ध्वनि प्रदूषण

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कम्पन करने वाली प्रत्येक वस्तु ध्वनि उत्पन्न करती है और जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो जाती है तो वह कानों को अप्रिय लगने लगती है। इस अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि को शोर कहते हैं। शोर से मनुष्यों में अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है। साथ ही साथ कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः शोर वह अवांक्षनीय ध्वनि है जो मनुष्य को अप्रिय लगे तथा उसमें बेचैनी तथा उद्विग्नता पैदा करती हो। पृथक-पृथक व्यक्तियों में उद्विग्नता पैदा करने वाली ध्वनि की तीव्रता अलग-अलग हो सकती है। वायुमंडल में अवांछनीय ध्वनि की मौजूदगी को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है। ध्वनि प्रदूषण से होने वाले खतरों की गम्भीरता को देखकर नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक राबर्ट कोच ने आठ दशक पूर्व प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि भविष्य में एक दिन ऐसा आएगा, जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में शोर से संर्घष करना पड़ेगा। कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के पूर्व चान्सलर डॉ. वर्ननुडसन का मत है कि शोर एक धीमी गति वाला मृत्युदण्ड है।

ध्वनि प्रदूषण के स्रोत

ध्वनि प्रदूषण मुख्यतः दो प्रकार के स्रोतों से होता है।

प्राकृतिक स्रोत

बिजली की कड़क, बादलों की गड़गड़ाहट, तेल हवाएं, ऊंचे स्थान से गिरता जल, आंधी, तूफान, ज्वालामुखी का फटना एवं उच्च तीव्रता वाली जल वर्षा आदि।

कृत्रिम स्रोत

यह स्रोत मानव जनित है। उदाहरणार्थ- मोटर वाहनों से उत्पन्न होने वाला शोर, वायुयानो से होने वाला शोर, रेलगाड़ियों तथा उनकी सीटी से होने वाला शोर, लाउडस्पीकरों एवं म्यूजिक सिस्टम से होने वाला शोर, टाइपराइटरो की खड़खड़ाहट, टेलीफोन की घण्टी आदि से उत्पन्न होने वाला शोर आदि।

ध्वनि स्तर का मापन

ध्वनि विज्ञान को श्रवण विज्ञान कहते है। ध्वनि की सामान्य मापन इकाई डेसिबल संक्षेप में db कहलाती है। डेसिबल ध्वनि की तीव्रता की मापन इकाई है। ध्वनि दाब की अन्य मापन इकाई वेटेड साउंड प्रेसर या भारित ध्वनि दाब है, जिसे संक्षिप्त रूप में db(A) नाम से जाना जाता है। ध्वनि की तीव्रता के मापन की दो इकाइयों db तथा db(A) में मूलभूत अंतर यह है कि db ध्वनि तीव्रता की माप है जबकि db(A) ध्वनि दाब की माप है।

