"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3" के अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभ भाई पटेल]] | ||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभ भाई पटेल]] | ||
− | {[[दिल्ली]] की राजगद्दी पर [[अफ़ग़ान]] शासकों के शासन का निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम है? | + | {[[दिल्ली]] की राजगद्दी पर [[अफ़ग़ान]] शासकों के शासन का निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम है? |
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-[[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]], [[बहलोल लोदी]] | -[[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]], [[बहलोल लोदी]] | ||
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||[[चित्र:Chakravarthi-Rajagopalachari.jpg|right|100px|सी. राजगोपालाचारी]]'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे, जो "राजाजी" के नाम से भी जाने जाते हैं। [[सी. राजगोपालाचारी|राजगोपालाचारी]] वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र [[भारत]] के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। जब [[1946]] में देश की अंतरिम सरकार बनी तो उन्हें केन्द्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया था। [[1947]] में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें [[बंगाल]] का [[राज्यपाल]] नियुक्त किया गया। इसके अगले ही [[वर्ष]] वह स्वतंत्र भारत के प्रथम 'गवर्नर जनरल' जैसे अति महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त किए गये। सन् [[1950]] में वे पुन: केन्द्रीय मंत्रिमंडल में ले लिए गये। इसी वर्ष [[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] की मृत्यु होने पर वे केन्द्रीय गृह मंत्री बनाये गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सी. राजगोपालाचारी]] | ||[[चित्र:Chakravarthi-Rajagopalachari.jpg|right|100px|सी. राजगोपालाचारी]]'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे, जो "राजाजी" के नाम से भी जाने जाते हैं। [[सी. राजगोपालाचारी|राजगोपालाचारी]] वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र [[भारत]] के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। जब [[1946]] में देश की अंतरिम सरकार बनी तो उन्हें केन्द्र सरकार में उद्योग मंत्री बनाया गया था। [[1947]] में देश के पूर्ण स्वतंत्र होने पर उन्हें [[बंगाल]] का [[राज्यपाल]] नियुक्त किया गया। इसके अगले ही [[वर्ष]] वह स्वतंत्र भारत के प्रथम 'गवर्नर जनरल' जैसे अति महत्त्वपूर्ण पद पर नियुक्त किए गये। सन् [[1950]] में वे पुन: केन्द्रीय मंत्रिमंडल में ले लिए गये। इसी वर्ष [[सरदार वल्लभ भाई पटेल]] की मृत्यु होने पर वे केन्द्रीय गृह मंत्री बनाये गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सी. राजगोपालाचारी]] | ||
− | {'[[हड़प्पा सभ्यता]]' का एक अंग [[कालीबंगा]] कहाँ स्थित है? | + | {'[[हड़प्पा सभ्यता]]' का एक अंग [[कालीबंगा]] कहाँ स्थित है? |
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||[[चित्र:Kalibanga.jpg|right|100px|कालीबंगा के अवशेष]]'राजस्थान' [[भारत|भारत गणराज्य]] के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में [[पाकिस्तान]], दक्षिण-पश्चिम में [[गुजरात]], दक्षिण-पूर्व में [[मध्य प्रदेश]], उत्तर में [[पंजाब]], उत्तर-पूर्व में [[उत्तर प्रदेश]] और [[हरियाणा]] राज्य हैं। [[राजस्थान]] में [[काला रंग|काले]], [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]], [[भूरा रंग|भूरे]] तथा हल्के [[सलेटी रंग|सलेटी]], [[हरा रंग|हरे]], [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] पत्थर से बनी मूर्तियों के अतिरिक्त [[पीतल]] या [[धातु]] की मूर्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। [[गंगानगर ज़िला|गंगानगर ज़िले]] के [[कालीबंगा]] तथा [[उदयपुर]] के निकट आहड़-सभ्यता की खुदाई में पकी हुई [[मिट्टी]] से बनाई हुई खिलौनाकृति की मूर्तियाँ भी मिलती हैं। [[राजस्थान]] में [[गुप्त]] शासकों के प्रभावस्वरूप गुप्त शैली में निर्मित मूर्तियाँ, आभानेरी, कामवन तथा [[कोटा राजस्थान|कोटा]] में कई स्थलों पर उपलब्ध हुई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजस्थान]], [[कालीबंगा]] | ||[[चित्र:Kalibanga.jpg|right|100px|कालीबंगा के अवशेष]]'राजस्थान' [[भारत|भारत गणराज्य]] के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य है। इसके पश्चिम में [[पाकिस्तान]], दक्षिण-पश्चिम में [[गुजरात]], दक्षिण-पूर्व में [[मध्य प्रदेश]], उत्तर में [[पंजाब]], उत्तर-पूर्व में [[उत्तर