ज्ञानपीठ पुरस्कार

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ज्ञानपीठ पुरस्कार
ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रतीक- वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
विवरण भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।
गठन 22 मई, 1961
पुरस्कार राशि 7 लाख रुपए, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा[1]
प्रथम सम्मानित गोविंद शंकर कुरुप (1965)
अंतिम सम्मानित केदारनाथ सिंह (2013)
कुल सम्मानित 53
संबंधित लेख साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान
अन्य जानकारी वर्ष 1982 तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिये दिया जाता था लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिये दिया जाने लगा।
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ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ न्यास द्वारा भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। भारत का कोई भी नागरिक जो आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखता हो इस पुरस्कार के योग्य है। पुरस्कार में पांच लाख रुपये की धनराशि, प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा दी जाती है। 1965 में 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया। 2005 के लिए चुने गए हिन्दी साहित्यकार कुंवर नारायण पहले व्यक्ति थे, जिन्हें 7 लाख रुपए का ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।[2] वर्ष 2012 से ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में दी जाने वाली राशि को 7 लाख रुपये से बढ़ाकर 11 लाख रुपये कर दिया गया है।[3] प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम लेखक जी शंकर कुरुप को प्रदान किया गया था। उस समय पुरस्कार की धनराशि 1 लाख रुपए थी। 1982 तक यह पुरस्कार लेखक की एकल कृति के लिये दिया जाता था। लेकिन इसके बाद से यह लेखक के भारतीय साहित्य में संपूर्ण योगदान के लिये दिया जाने लगा। अब तक हिन्दी तथा कन्नड़ भाषा के लेखक सबसे अधिक सात बार यह पुरस्कार पा चुके हैं। यह पुरस्कार बांग्ला को 5 बार, मलयालम को 4 बार, उड़िया, उर्दू और गुजराती को तीन-तीन बार, असमिया, मराठी, तेलुगु, पंजाबी और तमिल को दो-दो बार मिल चुका है।[4]

पुरस्कार की शुरुआत

22 मई, 1961 को भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक श्री साहू शांति प्रसाद जैन के पचासवें जन्म दिवस के अवसर पर उनके परिवार के सदस्यों के मन में यह विचार आया कि साहित्यिक या सांस्कृतिक क्षेत्र में कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य किया जाए जो राष्ट्रीय गौरव तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिमान के अनुरूप हो। इसी विचार के अंतर्गत 16 सितंबर 1961 को भारतीय ज्ञानपीठ की संस्थापक अध्यक्ष श्रीमती रमा जैन ने न्यास की एक गोष्ठी में इस पुरस्कार का प्रस्ताव रखा। 2 अप्रैल 1962 को दिल्ली में भारतीय ज्ञानपीठ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संयुक्त तत्त्वावधान में देश की सभी भाषाओं के 300 मूर्धन्य विद्वानों ने एक गोष्ठी में इस विषय पर विचार किया। इस गोष्ठी के दो सत्रों की अध्यक्षता डॉ वी राघवन और श्री भगवती चरण वर्मा ने की और इसका संचालन डॉ. धर्मवीर भारती ने किया। इस गोष्ठी में काका कालेलकर, हरे कृष्ण मेहताब, निसीम इजेकिल, डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी, डॉ. मुल्कराज आनंद, सुरेंद्र मोहंती, देवेश दास, सियारामशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, उदयशंकर भट्ट, जगदीशचंद्र माथुर, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. बी.आर.बेंद्रे, जैनेंद्र कुमार, मन्मथनाथ गुप्त, लक्ष्मीचंद्र जैन आदि प्रख्यात विद्वानों ने भाग लिया। इस पुरस्कार के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए गोष्ठियाँ होती रहीं और 1965 में पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार का निर्णय लिया गया।[5]

