"शंबूक": अवतरणों में अंतर

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एक बार एक [[ब्राह्मण]] [[राम]] के द्वार पर पहुँचा। उसके हाथ में उसके पुत्र का शव था। वह रो-रोककर कह रहा था कि, "राम के राज्य में मेरा बेटा अकालमृत्यु को प्राप्त हुआ। निश्चय ही कोई पाप हो रहा है।" राम बहुत चिंतित थे। तभी [[नारद]] ने आकर बतलया-"हे राम! [[सतयुग]] में केवल ब्राह्मण तपस्या करते थे। [[त्रेता युग]] में दृढ़ काया वाले [[क्षत्रिय]] भी तपस्या करने लगे। उस समय अधर्म ने अपना एक पांव पृथ्वी पर रखा था। सतयुग में लोगों की आयु अपरिमित थी, त्रेता युग में वह परिमित हो गई। [[द्वापर युग]] में अधर्म ने अपना दूसरा पांव भी पृथ्वी पर रखा। इससे वैश्य भी तपस्या करने लगे। द्वापर में शूद्रों का [[यज्ञ]] करना वर्जित है। निश्चय ही इस समय कोई [[शूद्र]] तपस्या कर रहा है, अत: इस बालक की अकालमृत्यु हो गई।" यह सुनकर शव की सुरक्षा का प्रबन्ध कर राम ने [[पुष्पक विमान]] का स्मरण किया, फिर उसमें बैठकर वे चारों दिशाओं में तपस्यारत शूद्र को खोजने लगे। दक्षिण में शैवल नाम के एक [[पर्वत]] पर सरोवर के किनारे एक व्यक्ति उलटा लटककर तपस्या कर रहा था। राम ने उसका परिचय पूछा। उसका नाम '''शंबूक''' था। वह शूद्र योनि में जन्म लेकर भी देवलोक प्राप्ति की इच्छा से तप कर रहा था। राम ने उसे मार डाला और ब्राह्मण का पुत्र जीवित हो उठा।<ref>वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, 73-76</ref>
'''शंबूक''' पौराणिक कथा के अनुसार एक [[शूद्र]] व्यक्ति, जिसने देवत्व एवं स्वर्ग प्राप्ति के लिए विंध्याचल के अंगभूत शैवल नामक [[पर्वत]] पर घोर तप किया था। किंतु शूद्र धर्म त्याग कर तप करने से एक [[ब्राह्मण]] पुत्र की असामयिक मृत्य हो गई। अत: [[राम]] ने उसका वध किया; तब ब्राह्मणपुत्र जीवित हो गया।<ref>वा. श., उ., 75; महा. शां. 149-62</ref>
==कथा==
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शंबूक पौराणिक कथा के अनुसार एक शूद्र व्यक्ति, जिसने देवत्व एवं स्वर्ग प्राप्ति के लिए विंध्याचल के अंगभूत शैवल नामक पर्वत पर घोर तप किया था। किंतु शूद्र धर्म त्याग कर तप करने से एक ब्राह्मण पुत्र की असामयिक मृत्य हो गई। अत: राम ने उसका वध किया; तब ब्राह्मणपुत्र जीवित हो गया।[1]

कथा

एक बार एक ब्राह्मण राम के द्वार पर पहुँचा। उसके हाथ में उसके पुत्र का शव था। वह रो-रोककर कह रहा था कि- "राम के राज्य में मेरा बेटा अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ है। निश्चय ही कोई पाप हो रहा है।" राम बहुत चिंतित थे। तभी नारद ने आकर बतलाया- "हे राम! सतयुग में केवल ब्राह्मण तपस्या करते थे। त्रेता युग में दृढ़ काया वाले क्षत्रिय भी तपस्या करने लगे। उस समय अधर्म ने अपना एक पांव पृथ्वी पर रखा था। सतयुग में लोगों की आयु अपरिमित थी, त्रेता युग में वह परिमित हो गई। द्वापर युग में अधर्म ने अपना दूसरा पांव भी पृथ्वी पर रखा। इससे वैश्य भी तपस्या करने लगे। द्वापर में शूद्रों का यज्ञ करना वर्जित है। निश्चय ही इस समय कोई शूद्र तपस्या कर रहा है, अत: इस बालक की अकाल मृत्यु हो गई।"[2]

नारद के मुख से यह सुनकर शव की सुरक्षा का प्रबन्ध कर राम ने पुष्पक विमान का स्मरण किया, फिर उसमें बैठकर वे चारों दिशाओं में तपस्यारत शूद्र को खोजने लगे। दक्षिण में शैवल नाम के एक पर्वत पर सरोवर के किनारे एक व्यक्ति उलटा लटककर तपस्या कर रहा था। राम ने उसका परिचय पूछा। उसका नाम शंबूक था। वह शूद्र योनि में जन्म लेकर भी देवलोक प्राप्ति की इच्छा से तप कर रहा था। राम ने उसे मार डाला और ब्राह्मण का पुत्र जीवित हो उठा।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वा. श., उ., 75; महा. शां. 149-62
  2. विद्यावाचस्पति, डॉक्टर उषा पुरी भारतीय मिथक कोश (हिन्दी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 302।
  3. वाल्मीकि रामायण, उत्तर कांड, 73-76

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