प्रदेश]] और [[हरियाणा]] राज्य हैं। [[राजस्थान]] में [[काला रंग|काले]], [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]], [[भूरा रंग|भूरे]] तथा हल्के [[सलेटी रंग|सलेटी]], [[हरा रंग|हरे]], [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] पत्थर से बनी मूर्तियों के अतिरिक्त [[पीतल]] या [[धातु]] की मूर्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। [[गंगानगर ज़िला|गंगानगर ज़िले]] के [[कालीबंगा]] तथा [[उदयपुर]] के निकट आहड़-सभ्यता की खुदाई में पकी हुई [[मिट्टी]] से बनाई हुई खिलौनाकृति की मूर्तियाँ भी मिलती हैं। [[राजस्थान]] में [[गुप्त]] शासकों के प्रभावस्वरूप गुप्त शैली में निर्मित मूर्तियाँ, आभानेरी, कामवन तथा [[कोटा राजस्थान|कोटा]] में कई स्थलों पर उपलब्ध हुई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजस्थान]], [[कालीबंगा]] | ||
− | {किस शासक को '[[कैलाशनाथ मन्दिर कांचीपुरम|काँची कैलाश मन्दिर]]' एवं '[[मामल्लपुरम]]' में मन्दिर के निर्माण का श्रेय जाता है? | + | {किस शासक को '[[कैलाशनाथ मन्दिर कांचीपुरम|काँची कैलाश मन्दिर]]' एवं '[[मामल्लपुरम]]' में मन्दिर के निर्माण का श्रेय जाता है? |
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-[[नरसिंह वर्मन प्रथम]] | -[[नरसिंह वर्मन प्रथम]] | ||
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||नरसिंह वर्मन द्वितीय का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो में [[महाबलीपुरम]] का समुद्र तटीय मंदिर, [[कैलाशनाथार मंदिर कांची|कांची का कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है। [[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद [[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई। 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] | ||नरसिंह वर्मन द्वितीय का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो में [[महाबलीपुरम]] का समुद्र तटीय मंदिर, [[कैलाशनाथार मंदिर कांची|कांची का कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है। [[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद [[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई। 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] | ||
− | {प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था? | + | {प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था? |
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+[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]] | +[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]] | ||
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||[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|right|100px|सिन्धु नदी]]'सिन्धु नदी' संसार की प्रमुख नदियों में से एक [[पाकिस्तान]] की सबसे बड़ी नदी है। [[तिब्बत]] के [[कैलाश मानसरोवर|मानसरोवर]] के निकट 'सिन-का-बाब' नामक जलधारा [[सिन्धु नदी]] का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और [[कश्मीर]] के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर [[अरब सागर]] में मिलती है। वैदिक संस्कृति में सिन्धु नदी तथा मानसरोवर का उल्लेख अत्यंत श्रद्धा के साथ किया जाता रहा है। [[तिब्बत]], [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] से होकर बहने वाली इस नदी में कई अन्य नदियाँ आकर मिलती हैं, जिनमे [[क़ाबुल नदी]], स्वात, [[झेलम नदी|झेलम]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], [[रावी नदी|रावी]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] मुख्य हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]] | ||[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|right|100px|सिन्धु नदी]]'सिन्धु नदी' संसार की प्रमुख नदियों में से एक [[पाकिस्तान]] की सबसे बड़ी नदी है। [[तिब्बत]] के [[कैलाश मानसरोवर|मानसरोवर]] के निकट 'सिन-का-बाब' नामक जलधारा [[सिन्धु नदी]] का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और [[कश्मीर]] के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर [[अरब सागर]] में मिलती है। वैदिक संस्कृति में सिन्धु नदी तथा मानसरोवर का उल्लेख अत्यंत श्रद्धा के साथ किया जाता रहा है। [[तिब्बत]], [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] से होकर बहने वाली इस नदी में कई अन्य नदियाँ आकर मिलती हैं, जिनमे [[क़ाबुल नदी]], स्वात, [[झेलम नदी|झेलम]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], [[रावी नदी|रावी]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] मुख्य हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]] | ||
− | {[[मोहनजोदड़ो]] में पाई गई मुहरें किससे निर्मित हैं? | + | {[[मोहनजोदड़ो]] में पाई गई मुहरें किससे निर्मित हैं? |
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||[[चित्र:Mohenjo-Daro-Seal.gif|right|100px|मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर]]'मोहनजोदड़ो' के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को 'स्तूप टीला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में, कुम्भकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपाल खण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबें]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं [[कांसा|कांसे]] की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं, जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मुहरे, बर्तन पकाने के छः भट्टे, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र था। जालीदार अलंकरण युक्त [[मिट्टी]] का बर्तन, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, [[शिव]] की मूर्ति, [[ध्यान]] की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]] | ||[[चित्र:Mohenjo-Daro-Seal.gif|right|100px|मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर]]'मोहनजोदड़ो' के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को 'स्तूप टीला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में, कुम्भकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपाल खण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबें]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं [[कांसा|कांसे]] की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं, जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मुहरे, बर्तन पकाने के छः भट्टे, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र था। जालीदार अलंकरण युक्त [[मिट्टी]] का बर्तन, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, [[शिव]] की मूर्ति, [[ध्यान]] की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]] | ||
− | {[[मराठा|मराठों]] से पूर्व 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' का प्रयोग किसने किया था? | + | {[[मराठा|मराठों]] से पूर्व 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' का प्रयोग किसने किया था? |
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-[[महावत ख़ाँ]] | -[[महावत ख़ाँ]] | ||
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||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था। वह तरक्की करके वज़ीर के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में उस समय नाम क़माया, जब एक भीषण युद्ध में [[मुग़ल]] सेना को हरा दिया। [[मलिक अम्बर]] एक 'अबीसीनियायी' था और उसका जन्म 'इथियोपिया' में हुआ था। अम्बर 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' में निपुण था, उसने [[मराठा|मराठों]] को भी इस युद्ध पद्धति में निपुणता प्रदान कर दी थी। 'गुरिल्ला युद्ध प्रणाली' [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और [[मलिक अम्बर]] के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए, लेकिन मुग़ल इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | ||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था। वह तरक्की करके वज़ीर के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में उस समय नाम क़माया, जब एक भीषण युद्ध में [[मुग़ल]] सेना को हरा दिया। [[मलिक अम्बर]] एक 'अबीसीनियायी' था और उसका जन्म 'इथियोपिया' में हुआ था। अम्बर 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' में निपुण था, उसने [[मराठा|मराठों]] को भी इस युद्ध पद्धति में निपुणता प्रदान कर दी थी। 'गुरिल्ला युद्ध प्रणाली' [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और [[मलिक अम्बर]] के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए, लेकिन मुग़ल इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | ||
− | {[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था? | + | {[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था? |
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+उस्ताद ईसा | +उस्ताद ईसा | ||
