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*गाज़ीउद्दीन की मृत्यु 1800 ई. में हुई।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-124</ref> | *गाज़ीउद्दीन की मृत्यु 1800 ई. में हुई।<ref>पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-124</ref> | ||
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07:45, 10 अप्रैल 2011 का अवतरण
- गाज़ीउद्दीन इमामुलमुल्क हैदराबाद के प्रथम निज़ाम के पुत्र गाज़ीउद्दीन ख़ाँ का पुत्र था।
- जब गाज़ीउद्दीन इमामुलमुल्क का पिता 1752 ई. में औरंगाबाद में उसकी सौतेली माँ द्वारा विष देकर मार डाला गया था, उस समय गाज़ीउद्दीन दिल्ली में था। दिल्ली में वह अवध के सूबेदार सफ़दरजंग की सहायता से मीरबख़्शी (वेतन विवरण विभाग का प्रधान) बन गया।
- बाद में गाज़ीउद्दीन इमामुलमुल्क ने सफ़दरजंग का साथ छोड़ दिया और मराठों के साथ हो गया, जिनकी सहायता से उसने बादशाह अहमदशाह (1748-54 ई.) को गद्दी से उतार दिया।
- युवक गाज़ीउद्दीन कुटिल, एहसान फ़रामोश और बड़ा महत्वाकांक्षी था, किन्तु न तो उसमें रण-कौशल था और न ही संगठन शक्ति।
- गाज़ीउद्दीन इमामुलमुल्क अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण रोकने में पूरी तरह से असफल रहा, जिसने 1756 ई. में दिल्ली पर हमला किया और उसे लूटा तथा पंजाब पर भी अधिकार कर लिया।
- अब्दाली के चले जाने के बाद गाज़ीउद्दीन इमामुलमुल्क ने मराठों से मिलकर 1758 ई. में पंजाब पर पुन: अधिकार करने का प्रयत्न किया। लेकिन 1759 ई. में अब्दाली ने पुन: भारत पर आक्रमण किया और पंजाब को फिर से हथिया लिया। गाज़ीउद्दीन किसी प्रकार अब्दाली से क्षमा प्राप्त करने में सफल हो गया। जैसे ही अब्दाली वापस गया, गाज़ीउद्दीन ने फिर से चालबाज़ी शुरू कर दी और 1759 ई. में बादशाह आलमगीर द्वितीय को मार डाला।
- गाज़ीउद्दीन इमामुलमुल्क ने औरंगज़ेब के सबसे छोटे पुत्र कामबख़्श के पोते को शाहजहाँ तृतीय के नाम से गद्दी पर बैठा दिया। लेकिन अब्दाली वहाँ फिर से आ धमका।
- गाज़ीउद्दीन ने सूरजमल जाट की शरण ली और मराठों की सहायता से अब्दाली का सामना करने का प्रयास किया, किन्तु पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली ने मराठों को बुरी तरह से कुचल दिया और गाज़ीउद्दीन के षड्यंत्रों और राजनीतिक गतिविधियों को सदा के लिए समाप्त कर दिया।
- गाज़ीउद्दीन की मृत्यु 1800 ई. में हुई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश' पृष्ठ संख्या-124