"पंचायती राज" के अवतरणों में अंतर

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पंचायती राज व्यवस्था में [[ग्राम]], [[तहसील]], [[तालुका]] और [[ज़िला]] आते हैं। [[भारत]] में प्राचीन काल से ही पंचायती राजव्यवस्था अस्तित्व में रही है, भले ही इसे विभिन्न नाम से विभिन्न काल में जाना जाता रहा हो। पंचायती राज व्यवस्था को कमोबेश [[मुग़ल काल]] तथा [[ब्रिटिश काल]] में भी जारी रखा गया। ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लार्ड रिपन ने स्थानीय स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की स्थिति पर जाँच करने तथा उसके सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया। इस आयोग ने स्वायत्त संस्थाओं के विकास पर बल दिया, जिसके कारण 1920 में संयुक्त प्रान्त, [[असम]], [[बंगाल]], [[बिहार]], [[मद्रास]] और [[पंजाब]] में पंचायतों की स्थापना के लिए क़ानून बनाये गये। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भी संघर्षरत लोगों के नेताओं द्वारा सदैव पंचायती राज की स्थापना की मांग की जाती रही।  
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[[चित्र:Administrative-structure-of-India.png|thumb|250px|भारत का प्रशासनिक ढांचा]]
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'''पंचायती राज''' व्यवस्था में [[ग्राम]], [[तहसील]], तालुका और [[ज़िला]] आते हैं। [[भारत]] में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में रही है, भले ही इसे विभिन्न नाम से विभिन्न काल में जाना जाता रहा हो। पंचायती राज व्यवस्था को कमोबेश [[मुग़ल काल]] तथा [[ब्रिटिश काल]] में भी जारी रखा गया। ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन [[वायसराय]] [[लॉर्ड रिपन]] ने स्थानीय स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की स्थिति पर जाँच करने तथा उसके सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया। इस आयोग ने स्वायत्त संस्थाओं के विकास पर बल दिया, जिसके कारण 1920 में संयुक्त प्रान्त, [[असम]], [[बंगाल]], [[बिहार]], [[मद्रास]] और [[पंजाब]] में पंचायतों की स्थापना के लिए क़ानून बनाये गये। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भी संघर्षरत लोगों के नेताओं द्वारा सदैव पंचायती राज की स्थापना की मांग की जाती रही।  
 
==संवैधानिक प्रावधान==
 
==संवैधानिक प्रावधान==
 
संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही संविधान की 7वीं अनुसूची (राज्य सूची) की प्रविष्टि 5 में ग्राम पंचायतों को शामिल करके इसके सम्बन्ध में क़ानून बनाने का अधिकार राज्य को दिया गया है। 1993 में संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गई है और संविधान में भाग 9 को पुनः जोड़कर तथा इस भाग में 16 नये अनुच्छेदों (243 से 243-ण तक) और संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायत के गठन, पंचायत के सदस्यों के चुनाव, सदस्यों के लिए आरक्षण तथा पंचायत के कार्यों के सम्बन्ध में व्यापक प्रावधान किये गये हैं।
 
संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही संविधान की 7वीं अनुसूची (राज्य सूची) की प्रविष्टि 5 में ग्राम पंचायतों को शामिल करके इसके सम्बन्ध में क़ानून बनाने का अधिकार राज्य को दिया गया है। 1993 में संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गई है और संविधान में भाग 9 को पुनः जोड़कर तथा इस भाग में 16 नये अनुच्छेदों (243 से 243-ण तक) और संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायत के गठन, पंचायत के सदस्यों के चुनाव, सदस्यों के लिए आरक्षण तथा पंचायत के कार्यों के सम्बन्ध में व्यापक प्रावधान किये गये हैं।
 
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==विभिन्न राज्यों में पंचायत समिति==
==आधुनिक समय में पंचायती राज व्यवस्था का प्रारम्भ==
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स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद [[महात्मा गाँधी|गांधीजी]] के प्रभाव से पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया और इसके लिए केन्द्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई और एस.के.डे को इस विभाग का मन्त्री बनाया गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1952 को इस उद्देश्य के साथ सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया कि सामान्य जनता को विकास प्रणाली से अधिक से अधिक सहयुक्त किया जाए। इस कार्यक्रम के अधीन खण्ड को इकाई मानकर खण्ड के विकास हेतु सरकारी कर्मचारियों के साथ सामान्य जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता को अधिकार नहीं दिया गया, जिस कारण यह सरकारी अधिकारियों तक सीमित रह गया और असफल हो गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा को प्रारम्भ किया गया, जो असफल हुआ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद [[महात्मा गाँधी|गांधीजी]] के प्रभाव से पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया और इसके लिए केन्द्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई और एस.के.डे को इस विभाग का मन्त्री बनाया गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1952 को इस उद्देश्य के साथ सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया कि सामान्य जनता को विकास प्रणाली से अधिक से अधिक सहयुक्त किया जाए। इस कार्यक्रम के अधीन खण्ड को इकाई मानकर खण्ड के विकास हेतु सरकारी कर्मचारियों के साथ सामान्य जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता को अधिकार नहीं दिया गया, जिस कारण यह सरकारी अधिकारियों तक सीमित रह गया और असफल हो गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा को प्रारम्भ किया गया, जो असफल हुआ।  
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====बलवंत राय मेहता समिति====
==बलवंत राय मेहता समिति की सिफ़ारिशें==
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{{main|बलवंत राय मेहता समिति}}
सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा के असफल होने के बाद पंचायत राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की सिफ़ारिश करने के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन किया गया। इस समिति ने भारत में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था, यथा:-
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सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा के असफल होने के बाद पंचायत राज व्यवस्था को मज़बूत बनाने की सिफ़ारिश करने के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन किया गया। इस समिति ने गाँवों के समूहों के लिए प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंचायतों, खण्ड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली पंचायत समितियों तथा ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद् गठित करने का सुझाव दिया गया।  
*ग्राम या नगर पंचायत,
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{| class="bharattable" border="1"
*तहसील पंचायत और
 
*ज़िला पंचायत,
 
इनको स्थापित करने की सिफ़ारिश के साथ यह सिफ़ारिश भी की थी कि लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की मूल इकाई प्रखण्ड या समिति के स्तर पर होनी चाहिए। इस समिति ने गाँवों के समूहों के लिए प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंचायतों, खण्ड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली पंचायत समितियों तथा ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद् गठित करने का सुझाव दिया गया।  
 
{| class="wikitable" border="1"
 
 
|+विभिन्न राज्यों में पंचायत समिति के नाम  
 
|+विभिन्न राज्यों में पंचायत समिति के नाम  
 
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| क्षेत्र समिति
 
| क्षेत्र समिति
 
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मेहता समिति की सिफ़ारिशों को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया और इस सिफ़ारिश के आधार पर [[राजस्थान]] राज्य की विधानसभा ने 2 सितम्बर, 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया, और इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के [[नागौर ज़िला|नागौर ज़िले]] में पंचायती राज का उदघाटन किया गया। इसके बाद 1959 में [[आन्ध्र प्रदेश]], 1960 में असम, [[तमिलनाडु]] एवं [[कर्नाटक]], 1962 में [[महाराष्ट्र]], 1963 में [[गुजरात]] तथा 1964 में [[पश्चिम बंगाल]] में विधानसभाओं के द्वारा पंचायती राज अधिनियम पारित करके पंचायत राज व्यवस्था को प्रारम्भ किया गया।
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मेहता समिति की सिफ़ारिशों को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया और इस सिफ़ारिश के आधार पर [[राजस्थान]] राज्य की विधानसभा ने 2 सितंबर, 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया, और इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के [[नागौर ज़िला|नागौर ज़िले]] में पंचायती राज का उदघाटन किया गया। इसके बाद 1959 में [[आन्ध्र प्रदेश]], 1960 में असम, [[तमिलनाडु]] एवं [[कर्नाटक]], 1962 में [[महाराष्ट्र]], 1963 में [[गुजरात]] तथा 1964 में [[पश्चिम बंगाल]] में विधानसभाओं के द्वारा पंचायती राज अधिनियम पारित करके पंचायत राज व्यवस्था को प्रारम्भ किया गया।
 
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====मेहता समिति की सिफ़ारिशें====
==मेहता समिति की सिफ़ारिशें==
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{{main|अशोक मेहता समिति}}
 
बलवंत राय मेहता समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियाँ उत्पन्न हो गयीं, जिन्हें दूर करने के लिए सिफ़ारिश करने हेतु 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। इस समिति में 13 सदस्य थे। समिति ने 1978 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी, जिसमें केवल 132 सिफ़ारिशें की गयी थीं। इसकी प्रमुख सिफ़ारिशें हैं–
 
बलवंत राय मेहता समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियाँ उत्पन्न हो गयीं, जिन्हें दूर करने के लिए सिफ़ारिश करने हेतु 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। इस समिति में 13 सदस्य थे। समिति ने 1978 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी, जिसमें केवल 132 सिफ़ारिशें की गयी थीं। इसकी प्रमुख सिफ़ारिशें हैं–
*राज्य में विकेन्द्रीकरण का प्रथम स्तर ज़िला हो,
+
====डॉ. पी. वी. के. राव समिति====
*ज़िला स्तर के नीचे मण्डल पंचायत का गठन किया जाए, जिसमें क़रीब 15000-20000 जनसंख्या एवं 10-15 गाँव शामिल हों,
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1985 में डॉ. पी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करके उसे यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा ग़रीबी को दूर करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफ़ारिश करे। इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफ़ारिश की। इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की भी सिफ़ारिश की, लेकिन समिति की सिफ़ारिश को अमान्य कर दिया गया।
*ग्राम पंचायत तथा पंचायत समिति को समाप्त कर देना चाहिए,
+
====डॉ. एल. एम. सिंधवी समिति====
*मण्डल अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष तथा ज़िला परिषद् के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष होना चाहिए,
 
