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'''रहमान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rehman'' जन्म: 1921 – मृत्यु: 1979) [[हिंदी सिनेमा]] के [[अभिनेता]] थे। रहमान पाकिस्तानी सिनेमैटोग्राफ़र मसूद-उर-रहमान के बड़े भाई थे। लोकप्रिय नायक के रूप में रहमान कभी [[दिलीप कुमार]], [[राजकपूर]], [[देवानंद]] के स्तर पर तो नहीं पहुंचे, लेकिन सहनायक और चरित्र-अभिनेता की हैसियत से वे [[अशोक कुमार]], [[मोतीलाल]], [[प्राण (अभिनेता)|प्राण]] जैसे कलाकारों के स्तर तक पहुंच गए और अपार ख्याति अर्जित की। शाही खानदान से जुड़े होने के कारण रहमान का न सिर्फ व्यक्तित्व, बल्कि उनका अभिनय और उनकी संवाद-अदायगी भी आन-बान-शान से परिपूर्ण थी। इसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी अभिनीत सभी | '''रहमान''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rehman'' जन्म: 1921 – मृत्यु: 1979) [[हिंदी सिनेमा]] के [[अभिनेता]] थे। रहमान पाकिस्तानी सिनेमैटोग्राफ़र मसूद-उर-रहमान के बड़े भाई थे। लोकप्रिय नायक के रूप में रहमान कभी [[दिलीप कुमार]], [[राजकपूर]], [[देवानंद]] के स्तर पर तो नहीं पहुंचे, लेकिन सहनायक और चरित्र-अभिनेता की हैसियत से वे [[अशोक कुमार]], [[मोतीलाल]], [[प्राण (अभिनेता)|प्राण]] जैसे कलाकारों के स्तर तक पहुंच गए और अपार ख्याति अर्जित की। शाही खानदान से जुड़े होने के कारण रहमान का न सिर्फ व्यक्तित्व, बल्कि उनका अभिनय और उनकी संवाद-अदायगी भी आन-बान-शान से परिपूर्ण थी। इसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी अभिनीत सभी फ़िल्मों में बखूबी किया। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
रहमान का जन्म [[ | रहमान का जन्म [[अफ़ग़ानिस्तान]] के एक पद्च्युत राजघराने में सन् [[1923]] को हुआ था। उनका बचपन [[लाहौर]] में बीता। बाद में उनके पिता सरदार अब्दुल रहमान [[जबलपुर]] आकर बस गए। यहां के रॉबर्टसन कॉलेज में रहमान की शिक्षा हुई। इसी दौरान स्वाधीनता-आंदोलन में भाग लेने की वजह से वे जेल भी गए। बाद में उन्होंने तीन साल तक [[वायु सेना]] में नौकरी की।<ref name="डेली न्यूज़">{{cite web |url=http://www.dailynewsnetwork.in/news/fm/fmclassic/04112012/FM-Special-article/76683.html |title=व्यक्तित्व के साहब नवाबी |accessmonthday=16 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=डेली न्यूज़ |language=हिंदी }}</ref> | ||
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अभिनय के प्रति झुकाव के कारण रहमान ने वायु सेना की नौकरी छोड़ दी और [[मुम्बई]] आ गए। यहां वे [[वी. शांताराम]] द्वारा स्थापित | अभिनय के प्रति झुकाव के कारण रहमान ने वायु सेना की नौकरी छोड़ दी और [[मुम्बई]] आ गए। यहां वे [[वी. शांताराम]] द्वारा स्थापित फ़िल्म अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे और इसके रास्ते फ़िल्मों में आने की कोशिश भी करने लगे। हालांकि सफलता नहीं मिली। उन्हें काफ़ी संघर्ष करना पड़ा, तब जाकर कहीं 1946 में रहमान को पी.एल. संतोषी, जो चर्चित निर्देशक राजकुमार संतोषी के पिता थे, की फ़िल्म 'हम एक हैं' में पहली बार नायक की भूमिका मिली। इसके बाद- नर्गिस, तोहफा, इंतज़ार के बाद, प्यार की जीत, बड़ी बहन, प्यार की मंजिल, मगरूर, पारस, परदेस, राजरानी, अजीब लड़की, एक नजर, जौहर, प्यासे नैन आदि फ़िल्मों में वे नायक बनें।<ref name="डेली न्यूज़"/> | ||
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रहमान ने स्वयं को कभी स्टार नहीं माना। वे हमेशा स्कैंडल्स से बचे रहे और | रहमान ने स्वयं को कभी स्टार नहीं माना। वे हमेशा स्कैंडल्स से बचे रहे और फ़िल्मी चकाचौंध से दूर रहे। फ़िल्म-जगत की चमक-दमक से अलग वे किताबें पढ़ने, शतरंज खेलने और बढ़िया भोजन करने में ही अपना वक्त गुजारना पसंद करते थे। इनके खानदानी व्यक्तित्व को देख कर ही लोग इन्हें फ़िल्म 'साहिब बीबी और ग़ुलाम' के बाद साहब कहने लगे थे। | ||
