन्हें वर्ष [[2002]] का 'मैग्सेसे पुरस्कार' प्रदान किया गया।
==संक्षिप्त परिचय==
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==परिचय==
* संदीप पाण्डेय का जन्म [[22 जुलाई]], [[1965]] को हुआ था।
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संदीप पांडेय का जन्म [[22 जुलाई]], [[1965]] को [[उत्तर प्रदेश]] में [[बलिया]] के एक सम्पन्न [[ब्राह्मण]] [[परिवार]] में हुआ था। स्थानीय स्कूलों से बुनियादी शिक्षा पाने के बाद वह [[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] के छात्र रहे। उसके बाद वह कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में पी.एच.डी. की डिग्री लेने चले गए। वहां उनकी मुलाकात दीपक गुप्ता तथा वी.जे.पी. श्रीवास्तव से हुई, जो विदेश में रहते हुए भी देश के प्रति सचेत थे। उनके साथ उनके मन में विचार जागा कि विदेश में बसे भारतीयों से धन जुटाकर ग़रीब बच्चों की शिक्षा की दिशा में कुछ ठोस काम किया जा सकता है।<ref name="a">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=मैग्सेसे पुरस्कार विजेता भारतीय|लेखक=अशोक गुप्ता|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=नया साहित्य मदरशा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=144|url=}}</ref>
*[[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय]] के इस छात्र ने कॅलिफोर्निया से पी.एच.डी. की डिग्री लेने के बाद आई.आई.टी. में अध्यापन का कार्य किया। बाद में पूरा समय सामाजिक सेवा में लगाने के भाव से यह पद भार छोड़ दिया।
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=='आशा परिवार' की स्थापना==
*सन् [[2002]] में '[[रमन मैगसेसे अवार्ड]] से सम्मानित आई.आई.टी., [[कानपुर]] के पूर्व प्रोफेसर डॉ. संदीप पाण्डेय को ग़रीबों के उत्थान और गरीब बच्चों के लिए शिक्षा सहायता की पहल के लिए प्रतिबद्ध नेता और सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में देखा जाता है।  
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[[1991]] में संदीप पांडेय कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. लेकर [[भारत]] लौटे और आई.आई.टी., [[कानपुर]] में प्राध्यापक बन गए। वहीं उन्होंने एक जैसी सोच वाले दोस्तों के साथ मिलकर 'आशा परिवार' नाम की संस्था का गठन किया। इस संस्था के पीछे संदीप का यह विचार था कि वह एकदम ग़रीब, उपेक्षित तथा तिरस्कृत लोगों के काम आएँगे, जिन तक लोकतंत्र का लाभ नहीं पहुँच पा रहा है। 'आशा परिवार' के जरिये संदीप पांडेय की नजर देश के प्रशासन तथा उसकी राजनीतिक व्यवस्था से भ्रष्टाचार हटाने, उसकी दक्षता बढ़ाने का प्रयास करने तथा उसे अधिक जिम्मेदार बनाने को मजबूर करने जैसे कामों पर रही है। संदीप देश के ग़रीब, बदहाल लोगों को उनके जानकारी पाने के अधिकार से अवगत करना चाहते हैं। वह उनमें यह आत्मविश्वास पैदा करना चाहते हैं कि वह खुद अपने हल के लिए खड़े हो सकेंं। 'आशा परिवार' संस्था संदीप के इस लक्ष्य को पूरा करने की ओर काम कर रही है। संदीप पांडेय के सामने यह स्पष्ट है कि उनका यह लक्ष्य इस वर्ग की शिक्षा की ज़रूरत से जुड़ा हुआ है और उनकी कोशिश इस दिशा में भरपूर रही है।
*गांधीवाद को मानने वाले डॉ. संदीप पाण्डेय ने [[लखनऊ]] के पास लालपुर में 'आशा' नामक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की।