चयन प्रक्रिया

ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेताओं की सूची पृष्ठ के दाहिनी ओर देखी जा सकती है। इस पुरस्कार के चयन प्रक्रिया जटिल है और कई महीनों तक चलती है। प्रक्रिया का आरंभ विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों, अध्यापकों, समालोचकों, प्रबुद्ध पाठकों, विश्वविद्यालयों, साहित्यिक तथा भाषायी संस्थाओं से प्रस्ताव भेजने के साथ होता है। जिस भाषा के साहित्यकार को एक बार पुरस्कार मिल जाता है उस पर अगले तीन वर्ष तक विचार नहीं किया जाता है। हर भाषा की एक ऐसी परामर्श समिति है जिसमें तीन विख्यात साहित्य-समालोचक और विद्वान् सदस्य होते हैं। इन समितियों का गठन तीन-तीन वर्ष के लिए होता है। प्राप्त प्रस्ताव संबंधित 'भाषा परामर्श समिति' द्वारा जाँचे जाते हैं। भाषा समितियों पर यह प्रतिबंध नहीं है कि वे अपना विचार विमर्ष प्राप्त प्रस्तावों तक ही सीमित रखें। उन्हें किसी भी लेखक पर विचार करने की स्वतंत्रता है। भारतीय ज्ञानपीठ, परामर्श समिति से यह अपेक्षा रखती है कि संबद्ध भाषा का कोई भी पुरस्कार योग्य साहित्यकार विचार परिधि से बाहर न रह जाए। किसी साहित्यकार पर विचार करते समय भाषा-समिति को उसके संपूर्ण कृतित्व का मूल्यांकन तो करना ही होता है, साथ ही, समसामयिक भारतीय साहित्य की पृष्ठभूमि में भी उसको परखना होता है। अट्ठाइसवें पुरस्कार के नियम में किए गए संशोधन के अनुसार, पुरस्कार वर्ष को छोड़कर पिछले बीस वर्ष की अवधि में प्रकाशित कृतियों के आधार पर लेखक का मूल्यांकन किया जाता है। भाषा परामर्श समितियों की अनुशंसाएँ प्रवर परिषद के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं।

ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार
वर्ष नाम कृति भाषा
1965 जी. शंकर कुरुप ओटक्कुष़ल (वंशी) मलयालम
1966 ताराशंकर बंधोपाध्याय गणदेवता बांग्ला
1967 के. वी. पुत्तपा श्री रामायण दर्शणम् कन्नड़
1967 उमाशंकर जोशी निशीथ गुजराती
1968 सुमित्रानंदन पंत चिदंबरा हिन्दी
1969 फ़िराक गोरखपुरी गुल-ए-नग़मा उर्दू
1970 विश्वनाथ सत्यनारायण रामायण कल्पवरिक्षमु तेलुगु
1971 विष्णु डे स्मृति शत्तो भविष्यत बांग्ला
1972 रामधारी सिंह दिनकर उर्वशी हिन्दी
1973 दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रे नकुतंति कन्नड़
1973 गोपीनाथ मोहन्ती माटीमटाल उड़िया
1974 विष्णु सखाराम खांडेकर ययाति मराठी
1975 पी.वी. अकिलानंदम चित्रपवई तमिल
1976 आशापूर्णा देवी प्रथम प्रतिश्रुति बांग्ला
1977 के. शिवराम कारंत मुक्कजिया कनसुगालु कन्नड़
1978 अज्ञेय कितनी नावों में कितनी बार हिन्दी
1979 बिरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य मृत्युंजय असमिया
1980 एस. के. पोट्टेक्काट्ट ओरु देसात्तिन्ते कथा मलयालम
1981 अमृता प्रीतम काग़ज़ ते कैनवास पंजाबी
1982 महादेवी वर्मा यामा हिन्दी
1983 मास्ति वेंकटेश अय्यंगार कन्नड़
1984 तकाजी शिवशंकरा पिल्लै मलयालम
1985 पन्नालाल पटेल गुजराती
1986 सच्चिदानंद राउतराय उड़िया
1987 विष्णु वामन शिरवाडकर कुसुमाग्रज मराठी
1988 डॉ. सी. नारायण रेड्डी तेलुगु
1989 कुर्तुलएन हैदर उर्दू
1990 वी. के. गोकाक कन्नड़
1991 सुभाष मुखोपाध्याय बांग्ला
1992 नरेश मेहता हिन्दी
1993 सीताकांत महापात्र उड़िया
1994 यू. आर. अनंतमूर्ति कन्नड़
1995 एम. टी. वासुदेव नायर मलयालम
1996 महाश्वेता देवी बांग्ला
1997 अली सरदार जाफ़री उर्दू
1998 गिरीश कर्नाड कन्नड़
1999 निर्मल वर्मा हिन्दी
1999 गुरदयाल सिंह पंजाबी
2000 इंदिरा गोस्वामी असमिया
2001 राजेन्द्र केशवलाल शाह गुजराती
2002 दण्डपाणी जयकान्तन तमिल
2003 विंदा करंदीकर मराठी
2004 रहमान राही कश्मीरी
2005 कुँवर नारायण हिन्दी
2006 रवीन्द्र केलकर कोंकणी
2006 सत्यव्रत शास्त्री संस्कृत
2007 ओ.एन.वी. कुरुप मलयालम
2008 अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार' उर्दू
2009 श्रीलाल शुक्ल हिन्दी
2010 चन्द्रशेखर कम्बार कन्नड़
2011 डॉ. प्रतिभा राय उड़िया
2012 रावुरी भारद्वाज तेलुगु
2013 केदारनाथ सिंह हिन्दी
2014 भालचंद्र नेमाडे मराठी
2015 रघुवीर चौधरी गुजराती

