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*पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित 'माण्टगोमरी ज़िले' में [[रावी नदी]] के बायें तट पर यह पुरास्थल है।  
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*[[पाकिस्तान]] के [[पंजाब]] प्रान्त में स्थित 'माण्टगोमरी ज़िले' में [[रावी नदी]] के बायें तट पर यह पुरास्थल है।  
 
*हड़प्पा में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में 'चार्ल्स मैन्सर्न' ने दी।  
 
*हड़प्पा में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में 'चार्ल्स मैन्सर्न' ने दी।  
*1856 ई. में 'ब्रण्टन बन्धुओं' ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्व को स्पष्ट किया।  
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*1856 ई. में 'ब्रण्टन बन्धुओं' ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।  
*'जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 ई. में 'दयाराम' के पुरातात्विक महत्व को स्पष्ट किया। जॉन मार्शल के निर्देशन में 1921 ई. में 'दयाराम साहनी' ने इस स्थल को स्पष्ट किया। जॉन मार्शल के निर्देशन में 1921 ई. में दयाराम साहनी ने इस स्थल का उत्खनन कार्य प्रारम्भ करवाया।
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*'जॉन मार्शल' के निर्देशन में [[1921]] ई. में 'दयाराम' के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।  
*1946 में मार्टीमर ह्वीलर ने हड़प्पा के पश्चिमी दुर्ग टीले की सुरक्षा का प्राचीर का स्वरूप ज्ञात करने के लिए यहाँ उत्खनन करवाया। इसी उत्खनन के आधार पर ह्वीलर ने रक्षा प्राचीन एवं समाधि क्षेत्र के पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित किया है। यह नगर क़रीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में बसा हुआ है। हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीले को 'नगर टीला' तथा पश्चिमी टीले को 'दुर्ग टीला' के नाम से सम्बोधित किया गया। हड़प्पा का दुर्ग क्षेत्र सुरक्षा- प्राचीर से घिरा हुआ था। दुर्ग का आकार समलम्ब चतुर्भुज की तरह था। दुर्ग का उत्तर से दक्षिण से लम्बाई 420 मी. तथा पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 196 मी. है। उत्खननकर्ताओं ने दुर्ग के टीले को माउण्ट 'AB' नाम दिया है। दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर-दिशा में तथा दूसरा प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में था। रक्षा-प्राचीर लगभग 12 मीटर ऊंची थी जिसमें स्थान-स्थान पर तोरण अथवा बुर्ज बने हुए थे। हड़प्पा के दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित लगभग 6 मीटर ऊंचे टीले को ‘एफ‘ नाम दिया है गया है जिस पर अन्नागार, अनाज कूटने की वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले हैं।  
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*[[1946]] में मार्टीमर ह्वीलर ने हड़प्पा के पश्चिमी दुर्ग टीले की सुरक्षा का प्राचीर का स्वरूप ज्ञात करने के लिए यहाँ उत्खनन करवाया। इसी उत्खनन के आधार पर ह्वीलर ने रक्षा प्राचीन एवं समाधि क्षेत्र के पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित किया है। यह नगर क़रीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में बसा हुआ है। हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीले को 'नगर टीला' तथा पश्चिमी टीले को 'दुर्ग टीला' के नाम से सम्बोधित किया गया। हड़प्पा का दुर्ग क्षेत्र सुरक्षा- प्राचीर से घिरा हुआ था। दुर्ग का आकार समलम्ब चतुर्भुज की तरह था। दुर्ग का उत्तर से दक्षिण से लम्बाई 420 मी. तथा पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 196 मी. है। उत्खननकर्ताओं ने दुर्ग के टीले को माउण्ट 'AB' नाम दिया है। दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर-दिशा में तथा दूसरा प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में था। रक्षा-प्राचीर लगभग 12 मीटर ऊंची थी जिसमें स्थान-स्थान पर तोरण अथवा बुर्ज बने हुए थे। हड़प्पा के दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित लगभग 6 मीटर ऊंचे टीले को ‘एफ‘ नाम दिया है गया है जिस पर अन्नागार, अनाज कूटने की वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले हैं। [[पडरी]] हड़प्पाई नगर, हड़प्पा पूर्व व विकसित हड़प्पा काल के दो सांस्कृतिक चरणों को स्पष्ट करता है।
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[[चित्र:Mohenjodaro-Sindh.jpg|thumb|250px|left|सिन्ध में [[मोहनजोदाड़ो]] में हड़प्पा संस्कृति के अवशेष]]
 
