"प्रयोग:गोविन्द4": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 256 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
हमारे स्कूलों और कॉलेजों में जिस तत्परता से फीस वसूल की जाती है, शायद मालगुजारी भी उतनी सख्ती से नहीं वसूल की जाती। महीने में एक दिन नियत कर दिया जाता है। उस दिन फीस का दाखिला होना अनिवार्य है। या तो फीस दीजिए, या नाम कटवाइए, या जब तक फीस न दाखिल हो, रोज कुछ जुर्माना दीजिए। कहीं-कहीं ऐसा भी नियम है कि उसी दिन फीस दुगुनी कर दी जाती है, और किसी दूसरी तारीख को दुगुनी फीस न दी तो नाम कट जाता है। काशी के क्वीन्स कॉलेज में यही नियम था। सातवीं तारीख को फीस न दो, तो इक्कीसवीं तारीख को दुगुनी फीस देनी पड़ती थी, या नाम कट जाता था। ऐसे कठोर नियमों का उद्देश्य इसके सिवा और क्या हो सकता था, कि गरीबों के लड़के स्कूल छोड़कर भाग जाएं- वही हृदयहीन दफ्तरी शासन, जो अन्य विभागों में है, हमारे शिक्षालयों में भी है। वह किसी के साथ रियायत नहीं करता। चाहे जहां से लाओ, कर्ज लो, गहने गिरवी रखो, लोटा-थाली बेचो, चोरी करो, मगर फीस जरूर दो, नहीं दूनी फीस देनी पड़ेगी, या नाम कट जाएगा। जमीन और जायदाद के कर वसूल करने में भी कुछ रियायत की जाती है। हमारे शिक्षालयों में नर्मी को घुसने ही नहीं दिया जाता। वहां स्थायी रूप से मार्शल-लॉ का व्यवहार होता है। कचहरी में पैसे का राज है, हमारे स्कूलों में भी पैसे का राज है, उससे कहीं कठोर, कहीं निर्दय। देर में आइए तो जुर्माना न आइए तो जुर्माना सबक न याद हो तो जुर्माना किताबें न खरीद सकिए तो जुर्माना कोई अपराध हो जाए तो जुर्माना शिक्षालय क्या है, जुर्मानालय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफों के पुल बांधे जाते हैं। यदि ऐसे शिक्षालयों से पैसे पर जान देने वाले, पैसे के लिए गरीबों का गला काटने वाले, पैसे के लिए अपनी आत्मा बेच देने वाले छात्र निकलते हैं, तो आश्चर्य क्या है-
{{Navbox
आज वही वसूली की तारीख है। अधयापकों की मेजों पर रुपयों के ढेर लगे हैं। चारों तरफ खनाखन की आवाजें आ रही हैं। सराफे में भी रुपये की ऐसी झंकार कम सुनाई देती है। हरेक मास्टर तहसील का चपरासी बना बैठा हुआ है। जिस लड़के का नाम पुकारा जाता है, वह अधयापक के सामने आता है, फीस देता है और अपनी जगह पर आ बैठता है। मार्च का महीना है। इसी महीने में अप्रैल, मई और जून की फीस भी वसूल की जा रही है। इम्तहान की फीस भी ली जा रही है। दसवें दर्जे में तो एक-एक लड़के को चालीस रुपये देने पड़ रहे हैं।
|name=गोविन्द4
अधयापक ने बीसवें लड़के का नाम पुकारा-अमरकान्त
|title =धर्म ग्रन्थ
अमरकान्त गैरहाजिर था।
|titlestyle =background:#f9e8ae;
अधयापक ने पूछा-क्या अमरकान्त नहीं आया?
|groupstyle =background:#c6d7e6;
एक लड़के ने कहा-आए तो थे, शायद बाहर चले गए हों।
|liststyle =background:#fff7db; padding-left:5px; padding-right:5px;
'क्या फीस नहीं लाया है?'
|listpadding=0.5em 0em;
किसी लड़के ने जवाब नहीं दिया।
|image=
अधयापक की मुद्रा पर खेद की रेखा झलक पड़ी। अमरकान्त अच्छे लड़कों में था। बोले-शायद फीस लाने गया होगा। इस घंटे में न आया, तो दूनी फीस देनी पड़ेगी। मेरा क्या अख्तियार है- दूसरा लड़का चले-गोवर्धनदास
|imagestyle=background:#f1f0f0;
सहसा एक लड़के ने पूछा-अगर आपकी इजाजत हो, तो मैं बाहर जाकर देखूं?
