बड़ कथा

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'कथासरित्सागर' गुणाढ्‌य कृत बड़ कथा (बृहत्कथा) पर आधृत है, जो पैशाची भाषा में थी। सोमदेव ने स्वयं कथासरित्सागर के आरंभ में कहा है कि- "मैं बृहत्कथा के सार का संग्रह कर रहा हूँ।"

रचना काल

बड़ कथा की रचना गुणाढ्य ने सातवाहन राजाओं के शासन काल में की थी, जिनका समय ईसा की प्रथम द्वितीय शती के लगभग माना जाता है। आंध्र-सातवाहन युग में भारतीय व्यापार उन्नति के चरम शिखर पर था। स्थल तथा जलमार्गों पर अनेक सार्थवाह नौकाएँ और पोत समूह दिन-रात चलते थे। अत: व्यापारियों और उनके सहकर्मियों के मनोरंजनार्थ, देश-देशांतर-भ्रमण में प्राप्त अनुभवों के आधार पर अनेक कथाओं की रचना स्वाभाविक थी। गुणाढ्य ने सार्थों, नाविकों और सांयात्रिक व्यापारियों में प्रचलित विविध कथाओं को अपनी विलक्षण प्रतिभा से गुंफित कर, बड़ कथा के रूप में प्रस्तुत कर दिया था।

प्राप्त रूपान्तर

मूल 'बड़ कथा' अब प्राप्य नहीं है, परंतु इसके जो दो रूपांतर बने, उनमें चार अब तक प्राप्त हैं। इनमें सबसे पुराना बुधस्वामी कृत 'बृहत्कथा श्लोक संग्रह' है। यह संस्कृत में है और इसका प्रणयन, एक मत से, लगभग ईसा की पाँचवीं शती में तथा दूसरे मत से, आठवीं अथवा नवीं शती में हुआ। मूलत: इसमें 28 सर्ग तथा 4,539 श्लोक थे, किंतु अब यह खंडश: प्राप्त है। इसके कर्ता बुधस्वामी ने 'बृहत्कथा' को गुप्तकालीन स्वर्णयुग की संस्कृति के अनुरूप ढालने का यत्न किया है। 'बृहत्कथा श्लोक संग्रह' को विद्धान्‌ बृहत्कथा की नेपाली वाचना मानते हैं, किंतु इसका केवल हस्तलेख ही नेपाल में मिला है, अन्य कोई नेपाली प्रभाव इसमें दिखाई नहीं पड़ता।

विषयवस्तु

'बृहत्कथा' के मूल रूप का अनुमान लगाने के लिए संघदासगणि कृत 'वसुदेव हिंडी' का प्राप्त होना महत्वपूर्ण घटना है। इसकी रचना भी 'बृहत्कथा श्लोक संग्रह' के प्राय: साथ ही या संभवत: 100 वर्ष के भीतर हुई। 'वसुदेव हिंड्डी' का आधार भी यद्यपि बृहत्कथा ही है, तो भी ग्रंथ के ठाट और उद्देश्य में काफ़ी फेरबदल कर दिया गया है। बृहत्कथा मात्र लौकिक कामकथा थी, जिसमें वत्सराज उदयन के पुत्र नरवाहनदत्त के विभिन्न विवाहों के आख्यान थे, लेकिन वसुदेव हिंडी में जैन धर्म संबंधी अनेक प्रसंग सम्मिलित करके, उसे धर्मकथा का रूप दे दिया गया है। इतना ही नहीं, इसका नायक नरवाहनदत्त न होकर, अंधक वृष्णि वंश के प्रसिद्ध पुरुष वसुदेव हैं। 'हिंडी' शब्द का अर्थ पर्यटन अथवा परिभ्रमण है। वसुदेव हिंडी में 29 लंबक हैं और महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में गद्य शैली के माध्यम से लगभग 11,000 श्लोक प्रमाण की सामग्री में वसुदेव के 100 वर्ष के परिभ्रमण का वृत्तांत है, जिसमें वे 29 विवाह करते हैं। सब कुछ मिलाकर लगता है कि वसुदेव हिंडी बृहत्कथा का पर्याप्त प्राचीन रूपांतर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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