बिहार की संस्कृति
बिहार का सांस्कृतिक क्षेत्र भाषाई क्षेत्र के साथ क़रीबी सम्बन्ध दर्शाता है। मैथिली प्राचीन 'मिथिला' (विदेह, वर्तमान तिरहुत) की भाषा है, जिसमें ब्राह्मणवादी जीवन व्यवस्था की प्रधानता है। मैथिली बिहार की एकमात्र बोली है, जिसकी अपनी लिपि (तिरहुत) और समृद्ध साहित्यिक इतिहास है। मैथिली के प्राचीनतम और सर्वाधिक प्रसिद्ध रचनाकारों में विद्यापति अपने श्रृंगारिक व भक्ति गीतों के लिए विख्यात हैं।
साहित्य
भोजपुरी बोली में शायद ही कोई लिखित साहित्य है, लेकिन इसका मौखिक लोक साहित्य प्रचुर है। मगधी का लोक साहित्य भी काफ़ी समृद्ध है। आधुनिक हिन्दी व उर्दू साहित्य में बिहार के मैदानी क्षेत्रों के रचनाकारों का भी उल्लेखनीय योगदान है।
आदिवासी संस्कृति
अधिकतर आदिवासी गाँवों में एक नृत्य मंच, ग्राम के पुरोहित द्वारा इष्टदेव की पूजा के लिए एक पवित्र उपवन (सरना) व अविवाहितों के लिए एक शयनागार (धुमकुरिया) होता है। साप्ताहिक हाट जनजातीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आदिवासी त्योहारों में (जैसे सरहुल), वसंतोत्सव (सोहारी) और शीतोत्सव (मागे पर्व) उमंग व उल्लास के पर्व होते हैं। ईसाईयत, उद्योगीकरण, नए संचार सम्पर्कों, आदिवासी कल्याण कार्यक्रमों व सामुदायिक विकास योजनाओं के कारण मूल आदिवासी संस्कृति तेज़ी से बदल रही है।
प्राचीनकालीन विख्यात स्थल
राज्य के मैदान धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व के स्थानों से सम्बद्ध हैं। नालन्दा में प्राचीनकालीन विख्यात नालन्दा बौद्ध विश्वविद्यालय था। राजगीर और इसके समीप के प्राचीन व आधुनिक मन्दिरों व धर्मस्थलों की अनेक धर्मों के श्रद्धालुओं द्वारा यात्रा की जाती है। पावापुरी में ही जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर को महानिर्वाण (ज्ञानप्राप्ति या पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति हुई थी। गया एक महत्त्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल है और इसके निकट बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल बोधगया स्थित है, जहाँ महात्मा बुद्ध को 'बोधित्व' की प्राप्ति हुई थी। पटना के उत्तर में सोनपुर के समीप हरिहर क्षेत्र में प्रत्येक नवम्बर में भारत के प्राचीनतम व विशाल पशु मेलों में से एक का आयोजन होता है। बिहार के अनेक हिन्दू त्योहारों में 'होली' और 'छठ' (मुख्यतया स्त्रियों द्वारा सूर्य की आराधना) का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।
लोकनाट्य या नृत्य
बिहार के लोक नृत्य या नाट्य विभिन्न सांस्कृतिक उत्सवों, मांगलिक कार्यक्रमों आदि अवसरों पर आयोजित किये जाते हैं।[1] प्रमुख लोकनाट्य निम्न प्रकार हैं-
- जोगीड़ा नृत्य
- झरनी नृत्य
- लौंडा नृत्य
- खोडलिन नृत्य
- पंवड़िया नृत्य
- धेबिया नृत्य
- झिझिया नृत्य
- करिया झूमर नृत्य
- विदापत नृत्य
- कठघोड़वा नृत्य
लोकनाट्य
बिहार के सांस्कृतिक तथा लोक जीवन में लोकनाट्यों का एक अपना ही एक अलग महत्त्व है। ये लोकनाट्य मांगलिक अवसरों, विशेष पर्वों तथा कभी-कभी मात्र मनोरंजन की दृष्टि से ही आयोजित व प्रायोजित किए जाते हैं। इन लोकनाट्यों में कथानक, संवाद, अभिनय, गीत, नृत्य तथा विशेष दृश्य आदि सभी कुछ होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ संगीत, गीत व नृत्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 17 दिसम्बर, 2012।
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