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*प्रजातंत्र को मजबूत करने की दिशा में सभी नागरिकों को '[[सूचना का अधिका]]' मिले इसके लिए भी उन्होंने कार्य किया।  
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'आशा' परिवार' की नींव संदीप पांडेय के मन में बलिया में पहुँच कर पड़ी, जहाँ उन्होंने, दलितों तथा अन्य नीच कहीं जाने वाली जाति के लोगों को बदहाली में देखा। वे लोग ग़रीबी से जूझ रहे हैं। वे समाज से बहिष्कृत लोग थे तथा एक तरह से तिरस्कृत जीवन जी रहे थे। संदीप ने उनके [[गाँव]] रेवती और भैंसाहा में 'आशा परिवार' के स्थानीय स्वयं सेवकों को इकट्ठा करके इनके लिए स्कूलों की व्यवस्था की, और इस कोशिश की शुरुआत की कि ये लोग अपने भीतर आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता का भाव उपजा सकें। संदीप ने यह लक्ष्य बनाया कि ये लोग न्यायपूर्ण तथा समतामूलक समाज की कीमत समझ सकें। संदीप का यह मानना था कि 'आशा परिवार' स्वयंसेवियों का वह पहला आश्रम है, जो बेसहारा ग़रीबों के लिए काम कर रहा है।<ref name="a"/>
*स्थानीय क्षेत्रों में सरकारी भ्रष्टाचार, जातिवाद, दलित शोषण के खिलाफ उन्होंने मुहिम चलाई।
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[[बलिया]] के रेवती तथा भैंसाहा गाँवों के बाद संदीप ने 'आशा परिवार' का अगला विस्तार [[हरदोई]] में दलितों के गाँव लालपुर में किया। यहाँ पर ये लोग एक अलग ही तरह के पाठ्यक्रम पर चल रहे हैं। ये लोग ऐसे गीत तथा [[कहानी|कहानियाँ]] सुन, पढ़ तथा गा रहे हैं जो संदीप के लक्ष्य को उजागर करते हैं। यह 'आशा परिवार' आश्रम शिक्षा तथा जागरूकता के अतिरिक्त और भी जिम्मेदरियाँ निभाता है, जैसे इसकी ओर से बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ दी जाती हैं। इसके माध्यम से संदीप ने वहाँ साफ-सफाई के प्रति जागरूकता की भी जानकारी लोगों के बीच सामान्य अभ्यास की तरह रखी। उन्हें उसके पालन का महत्त्व बताया। इन्हें आदर में ढालने का अभियान चलाया।
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==पुरस्कार==
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संदीप पांडेय को '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' से सम्मानित किया गया है। वे डॉ. दीपक गुप्ता और वीजेपी श्रीवास्तव के साथ 'आशा फॉर एजुकेशन' नामक अशासकीय संस्था चलाते हैं। सम्प्रति वे [[भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बी.एच.यू.) वाराणसी|भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, वाराणसी]] में प्राध्यापक हैं। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के वे सदस्य हैं।
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==अन्य तथ्य==
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*गांधीवाद को मानने वाले डॉ. संदीप पांडेय ने [[लखनऊ]] के पास लालपुर में 'आशा' नामक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की थी।
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*प्रजातंत्र को मजबूत करने की दिशा में सभी नागरिकों को '[[सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005|सूचना का अधिकार]]' मिले इसके लिए भी उन्होंने कार्य किया।  
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*स्थानीय क्षेत्रों में सरकारी भ्रष्टाचार, जातिवाद, दलित शोषण के ख़िलाफ़ उन्होंने मुहिम चलाई।
 