*मण्डल पंचायत तथा परिषद् का कार्यकाल 4 वर्ष हो,
 
*विकास योजनाओं को ज़िला परिषद् के द्वारा तैयार किया जाए।
 
इस समिति की सिफ़ारिश को अपर्याप्त मानकर नामन्ज़ूर कर दिया गया।
 
==डॉ. पी. वी. के. राव समिति==
 
1985 में डॉ. पी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करके उसे यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा ग़रीबी को दूर करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफ़ारिश करे। इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफ़ारिश की। इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की भी सिफ़ारिश की, लेकिन समिति की सिफ़ारिश को अमान्य कर दिया गया।  
 
==डॉ. एल. एम. सिंधवी समिति==
 
 
पंचायमी राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा करने तथा उसमें सुधार करने के सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए सिंधवी समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गाँवों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की तथा साथ में यह सुझाव भी दिया कि गाँव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाए।
 
पंचायमी राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा करने तथा उसमें सुधार करने के सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए सिंधवी समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गाँवों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की तथा साथ में यह सुझाव भी दिया कि गाँव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाए।
==तिहत्तरवाँ संविधान संशोधन==
+
==पंचायत व्यवस्था==
1988 में पी. के. थुंगन समिति का गठन पंचायती संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया। इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए। इस समिति की सिफ़ारिश के आधार पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वाँ संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोक सभा के द्वारा पारित कर दिया गया, लेकिन राज्य सभा के द्वारा नामन्ज़ूर कर दिया गया। इसके बाद लोकसभा को भंग कर दिए जाने के कारण यह विधेयक समाप्त कर दिया गया। इसके बाद 74वाँ संविधान संशोधन पेश किया गया, जो लोकसभा के भंग किये जाने के कारण समाप्त हो गया।
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{{Main|पंचायत व्यवस्था}}
 
+
[[1988]] में पी. के. थुंगन समिति का गठन पंचायती संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया। इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए। इस समिति की सिफ़ारिश के आधार पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वाँ संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोक सभा के द्वारा पारित कर दिया गया, लेकिन राज्य सभा के द्वारा नामंजूर कर दिया गया। इसके बाद लोकसभा को भंग कर दिए जाने के कारण यह विधेयक समाप्त कर दिया गया। इसके बाद 74वाँ संविधान संशोधन पेश किया गया, जो लोकसभा के भंग किये जाने के कारण समाप्त हो गया। इसके बाद 16 दिसम्बर, 1991 को 72वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (प्रवर समिति) को सौंप दिया गया। इस समिति ने विधेयक पर अपनी सम्मति जुलाई 1992 में दी और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया, जिसे 22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने पारित कर दिया। 17 राज्य विधान सभाओं के द्वारा अनुमोदित किय जाने पर इसे राष्ट्रपति की सम्मति के लिए उनके समक्ष पेश किया गया। राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल, 1993 को इस पर अपनी सम्मति दे दी और इसे 24 अप्रैल, 1993 को प्रवर्तित कर दिया गया।  
इसके बाद 16 दिसम्बर, 1991 को 72वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (प्रवर समिति) को सौंप दिया गया। इस समिति ने विधेयक पर अपनी सम्मति जुलाई 1992 में दी और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया, जिसे 22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने पारित कर दिया। 17 राज्य विधान सभाओं के द्वारा अनुमोदित किय जाने पर इसे राष्ट्रपति की सम्मति के लिए उनके समक्ष पेश किया गया। राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल, 1993 को इस पर अपनी सम्मति दे दी और इसे 24 अप्रैल, 1993 को प्रवर्तित कर दिया गया।
 
==पंचायत व्यवस्था से सम्बन्धित प्रावधान==
 
<div style="float:right; width:40%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px">
 
{| width="99%" class="wikitable"
 
|+'''विभिन्न राज्यों में वर्तमान पंचायती राज्य संस्थाएँ'''
 
|-
 
! style="width:15%"| राज्य
 
! style="width:20%"| स्तर
 
! style="width:60%"| संस्थाएँ
 
|}
 
<div style="height: 250px; overflow: auto; overflow-x:hidden;">
 
{| class="wikitable" border="1" width="99%"
 
|-
 
| style="width:15%"|[[केरल]]
 
| style="width:20%"|एक स्तरीय
 
| style="width:60%"| ग्राम पंचायत
 
|-
 
| [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]]
 
| एक स्तरीय
 
| ग्राम पंचायत
 
|-
 
| [[त्रिपुरा]]
 
| एक स्तरीय
 
| ग्राम पंचायत
 
|-
 
| [[मणिपुर]]
 
| एक स्तरीय
 
| ग्राम पंचायत
 
|-
 
| [[सिक्किम]]
 
| एक स्तरीय
 
| ग्राम पंचायत
 
|-
 
| [[असम]]
 
| दो स्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
 
|-
 
| [[मध्य प्रदेश]]
 
| दो स्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
 
|-
 
| [[कर्नाटक]]
 
| दो स्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
 
|-
 
| [[उड़ीसा]]
 
| दो स्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
 
|-
 
| [[हरियाणा]]
 
| दो स्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
 
|-
 
| [[उत्तर प्रदेश]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[बिहार]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[राजस्थान]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[महाराष्ट्र]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[आन्ध्र प्रदेश]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[हिमाचल प्रदेश]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[पंजाब]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[तमिलनाडु]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[गुजरात]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[पश्चिम बंगाल]]
 
| चार स्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-अचल पंचायत, 3-आंचलिक परिषद, 4-ज़िला पंचायत
 
|-
 
| [[मेघालय]]
 
| एक स्तरीय
 
| जनजातिय परिषद
 
|-
 
| [[नागालैण्ड]]
 
| एक स्तरीय
 
| जनजातिय परिषद
 
|-
 
| [[मिजोरम]]
 
| एक स्तरीय
 
| जनजातिय परिषद
 
|-
 
| [[गोवा]]
 
| त्रिस्तरीय
 
| 1-ग्राम पंचायत, 2-तालुका समिति, 3-ज़िला पंचायत
 
|}</div></div>
 
पंचायत व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रावधान संविधान के भाग 9 में 16 अनुच्छेदों में शामिल किया गया, जो निम्न प्रकार हैं–
 
#पंचायत व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्रामसभा होगी। इसमें एक या एक से अधिक गाँव शामिल किए जा सकते हैं। ग्रामसभा की शक्तियों के सम्बन्ध में राज्य विधान मण्डल द्वारा क़ानून बनाया जाएगा।
 
#जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है, उनमें दो स्तरीय पंचायत, अर्थात् ज़िला स्तर और गाँव स्तर पर, का गठन किया जाएगा और 20 लाख की जनसंख्या से अधिक वाले राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायत राज्य, अर्थात् गाँव, मध्यवर्ती तथा ज़िला स्तर पर, की स्थापना की जाएगी।
 
#सभी स्तर के पंचायतों के सभी सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्येक पाँचवें वर्ष में किया जाएगा। गाँव स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्षतः तथा मध्यवर्ती एवं ज़िला स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा।
 
#पंचायत के सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए उनके अनुपात में आरक्षण प्रदान किया जाएगा तथा महिलाओं के लिए 30% आरक्षण होगा।
 
#सभी स्तर की पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा, लेकिन इनका विघटन पाँच वर्ष के पहले भी किया जा सकता है, परन्तु विघटन की दशा में 6 मास के अन्तर्गत चुनाव कराना आवश्यक होगा।
 
#पंचायतों को कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी और वे किन उत्तरदायित्वों का निर्वाह करेंगी, इसकी सूची संविधान में ग्याहरवीं अनुसूची में दी गयी हैं। इस सूची में पंचायतों के कार्य निर्धारण के लिए 29 कार्य क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है, जा निम्न प्रकार हैं—
 
##कृषि, जिसके अन्तर्गत कृषि विस्तार भी है,
 
##भूमि सुधार और मृदा संरक्षण,
 
##लघु सिंचाई, जल प्रबन्ध और जल आच्छादन विकास,
 
##पशु पालन, दुग्ध उद्योग और कुक्कुट पालन,
 
##मत्स्य उद्योग,
 
##समाजिक वनोद्योग और फ़ार्म वनोद्योग,
 
##लघु वन उत्पाद,
 
##लघु उद्योग, जिसके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी है,
 
##खादी, ग्राम और कुटीर उद्योग,
 
##ग्रामीण आवास,
 
##पेय जल,
 
##ईधन और चारा,
 
##सड़कें, पुलिया, पुल, नौघाट, जल मार्ग और संचार के अन्य साधन,
 
##ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अन्तर्गत विद्युत का वितरण भी है,
 
##ग़ैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत,
 
## ग़रीबी उपशमन कार्यक्रम,
 
##शिक्षा, जिसके अन्तर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी हैं,
 
##तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा,
 
##प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा,
 
##पुस्तकालय,
 
##सांस्कृतिक क्रिया कलाप,
 
##बाज़ार और मेले,
 
##स्वास्थ्य और स्वच्छता (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय)
 
