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अब मैं एक अन्य अध्यापक का ज़िक्र कराना चाहुँगा, जिन्होंने मुझे कक्षा पाँच में पढ़ाया था। उस समय मेरे अध्यापक श्री सुब्रहमण्यम अय्यर थे। वह हमारे स्कूल के अच्छे शिक्षकों में से एक थे। एक बार उन्होंने कक्षा में बताया कि पक्षी कैसे उड़ता है? मैं यह नहीं समझ पाया था, इस कारण मैनें इंकार कर दिया था। तब उन्होंने कक्षा के अन्य बच्चों से पूछा तो उन्होंने भी अधिकांशत: इंकार ही किया। लेकिन इस उत्तर से अय्यर जी विचलित नहीं हुए। अगले दिन अय्यर जी इस संदर्भ में हमें समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी  थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। तत्पश्चात्त उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो 10-20 के झुण्ड में उड़ रहे थे। उन्होंने समुद्र के किनारे मौजूद पक्षियों के उड़ने के संबंध में प्रत्येक क्रिया को साक्षात अनुभव के आधार पर समझाया। हमने भी बड़ी बारीकी से पक्षियों के शरीर की बनावट के साथ उनके उड़ने का ढंग भी देखा। इस प्रकार हमने व्यावहारिक प्रयोग के माध्यम से यह सीखा कि पक्षी किस प्रकार उड़ पाने में सफल होता है। इसी कारण हमारे यह अध्यापक महान थे वह चाहते तो हमें मौखिक रूप से समझाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते थे लेकिन उन्होंने हमें व्यावहारिक उदाहरण के माध्यम से समझाया और कक्षा के हम सभी बच्चे समझ भी गए। मेरे लिए यह मात्र पक्षी की उड़ान तक की ही बात नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूँ। उस दिन के बाद मैंने सोच लिया था कि मेरी शिक्षा किसी न किसी प्रकार के उड़ान से संबंधित होगी। उस समय तक मैं नहीं समझा था कि मैं 'उड़ान विज्ञान' की दिशा में अग्रसर होने वाला हूँ। वैसे उस घटना ने मुझे प्रेरणा दी थी कि मैं अपनी ज़िंदगी का कोई लक्ष्य निर्धारित करूँ।
 
अब मैं एक अन्य अध्यापक का ज़िक्र कराना चाहुँगा, जिन्होंने मुझे कक्षा पाँच में पढ़ाया था। उस समय मेरे अध्यापक श्री सुब्रहमण्यम अय्यर थे। वह हमारे स्कूल के अच्छे शिक्षकों में से एक थे। एक बार उन्होंने कक्षा में बताया कि पक्षी कैसे उड़ता है? मैं यह नहीं समझ पाया था, इस कारण मैनें इंकार कर दिया था। तब उन्होंने कक्षा के अन्य बच्चों से पूछा तो उन्होंने भी अधिकांशत: इंकार ही किया। लेकिन इस उत्तर से अय्यर जी विचलित नहीं हुए। अगले दिन अय्यर जी इस संदर्भ में हमें समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी  थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। तत्पश्चात्त उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो 10-20 के झुण्ड में उड़ रहे थे। उन्होंने समुद्र के किनारे मौजूद पक्षियों के उड़ने के संबंध में प्रत्येक क्रिया को साक्षात अनुभव के आधार पर समझाया। हमने भी बड़ी बारीकी से पक्षियों के शरीर की बनावट के साथ उनके उड़ने का ढंग भी देखा। इस प्रकार हमने व्यावहारिक प्रयोग के माध्यम से यह सीखा कि पक्षी किस प्रकार उड़ पाने में सफल होता है। इसी कारण हमारे यह अध्यापक महान थे वह चाहते तो हमें मौखिक रूप से समझाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते थे लेकिन उन्होंने हमें व्यावहारिक उदाहरण के माध्यम से समझाया और कक्षा के हम सभी बच्चे समझ भी गए। मेरे लिए यह मात्र पक्षी की उड़ान तक की ही बात नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूँ। उस दिन के बाद मैंने सोच लिया था कि मेरी शिक्षा किसी न किसी प्रकार के उड़ान से संबंधित होगी। उस समय तक मैं नहीं समझा था कि मैं 'उड़ान विज्ञान' की दिशा में अग्रसर होने वाला हूँ। वैसे उस घटना ने मुझे प्रेरणा दी थी कि मैं अपनी ज़िंदगी का कोई लक्ष्य निर्धारित करूँ।
  