प्रवर परिषद में कम से कम सात और अधिक से अधिक ग्यारह ऐसे सदस्य होते हैं, जिनकी ख्याति और विश्वसनीयता उच्चकोटि की होती है। पहली प्रवर परिषद का गठन भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास-मंडल द्वारा किया गया था। इसके बाद इन सदस्यों की नियुक्ति परिषद की संस्तुति पर होती है। प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 3 वर्ष को होता है पर उसको दो बार और बढ़ाया जा सकता है। प्रवर परिषद भाषा परामर्श समितियों की संस्तुतियों का तुलनात्मक मूल्यांकन करती है। प्रवर परिषद के गहन चिंतन और पर्यालोचन के बाद ही पुरस्कार के लिए किसी साहित्यकार का अंतिम चयन होता है। भारतीय ज्ञानपीठ के न्यास मंडल का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होता।[5]

प्रवर परिषद के सदस्य

वर्तमान प्रवर परिषद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी हैं जो एक सुपरिचित विधिवेत्ता, राजनयिक, चिंतक और लेखक हैं। इससे पूर्व काका कालेलकर, डॉ. संपूर्णानंद, डॉ. बी गोपाल रेड्डी, डॉ.कर्ण सिंह, डॉ. पी.वी. नरसिंह राव, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. आर. के. दासगुप्ता, डॉ. विनायक कृष्ण गोकाक, डॉ. उमाशंकर जोशी, डॉ. मसूद हुसैन, प्रो.एम. वी. राज्याध्यक्ष, डॉ. आदित्यनाथ झा, जगदीशचंद्र माथुर सदृश विद्वान् और साहित्यकार इस परिषद के अध्यक्ष या सदस्य रह चुके हैं।[5]

वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा

ज्ञानपीठ पुरस्कार में प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी का कांस्य प्रतिमा मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति है। इस मंदिर की स्थापना विद्याव्यसनी राजा भोज ने 1035 ईस्वी में की थी। अब यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूज़ियम लंदन में है। भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसको ग्रहण करते समय शिरोभाग के पार्श्व में प्रभामंडल सम्मिलित किया है। इस प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं। हाथ में कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के प्रतीक हैं।[5]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1965 में 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि से प्रारंभ हुए इस पुरस्कार को 2005 में 7 लाख रुपए कर दिया गया।
  2. कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कार (स्रोत- वेबदुनिया हिंदी)
  3. अब 11 लाख रुपये का ज्ञानपीठ पुरस्कार (स्रोत- नवभारत टाइम्स)
  4. भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड्स (अंग्रेज़ी) (एचटीएमएल) भारतीय ज्ञानपीठ। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2007
  5. 5.0 5.1 5.2 5.3 (2005) ज्ञानपीठ पुरस्कार। नई दिल्ली, भारत: भारतीय ज्ञानपीठ। 263-1140-1। अभिगमन तिथि: 28 मई, 2007

बाह्य सूत्र

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