##परिवार कल्याण,
 
##महिला और बाल विकास,
 
##समाज कल्याण (विकलांग और मानसिक रूप से अविकसित सहित),
 
##कमज़ोर वर्गों का (विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों का) कल्याण,
 
##लोक वितरण प्रणाली,
 
##सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण,
 
#राज्य विधान मण्डल क़ानून बनाकर पंचायतों को उपयुक्त स्थानीय कर लगाने, उन्हें वसूल करने तथा उनसे प्राप्त धन को व्यय करने का अधिकार प्रदान कर सकती है।
 
#पंचायतों की वित्तीय अवस्था के सम्बन्ध में जांच करने के लिए प्रति पाँचवें वर्ष वित्तीय आयोग का गठन किया जाएगा, जो राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट देगा।
 
 
 
 
==पंचायतों की संरचना==
 
==पंचायतों की संरचना==
 +
{{Main|पंचायतों की संरचना}}
 
संविधान (73वां सेशोधन) अधिनियम, 1992 द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार
 
संविधान (73वां सेशोधन) अधिनियम, 1992 द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार
 
*सबसे निचले अर्थात् ग्राम स्तर पर ग्राम सभा ज़िला पंचायत के गठन का प्रावधान है।
 
*सबसे निचले अर्थात् ग्राम स्तर पर ग्राम सभा ज़िला पंचायत के गठन का प्रावधान है।
 
*मध्यवर्ती अर्थात् खण्ड स्तर पर क्षेत्र पंचायत और  
 
*मध्यवर्ती अर्थात् खण्ड स्तर पर क्षेत्र पंचायत और  
 
*सबसे उच्च अर्थात् ज़िला स्तर पर पंचायत के गठन का प्रावधान किया गया है।
 
*सबसे उच्च अर्थात् ज़िला स्तर पर पंचायत के गठन का प्रावधान किया गया है।
{| class="wikitable" border="1"
 
|+पंचायती राज सम्बन्धी उपबंध (भाग 9)
 
|-
 
! अनुच्छेद
 
! विवरण
 
|-
 
| अनुच्छेद 243
 
| परिभाषाएँ
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 क
 
| ग्रामसभा
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ख
 
| ग्राम पंचायतों का गठन
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ग
 
| पंचायतों की संरचना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 घ
 
| स्थानों का आरक्षण
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ङ
 
| पंचायतों की अवधि
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 च
 
| सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 छ
 
| पंचायतों की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ज
 
| पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियाँ और उनकी निधियाँ
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 झ
 
| वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ञ
 
| पंचायतों की लेखाओं की संपरीक्षा
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ट
 
| पंचायतों के लिए निर्वाचन
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ठ
 
| संघ राज्यों क्षेत्रों को लागू होना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ड
 
| इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ढ
 
| विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ण
 
| निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
 
|}
 
 
 
जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से अधिक नहीं है, वहाँ मध्यवर्ती स्तर पर क्षेत्र पंचायत का गठन नहीं किया जाएगा। राज्यों द्वारा बनाई विधियों में निम्नलिखित के प्रतिनिधित्व का उपबन्ध किया जाता है—
 
#ग्राम पंचायत का अध्यक्ष मध्यवर्ती (क्षेत्र) पंचायत का सदस्य होता है। यदि किसी राज्य में मध्यवर्ती स्तर नहीं हो तो वह ज़िला पंचायत का सदस्य होगा।
 
#मध्यवर्ती (क्षेत्र) स्तर का अध्यक्ष ज़िला पंचायत का सदस्य होता है।
 
#उस राज्य के लोकसभा के सदस्य और विधान सभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ज़िला और मध्यवर्ती पंचायत के सदस्य होते हैं।
 
#राज्य के राज्यसभा के सदस्य विधान परिषद् (यदि हो) उस क्षेत्र की ज़िला और मध्यवर्ती पंचायत के सदस्य होते हैं। अध्यक्ष, संसद सदस्य और विधानसभा के सदस्यों को पंचायत की बैठकों में मत देने का अधिकार है।
 
 
 
==ग्राम सभा==
 
==ग्राम सभा==
किसी ग्राम की निर्वाचक नामावली में जो नाम दर्ज होते हैं उन व्यक्तियों को सामूहिक रूप से ग्राम सभा कहा जाता है। ग्राम सभा में 200 या उससे अधिक की जनसंख्या का होना आवश्यक है। ग्राम सभा की बैठक वर्ष में दो बार होनी आवश्यक है। इस बारे मे सदस्यों को सूचना बैठक से 15 दिन पूर्व नोटिस से देनी होती है। ग्राम सभा की बैठक को बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को है। वह किसी समय आसामान्य बैठक का भी आयोजन कर सकता है। ज़िला पंचायत राज अधिकारी या क्षेत्र पंचायत द्वारा लिखित रूप से मांग करने पर अथवा ग्राम सभा के सदस्यों की मांग पर प्रधान द्वारा 30 दिनों के भीतर बैठक बुलाया जाएगा। यदि ग्राम प्रधान बैठक आयोजित नहीं करता है तो यह बैठक उस तारीख़ के 60 दिनों के भीतर होगी, जिस तारीख़ को प्रधान से बैठक बुलाने की मांग की गई है। ग्राम सभा की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक होती है। किन्तु यदि गणपूर्ति (कोरम) के अभाव के कारण बैठक न हो सके तो इसके लिए दुबारा बैठक का आयोजन किया जा सकता है। दरबार बैठक के लिए 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है।  
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{{Main|ग्राम सभा}}
 
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किसी ग्राम की निर्वाचक नामावली में जो नाम दर्ज होते हैं उन व्यक्तियों को सामूहिक रूप से ग्राम सभा कहा जाता है। ग्राम सभा में 200 या उससे अधिक की जनसंख्या का होना आवश्यक है। ग्राम सभा की बैठक वर्ष में दो बार होनी आवश्यक है। इस बारे में सदस्यों को सूचना बैठक से 15 दिन पूर्व नोटिस से देनी होती है। ग्राम सभा की बैठक को बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को है। वह किसी समय आसामान्य बैठक का भी आयोजन कर सकता है। ज़िला पंचायत राज अधिकारी या क्षेत्र पंचायत द्वारा लिखित रूप से मांग करने पर अथवा ग्राम सभा के सदस्यों की मांग पर प्रधान द्वारा 30 दिनों के भीतर बैठक बुलाया जाएगा। यदि ग्राम प्रधान बैठक आयोजित नहीं करता है तो यह बैठक उस तारीख़ के 60 दिनों के भीतर होगी, जिस तारीख़ को प्रधान से बैठक बुलाने की मांग की गई है। ग्राम सभा की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक होती है। किन्तु यदि गणपूर्ति (कोरम) के अभाव के कारण बैठक न हो सके तो इसके लिए दुबारा बैठक का आयोजन किया जा सकता है। दरबार बैठक के लिए 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है।  
प्रत्येक ग्राम सभा में एक अध्यक्ष होगा, जो ग्राम प्रधान, सरपंच अथवा मुखिया कहलाता है, तथा कुछ अन्य सदस्य होंगे। ग्राम सभा में 1000 की आबादी तक 1 ग्राम पंचायत सदस्य (वार्ड सदस्य), 2000 की आबादी तक 11 सदस्य तथा 3000 की आबादी तक 15 सदस्य होंगे।
 
{| class="wikitable" border="1"
 
|+त्रिस्तरीय पंचायती राज्य की संरचना
 
|-
 
! क्रम संख्या
 
! स्तर
 
! संरचना
 
! मुख्य अधिकारी
 
! निर्वाचन
 
|-
 
| 1
 
| ग्राम स्तर
 
| ग्राम पंचायत
 
| प्रधान/मुखिया/सरपंच
 
| प्रत्यक्ष
 
|-
 
| 2
 
| खण्ड (ब्लाक) स्तर
 
| क्षेत्र पंचायत
 
| प्रमुख
 
| अप्रत्यक्ष
 
|-
 
| 3
 
| ज़िला स्तर
 
| ज़िला पंचायत
 
| अध्यक्ष/चेयरमैन
 
| अप्रत्यक्ष
 
|}
 
 
 
 
==ग्राम पंचायत==
 
==ग्राम पंचायत==
प्रत्येक ग्राम सभा क्षेत्र में ग्राम पंचायत का प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा की निर्वाचित कार्यपालिका है। ग्राम पंचायत का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से होता है। प्रत्येक पंचायत को उसकी पहली बैठक की तारीख़ से 5 वर्ष के लिए गठित किया जाता है। पंचायत को विधि के अनुसार इससे पहले भी विघटित किया जा सकता है। यदि ग्राम पंचायत 5 वर्ष से 6 माह पूर्व विघटित कर दी जाती है तो पुनः चुनाव आवश्यक होता है। नई गठित पंचायत का कार्यकाल शेष अवधि के लिए होगा।  
+
{{Main|ग्राम पंचायत}}
 
