झारखण्ड की संस्कृति

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झारखण्ड के सांस्कृतिक क्षेत्र अपने-अपने भाषाई क्षेत्रों से जुड़े हैं। हिन्दी, संथाली, मुंडा, हो, कुडुख, मैथिली, माल्तो, कुरमाली, खोरठा और उर्दू भाषाएँ यहाँ पर बोली जाती है। भोजपुरी बोली का लिखित साहित्य न होने के बावजूद इसका उल्लेखनीय मौखिक लोक साहित्य है। मगही की भी समृद्ध लोक परम्परा है।

अधिकांश जनजातीय गाँवों में एक नृत्यस्थली होती है। पइका, छउ, जदुर, करमा, नचनी, नटुआ, अग्नि, छोकरा, संथाल, जामदा, घटवारी, महता, सोहारी, लुरिसेरी यहाँ के लोकनृत्य हैं। प्रत्येक गाँव का अपना पवित्र वृक्ष (सरना) होता है, जहाँ गाँव के पुजारी द्वारा पूजा अर्पित की जाती है। इसके अलावा अविवाहितों का शयनागार भी होता है। साप्ताहिक हाट जनजातीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जनजातीय त्योहार (जैसे सरहुल), वसंतोत्सव (सोहरी) और शीतोत्सव (माघ परब) उल्लास के अवसर हैं। जनजातीय संस्कृति बाहरी प्रभावों, जैसे ईसाईयत, औद्योगिकीकरण, नए संचार सम्पर्कों, जनजातीय कल्याण कार्यक्रमों और सामुदायिक विकास परियोजनाओं चलते तेज़ी से बदल रही है।

यहाँ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के अनेक स्थान हैं। जमशेदपुर में डिमना झील और दलमा वन्य अभयारण्य हैं। प्रसिद्ध वृन्दावन उद्यान की प्रतिकृति जुबली पार्क, जमशेदपुर के 225 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। नेतरहाट राज्य के प्रसिद्ध लोकप्रिय पर्यटन सैरगाहों में से एक है। पवित्र नगर देवघर अपने वैद्यनाथ मन्दिर के लिए विख्यात है। विभिन्न हिन्दू त्योहारों में होली व छठ (मुख्यत: महिलाओं द्वारा सूर्य पूजन) शामिल हैं।


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