रसखान- लक्षण लक्षणा
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
- रसखान के काव्य में जहां वाच्यार्थ की सिद्धि के लिए वाक्यार्थ अपने को छोड़ कर केवल लक्ष्यार्थ को सूचित करे, यहाँ लक्षण लक्षणा होती है।[1]
- पै रसखानि वही मेरो साधन, और त्रिलोक रहौ कि नसावौ।[2] यहाँ त्रिलोक से लक्ष्य शेष जो कुछ भी है उस ऐश्वर्य की मुझे कामना नहीं।
- यहाँ कार्यकारक सम्बन्ध से लक्षण लक्षणा है।
- माँगत दान मैं आन लियो सु कियौ निलजी रस जोबन खायौ।[3] 'रस जोबन' खाने की वस्तु नहीं है।
- इसका लक्ष्यार्थ रति क्रीड़ा से है।
- काम रति के आनन्द की व्यंजना की गई है।
- वाच्यार्थ के त्याग से यहाँ लक्षणलक्षणा है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख