एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "०"।

"जैविक संघटक" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
पंक्ति 41: पंक्ति 41:
 
[[Category:भूगोल कोश]]
 
[[Category:भूगोल कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

14:21, 10 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

पर्यावरण के जैविक अथवा कार्बनिक संघटक का निर्माण तीन उपतंत्रों द्वारा होता है-

  1. पादप तंत्र
  2. जन्तु तंत्र
  3. सूक्ष्मजीव तंत्र

उपरोक्त तंत्रों में से पादप तंत्र सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि मात्र पौधे ही जैविक अथवा कार्बनिक पदार्थों का निर्माण कर सकते हैं। इसके अलावा मानव सहित समस्त जीव-जन्तु प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पौधों पर ही निर्भर रहते हैं। पौधे जीवमण्डल के विविध संघटकों में जैविक पदार्थों तथा पोषण तत्वों के गमन, संचरण, चक्रण एवं पुनर्चक्रण को सम्भव बनाते हैं।

पादप तंत्र

पौधों के सामाजिक समूह को पादप समुदाय कहते हैं तथा पौधे समुदाय की आधारभूत मौलिक इकाई होते हैं। पौंधों के विभिन्न रूपों को वनस्पति कहा जाता है। पौधों की विभिन्न जातियाँ पारिस्थितिकीय रूप से एक दूसरे से सम्बन्धित रहती हैं तथा पादप समुदाय किसी क्षेत्र के पारिस्थितिक दशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। भौतिक पर्यावरणीय कारक मृदा तथा जलवायु का पौधों की जाति, संरचना एवं वृद्धि पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। साथ ही पौधे भी अपने आवास क्षेत्र के मृदा के गुणों तथा जलवायु की दशाओं को प्रभावित एवं निर्धारित करते हैं। इससे स्पष्ट है कि पादप समुदाय अपने आवास क्षेत्र में भूमि की उत्पादकता को निर्धारित करते हैं। पौधे प्राथमिक उत्पादक होते हैं। क्योंकि ये सूर्य प्रकाश का प्रयोग कर प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा अपना आहार स्वयं निर्मित कर लेते हैं। इसी कारण इन्हें स्वपोषित भी कहा जाता है। ये मानव एवं समस्त जन्तुओं के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से आहार एवं ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं।

जंतु तंत्र

जीवमण्डलीय पारिस्थितिक तंत्र को कार्यात्मक आधार पर दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. स्वपोषित संघटक
  2. परपोषित संघटक

स्वपोषित संघटकों में हरे पौधे आते हैं तथा परपोषित संघटकों में वे जन्तु आते है जो प्राथमिक उत्पादक- हरे पौधों पर अपने आहार के लिए निर्भर रहते हैं। ये शाकाहारी होते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता मांसाहारी एवं सर्वाहारी जन्तु मांसाहारी तथा शाकाहारी दोनों होते हैं। इन परपोषित जन्तुओं के तीन प्रमुख कार्य हैं।

  1. स्वपोषित हरे पौधों द्वारा सुलभ कराए गए जैविक पदार्थों का सेवन करना
  2. जैविक पदार्थों की विभिन्न रूपों में पुनर्व्यवस्था करना
  3. जैविक पदार्थों को वियोजन करना।

जैविक पदार्थ जन्तुओं को तीन रूपों में प्राप्त होते हैं-

  1. जीवित पौधों तथा जन्तुओ से
  2. आंशिक रूप से वियोजित पौधों तथा जन्तुओं से
  3. घोल के रूप में जैविक यौगिकों से।

जैविक पदार्थों से सुलभता के आधार पर परपोषित जंतुओं को तीन प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. मृतजीवी
  2. परजीवी
  3. प्राणिसमभोजी

मृतभोजी

ये वे जन्तु होते हैं जो मृत पौधे तथा जन्तुओं से प्राप्त जैविक या कार्बनिक यौगिकों को घोल के रूप में ग्रहण करके अपना जीवन निर्वाह करते हैं।

परजीवी

ये वे जन्तु होते हैं जो अपने जीवन निर्वाह के लिए दूसरे जीवित जीवो पर निर्भर होते है।

प्राणिसमभोजी

ये वे जन्तु होते हैं जो अपना आहार अपने मुख द्वारा ग्रहण करते हैं। ये जन्तु अवियोजित आहार के बड़े-बड़े भाग (वृक्ष की टहनियों तथा शाखाएं) तक खा जाते हैं। गाय, बैल, ऊँट, शेर, हाथी इस श्रेणी के जीव हैं।

सूक्ष्मजीव तंत्र

सूक्ष्म जीव मृत पौधों, जन्तुओं एवं जैविक पदार्थों को विभिन्न रूपों में सड़ा गला कर वियोजित करते हैं, इसलिए इन्हें वियोजक भी कहा जाता है। ये सूक्ष्म जीव जटिल पदार्थों को आहार के रूप में ग्रहण करने के साथ उन्हें सरल बना देते हैं, ताकि हरे पौधे इन पदार्थों का पुनः उपयोग कर सकें। सूक्ष्म जीवों में सूक्ष्म बैक्टीरिया एवं कवक आते है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख