सी. सुब्रह्मण्यम
सी. सुब्रह्मण्यम
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पूरा नाम | चिदम्बरम सुब्रह्मण्यम |
जन्म | 30 जनवरी, 1910 |
जन्म भूमि | कोयम्बटूर |
मृत्यु | 7 नवम्बर, 2000 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | 'हरित क्रांति' के पिता |
विद्यालय | प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास और मद्रास विश्वविद्यालय |
शिक्षा | बी.एस.सी और क़ानून की डिग्री (1932) |
पुरस्कार-उपाधि | 'ऊ थांट' शांति पुरस्कार, 'वाइ.एस. चौहान पुरस्कार,' 'भारत रत्न' (1988) |
विशेष योगदान | इनकी बेहतर कृषि नीतियों के कारण ही भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्म-निर्भर बन पाया है। |
अन्य जानकारी | 1946 में सी. सुब्रह्मण्यम संविधान सभा के सदस्य चुने गए और 1952 तक सदस्य रहे। 1952 से 1962 तक अर्थात् दस वर्ष तक वे निरन्तर राज्य सरकार में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। वे राज्य के वित्तमंत्री, शिक्षामंत्री और विधिमंत्री रहे। |
चिदम्बरम सुब्रह्मण्यम (अंग्रेज़ी: Chidambaram Subramaniam, जन्म- 30 जनवरी, 1910, कोयम्बटूर; मृत्यु- 7 नवम्बर, 2000) भारत में "हरित क्रांति के पिता" कहे जाते हैं। जब भारत को आज़ादी प्राप्त हुई, उस समय देश में खाद्यान्न उत्पादन की स्थिति बड़ी शोचनीय थी। कई स्थानों पर अकाल पड़े। बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में अनेक लोग भुखमरी के शिकार हुए और काल का ग्रास बन गये। जब सी. सुब्रह्मण्यम को केन्द्र में कृषि मंत्री बनाया गया, तब उन्होंने देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक योजनाएँ क्रियान्वित कीं। उनकी बेहतर कृषि नीतियों के कारण ही 1972 में देश में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हुआ। सी. सुब्रह्मण्यम की नीतियों और कुशल प्रयासों से ही आज देश खाद्यान्न उत्पादन में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो चुका है।
जन्म तथा शिक्षा
सुब्रह्मण्यम का जन्म जनवरी, 1910 को कोयम्बटूर ज़िले के 'पोलाची' नामक स्थान पर हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद मद्रास में उनकी उच्च शिक्षा हुई। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से बी.एस.सी की डिग्री प्राप्त की और बाद में मद्रास विश्वविद्यालय से 1932 में क़ानून कि डिग्री प्राप्त की, परंतु 1936 तक वे वकालत प्रारम्भ नहीं कर सके। जब उन्होंने वकालत प्रारंभ की, तब तक उनका सम्बन्ध स्वतंत्रता आंदोलन से हो चुका था।
स्वतंत्रता सेनानी
देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए की जा रही उनकी गतिविधियों के कारण ही वे गिरफ्तार भी हो चुके थे। इस प्रकार उनकी रुचि स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ़ बढ़ती गई और अब वह पूरी तरह आज़ादी के सिपाही बन गये। 1942 का 'भारत छोड़ो आंदोलन' एक ऐसा महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जब सम्भवत: कांग्रेस का कोई भी महत्त्वपूर्ण नेता जेल से बाहर नहीं रहा। सी. सुब्रह्मण्यम भी गिरफ्तारी से न बच सके। इस प्रकार कोयम्बटूर ज़िले में महत्त्वपूर्ण कांग्रेस नेता के रूप में इनका प्रभाव बढ़ता गया। कोयम्बटूर कांग्रेस समिति के वे अध्यक्ष चुने गये और इसके साथ ही तमिलनाडु में कांग्रेस की कार्य समिति में भी उन्हें महत्त्वपूर्ण स्थान मिला।
कृषि मंत्री
जिस समय देश स्वतंत्र हुआ था, खाद्यान्न उत्पादन की स्थिति अत्यन्त शोचनीय थी, परन्तु आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में पूरी तरह से आत्मनिर्भर है। देश की स्वतंत्रता से पूर्व भारत के अनेक स्थानों पर अनेक बार अकाल पड़े और बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में अनेक लोग भुखमरी के शिकार हुए, परन्तु स्वतंत्रता के बाद ऐसा कोई अवसर नहीं आया, जब देश में अकाल की स्थिति पैदा हुई हो। जब सी. सुब्रह्मण्यम केन्द्र सरकार के कृषि मंत्री बने तो उन्होंने देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक ऐसी योजना का विकास किया, जिसके कारण देश के किसानों में ऐसी जागृति आई कि वे अच्छे बीज और खाद का बेहतर ढंग से उपयोग करने लगे। उनके मंत्रित्व काल में ही खाद्यान्न की नई किस्मों का विकास किया गया। इस काल में ही विभिन्न प्रकार के उर्वरकों का किसानों ने उपयोग करना शुरू किया। इस कार्य की प्रशंसा नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. नार्मन बोरलाग ने भी मुक्त कण्ठ से की है।