एक दिन मैंने अपने अध्यापक श्री सिवा सुब्रहमण्यम अय्यर से पूछा कि श्रीमान! मुझे यह बताएं कि मेरी आगे की उन्नति उड़ान से संबंधित रहते हुए कैसे हो सकती है? तब उन्होंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया कि मैं पहले आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करूँ, फिर हाई स्कूल। तत्पश्चात्त कॉलेज में मुझे उड़ान से संबंधित शिक्षा का अवसर प्राप्त हो सकता है। यदि मैं ऐसा करता हूँ तो उड़ान विज्ञान के साथ जुड़ सकता हूँ। इन सब बातों ने मुझे जीवन के लिए एक मंजिल और उद्देश्य भी प्रदान किया।
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एक दिन मैंने अपने अध्यापक श्री सिवा सुब्रहमण्यम अय्यर से पूछा कि श्रीमान! मुझे यह बताएं कि मेरी आगे की उन्नति उड़ान से संबंधित रहते हुए कैसे हो सकती है? तब उन्होंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया कि मैं पहले आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करूँ, फिर हाई स्कूल। तत्पश्चात्त कॉलेज में मुझे उड़ान से संबंधित शिक्षा का अवसर प्राप्त हो सकता है। यदि मैं ऐसा करता हूँ तो उड़ान विज्ञान के साथ जुड़ सकता हूँ। इन सब बातों ने मुझे जीवन के लिए एक मंजिल और उद्देश्य भी प्रदान किया। जब मैं कॉलेज गया तो मैंने [[भौतिक विज्ञान]] विषय लिया। जब मैं अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए 'मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी' में गया तो मैंने '''एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग''' का चुनाव किया। इस प्रकार मेरी जिन्दगी एक 'रॉकेट इंजीनियर', 'एयरोस्पेस इंजीनियर' और 'तकनीकी कर्मी' की ओर उन्मुख हुई। वह एक घटना जिसके बारे में मेरे अध्यापक ने मुझे प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाया था, मेरे जीवन का महत्वपूर्ण बिन्दु बन गई और अंतत: मैंने अपने व्यवसाय का चुनाव भी कर लिया।
 
 
  
  

17:22, 10 अक्टूबर 2010 का अवतरण

अब्दुल कलाम
Abdul-Kalam.jpg
पूरा नाम अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम
अन्य नाम अब्दुल कलाम
जन्म 15 अक्तूबर, 1931
जन्म भूमि रामेश्वरम, तमिलनाडु
पद भारत के 11वें राष्ट्रपति, वैज्ञानिक
कार्य काल 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007
शिक्षा स्नातक
विद्यालय मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेकनालॉजी
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न (1931), पद्म भूषण (1981)
अद्यतन‎

अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम

कार्यकाल- 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007
डॉक्टर ए॰पी॰जे॰ अब्दुल कलाम भारतीय गणतंत्र के ग्यारहवें निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में जाने जाते है। यह एक गैर राजनीतिक व्यक्ति रहे है। विज्ञान की दुनिया में चमत्कारिक प्रदर्शन के कारण ही राष्ट्रपति भवन के द्वार इनके लिए स्वत: खुल गए। जो व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता है, उसके लिए सब सहज हो जाता है और कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता। अब्दुल कलाम इस उद्धरण का प्रतिनिधित्व करते नज़र आते हैं। अब्दुल कलाम 77 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुके हैं। इन्होंने विवाह नहीं किया है। इनकी जीवन गाथा किसी रोचक उपन्यास के नायक की कहानी से कम नहीं है। चमत्कारिक प्रतिभा के धनी अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व इतना उन्नत है कि वह सभी धर्म, जाति एवं सम्प्रदायों के व्यक्ति नज़र आते हैं। यह एक ऐसे स्वीकार्य भारतीय हैं, जो सभी के लिए एक महान आदर्श बन चुके हैं। विज्ञान की दुनिया से देश का प्रथम नागरिक बनना कपोल कल्पना मात्र नहीं है क्योंकि यह एक जीवित प्रणेता की सत्यकथा है।

जन्म और परिवार

अब्दूल कलाम का पूरा नाम डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम है। इनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम तमिलनाडु में हुआ। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। इनके संबंध रामेश्वरम के हिन्दू नेताओं तथा अध्यापकों के साथ काफी स्नेहपूर्ण थे। अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया था। जिस घर में इनका जन्म हुआ, वह आज भी रामेश्वरम में मस्ज़िद मार्ग पर स्थित है। इसके साथ ही इनके भाई की कलाकृतियों की दुकान भी संलग्न है। यहाँ पर्यटक इसी कारण खिंचे चले आते हैं, क्योंकि अब्दुल कलाम का आवास स्थित है। डॉक्टर अब्दुल कलाम प्रकृति के काफी निकट रहे हैं। रामेश्वरम का प्राकृतिक सौन्दर्य समुद्र की निकटता के कारण सदैव बहुत दर्शनीय रहा है। 1964 में 33 वर्ष की उम्र में डॉक्टर अब्दुल कलाम ने जल की भयानक विनाशलीला देखी और जल की शक्ति का वास्तविक अनुमान लगाया। चक्रवाती तूफान में पायबन पुल और यात्रियों से भरी एक रेलगाड़ी के साथ-साथ अब्दुल कलाम का पुश्तैनी गाँव धनुषकोड़ी भी बह गया था। जब यह मात्र 19 वर्ष के थे, तब द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका को भी महसूस किया। युद्ध का दवानल रामेश्वरम के द्वार तक पहुँचा था। इन परिस्थितियों में भोजन सहित सभी आवश्यक वस्तुओं का अभाव हो गया था।

अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। इनका कहना था कि वह घर में तीन झूले (जिसमें बच्चों को रखा और सुलाया जाता है) देखने के अभ्यस्त थे। इनकी दादी माँ एवं माँ द्वारा ही पूरे परिवार की परवरिश की जाती थी। घर के वातावरण में प्रसन्नता और वेदना दोनों का वास था।

विद्यार्थी जीवन

श्री अब्दुल कलाम प्रात: चार बजे ही उठते थे और स्नान करने के बाद गणित के अध्यापक स्वामीयर के पास गणित पढ़ने चले जाते थे। स्वामीयर की यह विशेषता थी कि जो विद्यार्थी स्नान करके नहीं आता था, वह उसे नहीं पढ़ाते थे। स्वामीयर एक अनोखे अध्यापक थे और पाँच विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष नि:शुल्क ट्यूशन पढ़ाते थे। इनकी माता इन्हें उठाकर स्नान कराती थीं और नाश्ता करवाकर ट्यूशन पढ़ने भेज देती थीं। अब्दुल कलाम ट्यू्शन पढ़कर साढ़े पाँच बजे वापस आते थे। उसके बाद अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते थे। फिर क़ुरान शरीफ़ का अध्ययन करने के लिए वह अरेशिक स्कूल (मदरसा) चले जाते थे। इसके पश्चात्त अब्दुल कलाम रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड पर जाकर समाचार पत्र एकत्र करते थे। इस प्रकार इन्हें तीन किलोमीटर जाना पढ़ता था। उन दिनों धनुषकोड़ी से मेल ट्रेन गुजरती थी, लेकिन वहाँ उसका ठहराव नहीं होता था। चलती ट्रेन से ही अख़बार के बण्डल प्लेटफार्म पर फेंक दिए जाते थे। अब्दुल कलाम अख़बार लेने के बाद रामेश्वरम शहर की सड़कों पर दौड़-दौड़कर सबसे पहले उसका वितरण करते थे।