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||[[चित्र:Tajmahal-03.jpg|right|100px|ताजमहल]]'[[ताजमहल]]' [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] शहर के बाहरी इलाके में [[यमुना नदी]] के दक्षिणी तट पर बना हुआ है। इसे प्रेम की निशानी कहा जाता है। ताजमहल [[मुग़ल कालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल कालीन शासन]] की सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। सफ़ेद संगमरमर की यह कृति संसार भर में प्रसिद्ध है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंन्द्र है। ताजमहल विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। [[मुग़ल]] [[शाहजहाँ|बादशाह शाहजहाँ]] ने [[ताजमहल]] को अपनी पत्नी [[अर्जुमंद बानो बेगम]], जिन्हें 'मुमताज़ महल' भी कहा जाता था, की याद में बनवाया था। ताजमहल को शाहजहाँ ने मुमताज़ महल की क़ब्र के ऊपर बनवाया था। मृत्यु के बाद शाहजहाँ को भी वहीं दफ़नाया गया। मुमताज़ महल के नाम पर ही इस मक़बरे का नाम 'ताजमहल' पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ताजमहल]], [[शाहजहाँ]], [[मुमताज़ महल]] | ||[[चित्र:Tajmahal-03.jpg|right|100px|ताजमहल]]'[[ताजमहल]]' [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] शहर के बाहरी इलाके में [[यमुना नदी]] के दक्षिणी तट पर बना हुआ है। इसे प्रेम की निशानी कहा जाता है। ताजमहल [[मुग़ल कालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल कालीन शासन]] की सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। सफ़ेद संगमरमर की यह कृति संसार भर में प्रसिद्ध है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंन्द्र है। ताजमहल विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। [[मुग़ल]] [[शाहजहाँ|बादशाह शाहजहाँ]] ने [[ताजमहल]] को अपनी पत्नी [[अर्जुमंद बानो बेगम]], जिन्हें 'मुमताज़ महल' भी कहा जाता था, की याद में बनवाया था। ताजमहल को शाहजहाँ ने मुमताज़ महल की क़ब्र के ऊपर बनवाया था। मृत्यु के बाद शाहजहाँ को भी वहीं दफ़नाया गया। मुमताज़ महल के नाम पर ही इस मक़बरे का नाम 'ताजमहल' पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ताजमहल]], [[शाहजहाँ]], [[मुमताज़ महल]] | ||
− | {'करोड़ी' नामक नये अधिकारी की नियुक्ति किस [[मुग़ल]] शासक ने की थी? | + | {'करोड़ी' नामक नये अधिकारी की नियुक्ति किस [[मुग़ल]] शासक ने की थी? |
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-[[जहाँगीर]] | -[[जहाँगीर]] | ||
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||[[चित्र:Akbar.jpg|right|100px|अकबर]]'अकबर' [[भारत]] का महानतम [[मुग़ल]] शंहशाह (शासनकाल 1556-1605 ई.) था, जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अपने साम्राज्य की एकता बनाए रखने के लिए [[अकबर]] द्वारा ऐसी नीतियाँ अपनाई गईं, जिनसे गैर [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] की राजभक्ति जीती जा सके। अकबर के विजय अभियानों में [[गुजरात]] की विजय भी ख़ास थी। 1573 ई. गुजरात को जीतने के बाद [[अकबर]] ने पूरे [[उत्तर भारत]] में 'करोड़ी' नाम के एक अधिकारी की नियुक्ति की। इस अधिकारी को अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था। 'करोड़ी' की सहायता के लिए 'आमिल' नियुक्त किये गए थे। ये क़ानूनगों द्वारा बताये गये आंकड़े की भी जाँच करते थे। वास्तविक उत्पादन, स्थानीय क़ीमतें, उत्पादकता आदि पर उनकी सूचना के आधार पर [[अकबर]] ने 1580 ई. में 'दहसाला' नाम की नवीन प्रणाली को प्रारम्भ किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]] | ||[[चित्र:Akbar.jpg|right|100px|अकबर]]'अकबर' [[भारत]] का महानतम [[मुग़ल]] शंहशाह (शासनकाल 1556-1605 ई.) था, जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अपने साम्राज्य की एकता बनाए रखने के लिए [[अकबर]] द्वारा ऐसी नीतियाँ अपनाई गईं, जिनसे गैर [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] की राजभक्ति जीती जा सके। अकबर के विजय अभियानों में [[गुजरात]] की विजय भी ख़ास थी। 1573 ई. गुजरात को जीतने के बाद [[अकबर]] ने पूरे [[उत्तर भारत]] में 'करोड़ी' नाम के एक अधिकारी की नियुक्ति की। इस अधिकारी को अपने क्षेत्र से एक करोड़ दाम वसूल करना होता था। 'करोड़ी' की सहायता के लिए 'आमिल' नियुक्त किये गए थे। ये क़ानूनगों द्वारा बताये गये आंकड़े की भी जाँच करते थे। वास्तविक उत्पादन, स्थानीय क़ीमतें, उत्पादकता आदि पर उनकी सूचना के आधार पर [[अकबर]] ने 1580 ई. में 'दहसाला' नाम की नवीन प्रणाली को प्रारम्भ किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]] | ||
− | {[[मुस्लिम]] शासन के दौरान [[दिल्ली]] के सिंहासन पर अधिकार करने वाला एक मात्र [[हिन्दू]] कौन था? | + | {[[मुस्लिम]] शासन के दौरान [[दिल्ली]] के सिंहासन पर अधिकार करने वाला एक मात्र [[हिन्दू]] कौन था? |
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07:11, 17 जून 2013 का अवतरण
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