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प्रत्येक [[ग्राम सभा]] क्षेत्र में ग्राम पंचायत का प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा की निर्वाचित कार्यपालिका है। ग्राम पंचायत का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से होता है। प्रत्येक पंचायत को उसकी पहली बैठक की तारीख़ से 5 वर्ष के लिए गठित किया जाता है। पंचायत को विधि के अनुसार इससे पहले भी विघटित किया जा सकता है। यदि ग्राम पंचायत 5 वर्ष से 6 माह पूर्व विघटित कर दी जाती है तो पुनः चुनाव आवश्यक होता है। नई गठित पंचायत का कार्यकाल शेष अवधि के लिए होगा। ग्राम पंचायत की माह में एक बैठक आवश्यक है। बैठक की सूचना कम से कम 5 दिन पूर्व सभी सदस्यों को दी जाएगी। प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान किसी भी समय पंचायत की बैठक को बुला सकता है। यदि पंचायत के 1/3 सदस्य किसी भी समय हस्ताक्षर कर लिखित रूप से बैठक बुलाने की मांग करते हैं तो प्रधान को 15 दिनों के अन्दर बैठक आयोजित करनी होगी। यदि बैठक को प्रधान द्वारा आयोजित नहीं किया जाता है तो निर्धारित अधिकारी, सहायक अधिकारी या पंचायत बैठक बुला सकता है। ग्राम पंचायत की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या का 1/3 सदस्यों की उपस्थिति गणपूर्ति (कोरम) के लिए आवश्यक होती है। यदि गणपूर्ति के अभाव में बैठक नहीं होती है तो दोबारा सूचना देकर बैठक बुलाई जा सकती है। इसके लिए गणपूर्ति की आवश्यकता नहीं होती है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान करता है। इन दोनों की अनुपस्थिति में प्रधान द्वारा लिखित रूप से मनोनीत सदस्य अध्यक्षता करेगा। यदि प्रधान ने किसी सदस्य के मनोनीत नहीं किया है तो बैठक में उपस्थित सदस्य बैठक की अध्यक्षता करने के लिए किसी सदस्य का चुनाव कर सकता है।  
ग्राम पंचायत की माह में एक बैठक आवश्यक है। बैठक की सूचना कम से कम 5 दिन पूर्व सभी सदस्यों को दी जाएगी। प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान किसी भी समय पंचायत की बैठक को बुला सकता है। यदि पंचायत के 1/3 सदस्य किसी भी समय हस्ताक्षर कर लिखित रूप से बैठक बुलाने की मांग करते हैं तो प्रधान को 15 दिनों के अन्दर बैठक आयोजित करनी होगी। यदि बैठक को प्रधान द्वारा आयोजित नहीं किया जाता है तो निर्धारित अधिकारी, सहायक अधिकारी या पंचायत बैठक बुला सकता है।
 
 
 
ग्राम पंचायत की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या का 1/3 सदस्यों की उपस्थिति गणपूर्ति (कोरम) के लिए आवश्यक होती है। यदि गणपूर्ति के अभाव में बैठक नहीं होती है तो दोबारा सूचना देकर बैठक बुलाई जा सकती है। इसके लिए गणपूर्ति की आवश्यकता नहीं होती है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान करता है। इन दोनों की अनुपस्थिति में प्रधान द्वारा लिखित रूप से मनोनीत सदस्य अध्यक्षता करेगा। यदि प्रधान ने किसी सदस्य के मनोनीत नहीं किया है तो बैठक में उपस्थित सदस्य बैठक की अध्यक्षता करने के लिए किसी सदस्य का चुनाव कर सकता है।
 
====ग्राम न्यायालय====
 
12 अप्रैल, 2007 को केन्द्र सरकार के द्वारा एक निर्णय के अनुसार देश में ग्रामीण अंचलों के निवासियों को पंचायत स्तर पर ही न्याय उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक पंचायत स्तर पर एक ग्राम न्यायालय की स्थापना की जाएगी। ये न्यायालय त्वरित अदालतों की तर्ज पर स्थापित होंगे। इस पर प्रत्येक वर्ष 325 करोड़ रुपये ख़र्च किए जाएंगे। केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारें तीन वर्ष तक इन न्यायालयों पर आने वाला ख़र्च वहन करेंगी। ग्राम न्यायालयों की स्थापना से अधीनस्थ अदालतों में लंबित मुक़दमों की संख्या कम करने में मदद मिलेगी।
 
====ग्राम पंचायतों का निर्वाचन====
 
सभी स्तर के पंचायतों के सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्येक पाँचवें वर्ष किया जाता है। यह चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग के द्वारा कराये जाते हैं। ग्राम पंचायत के प्रत्येक पद हेतु चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है तथा ऐसा व्यक्ति सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। वह किसी भी प्रकार की सेवा से दुराचार के कारण पदच्युत न किया गया हो तथा वह पंचायत सम्बन्धी किसी अपराध के लिए दोषी न हो। ज़िला परिषदों, ज़िला पंचायतों, पंचायत समितियों और ग्राम पंचायतों के निर्वाचन का अधिकार 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों में गठित राज्य निर्वाचन आयोग को प्राप्त हैं। यह आयोग भारत निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र है।
 
====अध्यक्ष का निर्वाचन====
 
ग्राम स्तर पर अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से ग्राम सभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है। जबकि मध्यवर्ती (खण्ड) एवं ज़िला स्तर पर अध्यक्षों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष प्रणाली के आधार पर किया जाता है। इन स्तरों पर निर्वाचित सदस्य अपने में से अध्यक्ष का निर्वाचन कर सकते हैं। ग्राम पंचायत के सदस्यों के द्वारा अपने में से एक उप-प्रधान का निर्वाचन किया जाता है। यदि उप-प्रधान का निर्वाचन नहीं किया जा सका हो तो नियत अधिकारी किसी सदस्य को उप-प्रधान नामित कर सकता है।
 
====पदमुक्ति====
 
ग्राम प्रधान एवं उप-प्रधान को 5 वर्ष के उसके निर्धारित कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व भी पदमुक्त किया जा सकता है। प्रधान या उप-प्रधान को असमय पदमुक्त करने के लिए पदमुक्त सम्बन्धी अविश्वास प्रस्ताव पर ग्राम पंचायत के आधे सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा एक लिखित सूचना ज़िला पंचायत राज अधिकारी को दी जाएगी। इस प्रकार के अविश्वास प्रस्ताव में पदमुक्त करने सम्बन्धी सभी कारणों का उल्लेख होना चाहिए। प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वालों में से तीन सदस्यों को ज़िला पंचायत राज अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होना होगा। सूचना प्राप्त होने के 30 दिन के भीतर ज़िला पंचायत राज अधिकारी ग्राम पंचायत की बैठक बुलाएगा तथा बैठक की सूचना कम से कम 15 दिन पूर्व दी जाएगी। बैठक में उपस्थित तथा वोट देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से प्रधान एवं उप-प्रधान को पदमुक्त किया जा सकता है।
 
 
 
प्रधान एवं उप-प्रधान को असमय पदमुक्त करने के लिए कोई बैठक उसके चुनाव के एक वर्ष के भीतर नहीं बुलायी जा सकती। यदि अविश्वास प्रस्ताव सम्बन्धी बैठक गणपूर्ति के अभाव में नहीं हो पाती है अथवा प्रस्ताव 2/3 बहुमत से पारित नहीं हो पाता है तो उसी प्रधान/उप-प्रधान को हटाने के लिए दोबारा बैठक एक वर्ष तक नहीं बुलायी जा सकती है। प्रधान को असमय हटाये जाने पर उसका कार्यभार उप-प्रधान को तथा उप-प्रधान को हटाये जाने पर प्रधान को सौंपा जा सकता है। यदि एक ही समय में दोनों का पद रिक्त हो जाता है तो इस दशा में ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा किसी सदस्य को प्रधान का कार्य करने के लिए नामित किया जाएगा।
 
====ग्राम पंचायत के कार्य====
 
*कृषि सम्बन्धी कार्य,
 
*ग्राम्य विकास सम्बन्धी कार्य,
 
*प्राथमिक विद्यालय, उच्च प्राथमिक विद्यालय व अनौपचारिक शिक्षा के कार्य,
 
*युवा कल्याण सम्बन्धी कार्य,
 
*राजकीय नलकूपों की मरम्मत व रख-रखाव,
 
*हेडपम्पों की मरम्मत एवं रख-रखाव,
 
*चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य,
 
*महिला एवं बाल विकास सम्बन्धी कार्य,
 
*पशुधन विकास सम्बन्धी कार्य,
 
*समस्त प्रकार के पेंशन को स्वीकृत करने व वितरण का कार्य,
 
*समस्त प्रकार की छात्रवृत्तियों को स्वीकृति करने व वितरण का कार्य,
 
*राशन की दुकान का आवंटन व निरस्त्रीकरण,
 
*पंचायती राज सम्बन्धी ग्राम्य स्तरीय कार्य आदि।
 
====ग्राम पंचायत का बजट====
 
*प्रत्येक ग्राम पंचायत एक निश्चित समय में एक अप्रैल से प्रारम्भ होने वाले वर्ष के लिए ग्राम पंचायत की अनुमानित आमदनी और ख़र्चे का हिसाब-किताब तैयार करना।
 
*हिसाब-किताब पंचायत की बैठक में उपस्थित होकर वोट देने वाले सदस्यों के आधे से अधिक वोटों से पास किया जाएगा।
 
*बजट पास करने के लिए बुलाई गई ग्राम पंचायत की बैठक का कोरम कुल संख्या का आधा होगा।
 