==अन्नागार का अवशेष==
 
==अन्नागार का अवशेष==
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यहाँ पर 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाले एक अन्नागार का अवशेष प्राप्त हुआ हैं, जिनमें प्रत्येक का आकार 50x20 मी. का है, जिनका कुल क्षेत्रफल 2,745 वर्ग मीटर से अधिक है। हड़प्पा से प्रान्त अन्नागार नगरमढ़ी के बाहर रावी नदी के निकट स्थित थे। हड़प्पा के ‘एफ‘ टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं। इन चबूतरों में ईटों को खड़े रूप में जोड़ा गया है। प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3.20 मी. है। हर चबूतरे में सम्भवतः [[ओखली]] लगाने के लिए छेद था। इन चबूतरों के छेदों में राख, जले हुए [[गेहूँ]] तथा जौं के दाने एवं भूसा के तिनके मिले है। 'मार्टीमर ह्रीलर' का अनुमान है कि इन चबूतरों का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा होगा। श्रमिक आवास के रूप में विकसित 15 मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं जिनमें उत्तरी पंक्ति में सात एवं दक्षिणी पंक्ति में 8 मकानों के अवशेष प्राप्त हुए, प्रत्येक मकान का आकार लगभग 17x7.5 मी. का है। प्रत्येक गृह में कमरे तथा आंगन होते थे। इनमें [[मोहनजोदाड़ो]] के ग्रहों की भांति कुएं नहीं मिले हैं। श्रमिक आवास के नज़दीक ही क़रीब 14 भट्टों और [[धातु]] बनाने की एक मूषा (Crucible) के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण अवशेष- एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे जिनका उपयोग संभवतः फ़सल को दाबने में किया जाता था, साथ ही गेहूँ तथा जौ के दानों के अवशेष भी मिले हैं।
यहाँ पर 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाले एक अन्नागार का अवशेष प्राप्त हुआ हैं, जिनमें प्रत्येक का आकार 50x20 मी. का है, जिनका कुल क्षेत्रफल 2,745 वर्ग मीटर से अधिक है। हड़प्पा से प्रान्त अन्नागार नगरमढ़ी के बाहर रावी नदी के निकट स्थित थे। हड़प्पा के ‘एफ‘ टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं। इन चबूतरों में ईटों को खड़े रूप में जोड़ा गया है। प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3.20 मी. है। हर चबूतरे में सम्भवतः ओखली लगाने के लिए छेद था। इन चबूतरों के छेदों में राख, जले हुए गेहूं तथा जौं के दाने एवं भूसा के तिनके मिले है। 'मार्टीमर ह्रीलर' का अनुमान है कि इन चबूतरों का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा होगा। श्रमिक आवास के रूप में विकसित 15 मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं जिनमें उत्तरी पंक्ति में सात एवं दक्षिणी पंक्ति में 8 मकानों के अवशेष प्राप्त हुए, प्रत्येक मकान का आकार लगभग 17x7.5 मी. का है। प्रत्येक गृह में कमरे तथा आंगन होते थे। इनमें [[मोहनजोदाड़ो]] के ग्रहों की भांति कुएं नहीं मिले हैं। श्रमिक आवास के नज़दीक ही करीब 14 भट्टों और धातु बनाने की एक मूषा (Crucible) के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण अवशेष- एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे जिनका उपयोग संभवतः फसल को दाबने में किया जाता था, साथ ही गेहूं तथा जौ के दानों के अवशेष भी मिले हैं।
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[[चित्र:Well-And-Bathing-Platforms-Harappa.jpg|thumb|250px|[[सिंधु घाटी सभ्यता]] में स्थित एक कुआँ और स्नान घर]]
 