*[[2005]] में उन्होंने [[दिल्ली]], [[भारत]] से [[मुल्तान]], [[पाकिस्तान]] तक 'मैत्री यात्रा' भी की।  
 
*[[2005]] में उन्होंने [[दिल्ली]], [[भारत]] से [[मुल्तान]], [[पाकिस्तान]] तक 'मैत्री यात्रा' भी की।  
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*[[1999]] में पोखरन से [[सारनाथ]] तक की पैदल यात्रा 'परमाणु निरस्त्रीकरण' के लिए एक सन्देश थी।  
 
*आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं।
 
*आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं।
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05:34, 22 जुलाई 2018 के समय का अवतरण

संदीप पांडेय
संदीप पांडेय
पूरा नाम संदीप पांडेय
जन्म 22 जुलाई, 1965
जन्म भूमि बलिया, उत्तर प्रदेश
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि सामाजिक कार्यकर्ता, प्राध्यापक
विद्यालय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, कॅलिफोर्निया विश्वविद्यालय
शिक्षा पी.एच.डी.
पुरस्कार-उपाधि रेमन मैगसेसे पुरस्कार
विशेष योगदान 'आशा फॉर एजुकेशन' नामक अशासकीय संस्था चलाते हैं।
अन्य जानकारी 2005 में संदीप पांडेय ने दिल्ली से मुल्तान, पाकिस्तान तक 'मैत्री यात्रा' भी की थी। उनकी 1999 में पोखरन से सारनाथ तक की पैदल यात्रा 'परमाणु निरस्त्रीकरण' के लिए एक सन्देश थी।
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संदीप पांडेय (अंग्रेज़ी: Sandeep Pandey, जन्म: 22 जुलाई, 1965, बलिया, उत्तर प्रदेश) भारत के सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे देश के सबसे कम उम्र के 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' विजेता हैं। संदीप पांडेय देश के उपेक्षित तथा हाशिए पर जी रहे लोगों की दशा देखकर इतना द्रवित हुए कि उन्होंने उस वर्ग की बेहतरी के लिए काम करने का निर्णय ले लिया। अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए उन्होंने 'आशा परिवार' नाम की एक संस्था खड़ी की तथा उसके माध्यम से देश के दलितों और अल्पसंख्यकों की पक्षधरता के लिए काम करने लगे। उन्होंने अपनी संख्या तथा अपने दल के साथ पूरे जोर-शोर से अपना कार्यक्रम लागू करना शुरू किया और उसके लिए देशव्यापी जागरूकता अभियान चलाया। देश की दशा में सुधार लाने वाले इस कार्यक्रम के लिए उन्हें वर्ष 2002 का 'मैग्सेसे पुरस्कार' प्रदान किया गया।

परिचय

संदीप पांडेय का जन्म 22 जुलाई, 1965 को उत्तर प्रदेश में बलिया के एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। स्थानीय स्कूलों से बुनियादी शिक्षा पाने के बाद वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्र रहे। उसके बाद वह कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में पी.एच.डी. की डिग्री लेने चले गए। वहां उनकी मुलाकात दीपक गुप्ता तथा वी.जे.पी. श्रीवास्तव से हुई, जो विदेश में रहते हुए भी देश के प्रति सचेत थे। उनके साथ उनके मन में विचार जागा कि विदेश में बसे भारतीयों से धन जुटाकर ग़रीब बच्चों की शिक्षा की दिशा में कुछ ठोस काम किया जा सकता है।[1]

'आशा परिवार' की स्थापना

1991 में संदीप पांडेय कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. लेकर भारत लौटे और आई.आई.टी., कानपुर में प्राध्यापक बन गए। वहीं उन्होंने एक जैसी सोच वाले दोस्तों के साथ मिलकर 'आशा परिवार' नाम की संस्था का गठन किया। इस संस्था के पीछे संदीप का यह विचार था कि वह एकदम ग़रीब, उपेक्षित तथा तिरस्कृत लोगों के काम आएँगे, जिन तक लोकतंत्र का लाभ नहीं पहुँच पा रहा है। 'आशा परिवार' के जरिये संदीप पांडेय की नजर देश के प्रशासन तथा उसकी राजनीतिक व्यवस्था से भ्रष्टाचार हटाने, उसकी दक्षता बढ़ाने का प्रयास करने तथा उसे अधिक जिम्मेदार बनाने को मजबूर करने जैसे कामों पर रही है। संदीप देश के ग़रीब, बदहाल लोगों को उनके जानकारी पाने के अधिकार से अवगत करना चाहते हैं। वह उनमें यह आत्मविश्वास पैदा करना चाहते हैं कि वह खुद अपने हल के लिए खड़े हो सकेंं। 'आशा परिवार' संस्था संदीप के इस लक्ष्य को पूरा करने की ओर काम कर रही है। संदीप पांडेय के सामने यह स्पष्ट है कि उनका यह लक्ष्य इस वर्ग की शिक्षा की ज़रूरत से जुड़ा हुआ है और उनकी कोशिश इस दिशा में भरपूर रही है।