{| class="wikitable" border="1"
 
|+ग्राम पंचायतों की समितियाँ
 
|-
 
! क्रम संख्या
 
! समिति
 
! गठन
 
! कार्य
 
|-
 
| 1
 
| नियोजन एवं विकास समिति
 
| सभापति-प्रधान, छः अन्य सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला एवं पिछड़े वर्ग का एक-एक सदस्य अनिवार्य
 
| ग्राम पंचायत की योजना का निर्माण करना, कृषि, पशुपालन और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का संचालन करना
 
|-
 
| 2
 
| निर्माण कार्य समिति
 
| सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य, छः अन्य सदस्य (आरक्षण उपर्युक्त की भाँति)
 
| समस्त निर्माण कार्य करना तथा गुणवत्ता निश्चित करना
 
|-
 
| 3
 
| शिक्षा समिति
 
| सभापति, उप-प्रधान, छः अन्य सदस्य, आरक्षण उपर्युक्त की भाँति, प्रधानाध्यापक सहयोजित, अभिवाहक-सहयोजित
 
| प्राथमिक शिक्षा, उच्च प्राथमिक शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा तथा साक्षरता आदि सम्बन्धी कार्य
 
|-
 
| 4
 
| प्रशासनिक समिति
 
| सभापति-प्रधन, छः अन्य सदस्य (आरक्षण उपर्युक्त की भाँति)
 
| कमियों/खामियों सम्बन्धी प्रत्येक कार्य
 
|-
 
| 5
 
| स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति
 
| सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित सदस्य, छः अन्य सदस्य (आरक्षण पूर्ववत्)
 
| चिकित्सा स्वास्थ्य, परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्य और समाज कल्याण योजनाओं का संचालन, अनुसूचित जाति/जनजाति तथा पिछड़े वर्ग की उन्नति एवं संरक्षण
 
|-
 
| 6
 
| जल प्रबन्धन समिति
 
| सभापति ग्राम पंचायत द्वारा नामित, छः अन्य सदस्य (आरक्षण उपर्युक्त की भाँति) प्रत्येक राजकीय नलकूप के कमाण्ड एरिया में से उपभोक्ता सहयोजित
 
| राजकीय नलकूपों का संचालन पेयजल सम्बन्धी कार्य
 
|}
 
 
 
====ग्राम पंचायत के आय के स्रोत====
 
*भू-राजस्व की धनराशि के अनुसार 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक पंचायत कर।
 
*प्रान्तीय सरकार अथवा स्थानीय अधिकारियों द्वारा अनुदान।
 
*मनोरंजन कर।
 
*गाँव के मेले, बाज़ारों आदि पर कर।
 
*पशुओं तथा वाहनों आदि पर कर।
 
*मछली तालाब से प्राप्त आय।
 
*नालियों, सड़कों की सफ़ाई तथा रोशनी के लिए कर।
 
*कूड़ा-करकट तथा मृत पशुओं की बिक्री से आय।
 
*चूल्हा कर।
 
*व्यापार तथा रोज़गार कर।
 
*सम्पत्ति के क्रय-विक्रय पर कर।
 
*पशुओं का रजिस्ट्रेशन फीस।
 
*दुग्ध उत्पादन कर आदि।
 
====ग्राम पंचायत के कर्मचारी====
 
*'''पंचायत सचिव'''- पंचायत के सहायतार्थ नियुक्त किया जाता है।
 
*'''ग्राम सेवक''' (ग्राम विकास अधिकारी)- विकास के लिए पंचायतों का परामर्शदाता तथा नीतियों को लागू करने में सहायक।
 
*'''चौकीदार'''- न्याय तथा शान्ति व्यवस्था के लिए पंचायत का सहायक।
 
 
 
====ग्राम पंचायत निधिकोष====
 
प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए एक ग्राम कोष होता है। ग्राम पंचायत के वार्षिक आय-व्यय का लेखा-जोखा एवं अनुमान की सीमा के अन्दर ग्राम सभा या ग्राम पंचायत या उसके किसी समिति के कर्तव्यों का पालन करने के लिए धन ख़र्च किया जाता है। सम्बन्धित खातों का संचालन ग्राम प्रधान व ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से किया जाता है।
 
 
==क्षेत्र पंचायत==
 
==क्षेत्र पंचायत==
 +
{{Main|क्षेत्र पंचायत}}
 
क्षेत्र पंचायत गाँव एवं ज़िले के मध्य सम्पर्क स्थापित करता है।
 
क्षेत्र पंचायत गाँव एवं ज़िले के मध्य सम्पर्क स्थापित करता है।
====सदस्य====
 
*प्रमुख
 
*क्षेत्र की समस्त पंचायत के प्रधान
 
*निर्वाचित सदस्य
 
*लोकसभा एवं विधानसभा के वे सदस्य जो उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हों।
 
*राज्यसभा एवं राज्य विधानपरिषद् के वे सदस्य जो उस क्षेत्र के मतदाता हों, इनमें से एक प्रमुख, एक ज्येष्ठ उप-प्रमुख एक कनिष्ठ उप-प्रमुख चुना जाएगा।
 
*प्रमुख क्षेत्र पंचायतों की बैठकों का सभापतित्व करता है, इसका कार्यकाल 5 वर्ष का है। क्षेत्र पंचायत को सरकार द्वारा 5 वर्ष से पूर्व भी भंग किया जा सकता है। शेष नियम ग्राम पंचायत की भाँति हैं।
 
====कार्यक्षेत्र====
 
*ग्राम विकास के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन, मूल्यांकन व अनुश्रवण।
 
*प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का संचालन।
 
*बीज केन्द्र का संचालन।
 
*सम्पत्तियों के रख-रखाव का दायित्व।
 
*विपणन, गोदामों का पर्यवेक्षण।
 
*पशु चिकित्सालय का स्वामित्व।
 
*एक से अधिक ग्राम पंचायतों को अच्छादित करने वाले कार्य।
 
====कार्य का संचालन====
 
कार्य का संचालन निम्नलिखित समितियाँ करती हैं–
 
#नियोजन एवं विकास समिति
 
#शिक्षा समिति
 
#निर्माण कार्य समिति
 
#प्रशासनिक समिति
 
#जल प्रबन्धन समिति
 
#स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति
 
====क्षेत्र पंचायत के आय के स्रोत====
 
क्षेत्र पंचायत के आय के स्रोत निम्नलिखित हैं–
 
*स्थानीय कर,
 
*मण्डियों से प्राप्त फ़ीसें,
 
*राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान एवं ऋण,
 
*दान तथा चन्दे,
 
*ज़िला परिषद् अथवा उसके द्वारा उपलब्ध तदर्ध अनुदान,
 
*क्षेत्र पंचायत द्वारा लगाए गए करों व शुल्कों को प्राप्त आय,
 
*घाटों, मेलों आदि के पट्टों से प्राप्त आय,
 
*क्षेत्र से उगाहे गए राजस्व के 10 प्रतिशत के बराबर सरकारी अनुदान,
 
*सरकार द्वारा क्षेत्र पंचायतों को जो परियोजनाएँ संचालित करने के लिए देती हैं, उसकी धनराशि।
 
====क्षेत्र पंचायत निधि====
 
क्षेत्र पंचायत निधि का संचालन खण्ड विकास अधिकारी तथा क्षेत्र पंचायत के अध्यक्ष संयुक्त हस्ताक्षर से किया जाता है। खण्ड विकास अधिकारी क्षेत्र पंचायत स्तर का अधिकारी होता है।
 
 
==ज़िला पंचायत==
 
==ज़िला पंचायत==
 +
{{Main|ज़िला पंचायत}}
 
पंचायती राज व्यवस्था का शीर्षस्तर ज़िला पंचायत है। इसका अध्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है।
 
पंचायती राज व्यवस्था का शीर्षस्तर ज़िला पंचायत है। इसका अध्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है।
====संगठन====
 
ज़िला पंचायत में निम्नलिखित सदस्य होते हैं–
 
#अध्यक्ष
 
#निर्वाचित सदस्य
 
#ज़िले से सम्बन्धित, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा तथा विधान परिषद् के सदस्य<ref>आरक्षण (1) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को उनकी संख्या के अनुपात में आरक्षण होगा</ref>,
 
#महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित।
 
====सचिव====
 
सचिव ज़िला पंचायत का प्रमुख अधिकारी होता है। वह ज़िला पंचायत की माँग पर सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। सचिव ज़िला पंचायत का बजट तैयार करता है तथा उसे ज़िला पंचायत के सम्मुख प्रस्तुत करता है। वह ज़िला पंचायत की ओर से सरकारी अनुदान तथा धन प्राप्त करता है। उसके द्वारा ज़िला पंचायत के आय-व्यय की अदायगी की जाती है।
 
====मुख्य कार्यपालिका अधिकारी====
 
यह प्रान्तीय सरकार द्वारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के उच्च टाइम स्केल अधिकारियों में से नियुक्त किया जाता है।
 
====ज़िला पंचायत के कार्य====
 
*ज़िला पंचायत ज़िले में क्षेत्र पंचायतों तथा पंचायतों के कार्यों में ताल मेल उत्पन्न करती है, उनको परामर्श देती है तथा उनके कार्यों की देखभाल करती है।
 
*ज़िला पंचायत को स्वास्थ्य, शिक्षा तथा समाज कल्याण आदि के क्षेत्रों में कार्यकारी कार्य भी करने पड़ते हैं।
 