 
 
==प्राप्त क़ब्रिस्तान==
 
==प्राप्त क़ब्रिस्तान==
हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा क़ब्रिस्तान स्थित है जिसे ‘समाधि आर-37‘ नाम दिया गया है। यहाँ पर प्रारम्भ में 'माधोस्वरूप वत्स' ने उत्खनन कराया था, बाद में 1946 में ह्वीलर ने भी यहाँ पर उत्खनन कराया था। यहाँ पर खुदाई से कुल 57 शवाधान पाए गए हैं। शव प्रायः उत्तर-दक्षिण दिशा में दफ़नाए जाते थे जिनमें सिर उत्तर की ओर होता था। एक कब्र में लकड़ी के ताबूत में लाश को रखकर यहाँ दफनाया गया था। 12 शवाधानों से 'कांस्य दर्पण' भी पाए गए हैं। एक सुरमा लगाने की सलाई, एक से सीपी की चम्मच एवं कुछ अन्यय से पत्थर के फलक (ब्लेड) पाए गए हैं। हड़प्पा में सन 1934 में एक अन्य समाधि मिली थी जिसे समाधि 'एच' नाम दिया गया था। इसका सम्बंध सिन्धु सभ्यता के बाद के काल से था।
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हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा क़ब्रिस्तान स्थित है जिसे ‘समाधि आर-37‘ नाम दिया गया है। यहाँ पर प्रारम्भ में 'माधोस्वरूप वत्स' ने उत्खनन कराया था, बाद में 1946 में ह्वीलर ने भी यहाँ पर उत्खनन कराया था। यहाँ पर खुदाई से कुल 57 शवाधान पाए गए हैं। शव प्रायः उत्तर-दक्षिण दिशा में दफ़नाए जाते थे जिनमें सिर उत्तर की ओर होता था। एक क़ब्र में लकड़ी के ताबूत में लाश को रखकर यहाँ दफनाया गया था। 12 शवाधानों से 'कांस्य दर्पण' भी पाए गए हैं। एक सुरमा लगाने की सलाई, एक से सीपी की चम्मच एवं कुछ अन्यय से पत्थर के फलक (ब्लेड) पाए गए हैं। हड़प्पा में सन् [[1934]] में एक अन्य समाधि मिली थी जिसे समाधि 'एच' नाम दिया गया था। इसका सम्बंध [[सिन्धु सभ्यता]] के बाद के काल से था।
 
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==महत्त्वपूर्ण तथ्य==
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*सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में पकी हुई [[मिट्टी]] के [[दीपक]] प्राप्त हुए हैं और 3500 ईसा वर्ष पूर्व की [[मोहनजोदड़ो]] सभ्यता की खुदाई में प्राप्त भवनों में दीपकों को रखने हेतु ताख बनाए गए थे व मुख्य द्वार को प्रकाशित करने हेतु आलों की श्रृंखला थी।
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*मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी [[दीपावली]] मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं। इससे यह सिद्ध स्वत: ही हो जाता है कि यह सभ्यता [[हिन्दू]] सभ्यता थी।
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*हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से कपड़ों के टुकड़े के [[अवशेष]], [[चांदी]] के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें की वस्तुएं मिले हैं।
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*यहां के लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग करते थे। इसका मतलब यह कि वे लोहे के बारे में भी जानते थे।
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*यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है। हड़प्पा नगर के उत्खनन से तांबे की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इस क्षेत्र की [[भाषा]] की [[लिपि]] चित्रात्मक थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर [[हाथी]], गैंडा, [[बाघ]] और बैल अंकित हैं।
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*हड़प्पा के मिट्टी के बर्तन पर सामान्यतः [[लाल रंग]] का उपयोग हुआ है।
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*मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में [[जल]] के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर [[जिप्सम]] के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी, जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे।
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चित्र:Harappa.jpg|हड़प्पा के [[पुरातत्त्व]] स्थल
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चित्र:Harappa-Seal.jpg|हड़प्पा मुहर
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चित्र:Harappa-Utensil.jpg|हड़प्पा कालीन [[हंडिया]], थाल व अन्य बर्तन
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चित्र:Harappa-Jewelery.jpg|हड़प्पा कालीन आभूषण
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चित्र:Harappa-Scales.jpg|हड़प्पा कालीन तराजू व बाट
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चित्र:Harappa-Seals-2.jpg|हड़प्पा मुहर
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चित्र:Harappa-Utensil-2.jpg|हड़प्पा कालीन बर्तन
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चित्र:Harappa-Utensil-3.jpg|हड़प्पा कालीन सिलबट्टा व कलछी
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चित्र:Harappa-Scales-2.jpg|हड़प्पा कालीन तराजू व बाट
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[https://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/diwali+hindi-epaper-diwalihi/sindhu+ghati+ke+log+manate+the+dipavali-newsid-59602115 सिंधु घाटी के लोग मनाते थे दीपावली]
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{सिन्धु घाटी की सभ्यता}}   
 
