मालवा

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मालवा ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है जो वर्तमान में मध्य प्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था। मालव 'देवी लक्ष्मी के आवास का हिस्सा' कहलाता है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 496 मीटर है। आकरअवंति पूर्व तथा पश्चिम मालवा का संयुक्त नाम है। यह कर्क रेखा द्वारा दो हिस्सों में विभाजित है। इस क्षेत्र में इंदौर, भोपाल, ग्वालियरजबलपुर संभागों के लगभग 18 ज़िले और महाराष्ट्रराजस्थान के कुछ हिस्से शामिल हैं। इसमें प्राचीन अवंति, अकारा और दरसन के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। मालवा का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है।

नामकरण

मालवा का नाम नर्मदा - चंबल के उपजाऊ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौतिक क्षेत्र में बसने वाले लोगों के नाम पर पड़ा। मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है। मालवा का उक्त नाम 'मालव' नामक जाति के आधार पर पड़ा इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब इस जाति की सेना सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी। ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बस गये। उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया।

दशार्ण की राजधानी विदिशा थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी। कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये। इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रूप में 'मालवा' का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है।

इतिहास

मालव के समूचे इतिहास के दौरान यहाँ विभिन्न क़बीले बसते रहे, लेकिन बौद्ध काल में मौर्य वंश के शासन (238 ई.पू. तक) में यह क्षेत्र कला और वास्तुशिल्प में काफ़ी विकसित हुआ। बाद में उत्तरी मालवा पर क्षत्रपों, गुप्त राजाओं और अंततः परमार वंश का शासन हो गया। राजा भोज तृतीय ने धार और उज्जैन में राजधानी स्थापित करके इसे नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया। 1401 में दिलावर ख़ाँ ग़ोरी ने मालवा के सुल्तानों का राज्य क़ायम किया और उनका पुत्र राजधानी को धार से मांडू ले गया। मुग़ल बादशाह बाबर ने मालवा का वर्णन हिंदुस्तान के चौथे सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य के रूप में किया है। 1561 में बाज़ बहादुर के अकबर के हाथों पराजित होने के बाद यह क्षेत्र मुग़लों के अधीन एक सूबा बन गया। यह क्षेत्र अपने इतिहास के लम्बे समय तक कलह और अराजकता से घिरा रहा। दक्कन को उत्तर से जोड़ने वाले मार्ग में हांडिया, महेश्वर, मांडू और बुरहानपुर महत्त्वपूर्ण शहर थे। 1724 में पेशवा बाजीराव के नेतृत्व और सिंधिया, होल्कर और पुआर की मदद से मराठों ने मालवा में प्रवेश किया। तीसरे मराठा युद्ध (1817) में सत्ता अंग्रेज़ों के हाथों में चली गई। 1861 में मालवा को मध्य प्रांत का हिस्सा बनाया गया। 1948 और उसके बाद 1956 में औपचारिक रूप से मालवा का विभाजन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा राजस्थान राज्यों के बीच कर दिया गया।

राजनीति

  • मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से गठित यह क्षेत्र आर्यों के समय से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है।
  • यद्यपि इसकी राजनीतिक सीमायें समय-समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति एवं भाषा का विकास हुआ है।
  • भारत के अन्य राज्यों की भांति मालवा की भी राजनीतिक सीमाएँ राजनीतिक गतिविधियों व प्रशासनिक कारणों से परिवर्तित होती रही है।

भूगोल

व्यापक अर्थ में

अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं भौगोलिक स्थिति के आधार पर प्राचीन मालवा के भौगोलिक विस्तार के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। व्यापक अर्थ में यह उत्तर में ग्वालियर की दक्षिणी सीमा से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी के उत्तरी तट से संलग्न महान् विंध्य क्षेत्रों तक तथा पूर्व में विदिशा से लेकर राजपूताना की सीमा के मध्य फैले हुए भू-भाग का प्रतिनिधित्व करता है।

विज्ञान के अनुसार

भू-आकृति विज्ञान के अनुसार, इस क्षेत्र को मालवा पठार, विंध्य क्षेत्र, सतपुड़ा की पहाड़ियों और नर्मदा के मैदान में बांटा जा सकता है। जटिल भूगर्भीय संरचना वाले पठार में हर जगह विलग पहाड़ियाँ पाई जाती हैं। विंध्य क्षेत्र पूर्व की ओर ट्रैप के नीचे तक फैला हुआ है। गोंडवाना क्षेत्र सतपुड़ा के पहाड़ी इलाक़े को अपने में समेटे है, जिसके उत्तर की ओर सुस्पष्ट ढाल है। दक्कन का लावा क्षेत्र काफ़ी बड़े इलाक़े में फैला हुआ है और इसमें पटल शैलयुक्त भू-भाग है। यह लावा ऐसी भूमि पर गिरा था, जो पहले ही परिपक्वता के अंतिम चरण में पहुंच चुकी थी। आग्नेय चट्टानें (बेसाल्ट चट्टानें) मालवा क्षेत्र के बड़े हिस्से पर समरुप ढंग से स्थित हैं। इस क्षेत्र में दो अपवाह तंत्र हैं नर्मदा, ताप्तीमाही (अरब सागर अपवाह) और चंबलबेतवा, जो यमुना (बंगाल की खाड़ी अपवाह) से मिलतीं हैं। इस क्षेत्र में ऊँचाई और अक्षांशीय विविधता से प्रभावित उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु है।