====ज़िला पंचायत की समितियाँ====
 
#कार्यकारी समिति
 
#नियोजन एवं वित्त समिति
 
#उद्योग एवं निर्माण कार्य समिति
 
#शिक्षा समिति
 
#स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति
 
#जल प्रबन्धन समिति
 
====आय के स्रोत====
 
*केन्द्र तथा प्रान्तीय सरकारों द्वारा अनुदान,
 
*अखिल भारतीय संस्थाओं से प्राप्त अनुदान,
 
*राजस्व का निश्चित हिस्सा,
 
*ज़िला पंचायत द्वारा क्षेत्र पंचायतों से की गई वसूलियाँ,
 
*ज़िला पंचायत द्वारा प्रशासनिक ट्रस्ट्रों से आय,
 
*ज़िला पंचायत द्वारा तथा लोगों द्वारा दिया गया अनुदान,
 
*ज़िला पंचायत सरकारी ऋण तथा सरकार की पूर्व अनुमति से ग़ैर-सरकारी ऋण भी ले सकती है।
 
 
==नगरीय शासन==
 
==नगरीय शासन==
[[भारत]] में नगरीय शासन व्यवस्था प्राचीन काल से ही प्रचलन में रही है, लेकिन इसे क़ानूनी रूप सर्वप्रथम 1687 में दिया गया, जब ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापनी की गयी। बाद में 1793 के चार्टर अधिनियम के अधीन [[मद्रास]], [[कलकत्ता]] तथा [[बम्बई]] के तीनों महानगरों में नगर निगमों की स्थापना की गयी। बंगाल में नगरीय शासन प्रणाली को प्रारम्भ करने के लिए 1842 में बंगाल अधिनियम पारित किया गया। 1882 में तत्कालीन वायसराय [[लार्ड रिपन]] ने नगरीय शासन व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया, लेकिन वह राजनीतिक कारणों से अपने इस कार्य में असफल रहा। नगरीय प्रशासन के विकेन्द्रीकरण पर रिपोर्ट देने के लिए 1909 में शाही विकेन्द्रीकरण आयोग का गठन किया गया, जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर भारत सरकार अधिनियम, 1919 में नगरीय प्रशासन के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रावधान किया गया, जिसमें किये गये प्रावधानों के अनुसार नगरीय शासन व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी।  
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{{Main|नगरीय शासन}}
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[[भारत]] में नगरीय शासन व्यवस्था प्राचीन काल से ही प्रचलन में रही है, लेकिन इसे क़ानूनी रूप सर्वप्रथम 1687 में दिया गया, जब ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापनी की गयी। बाद में 1793 के चार्टर अधिनियम के अधीन [[मद्रास]], [[कलकत्ता]] तथा [[बम्बई]] के तीनों महानगरों में नगर निगमों की स्थापना की गयी। बंगाल में नगरीय शासन प्रणाली को प्रारम्भ करने के लिए 1842 में बंगाल अधिनियम पारित किया गया। 1882 में तत्कालीन वायसराय [[लॉर्ड रिपन]] ने नगरीय शासन व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया, लेकिन वह राजनीतिक कारणों से अपने इस कार्य में असफल रहा। नगरीय प्रशासन के विकेन्द्रीकरण पर रिपोर्ट देने के लिए 1909 में शाही विकेन्द्रीकरण आयोग का गठन किया गया, जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर भारत सरकार अधिनियम, 1919 में नगरीय प्रशासन के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रावधान किया गया, जिसमें किये गये प्रावधानों के अनुसार नगरीय शासन व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी।
|+नगरीय शासन सम्बन्धी संवैधानिक उपबंध (भाग 9-क)
 
|-
 
! अनुच्छेद
 
! विवरण
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 त
 
| परिभाषा
 
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| अनुच्छेद 243 थ
 
| नगर पालिकाओं का गठन
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 द
 
| नगर पालिकाओं की संरचना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ध
 
| वार्ड समितियों आदि का गठन और संरचना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 न
 
| स्थानों का आरक्षण
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 प
 
| नगर पालिकाओं की अवधि आदि
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 फ
 
| सदस्यता के लिए निरर्हताएँ
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 ब
 
| नगरपालिकाओं आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तदायित्व
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 भ
 
| नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 म
 
| वित्त आयोग
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य
 
| नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य क
 
| नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य ख
 
| संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य ग
 
| इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य घ
 
| ज़िला योजना के लिए समिति
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य ङ
 
| महानगर योजना के लिए समिति
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य च
 
| विद्यमान विधियों पर नगर पालिकाओं का बना रहना
 
|-
 
| अनुच्छेद 243 य छ
 
| निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
 
|}
 
'''<u>नगरीय शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में संवैधानिक प्रावधान</u>'''
 
 
 
नगरीय शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में मूल संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया था, लेकिन इसे सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया गया था कि इस सम्बन्ध में क़ानून केवल राज्यों में नगरीय शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में क़ानून बनाया गया था। इन क़ानूनों के अनुसार नगरीय शासन व्यवस्था के संचालन के लिए निम्नलिखित निकायों को गठित करने के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया था–
 
#नगर निगम
 
#नगर पालिका
 
#नगर क्षेत्र समितियाँ
 
#अधिसूचित क्षेत्र समिति तथा
 
#छावनी परिषद्।
 
'''<u>74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा नगरीय शासन के सम्बन्ध में प्रावधान</u>'''
 
 
 
22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा द्वारा तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा द्वारा पारित और 20 अप्रैल, 1993 को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत एवं 1 जून, 1993 से प्रवर्तित 74वें संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय नगरीय शासन के सम्बन्ध में संविधान में भाग 9-क नये अनुच्छेदों (243 त से 243 य छ तक) एवं 12वीं अनुसूची जोड़कर निम्नलिखित प्रावधान किये गये हैं–
 
#प्रत्येक राज्य में नगर पंचायत, नगर पालिका परिषद् तथा नगर निगम का गठन किया जाएगा। नगर पंचायत का गठन उस क्षेत्र के लिए होगा, जो ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा है। नगर पालिका परिषद् के सम्बन्ध में छोटे नगरीय क्षेत्रों के लिए किया जाएगा, जबकि बड़े नगरों के लिए नगर निगम का गठन होगा।
 
#तीन लाख या अधिक जनसंख्या वाली नगर पालिका के क्षेत्र में एक या अधिक वार्ड समितियों का गठन होगा।
 
#प्रत्येक प्रकार के नगर निकायों के स्थानों के लिए अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के लिए उनके जनसंख्या के अनुपात में स्थानों को आरक्षित किया जाएगा तथा महिलाओं के लिए कुल स्थानों का 30% आरक्षित होगा।
 
#नगरीय संस्थाओं की अवधि पाँच वर्ष की होगी, लेकिन इन संस्थाओं का 5 वर्ष के पहले भी विघटन किया जा सकता है और विघटन की स्थिति में 6 मास के अन्दर चुनाव कराना आवश्यक होगा।
 
#नगरीय संस्थाओं की शक्तियाँ और उत्तरदायित्व क्या होगा, इसका निर्धारण राज्य विधान मण्डल क़ानून बनाकर कर सकती है। राज्य विधान मण्डल क़ानून बनाकर नगरीय संस्थाओं को निम्नलिखित के सम्बन्ध में उत्तरदायित्व और शक्तियाँ प्रदान कर सकती हैः– (अ) नगर में निवास करने वाले व्यक्तियों के सामाजिक न्याय तथा आर्थिक विकास के लिए योजना तैयार करने के लिए। (ब) ऐसे कार्यों को करने तथा ऐसी योजनाओं को क्रियानवित करने के लिए, जो उन्हें सौंपा जाए। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित विषयों, जो संविधान की बारहवीं अनुसूची में शामिल किये गये हैं, के सम्बन्ध में राज्य विधानमण्डल क़ानून बनाकर नगरीय संस्थानों को अधिकार एवं दायित्व सौंप सकते हैं–
 
##नगरीय योजना (इसमें शहरी योजना भी सम्मिलित है)।
 
##भूमि उपयोग का विनियम और भवनों का निर्माण।
 
##आर्थिक और सामाजिक विकास की योजना।
 
##सड़के और पुल।
 
##घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के निमित्त जल की आपूर्ति।
 
##लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफ़ाई तथा कूड़ा-करकट का प्रबन्ध।
 
##अग्निशमन सेवाएँ।
 
##नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिक पहलुओं की अभिवृद्धि।
 
##समाज के कमज़ोर वर्गों (जिसके अन्तर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मन्द व्यक्ति सम्मिलित हैं) के हितों का संरक्षण।
 
##गन्दी बस्तियों में सुधार।
 
##नगरीय निर्धनता मे कमी।
 
##नगरीय सुख-सुविधाओं, जैसे पार्क, उद्यान, खेल का मैदान इत्यादि की व्यवस्था।
 
##सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौन्दर्यपरक पहलुओं की अभिवृद्धि।
 
##क़ब्रिस्तान, शव गाड़ना, श्मशान और शवदाह तथा विद्युत शवदाह
 
##पशु-तालाब तथा जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकना।
 
##जन्म-मरण सांख्यिकी (जन्म-मरण पंजीकरण सहित)।
 
##लोक सुख सुविधायें (पथ-प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टाप, लोक सुविधा सहित)।
 
##वधशालाओं तथा चर्म शोधनशालाओं का विनियमन।
 
#राज्य विधानमण्डल क़ानून बनाकर उन विषयों को विहित कर सकती है, जिन पर नगरीय संस्थाएँ कर लगा सकती हैं।
 
#नगरीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करने के लिए वित्त आयोग का गठन किया जाएगा, जो करों, शुल्कों, पथकरों, फ़ीसों की शुद्ध आय और संस्थाओं तथा राज्य के बीच वितरण के लिए राज्यपाल से सिफ़ारिश करेगा।
 
 
 
====निर्वाचन====
 
नगर निगमों, नगरपालिकाओं और अन्य स्थानीय निकायों के निर्वाचन के संचालन के लिए शक्तियाँ 74वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत प्रत्येक राज्य व संघ राज्य क्षेत्र में गठित राज्य निर्वाचन आयोग में निहित हैं। यह आयोग भारत निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र है।
 
  
==शहरी निकायों पर प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट==
+
==प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट==
 
27 नवम्बर, 2007 को वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी छठी रिपोर्ट, जो स्थानीय प्रशासन में सुधार से सम्बन्धित है, प्रधानमंत्री डॉ. [[मनमोहन सिंह]] को प्रस्तुत की। रिपोर्ट में स्थानीय प्रशासन में लोकतंत्र के प्रोन्नयन तथा इसे नागरिक केन्द्रित बनाने का सुझाव दिया गया है। प्रशासन में स्थानीय लोकतंत्र के प्रोन्नयन को विकेन्द्रीकरण से कहीं ऊपर बताते हुए साउथ अफ़्रीकन एक्ट की तर्ज पर ऐसा क़ानून [[संसद]] में पारित कराने को कहा गया है, जिससे स्थानीय निकायों को अधिक शक्तियाँ एवं दायित्व सौंपे जा सकें। रिपोर्ट में ज़िला स्तर पर लोकतांत्रिक सरकार का एक तीसरा स्तर सृजित करने का सुझाव दिया गया है।  
 
27 नवम्बर, 2007 को वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी छठी रिपोर्ट, जो स्थानीय प्रशासन में सुधार से सम्बन्धित है, प्रधानमंत्री डॉ. [[मनमोहन सिंह]] को प्रस्तुत की। रिपोर्ट में स्थानीय प्रशासन में लोकतंत्र के प्रोन्नयन तथा इसे नागरिक केन्द्रित बनाने का सुझाव दिया गया है। प्रशासन में स्थानीय लोकतंत्र के प्रोन्नयन को विकेन्द्रीकरण से कहीं ऊपर बताते हुए साउथ अफ़्रीकन एक्ट की तर्ज पर ऐसा क़ानून [[संसद]] में पारित कराने को कहा गया है, जिससे स्थानीय निकायों को अधिक शक्तियाँ एवं दायित्व सौंपे जा सकें। रिपोर्ट में ज़िला स्तर पर लोकतांत्रिक सरकार का एक तीसरा स्तर सृजित करने का सुझाव दिया गया है।  
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आयोग ने अपनी रिपोर्ट में संसद से प्रत्येक राज्य में विधान परिषद् के गठन के लिए क़दम उठाने को कहा है। आयोग का विचार है कि विधान परिषद् के गठन से स्थानीय शासन को राज्य शासन व्यवस्था में प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। रिपोर्ट में चुनाव सुधारों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन व इनके आरक्षण सम्बन्धी कार्य को राज्य स्तरीय [[चुनाव आयोग]] पर छोड़ने को कहा गया है। स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा है कि राज्य वित्त आयोगों का गठन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि [[केन्द्रीय वित्त आयोग]] की सिफ़ारिशों को यह ध्यान में रख सकें। आयोग के अनुसार स्थानीय सरकारों को संविधान के तहत प्रदत्त दायित्वों का पूर्ण निर्वाह करना चाहिए तथा विद्युत बोर्ड व जल प्राधिकरण जैसे निकायों को स्थानीय सरकारों के प्रति उत्तरादायी होना चाहिए।
  
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में संसद से प्रत्येक राज्य में विधान परिषद् के गठन के लिए क़दम उठाने को कहा है। आयोग का विचार है कि विधान परिषद् के गठन से स्थानीय शासन को राज्य शासन व्यवस्था में प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। रिपोर्ट में चुनाव सुधारों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन व इनके आरक्षण सम्बन्धी कार्य को राज्य स्तरीय चुनाव आयोग पर छोड़ने को कहा गया है। स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा है कि राज्य वित्त आयोगों का गठन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि केन्द्रीय वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को यह ध्यान में रख सकें। आयोग के अनुसार स्थानीय सरकारों को संविधान के तहत प्रदत्त दायित्वों का पूर्ण निर्वाह करना चाहिए तथा विद्युत बोर्ड व जल प्राधिकरण जैसे निकायों को स्थानीय सरकारों के प्रति उत्तरादायी होना चाहिए।
 
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==संबंधित लेख==
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11:17, 23 दिसम्बर 2017 के समय का अवतरण

भारत का प्रशासनिक ढांचा

पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम, तहसील, तालुका और ज़िला आते हैं। भारत में प्राचीन काल से ही पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में रही है, भले ही इसे विभिन्न नाम से विभिन्न काल में जाना जाता रहा हो। पंचायती राज व्यवस्था को कमोबेश मुग़ल काल तथा ब्रिटिश काल में भी जारी रखा गया। ब्रिटिश शासन काल में 1882 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वायत्त शासन की स्थापना का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। ब्रिटिश शासकों ने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं की स्थिति पर जाँच करने तथा उसके सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए 1882 तथा 1907 में शाही आयोग का गठन किया। इस आयोग ने स्वायत्त संस्थाओं के विकास पर बल दिया, जिसके कारण 1920 में संयुक्त प्रान्त, असम, बंगाल, बिहार, मद्रास और पंजाब में पंचायतों की स्थापना के लिए क़ानून बनाये गये। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भी संघर्षरत लोगों के नेताओं द्वारा सदैव पंचायती राज की स्थापना की मांग की जाती रही।

संवैधानिक प्रावधान

संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही संविधान की 7वीं अनुसूची (राज्य सूची) की प्रविष्टि 5 में ग्राम पंचायतों को शामिल करके इसके सम्बन्ध में क़ानून बनाने का अधिकार राज्य को दिया गया है। 1993 में संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायत राज संस्था को संवैधानिक मान्यता दे दी गई है और संविधान में भाग 9 को पुनः जोड़कर तथा इस भाग में 16 नये अनुच्छेदों (243 से 243-ण तक) और संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायत के गठन, पंचायत के सदस्यों के चुनाव, सदस्यों के लिए आरक्षण तथा पंचायत के कार्यों के सम्बन्ध में व्यापक प्रावधान किये गये हैं।

विभिन्न राज्यों में पंचायत समिति

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधीजी के प्रभाव से पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया और इसके लिए केन्द्र में पंचायती राज एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई और एस.के.डे को इस विभाग का मन्त्री बनाया गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1952 को इस उद्देश्य के साथ सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया कि सामान्य जनता को विकास प्रणाली से अधिक से अधिक सहयुक्त किया जाए। इस कार्यक्रम के अधीन खण्ड को इकाई मानकर खण्ड के विकास हेतु सरकारी कर्मचारियों के साथ सामान्य जनता को विकास की प्रक्रिया से जोड़ने का प्रयास किया गया, लेकिन जनता को अधिकार नहीं दिया गया, जिस कारण यह सरकारी अधिकारियों तक सीमित रह गया और असफल हो गया। इसके बाद 2 अक्टूबर, 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा को प्रारम्भ किया गया, जो असफल हुआ।

बलवंत राय मेहता समिति

सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा के असफल होने के बाद पंचायत राज व्यवस्था को मज़बूत बनाने की सिफ़ारिश करने के लिए 1957 में बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन किया गया। इस समिति ने गाँवों के समूहों के लिए प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंचायतों, खण्ड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली पंचायत समितियों तथा ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद् गठित करने का सुझाव दिया गया।

विभिन्न राज्यों में पंचायत समिति के नाम
राज्य नाम
बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान पंचायत समिति
आन्ध्र प्रदेश मंडल पंचायत
तमिलनाडु पंचायत यूनियन
पश्चिम बंगाल आंचलिक परिषद
असम आंचलिक पंचायत
कर्नाटक तालुका डेबलपमेंट बोर्ड
मध्य प्रदेश जनपद पंचायत
अरुणाचल प्रदेश अंचल समिति
उत्तर प्रदेश क्षेत्र समिति

मेहता समिति की सिफ़ारिशों को 1 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया और इस सिफ़ारिश के आधार पर राजस्थान राज्य की विधानसभा ने 2 सितंबर, 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया, और इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर ज़िले में पंचायती राज का उदघाटन किया गया। इसके बाद 1959 में आन्ध्र प्रदेश, 1960 में असम, तमिलनाडु एवं कर्नाटक, 1962 में महाराष्ट्र, 1963 में गुजरात तथा 1964 में पश्चिम बंगाल में विधानसभाओं के द्वारा पंचायती राज अधिनियम पारित करके पंचायत राज व्यवस्था को प्रारम्भ किया गया।

मेहता समिति की सिफ़ारिशें

बलवंत राय मेहता समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियाँ उत्पन्न हो गयीं, जिन्हें दूर करने के लिए सिफ़ारिश करने हेतु 1977 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। इस समिति में 13 सदस्य थे। समिति ने 1978 में अपनी रिपोर्ट केन्द्र सरकार को सौंप दी, जिसमें केवल 132 सिफ़ारिशें की गयी थीं। इसकी प्रमुख सिफ़ारिशें हैं–

डॉ. पी. वी. के. राव समिति

1985 में डॉ. पी. वी. के. राव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करके उसे यह कार्य सौंपा गया कि वह ग्रामीण विकास तथा ग़रीबी को दूर करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था पर सिफ़ारिश करे। इस समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद्, ज़िला स्तर पर ज़िला परिषद्, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गाँव सभा के गठन की सिफ़ारिश की। इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की भी सिफ़ारिश की, लेकिन समिति की सिफ़ारिश को अमान्य कर दिया गया।

डॉ. एल. एम. सिंधवी समिति

पंचायमी राज संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा करने तथा उसमें सुधार करने के सम्बन्ध में सिफ़ारिश करने के लिए सिंधवी समिति का गठन किया गया। इस समिति ने ग्राम पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए गाँवों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की तथा साथ में यह सुझाव भी दिया कि गाँव पंचायतों को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराया जाए।

पंचायत व्यवस्था

1988 में पी. के. थुंगन समिति का गठन पंचायती संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया। इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए। इस समिति की सिफ़ारिश के आधार पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वाँ संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोक सभा के द्वारा पारित कर दिया गया, लेकिन राज्य सभा के द्वारा नामंजूर कर दिया गया। इसके बाद लोकसभा को भंग कर दिए जाने के कारण यह विधेयक समाप्त कर दिया गया। इसके बाद 74वाँ संविधान संशोधन पेश किया गया, जो लोकसभा के भंग किये जाने के कारण समाप्त हो गया। इसके बाद 16 दिसम्बर, 1991 को 72वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (प्रवर समिति) को सौंप दिया गया। इस समिति ने विधेयक पर अपनी सम्मति जुलाई 1992 में दी और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया, जिसे 22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने पारित कर दिया। 17 राज्य विधान सभाओं के द्वारा अनुमोदित किय जाने पर इसे राष्ट्रपति की सम्मति के लिए उनके समक्ष पेश किया गया। राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल, 1993 को इस पर अपनी सम्मति दे दी और इसे 24 अप्रैल, 1993 को प्रवर्तित कर दिया गया।

पंचायतों की संरचना

संविधान (73वां सेशोधन) अधिनियम, 1992 द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार

  • सबसे निचले अर्थात् ग्राम स्तर पर ग्राम सभा ज़िला पंचायत के गठन का प्रावधान है।
  • मध्यवर्ती अर्थात् खण्ड स्तर पर क्षेत्र पंचायत और
  • सबसे उच्च अर्थात् ज़िला स्तर पर पंचायत के गठन का प्रावधान किया गया है।

ग्राम सभा

किसी ग्राम की निर्वाचक नामावली में जो नाम दर्ज होते हैं उन व्यक्तियों को सामूहिक रूप से ग्राम सभा कहा जाता है। ग्राम सभा में 200 या उससे अधिक की जनसंख्या का होना आवश्यक है। ग्राम सभा की बैठक वर्ष में दो बार होनी आवश्यक है। इस बारे में सदस्यों को सूचना बैठक से 15 दिन पूर्व नोटिस से देनी होती है। ग्राम सभा की बैठक को बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को है। वह किसी समय आसामान्य बैठक का भी आयोजन कर सकता है। ज़िला पंचायत राज अधिकारी या क्षेत्र पंचायत द्वारा लिखित रूप से मांग करने पर अथवा ग्राम सभा के सदस्यों की मांग पर प्रधान द्वारा 30 दिनों के भीतर बैठक बुलाया जाएगा। यदि ग्राम प्रधान बैठक आयोजित नहीं करता है तो यह बैठक उस तारीख़ के 60 दिनों के भीतर होगी, जिस तारीख़ को प्रधान से बैठक बुलाने की मांग की गई है। ग्राम सभा की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक होती है। किन्तु यदि गणपूर्ति (कोरम) के अभाव के कारण बैठक न हो सके तो इसके लिए दुबारा बैठक का आयोजन किया जा सकता है। दरबार बैठक के लिए 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है।

ग्राम पंचायत

प्रत्येक ग्राम सभा क्षेत्र में ग्राम पंचायत का प्रावधान किया गया है। ग्राम पंचायत ग्राम सभा की निर्वाचित कार्यपालिका है। ग्राम पंचायत का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से होता है। प्रत्येक पंचायत को उसकी पहली बैठक की तारीख़ से 5 वर्ष के लिए गठित किया जाता है। पंचायत को विधि के अनुसार इससे पहले भी विघटित किया जा सकता है। यदि ग्राम पंचायत 5 वर्ष से 6 माह पूर्व विघटित कर दी जाती है तो पुनः चुनाव आवश्यक होता है। नई गठित पंचायत का कार्यकाल शेष अवधि के लिए होगा। ग्राम पंचायत की माह में एक बैठक आवश्यक है। बैठक की सूचना कम से कम 5 दिन पूर्व सभी सदस्यों को दी जाएगी। प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान किसी भी समय पंचायत की बैठक को बुला सकता है। यदि पंचायत के 1/3 सदस्य किसी भी समय हस्ताक्षर कर लिखित रूप से बैठक बुलाने की मांग करते हैं तो प्रधान को 15 दिनों के अन्दर बैठक आयोजित करनी होगी। यदि बैठक को प्रधान द्वारा आयोजित नहीं किया जाता है तो निर्धारित अधिकारी, सहायक अधिकारी या पंचायत बैठक बुला सकता है। ग्राम पंचायत की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या का 1/3 सदस्यों की उपस्थिति गणपूर्ति (कोरम) के लिए आवश्यक होती है। यदि गणपूर्ति के अभाव में बैठक नहीं होती है तो दोबारा सूचना देकर बैठक बुलाई जा सकती है। इसके लिए गणपूर्ति की आवश्यकता नहीं होती है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता ग्राम प्रधान तथा उसकी अनुपस्थिति में उप प्रधान करता है। इन दोनों की अनुपस्थिति में प्रधान द्वारा लिखित रूप से मनोनीत सदस्य अध्यक्षता करेगा। यदि प्रधान ने किसी सदस्य के मनोनीत नहीं किया है तो बैठक में उपस्थित सदस्य बैठक की अध्यक्षता करने के लिए किसी सदस्य का चुनाव कर सकता है।

क्षेत्र पंचायत

क्षेत्र पंचायत गाँव एवं ज़िले के मध्य सम्पर्क स्थापित करता है।

ज़िला पंचायत

पंचायती राज व्यवस्था का शीर्षस्तर ज़िला पंचायत है। इसका अध्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है।

नगरीय शासन

भारत में नगरीय शासन व्यवस्था प्राचीन काल से ही प्रचलन में रही है, लेकिन इसे क़ानूनी रूप सर्वप्रथम 1687 में दिया गया, जब ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापनी की गयी। बाद में 1793 के चार्टर अधिनियम के अधीन मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई के तीनों महानगरों में नगर निगमों की स्थापना की गयी। बंगाल में नगरीय शासन प्रणाली को प्रारम्भ करने के लिए 1842 में बंगाल अधिनियम पारित किया गया। 1882 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रिपन ने नगरीय शासन व्यवस्था में सुधार करने का प्रयास किया, लेकिन वह राजनीतिक कारणों से अपने इस कार्य में असफल रहा। नगरीय प्रशासन के विकेन्द्रीकरण पर रिपोर्ट देने के लिए 1909 में शाही विकेन्द्रीकरण आयोग का गठन किया गया, जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर भारत सरकार अधिनियम, 1919 में नगरीय प्रशासन के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रावधान किया गया, जिसमें किये गये प्रावधानों के अनुसार नगरीय शासन व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी।

प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट

27 नवम्बर, 2007 को वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी छठी रिपोर्ट, जो स्थानीय प्रशासन में सुधार से सम्बन्धित है, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रस्तुत की। रिपोर्ट में स्थानीय प्रशासन में लोकतंत्र के प्रोन्नयन तथा इसे नागरिक केन्द्रित बनाने का सुझाव दिया गया है। प्रशासन में स्थानीय लोकतंत्र के प्रोन्नयन को विकेन्द्रीकरण से कहीं ऊपर बताते हुए साउथ अफ़्रीकन एक्ट की तर्ज पर ऐसा क़ानून संसद में पारित कराने को कहा गया है, जिससे स्थानीय निकायों को अधिक शक्तियाँ एवं दायित्व सौंपे जा सकें। रिपोर्ट में ज़िला स्तर पर लोकतांत्रिक सरकार का एक तीसरा स्तर सृजित करने का सुझाव दिया गया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में संसद से प्रत्येक राज्य में विधान परिषद् के गठन के लिए क़दम उठाने को कहा है। आयोग का विचार है कि विधान परिषद् के गठन से स्थानीय शासन को राज्य शासन व्यवस्था में प्रतिनिधित्व मिल सकेगा। रिपोर्ट में चुनाव सुधारों के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन व इनके आरक्षण सम्बन्धी कार्य को राज्य स्तरीय चुनाव आयोग पर छोड़ने को कहा गया है। स्थानीय सरकारों की वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा है कि राज्य वित्त आयोगों का गठन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि केन्द्रीय वित्त आयोग की सिफ़ारिशों को यह ध्यान में रख सकें। आयोग के अनुसार स्थानीय सरकारों को संविधान के तहत प्रदत्त दायित्वों का पूर्ण निर्वाह करना चाहिए तथा विद्युत बोर्ड व जल प्राधिकरण जैसे निकायों को स्थानीय सरकारों के प्रति उत्तरादायी होना चाहिए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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