"ताशकंद समझौता": अवतरणों में अंतर
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'''ताशकंद समझौता''' [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] के बीच [[11 जनवरी]], [[1966]] को हुआ एक शांति समझौता था। इस समझौते के अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से तय करेंगे। यह समझौता [[भारत]] के [[प्रधानमंत्री]] [[लाल बहादुर शास्त्री]] तथा [[पाकिस्तान]] के प्रधानमंत्री अयूब ख़ाँ की लम्बी वार्ता के उपरान्त 11 जनवरी, 1966 ई. को ताशकंद, [[रूस]] में हुआ। | |||
==समझौते का प्रारूप== | |||
ताशकंद समझौता संयुक्त रूप से प्रकाशित हुआ था। 'ताशकंद सम्मेलन' सोवियत रूस के प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित किया गया था। इसमें कहा गया था कि- | |||
#भारत और पाकिस्तान शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने-अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से तय करेंगे। | |||
#दोनों देश [[25 फ़रवरी]], 1966 तक अपनी सेनाएँ [[5 अगस्त]], [[1965]] की सीमा रेखा पर पीछे हटा लेंगे। | |||
#इन दोनों देशों के बीच आपसी हित के मामलों में शिखर वार्ताएँ तथा अन्य स्तरों पर वार्ताएँ जारी रहेंगी। | |||
#भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित होंगे। | |||
#दोनों देशों के बीच राजनयिक सम्बन्ध फिर से स्थापित कर दिये जाएँगे। | |||
#एक-दूसरे के बीच में प्रचार के कार्य को फिर से सुचारू कर दिया जाएगा। | |||
#आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों तथा संचार सम्बन्धों की फिर से स्थापना तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान फिर से शुरू करने पर विचार किया जाएगा। | |||
#ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाएँगी कि लोगों का निर्गमन बंद हो। | |||
#शरणार्थियों की समस्याओं तथा अवैध प्रवासी प्रश्न पर विचार-विमर्श जारी रखा जाएगा तथा हाल के संघर्ष में ज़ब्त की गई एक दूसरे की सम्पत्ति को लौटाने के प्रश्न पर विचार किया जाएगा। | |||
==प्रभाव== | |||
इस समझौते के क्रियान्वयन के फलस्वरूप दोनों पक्षों की सेनाएँ उस सीमा रेखा पर वापस लौट गईं, जहाँ पर वे युद्ध के पूर्व में तैनात थी। परन्तु इस घोषणा से [[भारत]]-[[पाकिस्तान]] के दीर्घकालीन सम्बन्धों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। फिर भी ताशकंद घोषणा इस कारण से याद रखी जाएगी कि इस पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटों बाद भारत के [[प्रधानमंत्री]] लाल बहादुर शास्त्री की दु:खद मृत्यु हो गई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= भारतीय इतिहास कोश|लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=188 |url=}}</ref> | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | |||
*[http://books.google.co.in/books?id=1jEHxEuRR5MC&pg=PA55&lpg=PA55&dq=%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6+%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3%E0%A4%BE&source=bl&ots=9BhOnLLxFZ&sig=RspNZoR9geBmgl4kPmccItqbDmU&hl=en&ei=KuGeTpHJN4PIrQeFw9SZCQ&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=3&ved=0CCEQ6AEwAg#v=onepage&q=%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6%20%E0%A4%98%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3%E0%A4%BE&f=false BHARTIYA LOKTANTRA OR HAMARE RASHTRAPATI (गूगल बुक्स) ] | |||
*[http://www.kashmir-information.com/LegalDocs/Tashkent.html Tashkent Declaration] | |||
==संबंधित लेख== | |||
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14:29, 13 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 11 जनवरी, 1966 को हुआ एक शांति समझौता था। इस समझौते के अनुसार यह तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से तय करेंगे। यह समझौता भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब ख़ाँ की लम्बी वार्ता के उपरान्त 11 जनवरी, 1966 ई. को ताशकंद, रूस में हुआ।
समझौते का प्रारूप
ताशकंद समझौता संयुक्त रूप से प्रकाशित हुआ था। 'ताशकंद सम्मेलन' सोवियत रूस के प्रधानमंत्री द्वारा आयोजित किया गया था। इसमें कहा गया था कि-
- भारत और पाकिस्तान शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने-अपने झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से तय करेंगे।
- दोनों देश 25 फ़रवरी, 1966 तक अपनी सेनाएँ 5 अगस्त, 1965 की सीमा रेखा पर पीछे हटा लेंगे।
- इन दोनों देशों के बीच आपसी हित के मामलों में शिखर वार्ताएँ तथा अन्य स्तरों पर वार्ताएँ जारी रहेंगी।
- भारत और पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर आधारित होंगे।
- दोनों देशों के बीच राजनयिक सम्बन्ध फिर से स्थापित कर दिये जाएँगे।
- एक-दूसरे के बीच में प्रचार के कार्य को फिर से सुचारू कर दिया जाएगा।
- आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्धों तथा संचार सम्बन्धों की फिर से स्थापना तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान फिर से शुरू करने पर विचार किया जाएगा।
- ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाएँगी कि लोगों का निर्गमन बंद हो।
- शरणार्थियों की समस्याओं तथा अवैध प्रवासी प्रश्न पर विचार-विमर्श जारी रखा जाएगा तथा हाल के संघर्ष में ज़ब्त की गई एक दूसरे की सम्पत्ति को लौटाने के प्रश्न पर विचार किया जाएगा।
प्रभाव
इस समझौते के क्रियान्वयन के फलस्वरूप दोनों पक्षों की सेनाएँ उस सीमा रेखा पर वापस लौट गईं, जहाँ पर वे युद्ध के पूर्व में तैनात थी। परन्तु इस घोषणा से भारत-पाकिस्तान के दीर्घकालीन सम्बन्धों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। फिर भी ताशकंद घोषणा इस कारण से याद रखी जाएगी कि इस पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही घंटों बाद भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की दु:खद मृत्यु हो गई।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 188 |
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख