स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

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स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी
स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी (अभिकल्पित चित्र)
विवरण स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी गुजरात सरकार द्वारा प्रस्तावित भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री तथा प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्ल्भभाई पटेल का स्मारक है।
राज्य गुजरात
स्थान साधू बेट, सरदार सरोवर बांध के निकट, नर्मदा ज़िला
भौगोलिक निर्देशांक 21° 50′ 16″ उत्तर, 73° 43′ 8″ पूर्व
ऊँचाई 182 मीटर (597 फीट)
प्रकार प्रतिमा
सामग्री इस्पात, सीमेंट, कंक्रीटकांस्य का आवरण
शिलान्यास 31 अक्टूबर, 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया।
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स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी (अंग्रेज़ी: Statue of Unity) 182 मीटर (597 फीट) ऊँचा गुजरात सरकार द्वारा प्रस्तावित भारत के प्रथम उप प्रधानमन्त्री तथा प्रथम गृहमन्त्री सरदार वल्ल्भभाई पटेल का स्मारक है। 31 अक्टूबर, 2013 को सरदार वल्लभ भाई पटेल की 137वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार पटेल के स्मारक का शिलान्यास किया। इसका नाम 'एकता की मूर्ति' (स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी) रखा गया है। यह मूर्ति 'स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी' (93 मीटर) से दुगनी ऊँचाई वाली बनाई जाएगी। इस प्रतिमा को एक छोटे चट्टानी द्वीप पर स्थापित किया जाएगा, जो केवाड़िया में सरदार सरोवर बांध के सामने नर्मदा नदी के मध्य में है। सरदार वल्लभ भाई पटेल की यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। इसका निर्माण काल 5 वर्ष अनुमानित है। वर्तमान में विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा चीन की स्प्रिंग टेम्पल बुद्धा (153 मीटर) है जो अमेरिका की ‘स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी’ (93 मीटर), रूस की ‘द मदरलैंड काल्स’ (85 मीटर) और ब्राज़ील स्थित ‘क्राइस्ट द रेडीमर’ (39.6 मीटर) से ऊंची है। उल्लेखनीय है कि दुनिया की सबसे लंबी बिल्डिंग दुबई स्थित ‘बुर्ज खलीफ़ा (828 मीटर) है।

क्यों ज़रूरी है स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

31 अक्टूबर, 2013 को नरेन्द्र मोदी द्वारा दिये गये उद्बोधनों का कुछ सार संक्षेप उनकी सरकार की अवधारणा और संकल्प को प्रकट करता है। 1930 में प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा का निधन हुआ। उन्होंने उस समय एक पत्र लिखा था कि मेरी अस्थियां भारत की स्वतंत्रता के बाद ही भारत ले जायी जाए। तब से अस्थियां जेनेवा में सुरक्षित रखी थीं। सन् 2002 तक उन अस्थियों को कोई भी भारत नहीं लाया। किंतु 2003 में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से वार्ता की और गुजरात के कच्छ में जन्मे श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां लाकर इंडिया हाउस जैसा उनका स्मारक कच्छ में बनवाया। श्यामजी कृष्ण वर्मा मूलतः साम्यवादी थे, जनसंघी नहीं थे। गुजरात राज्य की राजधानी है गांधी नगर, किन्तु महात्मा गांधी के नाम पर कुछ भी नहीं था। नरेन्द मोदी ने गुजरात के गांव-गांव से पवित्र जल और माटी मंगवाकर महात्मा मंदिर की नींव में डालते हुए गांधीजी का स्मारक बनवाने की आधार शिला कई वर्ष पूर्व ही रखी थी, वर्तमान में उस भव्य स्मारक को हम देख सकते हैं जबकि उसे भव्यतम बनाया जाना अभी शेष है। महात्मा गांधी भाजपा के नहीं थे, संघी भी नहीं थे किंतु थे देश के सच्चे सपूत। भारत में ताजमहल, फ्रांस का एफिल टावर, मिस्र के पिरैमिड, अमेरिका का 'स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी' उनके इतिहास की गहराई के साथ-साथ वहां के कौशल को प्रकट करती है। पाकिस्तान अगर 1857 की विरासत को मानता तो अपने बच्चों को मिलकर चलने की शिक्षा देता। क्योंकि 1857 का क्रांति महासमर जिन्होंने मिलकर लड़ा वे पुरखे भी तो सांझी विरासत का हिस्सा थे। सरदार पटेल किसी दल के नहीं हैं, उनके जीवन की ऊंचाई भारत के गौरवगान से जुड़ी है। सरदार पटेल न होते तो भारत खंड-खंड हो गया होता। उन्होंने जो काम किया वह अनोखा काम था। जो राजे-रजवाड़े थोड़ी सी बात पर युद्ध कर लेते थे, उन्हें एक सूत्र में बांध दिया। ये राजे रजवाड़े सभी सम्प्रदायों को मानने वाले थे। सरदार पटेल एकता की मूर्ति थे तथा सच्चे अर्थों में सेकुलर नेता थे। उनकी सेकुलरिज्म कभी सोमनाथ मंदिर के निर्माण के नाम पर आड़े नहीं आती थी। सरदार पटेल की प्रतिमा भारत के इतिहास से भारत के युवाओं को जोड़ेगी तथा उनको राष्ट्रीय जीवन मूल्यों की याद दिलायेगी, ग़ुलामी के साये से बाहर निकालेगी, तथा विश्व में हमारी ताक़त को प्रकट करेगी। स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी हिन्दुस्तान के हर व्यक्ति के स्वाभिमान को जगाने की कोशिश करेगी। जो अगली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का काम करेगी।

भारत का सपना

गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गठित 'सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट' ने तय किया है कि जितना ऊंचा सरदार पटेल का काम-उतनी ऊंची उनकी प्रतिमा। ये मूर्ति होगी तो गुजरात की धरा पर परन्तु इसमें सपना होगा पूरे देश का। स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी का निर्माण गुजरात सरकार अपनी तिजोरी को खोलकर करने के स्थान पर जन सहयोग से करना चाहती है। गुजरात सरकार चाहती है कि यह मूर्ति तो सरदार साहब की बने किंतु इसमें भारत का हर नागरिक स्वयं को देखे, इसलिये-

  • राजनैतिक छुआछुत से ऊपर उठकर सभी का सहयोग लेने की योजना।
  • गुजरात राज्य के मंत्री अथवा मुख्यमंत्री सभी राज्य सरकारों से मिलकर सहयोग मांगेंगे।
  • भारत के 7 लाख गांवों से लोहे का एक वह टुकड़ा लिया जायेगा जिसका किसान से नाता हो और जिसका प्रयोग किसी ग़रीब का पेट भरने के लिए खेती में किया गया हो।
  • भारत के सभी ग्रामों की पवित्र मिट्टी, एक विशेष प्रकार की शीशी में गांव का नाम लिखकर एकत्र की जायेगी, जिसका आधा हिस्सा स्मारक की नींव में डाला जायेगा तथा आधी मिट्टी से भरी शीशियां तथा उस ग्राम की एक पंक्ति में लिखी विशेषता संग्रहालय में सुरक्षित रखी जायेगी। जिसको जाकर जब भी ग्रामवासी देखेंगे, तब आत्म गौरव जगेगा।
  • भारत की ग्राम पंचायतों के प्रधानों का एक फोटो मांगा गया है जो आनलाईन भी भेजा जा सकता है उसके लिए सीधे पत्र भेजा जा रहा है। संग्रहालय में विश्व का सबसे बड़ा फोटो कोलाज बनाकर लगाया जायेगा। जिसे देखकर प्रत्येक पंचायत को अपनापन जगेगा।
  • प्रत्येक ग्राम/कस्बे से एक 'सुराज पिटीशन' रूपी बैनर पर आम नागरिकों के हस्ताक्षर संग्रहीत किये जायेंगे जिसे एक साथ जोड़कर विश्व का सबसे बड़ा हस्ताक्षर युक्त सुराज पेटीशन तैयार होगा जो वहीं पर संग्रहालय में सुरक्षित रूप से लगाकर आम जनों को आत्म स्वाभिमान की याद दिलायेगा।
  • 15 दिसम्बर को सरदार की पुण्यतिथि पर सम्पूर्ण भारत के सभी बड़े नगरों में 'रन ऑफ़ यूनिटी' (एकता की दौड़) का आयोजन करके एकता को सुदृढ़ बनाते हुए देशव्यापी अभियान का प्रारंभ होगा जो 28 फ़रवरी तक चलेगा।
  • सभी संगठनों, शिक्षण संस्थानों, एनजीओ, श्रद्धा आधारित संगठनों, गुजराती समाज तथा विशेष रूप से युवाओं को जोड़कर समस्त जाति, पंथ मजहब, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक नेताओं से इसमें सहयोग की अपील, सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट ने की है। इस ट्रस्ट द्वारा संचालित 'स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी लौह संग्रह सहयोग समिति' प्रदेश, क्षेत्र तथा ज़िला स्तर पर गठित की जायेगी, जो समस्त आयोजनों का संयोजन करेगी। समिति का गठन करने संबंधी जानकारी अलग पत्रक में दी जा रही है।[1]

प्रस्तावित मूर्ति की विशेषताएँ

  • 182 मीटर अर्थात 597 फीट ऊंची विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा गुजरात के नर्मदा ज़िले में सरदार सरोवर बांध से 3.5 किलोमीटर दक्षिण में गरूडेश्वर और केवडि़या नगर के निकट विन्ध्य पर्वत तथा सप्तपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं का सीना चीर कर बहने वाली नर्मदा नदी की गोद के मध्य साधु द्वीप पर स्थापित होगी।
  • 20,000 वर्ग मीटर में फैला यह परियोजना स्थल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, भारत के एकीकरण में सरदार के योगदान को जीवंत करती विश्व स्तरीय प्रदर्शनी, संग्रहालय, स्मारक उद्वान, साधु द्वीप को मुख्यभूमि से जोड़ता सेतु मुलाकाती केन्द्र होटल एवं कन्वेंशन सेंटर तथा पार्किंग से युक्त होगा।
  • कांस्य आवरण से युक्त इस प्रतिमा को देखने के लिए 500 फिट की ऊंचाई पर एक अवलोकन गैलरी बनेगी जिसमें खड़े होकर एक साथ 200 लोग सरदार सरोवर बांध, गरूड़ेश्वर जलाशय, नर्मदा नदी, पर्वतमाला और अरब सागर सहित इस प्रतिमा का अवलोकन कर सकेंगे। इस अवलोकन गैलरी तक जाने के लिए हाई स्पीड़ लिफ्ट होगी तथा नीचे की मंजिलों में संग्रहालय, स्मारक आदि बनेगा।
  • 3 किलोमीटर नाव की सवारी करके भी लोग प्रतिमा स्थल तक आ सकते हैं। यहीं पर अनुसंधान संबंधी कई कार्यों की योजना भी दूसरे चरण में होगी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्मा, साकेन्द्र प्रताप। क्यों ज़रूरी है स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी (हिन्दी) प्रभा साक्षी। अभिगमन तिथि: 18 मई, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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