तमिलनाडु की संस्कृति

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महाबलीपुरम बीच, तमिलनाडु
Mahabalipuram Beach, Tamil Nadu

ब्राह्मण जाति के पुरोहितों के धार्मिक व राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ने के प्रयासों के बावजूद हिंदू धर्म संस्कृति का केन्द्र बना हुआ है। हिंदू धार्मिक और सेवार्थ विभाग अपने अंतर्गत आने वाले 9,300 से भी ज़्यादा बड़े मंदिरों पर प्रशासनिक नियंत्रण रखता है। विशेषकर चिदंबरम, कांचीपुरम, तंजावुर (भूतपूर्व तंजौर) और मदुरै सहित अधिकांश नगरों में गोपुरम (द्वारमीनार) छाए हुए हैं। मंदिर उत्सव-चक्र श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध रथ उत्सव है, जिसमें मूर्तियों से सज्जित रथों की शोभायात्रा के साथ मंदिर के चारों ओर परिक्रमा कराई जाती है। हिंदू परिवार विभिन्न मतों के प्रमुख संस्थानों या मठों से जुड़े हुए हैं। कुंबकोणम का शंकर मठ सबसे महत्त्वपूर्ण है।

त्योहार

फ़सल कटाई के त्योहार पोंगल में जनवरी माह में किसान अपनी अच्‍छी फ़सल के लिए आभार प्रकट करने हेतु सूर्य, पृथ्वी और पशुओं की पूजा करते हैं। पोंगल के बाद दक्षिण तमिलनाडु के कुछ हिस्‍सों में ‘जल्लीकट्टू’ (तमिलनाडु शैली की सांडो की लडाई) होता है। तमिलनाडु में अलंगनल्‍लूर ‘जल्लीकट्टू’ के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। ‘चित्तिरै’ मदुरै का लोकप्रिय त्योहार है। यह पांडय राजकुमारी मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर के अलैकिक परिणय बंधन का समृति में मनाया जाता है। तमिल महीने ‘आदि’ के अठारहवें दिन नदियों के किनारे ‘आदिपेरूकु’ पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही नई फ़सल की बुवाई से संबंधित काम भी शुरू हो जाता है। नृत्‍य महोत्‍सव ‘ममल्लापुरम’ एक अद्भुत महोत्‍सव है। समुद्र तट से लगे प्राचीन नगर ममल्लापुरम में पल्लव राजाओं द्वारा 13 शताब्‍दी पूर्व चट्टानों से काटकर बनाए गए स्तंभों का एक खुला मंच है, जिस पर लोकनृत्यों के अलावा नृत्‍यकला के सर्वश्रेष्‍ठ और सुविख्‍यात कलाकारों द्वारा भरतनाट्यम, कुचीपुडी, कथकली और ओडिसी नृत्‍य प्रस्‍तुत किए जाते हैं। ‘नाट्यांजलि’ नृत्‍य महोत्‍सव में मंदिरों की नगरी चिदंबरम के निवासी सृष्टि के आदि नर्तक भगवान नटराज को विशेष श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

बृहदेश्वर मंदिर, तंजौर
Brihadeeshwara Temple, Tanjore

महामाघम

महामाघम एक पवित्र पर्व है, जो बारह वर्ष में एक बार होता है। मंदिरों की नगरी कुंभकोनम को यह नाम दैवी पात्र ‘कुंभ’ से मिला है। ग्रीष्‍म महोत्‍सव हर वर्ष ‘पर्वतीय स्‍थलों की रानी’ सदाबहार उटी, विशिष्‍ट स्‍थल कोडाइकनाल या येरूकाड की स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक ऊंची पहाडियों पर मनाया जाता है। कंथूरी उत्‍सव वास्‍तव में धर्मनिरपेक्ष त्योहार है, जिसमें विभिन्‍न समुदायों के श्रद्धालु संत फ़कीर कादिरवाली की दरगाह पर इकट्ठे होते हैं। संत कादिरवाली के शिष्य-वंशजों में से किसी एक को 'पीर' अथवा आध्‍यात्मिक नेता चुना जाता है और उसकी अर्चना की जाती है। इस उत्‍सव के दसवें दिन फ़कीर की दरगाह पर चंदन घिसा जाता है और उस पवित्र चंदन को सब लोगों में बांट दिया जाता है। ‘वेलंकन्नी’ उत्‍सव के बारे में अनेक आश्‍चर्यजनक दंतकथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक यह है कि सोलहवीं शताब्‍दी में पुर्तग़ाली नाविकों ने कुंवारी मेरी के लिए एक विशाल गिरजाघर बनवाने का संकल्‍प लिया था, क्‍योंकि उन्‍हीं की कृपा से भयंकर समुद्री तूफ़ान से उनके जीवन की रक्षा हुई थी। ‘वेलंकन्नी’ उत्‍सव देखने के लिए हज़ारों लोग नारंगी पट्टिया डालकर उस पवित्र स्‍थान पर एकत्र होते हैं, जहां जहाज़ आकर ज़मीन पर लगा था। कुंवारी मेरी द्वारा रोगियों को ठीक कर देने की चमत्‍कारी शाक्तियों से संबंधित अनेक बातें भी इतनी ही प्रचलित हैं और इसके लिए यह गिरजाघर, पूर्व का लार्डसौ के नाम से भी प्रसिद्ध है।

पंचरथ, महाबलीपुरम
Pancha Rathas, Mahabalipuram

नवरात्र

नवरात्र पर्व का शाब्दिक अर्थ ‘नौ रात्रियां’ है जो भारत के विभिन्‍न प्रदेशों में भिन्‍न-भिन्‍न रूपों में और अनोखे ढंग से मनाया जाता है। यह पर्व शक्ति, धन और ज्ञान के लिए देवी 'शक्ति' को संतुष्‍ट करने के लिए मनाया जाता है। तमिलनाडु का प्रकाश पर्व ‘कार्तिगै दीपम्’ भी बहुत प्रसिद्ध है। इसमें घरों के बाहर मिट्टी के दीए जलाए जाते है और उल्‍लासपूर्वक पटाखे छोड़े जाते हैं। तमिलनाडु का संगीत महोत्‍सव चेन्नई में दिसंबर में मनाया जाता है। इसमें कर्नाटक संगीत की महान् और अमूल्‍य पंरपरा का निर्वाह किया जाता है और इस समारोह में नए और पुराने कलाकारों द्वारा संगीत और नृत्‍य की अविस्‍मरणीय प्रस्तुतियां पेश होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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