रसखान- लक्षण लक्षणा

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  • रसखान के काव्य में जहां वाच्यार्थ की सिद्धि के लिए वाक्यार्थ अपने को छोड़ कर केवल लक्ष्यार्थ को सूचित करे, यहाँ लक्षण लक्षणा होती है।[1]
  • पै रसखानि वही मेरो साधन, और त्रिलोक रहौ कि नसावौ।[2] यहाँ त्रिलोक से लक्ष्य शेष जो कुछ भी है उस ऐश्वर्य की मुझे कामना नहीं।
  • यहाँ कार्यकारक सम्बन्ध से लक्षण लक्षणा है।
  • माँगत दान मैं आन लियो सु कियौ निलजी रस जोबन खायौ।[3] 'रस जोबन' खाने की वस्तु नहीं है।
  • इसका लक्ष्यार्थ रति क्रीड़ा से है।
  • काम रति के आनन्द की व्यंजना की गई है।
  • वाच्यार्थ के त्याग से यहाँ लक्षणलक्षणा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काव्य दर्पण, पृ0 25
  2. सुजान रसखान, 5
  3. सुजान रसखान, 43

बाहरी कड़ियाँ

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