श्री अब्दुल कलाम अख़बार वितरण का कार्य करके प्रतिदिन प्रात: 8 बजे घर लौट आते थे। इनकी माता अन्य बच्चों की तुलना में इन्हें अच्छा नाश्ता देती थीं, क्योंकि यह पढ़ाई और धनार्जन दोनों कार्य कर रहे थे। शाम को स्कूल से लौटने के बाद यह पुन: रामेश्वरम जाते थे ताकि ग्राहकों से बकाया पैसा प्राप्त कर सकें। इस प्रकार वह एक किशोर के रूप में भाग-दौड़ करते हुए पढ़ाई और धनार्जन कर रहे थे। उन्हीं दिनों की बात है, एक दिन अब्दुल कलाम अपने भाई-बहनों के मध्य बैठकर खाना खा रहे थे। इनकी माताजी ने इन्हें चपातियाँ दीं। तब परिवार में चावल ज़्यादा खाए जाते थे और गेंहू की चपातियों पर एक प्रकार से राशनिंग थी। खाना खाने के बाद इनके बड़े भाई ने अलग से ले जाकर कहा कि माँ तुम्हें चपातियाँ खिला रही थीं और उन्होंने स्वयं के लिए भी चपाती नहीं बचाई। वह बहुत कठिन समय था और उनके भाई चाहते थे कि अब्दुल कलाम ज़िम्मेदारी का व्यवहार करें। तब यह अपने जज़्बातों प काबू नहीं पा सके और दौड़कर माँ के गले से जा लगे। उन दिनों कलाम कक्षा पाँच के विद्यार्थी थे। इन्हें परिवार में सबसे अधिक स्नेह प्राप्त हुआ क्योंकि यह परिवार में सबसे छोटे थे। तब घरों में विद्युत नहीं थी और केरोसिन तेल के दीपक जला करते थे, जिनका समय रात्रि 7 से 9 तक नियत था। लेकिन यह अपनी माता के अतिरिक्त स्नेह के कारण पढ़ाई करने हेतु रात के 11 बजे तक दीपक का उपयोग करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन में इनकी माता का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इनकी माता ने 92 वर्ष की उम्र पाई। वह प्रेम, दया और स्नेह की प्रतिमूर्ति थीं। उनका स्वभाव बेहद शालीन था। इनकी माता पाँचों समय की नमाज अदा करती थीं। जब इन्हें नमाज करते हुए अब्दुल कलाम देखते थे तो इन्हें रूहानी सुकूल और प्रेरणा प्राप्त होती थी।

अब्दुल कलाम के शब्दों में

अध्यापकों के संबंध में अब्दुल कलाम काफी खुशकिस्मत थे। इन्हें शिक्षण काल में सदैव दो-एक अध्यापक ऐसे प्राप्त हुए, जो योग्य थे और उनकी कृपा भी इन पर रही। यह समय 1936 से 1957 के मध्य का था। ऐसे में इन्हें अनुभव हुआ कि वह अपने अध्यापकों द्वारा आगे बढ़ रहे हैं। अध्यापक की प्रतिष्ठा और सार्थकता अब्दुल कलाम के शब्दों में प्रस्तुत है:-

यह 1936 का वर्ष था। मुझे याद है कि पाँच वर्ष कि अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक स्कूल में मेरा दीक्षा-संस्कार हुआ था। तब मेरे एक शिक्षक मुत्थु अय्यर मेरी ओर विशेष ध्यान देते थे क्योंकि मैं कक्षा में अपने कार्य में बहुत अच्छा था। वह मुझसे बहुत प्रभावित थे। एक दिन वह मेरे घर आए और मेरे पिता से कहा कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा हूँ। यह सुनकर मेरे घर के सभी लोग बहुत खुश हुए और मेरी पसंद की मिठाई मुझे खिलाई। एक विशिष्ठ घटना जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता, वह थी- कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने की। एक बार मैं स्कूल नहीं जा सका तो मुत्थु जी मेरे घर आए और उन्होंने पिताजी से पूछा कि कोई समस्या तो नहीं है और मैं आज स्कूल क्यों नहीं आया? साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि क्या वह कोई सहायता कर सकते हैं? उस दिन मुझे ज्वर हो गया था। तब मुत्थु जी ने मेरी हस्तलिपि के बारे में इंगित किया जो काफी खराब थी। उन्होंने मुझे तीन पृष्ठ प्रतिदिन अभ्यास करने का निर्देश दिया। उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि मैं प्रतिदिन यह अभ्यास करूँ। मैंने यह अभ्यास नियमित रूप से किया। मुत्थु जी के कार्यों को देखते हुए बाद में मेरे पिताजी ने कहा था कि वह एक अच्छे व्यक्ति ही नहीं बल्कि हमारे परिवार के भी अच्छे मित्र हैं।

