आश्रव

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आश्रव बौद्ध धर्म में प्रचलित शब्द है। आश्रव बौद्ध दर्शन के अनुसार विषय जिसके कारण मनुष्य बंधन में पड़ जाता है। बौद्ध अभिधर्म के अनुसार आश्रव चार होते हैं-कामाश्रव, भवाश्रव, दृष्ट्याश्रव और अविद्याश्रव।

  • आश्रव प्राणी के चित्त में आ पड़ते हैं और उसे भवचक्र में बाँधे रहते हैं।
  • मुमुक्ष योगी इन आश्रवों से छूटकर अर्हत्‌ पद का लाभ करता है।
  • भारतीय दर्शन की दूसरी परंपराओं में भी आत्मा को मलिन करनेवाले तत्व आश्रव के नाम से अभिहित किए गए हैं। उनके स्वरूप के विस्तार में भेद होते हुए भी यह समानता है कि आश्रव चित्त के मल है जिनका निराकरण आवश्यक है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 460 |
  • पुस्तक- पौराणिक कोश | पृष्ठ संख्या- 559

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