{{सिन्धु घाटी की सभ्यता}}   
 
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[[Category:हड़प्पा_संस्कृति]][[Category:इतिहास_कोश]][[Category:सिन्धु घाटी की सभ्यता]]
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12:36, 4 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण

हड़प्पा मुहर
Harappa Seals
  • पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित 'माण्टगोमरी ज़िले' में रावी नदी के बायें तट पर यह पुरास्थल है।
  • हड़प्पा में ध्वंशावशेषों के विषय में सबसे पहले जानकारी 1826 ई. में 'चार्ल्स मैन्सर्न' ने दी।
  • 1856 ई. में 'ब्रण्टन बन्धुओं' ने हड़प्पा के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।
  • 'जॉन मार्शल' के निर्देशन में 1921 ई. में 'दयाराम' के पुरातात्विक महत्त्व को स्पष्ट किया।
  • 1946 में मार्टीमर ह्वीलर ने हड़प्पा के पश्चिमी दुर्ग टीले की सुरक्षा का प्राचीर का स्वरूप ज्ञात करने के लिए यहाँ उत्खनन करवाया। इसी उत्खनन के आधार पर ह्वीलर ने रक्षा प्राचीन एवं समाधि क्षेत्र के पारस्परिक सम्बन्धों को निर्धारित किया है। यह नगर क़रीब 5 कि.मी. के क्षेत्र में बसा हुआ है। हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीले को 'नगर टीला' तथा पश्चिमी टीले को 'दुर्ग टीला' के नाम से सम्बोधित किया गया। हड़प्पा का दुर्ग क्षेत्र सुरक्षा- प्राचीर से घिरा हुआ था। दुर्ग का आकार समलम्ब चतुर्भुज की तरह था। दुर्ग का उत्तर से दक्षिण से लम्बाई 420 मी. तथा पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 196 मी. है। उत्खननकर्ताओं ने दुर्ग के टीले को माउण्ट 'AB' नाम दिया है। दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर-दिशा में तथा दूसरा प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में था। रक्षा-प्राचीर लगभग 12 मीटर ऊंची थी जिसमें स्थान-स्थान पर तोरण अथवा बुर्ज बने हुए थे। हड़प्पा के दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित लगभग 6 मीटर ऊंचे टीले को ‘एफ‘ नाम दिया है गया है जिस पर अन्नागार, अनाज कूटने की वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले हैं। पडरी हड़प्पाई नगर, हड़प्पा पूर्व व विकसित हड़प्पा काल के दो सांस्कृतिक चरणों को स्पष्ट करता है।
सिन्ध में मोहनजोदाड़ो में हड़प्पा संस्कृति के अवशेष

अन्नागार का अवशेष

यहाँ पर 6:6 की दो पंक्तियों में निर्मित कुल बारह कक्षों वाले एक अन्नागार का अवशेष प्राप्त हुआ हैं, जिनमें प्रत्येक का आकार 50x20 मी. का है, जिनका कुल क्षेत्रफल 2,745 वर्ग मीटर से अधिक है। हड़प्पा से प्रान्त अन्नागार नगरमढ़ी के बाहर रावी नदी के निकट स्थित थे। हड़प्पा के ‘एफ‘ टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले हैं। इन चबूतरों में ईटों को खड़े रूप में जोड़ा गया है। प्रत्येक चबूतरे का व्यास 3.20 मी. है। हर चबूतरे में सम्भवतः ओखली लगाने के लिए छेद था। इन चबूतरों के छेदों में राख, जले हुए गेहूँ तथा जौं के दाने एवं भूसा के तिनके मिले है। 'मार्टीमर ह्रीलर' का अनुमान है कि इन चबूतरों का उपयोग अनाज पीसने के लिए किया जाता रहा होगा। श्रमिक आवास के रूप में विकसित 15 मकानों की दो पंक्तियां मिली हैं जिनमें उत्तरी पंक्ति में सात एवं दक्षिणी पंक्ति में 8 मकानों के अवशेष प्राप्त हुए, प्रत्येक मकान का आकार लगभग 17x7.5 मी. का है। प्रत्येक गृह में कमरे तथा आंगन होते थे। इनमें मोहनजोदाड़ो के ग्रहों की भांति कुएं नहीं मिले हैं। श्रमिक आवास के नज़दीक ही क़रीब 14 भट्टों और धातु बनाने की एक मूषा (Crucible) के अवशेष मिले हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ से प्राप्त कुछ महत्त्वपूर्ण अवशेष- एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे जिनका उपयोग संभवतः फ़सल को दाबने में किया जाता था, साथ ही गेहूँ तथा जौ के दानों के अवशेष भी मिले हैं।

सिंधु घाटी सभ्यता में स्थित एक कुआँ और स्नान घर

प्राप्त क़ब्रिस्तान

हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा क़ब्रिस्तान स्थित है जिसे ‘समाधि आर-37‘ नाम दिया गया है। यहाँ पर प्रारम्भ में 'माधोस्वरूप वत्स' ने उत्खनन कराया था, बाद में 1946 में ह्वीलर ने भी यहाँ पर उत्खनन कराया था। यहाँ पर खुदाई से कुल 57 शवाधान पाए गए हैं। शव प्रायः उत्तर-दक्षिण दिशा में दफ़नाए जाते थे जिनमें सिर उत्तर की ओर होता था। एक क़ब्र में लकड़ी के ताबूत में लाश को रखकर यहाँ दफनाया गया था। 12 शवाधानों से 'कांस्य दर्पण' भी पाए गए हैं। एक सुरमा लगाने की सलाई, एक से सीपी की चम्मच एवं कुछ अन्यय से पत्थर के फलक (ब्लेड) पाए गए हैं। हड़प्पा में सन् 1934 में एक अन्य समाधि मिली थी जिसे समाधि 'एच' नाम दिया गया था। इसका सम्बंध सिन्धु सभ्यता के बाद के काल से था।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में पकी हुई मिट्टी के दीपक प्राप्त हुए हैं और 3500 ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो सभ्यता की खुदाई में प्राप्त भवनों में दीपकों को रखने हेतु ताख बनाए गए थे व मुख्य द्वार को प्रकाशित करने हेतु आलों की श्रृंखला थी।
  • मोहनजोदड़ो सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मूर्ति में मातृ-देवी के दोनों ओर दीप जलते दिखाई देते हैं। इससे यह सिद्ध स्वत: ही हो जाता है कि यह सभ्यता हिन्दू सभ्यता थी।
  • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें की वस्तुएं मिले हैं।
  • यहां के लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग करते थे। इसका मतलब यह कि वे लोहे के बारे में भी जानते थे।
  • यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है। हड़प्पा नगर के उत्खनन से तांबे की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इस क्षेत्र की भाषा की लिपि चित्रात्मक थी। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर हाथी, गैंडा, बाघ और बैल अंकित हैं।
  • हड़प्पा के मिट्टी के बर्तन पर सामान्यतः लाल रंग का उपयोग हुआ है।
  • मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी, जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे।


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