अर्थव्यवस्था

यहाँ की अर्थव्यवस्था में कृषि की प्रधानता है। उज्जैन, इंदौर, भोपाल, खंडवा, रतलाम और नीमच जैसे औद्योगिक शहरों का विकास हुआ है। दक्कन के लावा के चट्टानों के लगातार अपरदन के कारण इस समूचे क्षेत्र में काली मिट्टी पाई जाती है, जिसमें काफ़ी मात्रा में पोटाश और चूना होता है, जो कपास, ज्वार, गेहूँ, गन्ने तथा मूँगफली की खेती के लिए उपयुक्त है। यह समूचा क्षेत्र पठारों पर सवाना जैसी वनस्पति और दक्षिणी हिस्से में, आमतौर पर विंध्य तथा सतपुड़ा की पहाड़ियों पर नम पर्णपाती वनों से ढका हुआ है।

उद्योग और व्यापार

यहाँ वाणिज्यिक रूप से महत्त्वपूर्ण सागौन के पेड़ पाए जाते हैं। लाख, रंगाई व चर्मशोधन का सामान, गोंद, फल, सवाई घास (मूल्यवान भारतीय रेशेदार घास) और शहद यहाँ के अन्य उत्पाद हैं।

यह क्षेत्र चंदेरी और सिरोंज में महीन मलमल और छींट वाले कपड़े के उत्पादन के लिए विख्यात है। यहाँ के उद्योगो में सूती वस्त्र निर्माण, कपास की ओटाई और हथकरघा बुनाई से जुड़े उद्योग शामिल हैं।

सीमेंट, ईंट व चीनी मिट्टी के कारख़ाने, चर्मशोधन, शालाएं, हड्डियों को पीसने के कारख़ाने, रेशम मिल, आरा मिल, मशीनों के औज़ार, औषधि व रसायन निर्माण और वन आधारित उद्योग यहाँ हैं। लघु और कुटीर उद्योग क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

खनिज

मालवा क्षेत्र में कई प्रकार के खनिज भंडारा हैं, जिनमें कोयला, मैंगनीज, अभ्रक, लौह, अयस्क, तांबा, बॉक्साइट, एस्बेस्टस, चूना-पत्थर, चिकनी मिट्टी, कैल्साइट, सेलखड़ी, सीसा, जस्ता व ग्रेफ़ाइट शामिल हैं। इनमें से अधिकांश का, जहाँ तक संभव है, वाणिज्यिक दोहन किया जा रहा है।

कृषि

मुख्य मौसम ख़्ररीफ़ है, जिसमें ज्वार, गेहूँ, मक्का, चना, अरहर, मूंग, कपास, गांजा, ज्वार और बाजरा की खेती होती है। कृषि आधारित महत्त्वपूर्ण उद्योगों में चीनी, चावल, तेल, दाल, और आटे की मिलें प्रमुख हैं।

परिवहन

यह क्षेत्र रेल और सड़क मार्ग द्वारा भलीभांति जुड़ा हुआ है। यह दिल्ली-चेन्नई, दिल्ली-मुंबई और कोलकाता-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। मुंबई से इलाहाबाद और हावड़ा जाने वाली मुख्य रेल लाइन यहाँ से गुजरती है। इटारसी, सागर, नागदा और रतलाम यहाँ के महत्त्वपूर्ण स्थान हैं।

मालवा चित्रकला

  • मालवा शैली की चित्रकला में वास्तुशिल्पीय दृश्यों की ओर झुकाव, सावधानीपूर्वक तैयार की गयी सपाट किंतु सुव्यवस्थित संरचना, श्रेष्ठ प्रारूपण, शोभा हेतु प्राकृतिक दृश्यों का सृजन तथा रूपों को उभारने के लिए एक रंग के धब्बों का सुनियोजित उपयोग दर्शनीय है।
  • स्त्री-पुरुष दोनों का चित्रण तंवगी रूप में लघुमुख एवं आयतलोचनमय रूप में किया गया है। माधोदास रचित 'रंगमाला' के दृश्य इस शैली के अनुपम उदाहरण हैं।
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