|imageleft =
अधयापक ने मुस्कराकर कहा-घर की याद आई होगी। खैर, जाओ मगर दस मिनट के अंदर आ जाना। लडकों को बुला-बुलाकर फीस लेना मेरा काम नहीं है।
|imageleftstyle=
लड़के ने नम्रता से कहा-अभी आता हूं। कसम ले लीजिए, जो हाते के बाहर जाऊं।
|style =background:white
यह इस कक्षा के संपन्न लड़कों में था, बड़ा खिलाड़ी, बड़ा बैठकबाज। हाजिरी देकर गायब हो जाता, तो शाम की खबर लाता। हर महीने फीस की दूनी रकम जुर्माना दिया करता था। गोरे रंग का, लंबा, छरहरा शौकीन युवक था। जिसके प्राण खेल में बसते थे। नाम था मोहम्मद सलीम।
|basestyle=
सलीम और अमरकान्त दोनों पास-पास बैठते थे। सलीम को हिसाब लगाने या तर्जुमा करने में अमरकान्त से विशेष सहायता मिलती थी। उसकी कापी से नकल कर लिया करता था। इससे दोनों में दोस्ती हो गई थी। सलीम कवि था। अमरकान्त उसकी गजलें बड़े चाव से सुनता था। मैत्री का यह एक और कारण था।
|navbar=
|above=
|abovestyle=
|state=<includeonly>uncollapsed</includeonly>
|oddstyle=
|evenstyle=
|group1 =
|group1style=
|list1 =[[महाभारत]] '''·''' [[रामायण]] '''·''' [[रघुवंश]] '''·''' [[कुमारसम्भव]] '''·''' [[बुद्धचरित]] '''·''' [[पउम चरिउ]] '''·''' [[भट्टिकाव्य]] '''·''' [[क़ुरआन]] '''·''' [[बाइबिल]] '''·''' [[गुरु ग्रंथ साहिब]] '''·''' [[गीता]] '''·''' [[वेद]] '''·''' [[पुराण]] '''·''' [[ब्राह्मण साहित्य|ब्राह्मण ग्रन्थ]]  '''·''' [[उपनिषद]] '''·''' [[योगवासिष्ठ रामायण]] '''·''' [[उत्तररामचरित]] '''·''' [[मणिमेखलै]] '''·''' [[राघवयादवीयम्]]  '''·''' [[गीत गोविन्द]]    '''·''' [[बाल रामायण]] '''·''' [[कीर्ति पताका]] '''·''' [[बाल भारत]] '''·''' [[मेघदूत]] '''·''' [[जीवक चिन्तामणि]] '''·''' [[उर्मिला (महाकाव्य)]]  '''·''' [[कामायनी]] '''·''' [[रिट्ठिणेमि चरिउ]]  '''·''' [[बरवै रामायण]] '''·'''  [[कामायनी -जयशंकर प्रसाद|कामायनी]] '''·''' [[सतसई]] '''·'''  [[पार्वती मंगल]] '''·'''  [[रामलला नहछू]]  '''·''' [[विनय पत्रिका -तुलसीदास]] '''·'''  [[भक्तनामावली]] '''·'''  [[चैतन्य चरितामृत]] '''·'''  [[चैतन्य भागवत]] '''·'''  [[भक्तमाल]] '''·'''  [[आख़िरी कलाम]] '''·'''  [[अध्यात्मरामायण]] '''·''' [[हित चौरासी]]
|list1style=
|group2 =
|group2style=
|list2 =
|list2style=
|group3=
|group3style=
|list3=
|list3style=
|group4=
|group4style=
|list4=
|list4style=
|group5=
|group5style=
|list5 =
|list5style=
|group6=
|group6style=
|list6=
|list6style=
|group7=
|group7style=
|list7=
|list7style=
|group8=
|group8style=
|list8=
|list8style=
|group9=
|group9style=
|list9=
|list9style=
|group10=
|group10style=
|list10 =
|list10style=
|group11=
|group11style=
|list11=
|list11style=
|group12=
|group12style=
|list12=
|list12style=
|group13=
|group13style=
|list13=
|list13style=
|group14=
|group14style=
|list14=
|list14style=
|group15=
|group15style=
|list15 =
|list15style=
|group16=
|group16style=
|list16=
|list16style=
|group17=
|group17style=
|list17=
|list17style=
|group18=
|group18style=
|list18=
|list18style=
|group19=
|group19style=
|list19=
|list19style=
|group20=
|group20style=
|list20=
|list20style=
|below=
|belowstyle=
}}<noinclude>[[Category:दर्शन के साँचे]]</noinclude>

14:10, 10 मई 2016 के समय का अवतरण