अब मैं एक अन्य अध्यापक का ज़िक्र कराना चाहुँगा, जिन्होंने मुझे कक्षा पाँच में पढ़ाया था। उस समय मेरे अध्यापक श्री सुब्रहमण्यम अय्यर थे। वह हमारे स्कूल के अच्छे शिक्षकों में से एक थे। एक बार उन्होंने कक्षा में बताया कि पक्षी कैसे उड़ता है? मैं यह नहीं समझ पाया था, इस कारण मैनें इंकार कर दिया था। तब उन्होंने कक्षा के अन्य बच्चों से पूछा तो उन्होंने भी अधिकांशत: इंकार ही किया। लेकिन इस उत्तर से अय्यर जी विचलित नहीं हुए। अगले दिन अय्यर जी इस संदर्भ में हमें समुद्र के किनारे ले गए। उस प्राकृतिक दृश्य में कई प्रकार के पक्षी थे, जो सागर के किनारे उतर रहे थे और उड़ रहे थे। तत्पश्चात्त उन्होंने समुद्री पक्षियों को दिखाया, जो 10-20 के झुण्ड में उड़ रहे थे। उन्होंने समुद्र के किनारे मौजूद पक्षियों के उड़ने के संबंध में प्रत्येक क्रिया को साक्षात अनुभव के आधार पर समझाया। हमने भी बड़ी बारीकी से पक्षियों के शरीर की बनावट के साथ उनके उड़ने का ढंग भी देखा। इस प्रकार हमने व्यावहारिक प्रयोग के माध्यम से यह सीखा कि पक्षी किस प्रकार उड़ पाने में सफल होता है। इसी कारण हमारे यह अध्यापक महान थे वह चाहते तो हमें मौखिक रूप से समझाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते थे लेकिन उन्होंने हमें व्यावहारिक उदाहरण के माध्यम से समझाया और कक्षा के हम सभी बच्चे समझ भी गए। मेरे लिए यह मात्र पक्षी की उड़ान तक की ही बात नहीं थी। पक्षी की वह उड़ान मुझमें समा गई थी। मुझे महसूस होता था कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूँ। उस दिन के बाद मैंने सोच लिया था कि मेरी शिक्षा किसी न किसी प्रकार के उड़ान से संबंधित होगी। उस समय तक मैं नहीं समझा था कि मैं 'उड़ान विज्ञान' की दिशा में अग्रसर होने वाला हूँ। वैसे उस घटना ने मुझे प्रेरणा दी थी कि मैं अपनी ज़िंदगी का कोई लक्ष्य निर्धारित करूँ।

एक दिन मैंने अपने अध्यापक श्री सिवा सुब्रहमण्यम अय्यर से पूछा कि श्रीमान! मुझे यह बताएं कि मेरी आगे की उन्नति उड़ान से संबंधित रहते हुए कैसे हो सकती है? तब उन्होंने धैर्यपूर्वक जवाब दिया कि मैं पहले आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करूँ, फिर हाई स्कूल। तत्पश्चात्त कॉलेज में मुझे उड़ान से संबंधित शिक्षा का अवसर प्राप्त हो सकता है। यदि मैं ऐसा करता हूँ तो उड़ान विज्ञान के साथ जुड़ सकता हूँ। इन सब बातों ने मुझे जीवन के लिए एक मंजिल और उद्देश्य भी प्रदान किया। जब मैं कॉलेज गया तो मैंने भौतिक विज्ञान विषय लिया। जब मैं अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए 'मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी' में गया तो मैंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चुनाव किया। इस प्रकार मेरी जिन्दगी एक 'रॉकेट इंजीनियर', 'एयरोस्पेस इंजीनियर' और 'तकनीकी कर्मी' की ओर उन्मुख हुई। वह एक घटना जिसके बारे में मेरे अध्यापक ने मुझे प्रत्यक्ष उदाहरण से समझाया था, मेरे जीवन का महत्वपूर्ण बिन्दु बन गई और अंतत: मैंने अपने व्यवसाय का चुनाव भी कर लिया।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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