डेसिबल (db) मापक शून्य से प्रारंभ होता है, जो सामान्य मनुष्य के कान द्वारा सुनी जा सकने वाली सर्वाधिक धीमी आवाज को प्रदर्शित करता है। डेसिबल मापक में प्रति दस गुना वृद्धि का मतलब 10 db है। यदि सर्वाधिक मंद मापक पर ध्वनि तीव्रता 10 db वृद्धि होती है तो डेसिबल मापक ध्वनि तीव्रता 10 db होगी। यदि ध्वनि की तीव्रता में 100 गुना वृद्धि हो जाती है तो वह 20 db होगी, 1000 गुना वृद्धि हाने पर ध्वनि की तीव्रता डेसिबल मापक पर 30 db होगी।   शून्य डेसिबल से क्षीण आवाज नहीं सुनी जा सकती हैं। मनुष्य के कान कम से कम शून्य तथा अधिक से अधिक 180 डेसिबल शोर की श्रंखला का सामना कर सकते है। 10 डेसीबल सामान्य मनुष्य द्वारा सांस लेने से उत्पन्न ध्वनि तथा पत्तियों की सरसराहट को प्रदर्शित करता है। 20 डेसीबल मनुष्य की फुसफुसाहट को प्रदर्शित करता है। 50 से 55 डेसीबल वाली ध्वनि से नींद में खलल पड़ सकता है। 90 से 96 डेसीबल वाली ध्वनि से मनुष्य के शरीर की नाड़ी प्रणाली में पुनः ठीक न किये जाने वाले परिवर्तन होने लगते हैं। 150 से 160 डेसीबल वाली ध्वनियां प्राणघातक हो सकती हैं। अधिकतर देशों में ध्वनि की अधिकतम स्वीकार्य सीमा 75 से 85 डेसीबल निर्धारित की गई है। इससे अधिक की ध्वनियां मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं। प्रो. ग्राल के अनुसार 150 डेसिबल की ध्वनि एक ही बार मे मनुष्य को बहरा बना सकती है। 155 डेसिबल की ध्वनि त्वचा को जला सकती है और 185 डेसिबल की ध्वनि से मृत्यु तक हो सकती है। लगातार 80 डेसिबल के शोर में रहने पर मनुष्य की श्रवण शक्ति को स्थायी रूप से नुकसान पहुंच सकता है।

ध्वनी प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव

ध्वनि प्रदूषण (शोर) का मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। लगातार शोर में रहने पर मानसिक तनाव, कुंठा, चिड़चिड़ापन, बोलने में व्यवधान, बैचैनी, नींद की कमी आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। जिन मजदूरों को अधिक शोर मे काम करना होता है वे हृदय रोग, शारीरिक शिथिलता, रक्तचाप आदि अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते है। शोर से हार्मोन सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं जिनसे शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन हो जाते हैं। विस्फोटों तथा सोनिक बमों की अचानक उच्च ध्वनि से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है। लगातार शोर में रहने वाली महिलाओ के नवजात शिशुओं में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं। दीर्घ अवधि में ध्वनि प्रदूषण में रहने वाले लोगो में न्यूरोटिक मेण्टल डिसॉर्डर हो जाता है, मांसपेशियों में तनाव तथा खिंचाव हो जाता है और स्नायुओं में उत्तेजना पैदा हो जाती है। शोर के कारण रक्त मे कोलेस्ट्राल तथा कार्टीजोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे बहुत से रोगों की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं। तीव्र शोर के कारण वायुमण्डल का घनत्व बढ़ जाता है। इस स्थिति का सामना करने के लिए मनुष्य को 1600 कैलोरीज की अतिरिक्त आवश्यकता होती है।

ध्वनि प्रदूषण रोकने के उपाय

इस भौतिक वादी युग में ध्वनि प्रदूषण को रोकना आसान नहीं, फिर भी कुछ तरीके अपनाकर इसको कम किया जा सकता है।

  1. निर्धारित सीमा से अधिक शोर उत्पन्न करने वाले वाहनो पर मुख्य मार्गों एवं आवासीय क्षेत्रों से निकलने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
  2. मोटर के इंजनो तथा अन्य शोर उत्पन्न करने वाली मशीनो की संरचना इस प्रकार की जानी चाहिए कि कम ध्वनि उत्पन्न हो।
  3. कल कारखानों को शहरी तथा आवासीय बस्तियों से बाहर स्थापित किया जाना चाहिए।,
  4. ऐसे उद्योग जिनमें शोर कम न किया जा सके, वहां के श्रमिकों को कर्णप्लग अथवा कर्णबन्दक प्रदान किये जाने चाहिए।
  5. वाहनो के साइलेंसरो की जांच समय समय पर की जानी चाहिए।,
  6. बैंड-बाजों, लाउडस्पीकरों एवं नारेबाजी को प्रतिबंधित किया जाय।
  7. रेल द्वारा जो ध्वनि प्रदूषण होता है, उसे घर्षण ध्वनिरहित रेल पथों के निर्माण से कम किया जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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