डॉ. बोरलाग का कथन
सी. सुब्रह्मण्यम की कृषि नीतियों के कारण 1972 में खाद्यान्न का जो रिकॉर्ड उत्पादन हुआ, इस घटना को 'हरित क्रांति' की संज्ञा दी गई। कृषि नीति में आपके योगदान के लिए डॉ. बोरलाग का कहना है कि "सी. सुब्रह्मण्यम की दूर-दृष्टि और प्रभाव के कारण कृषि सम्बन्धी यह महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। किसी भी कार्य के लिए जो राजनीतिक निर्णय लिए जाते हैं, उनको लागू करने के लिए पूर्ण प्रयत्न 1964-1967 के उस काल में हुआ, जब सी. सुब्रह्मण्यम राजनीतिक परिदृश्य को बदलने के प्रयत्न कर रहे थे।
केबिनेट मंत्री
1962 में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद सी. सुब्रह्मण्यम केबिनेट स्तर के मंत्री बनाये गए। इनके अधीन इस्पात मंत्रालय था। 1963-1964 तक इस्पात के साथ-साथ खान और भारी इंजीनियरिंग मंत्री भी रहे। फिर 1964 से 1965 तक वे खाद्य और कृषि मंत्री रहे। 1966-1967 में उनके मंत्रालय के साथ समुदाय विकास और सहयोगिता विभाग भी जोड़ दिया गया। उनका यह कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। उन्होंने जहाँ अच्छे बीजों की बढ़िया किस्मों का उपयोग करने पर बल दिया, वहाँ किसानों को इस ओर भी प्रेरित किया कि वे खाद का भी और अधिक प्रयोग करें। इसका परिणाम यह हुआ कि 1960 के दशक में देश खाद्य उत्पादन में आत्म निर्भर हो गया।
अन्य महत्त्वपूर्ण पद
1946 में वे संविधान सभा के सदस्य चुने गए और 1952 तक सदस्य रहे। इस प्रकार धीरे-धीरे सी. सुब्रह्मण्यम जी का सामाजिक और राजनीतिक जीवन अधिक व्यस्त होता गया। 1952 में वे तमिलनाडु विधानसभा के सदस्य चुने गए। सदस्य होने के साथ ही उन्हें प्रदेश मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया गया। 1952 से 1962 तक अर्थात् दस वर्ष तक वे निरन्तर राज्य सरकार में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। वे राज्य के वित्तमंत्री, शिक्षामंत्री और विधिमंत्री रहे। उन्होंने इस दस वर्ष की अवधि में राज्य की शिक्षा के विस्तार तथा विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए। तमिलनाडु की गिनती कुछ ऐसे राज्यों में की जाती है, जहाँ सबसे पहले प्रारम्भिक प्राइमरी शिक्षा बच्चों के लिए नि:शुल्क आरम्भ हो गई।
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति
इस प्रकार सरकार में और सरकार से अवकाश प्राप्त करने के बाद जो कार्य सी. सुब्रह्मण्यम जी ने किए, उनके कारण उनका नाम अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी फैला। श्री सुब्रह्मण्यम प्रचार माध्यम से दूर रहने के बावजूद अधिकाधिक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करते गए। फ़रवरी, 1990 में उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त किया गया। तीन वर्ष तक इस पद पर रहने के बाद वे 'भारतीय विद्या भवन' नामक संस्था के अध्यक्ष बने। इस पद पर रहते हुए उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की।
पुरस्कार
सी. सुब्रह्मण्यम को तुलसी फाउण्डेशन के अतिरिक्त 'ऊ थांट' शांति पुरस्कार दिया गया। राष्ट्रीय एकता के लिए कार्य करने के कारण उन्हें 'वाइ.एस. चौहान' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिर उन्हें सर्वोच्च भारतीय सम्मान 'भारत रत्न' से 1988 में सम्मानित किया गया।
निधन
7 नवम्बर, 2000 में सुब्रह्मण्यम जी का निधन हुआ। वे इस शताब्दी के ऐसे महान् व्यक्तियों में से थे, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन किसी आडम्बर और प्रचार के बिना बिताने का निश्चय किया था। देश को आज़ादी मिलने के बाद भारत के विकास और औद्योगिक प्रगति के लिए बहुत सी योजनाएँ बनीं तथा उनका जोर-शोर से प्रचार भी किया गया, किन्तु एक योजना ऐसी भी थी, जिसके सम्बन्ध में न तो अधिक लोगों ने विचार किया था और न उसके सम्बन्ध में प्रचार। यह योजना बहुत ही शान्तिपूर्ण ढंग से इस प्रकार आगे बढ़ी कि जनता उसके परिणामों से स्तब्ध रह गई थी। यह एक ऐसी महान् क्रांतिकारी योजना थी, जिसे 'हरित क्रांति' के नाम से जाना जाता है और जिसका पूरा श्रेय सी. सुब्रह्मण्यम को जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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