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*इस राजा की मृत्यु केवल पाँच वर्ष ही शासन करने के बाद 390 ई. के लगभग हो गयी थी, और उसके पुत्रों की आयु बहुत छोटी होने के कारण शासनसूत्र का संचालन प्रभावती गुप्ता ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया था।  
 
*इस राजा की मृत्यु केवल पाँच वर्ष ही शासन करने के बाद 390 ई. के लगभग हो गयी थी, और उसके पुत्रों की आयु बहुत छोटी होने के कारण शासनसूत्र का संचालन प्रभावती गुप्ता ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया था।  
  
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12:52, 10 जनवरी 2011 का अवतरण

  • रुद्रसेन के बाद पृथ्वीसेन (350 से 365 ई. तक) वाकाटक राजा बना।
  • इसका पुत्र रुद्रसेन द्वितीय था।
  • इस समय पाटलिपुत्र के गुप्त सम्राट अपनी शक्ति का विस्तार करने में व्याप्त थे।
  • गुप्त सम्राटों की यह प्रबल इच्छा थी कि गुजरात - काठियावाड़ से शक-महाक्षत्रपों के शासन का अन्त कर भारत को विदेशी आधिपत्य से सर्वथा मुक्त कर दिया जाए। वाकाटक राजा इस कार्य में उनके सहायक हो सकते थे, क्योंकि उनके राज्य की सीमाएँ शक महाक्षत्रपों के राज्य से मिलती थीं।
  • वाकाटक राजा इस समय तक किसी न किसी रूप में गुप्त सम्राटों की अधीनता स्वीकार कर चुके थे, यद्यपि शक्तिशाली सामन्तों के रूप में अपने राज्य पर उनका पूरा अधिकार था।
  • शकों का पराभव करने में वाकाटकों की पूरी सहायता प्राप्त करने के लिए गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय ने यह उपयोगी समझा, कि उनके साथ और भी घनिष्ट मैत्री का सम्बन्ध स्थापित किया जाए। सम्भवत: इसलिए उसने अपनी कन्या प्रभावती गुप्ता का विवाह रुद्रसेन द्वितीय के साथ कर दिया था।
  • इस राजा की मृत्यु केवल पाँच वर्ष ही शासन करने के बाद 390 ई. के लगभग हो गयी थी, और उसके पुत्रों की आयु बहुत छोटी होने के कारण शासनसूत्र का संचालन प्रभावती गुप्ता ने स्वयं अपने हाथों में ले लिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