'आशा' परिवार' की नींव संदीप पांडेय के मन में बलिया में पहुँच कर पड़ी, जहाँ उन्होंने, दलितों तथा अन्य नीच कहीं जाने वाली जाति के लोगों को बदहाली में देखा। वे लोग ग़रीबी से जूझ रहे हैं। वे समाज से बहिष्कृत लोग थे तथा एक तरह से तिरस्कृत जीवन जी रहे थे। संदीप ने उनके गाँव रेवती और भैंसाहा में 'आशा परिवार' के स्थानीय स्वयं सेवकों को इकट्ठा करके इनके लिए स्कूलों की व्यवस्था की, और इस कोशिश की शुरुआत की कि ये लोग अपने भीतर आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता का भाव उपजा सकें। संदीप ने यह लक्ष्य बनाया कि ये लोग न्यायपूर्ण तथा समतामूलक समाज की कीमत समझ सकें। संदीप का यह मानना था कि 'आशा परिवार' स्वयंसेवियों का वह पहला आश्रम है, जो बेसहारा ग़रीबों के लिए काम कर रहा है।[1]

बलिया के रेवती तथा भैंसाहा गाँवों के बाद संदीप ने 'आशा परिवार' का अगला विस्तार हरदोई में दलितों के गाँव लालपुर में किया। यहाँ पर ये लोग एक अलग ही तरह के पाठ्यक्रम पर चल रहे हैं। ये लोग ऐसे गीत तथा कहानियाँ सुन, पढ़ तथा गा रहे हैं जो संदीप के लक्ष्य को उजागर करते हैं। यह 'आशा परिवार' आश्रम शिक्षा तथा जागरूकता के अतिरिक्त और भी जिम्मेदरियाँ निभाता है, जैसे इसकी ओर से बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ दी जाती हैं। इसके माध्यम से संदीप ने वहाँ साफ-सफाई के प्रति जागरूकता की भी जानकारी लोगों के बीच सामान्य अभ्यास की तरह रखी। उन्हें उसके पालन का महत्त्व बताया। इन्हें आदर में ढालने का अभियान चलाया।

पुरस्कार

संदीप पांडेय को 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' से सम्मानित किया गया है। वे डॉ. दीपक गुप्ता और वीजेपी श्रीवास्तव के साथ 'आशा फॉर एजुकेशन' नामक अशासकीय संस्था चलाते हैं। सम्प्रति वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, वाराणसी में प्राध्यापक हैं। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वयक हैं, लोक राजनीति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्षीय मंडल के वे सदस्य हैं।

अन्य तथ्य

  • गांधीवाद को मानने वाले डॉ. संदीप पांडेय ने लखनऊ के पास लालपुर में 'आशा' नामक स्वयंसेवी संस्था की स्थापना की थी।
  • प्रजातंत्र को मजबूत करने की दिशा में सभी नागरिकों को 'सूचना का अधिकार' मिले इसके लिए भी उन्होंने कार्य किया।
  • स्थानीय क्षेत्रों में सरकारी भ्रष्टाचार, जातिवाद, दलित शोषण के ख़िलाफ़ उन्होंने मुहिम चलाई।
  • 2005 में उन्होंने दिल्ली, भारत से मुल्तान, पाकिस्तान तक 'मैत्री यात्रा' भी की।
  • 1999 में पोखरन से सारनाथ तक की पैदल यात्रा 'परमाणु निरस्त्रीकरण' के लिए एक सन्देश थी।
  • आजकल वे आधुनिक शिक्षा प्रणाली के विरोध और परमाणु निरस्त्रीकरण के पक्ष में आन्दोलन करने के कारण चर्चित हैं।
  • सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार से आम जनता को निजात दिलाने के लिये आपने 'घूस को घूंसा' नामक एक आन्दोलन आरंभ किया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मैग्सेसे पुरस्कार विजेता भारतीय |लेखक: अशोक गुप्ता |प्रकाशक: नया साहित्य मदरशा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 144 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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[[Category:सामाजिक कार्यकर्ता