कर्नाटक संगीत

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कर्नाटक संगीत (संस्कृत कर्नाटक सङ्गीतं) शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली, जो उत्तरी भारत की हिन्दुस्तानी संगीत शैली से काफ़ी भिन्न है। यह संगीत अधिकांशत: भक्ति संगीत के रूप में होता है और अधिकतर रचनाएँ हिन्दू देवी-देवताओं को संबोधित होती हैं। इसके अतिरिक्त कर्नाटक संगीत का कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है। जैसा कि आमतौर पर भारतीय संगीत में होता है। कर्नाटक संगीत के भी दो मुख्य तत्व 'राग' और 'ताल' होते हैं।

  • यह संगीत दक्षिण भारत (आमतौर पर आंध्र प्रदेश राज्य के शहर हैदराबाद के दक्षिण में) का संगीत है। यह प्राचीन हिन्दू परंपरा से विकसित हुआ और अरबी एवं इस्लामी प्रभाव से अपेक्षाकृत अप्रभावित रहा।[1]
  • उत्तर भारत में इस्लामी विजय के कारण इस संगीत ने 12वीं सदी के अंत एवं 13वीं सदी के शुरू से उत्तर भारत के हिन्दुस्तानी संगीत को कुछ विशिष्टताएं दीं।
  • उत्तरी शैली के विपरीत कर्नाटक संगीत ज़्यादा स्वरोन्मुखी है। जब केवल वाद्य ही बज रहे होते हैं, उन्हें स्वर संगीत की विशेषताएं देते हुए कंठ-गायन के समकक्ष उतार-चढ़ाव और विस्तार के साथ कुछ-कुछ गायकी की तरह बजाया जाता है।
  • कर्नाटक संगीत में उत्तर भारतीय संगीत की तुलना में कम वाद्य प्रयुक्त किए जाते हैं और कोई निश्चित वाद्य नहीं होते।
  • 'राग' और 'ताल' के मूल सिद्धांत दक्षिण और उत्तर में एक ही हैं, लेकिन प्रत्येक संगीत परंपरा में वास्तविक रागों एवं तालों का अपना भंडार है और उनकी शैलियों में भी कई भिन्नताएं हैं।
  • अपनी अधिक समांगी भारतीय परंपरा के साथ कर्नाटक संगीत ने रागों और तालों की कहीं ज़्यादा व्यवस्थित व समरूपीय पद्धतियां विकसित की हैं।
  • अपेक्षाकृत बहुरंगी हिन्दुस्तानी संगीत परंपराओं की तुलना में कई श्रोताओं को दक्षिण के संगीत की प्रकृति संयत और बौद्धिक जान पड़ती है। आज कर्नाटक संगीत के प्रमुख केंद्रों में तमिलनाडु, कर्नाटक (भूतपूर्व मैसूर), आंध्र प्रदेश और केरल आते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-1 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 318 |

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