बसीन

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बसीन पश्चिम समुद्र तट पर दमन के निकट स्थित है। बसीन का यह क़िला समुद्र तट के निकट है और कई छोटे-छोटे बन्दरगाह क़िले स्थित हैं। इससे बसीन का काफ़ी महत्त्व था।

इतिहास

बसीन को गुजरात के सुल्तान बहादुरशाह ने 1534 ई. में पुर्तग़ालियों के हाथों बेच दिया था। इसके बाद 200 वर्षों तक बसीन पुर्तग़ालियों के पास रहा। इस काल में बसीन को पुर्तग़ालियों ने काफ़ी वैभवपूर्ण बना दिया किंतु यहाँ के निवासियों पर उनके अत्याचार बढ़ते गये।

अधिकार

मराठों ने 16 मई, 1739 में बसीन पर अधिकार कर लिया। पुर्तग़ालियों को सन्धि के लिये बाध्य होना पड़ा। सन्धि के अंतर्गत पुर्तग़ालियों द्वारा मराठों को कई स्थानों के साथ थाना और बसीन जैसे प्रमुख स्थान भी सौंपने पड़े। इस विजय से अंग्रेज़ भी भयभीत हो गये। वस्तुतः बसीन पुर्तग़ालियों के विरुद्ध भारतीयों के स्वतंत्रता संग्राम का पहला स्मारक है।

महत्त्वपूर्ण घटना

कमज़ोर पेशवा बाजीराव द्वितीय ने 31 दिसम्बर, 1802 को अंग्रेज़ों से बसीन की सन्धि कर ली। बसीन की सन्धि भारतीय इतिहास की यह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।

विश्वासघात

इस सन्धि के द्वारा पेशवा ने मराठों के सम्मान एवं स्वतंत्रता को अंग्रेज़ों के हाथों बेच दिया, जिससे मराठा शाक्ति को काफ़ी धक्का लगा। इस प्रकार यह सन्धि अंग्रेज़ों के लिए बहुत लाभप्रद थी।

प्राचीन इमारतें

इस सन्धि में एक दोष यह था कि अब अंग्रेज़ों का मराठों से युद्ध प्रायः निश्चित हो गया था, क्योंकि वेलेजली ने मराठों के आंतरिक झगड़ों को तय करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया था।बसीन में पुर्तग़ालियों द्वारा बनाई गई अनेक इमारतें, विशेषतः गिरजाघर यहाँ आज भी विद्यमान हैं।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