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06:30, 6 जुलाई 2017 के समय का अवतरण
रहमान
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पूरा नाम | रहमान |
जन्म | 1921 |
जन्म भूमि | लाहौर, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 1979 |
मृत्यु स्थान | बम्बई (अब मुम्बई) |
अभिभावक | अब्दुल रहमान |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनेता |
मुख्य फ़िल्में | प्यासा, चौदहवीं का चांद, साहिब बीबी और ग़ुलाम, धर्मपुत्र, ये रास्ते हैं प्यार के, बहारों की मंज़िल आदि |
नागरिकता | भारतीय |
रहमान (अंग्रेज़ी: Rehman जन्म: 1921 – मृत्यु: 1979) हिंदी सिनेमा के अभिनेता थे। रहमान पाकिस्तानी सिनेमैटोग्राफ़र मसूद-उर-रहमान के बड़े भाई थे। लोकप्रिय नायक के रूप में रहमान कभी दिलीप कुमार, राजकपूर, देवानंद के स्तर पर तो नहीं पहुंचे, लेकिन सहनायक और चरित्र-अभिनेता की हैसियत से वे अशोक कुमार, मोतीलाल, प्राण जैसे कलाकारों के स्तर तक पहुंच गए और अपार ख्याति अर्जित की। शाही खानदान से जुड़े होने के कारण रहमान का न सिर्फ व्यक्तित्व, बल्कि उनका अभिनय और उनकी संवाद-अदायगी भी आन-बान-शान से परिपूर्ण थी। इसका इस्तेमाल उन्होंने अपनी अभिनीत सभी फ़िल्मों में बखूबी किया।
जीवन परिचय
रहमान का जन्म अफ़ग़ानिस्तान के एक पद्च्युत राजघराने में सन् 1923 को हुआ था। उनका बचपन लाहौर में बीता। बाद में उनके पिता सरदार अब्दुल रहमान जबलपुर आकर बस गए। यहां के रॉबर्टसन कॉलेज में रहमान की शिक्षा हुई। इसी दौरान स्वाधीनता-आंदोलन में भाग लेने की वजह से वे जेल भी गए। बाद में उन्होंने तीन साल तक वायु सेना में नौकरी की।[1]
फ़िल्मी कैरियर
अभिनय के प्रति झुकाव के कारण रहमान ने वायु सेना की नौकरी छोड़ दी और मुम्बई आ गए। यहां वे वी. शांताराम द्वारा स्थापित फ़िल्म अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे और इसके रास्ते फ़िल्मों में आने की कोशिश भी करने लगे। हालांकि सफलता नहीं मिली। उन्हें काफ़ी संघर्ष करना पड़ा, तब जाकर कहीं 1946 में रहमान को पी.एल. संतोषी, जो चर्चित निर्देशक राजकुमार संतोषी के पिता थे, की फ़िल्म 'हम एक हैं' में पहली बार नायक की भूमिका मिली। इसके बाद- नर्गिस, तोहफा, इंतज़ार के बाद, प्यार की जीत, बड़ी बहन, प्यार की मंजिल, मगरूर, पारस, परदेस, राजरानी, अजीब लड़की, एक नजर, जौहर, प्यासे नैन आदि फ़िल्मों में वे नायक बनें।[1]
गुरुदत्त का साथ
नायक के रूप में रहमान का कैरियर बमुश्किल पांच-छह साल रहा। बतौर नायक जब वे असफल हो गए, तो गुरुदत्त ने सन् 1957 में अपनी फ़िल्म प्यासा से उन्हें सहनायक के रूप में पर्दे पर प्रस्तुत किया। बाद में इस तरह की भूमिकाएँ उन्होंने-चौदहवीं का चांद, धर्मपुत्र, ये रास्ते हैं प्यार के, बहारों की मंजिल, दिल दिया दर्द लिया, पालकी, दिल ने फिर याद किया जैसी बहुत-सी सफल फ़िल्में कीं। सहायक के बाद रहमान चरित्र अभिनेता भी बनें और वक्त, आबरू, इंतकाम, दुश्मन, आप की कसम, आहिस्ता-आहिस्ता, राजपूत आदि कई फ़िल्मों में भिन्न-भिन्न किरदार अभिनीत किए।[1]
प्रसिद्ध फ़िल्में

वर्ष | फ़िल्म | चरित्र |
---|---|---|
1982 | दिल आखिर दिल है | अरविंद देसाई |
1982 | वकील बाबू | |
1982 | राजपूत | ठाकुर प्रताप सिंह |
1981 | आहिस्ता आहिस्ता | |
1979 | सलाम मेमसाब | मेहरा |
1977 | चाचा भतीजा | |
1977 | अमानत | अमर |
1977 | आशिक हूँ बहारों का | |
1975 | आँधी | के. बोस |
1974 | आप की कसम | सुनीता के पिता |
1974 | प्रेम शस्त्र | राजन अरोड़ा |
1974 | दोस्त | मि. गुप्ता |
1973 | हीरा पन्ना | राजा साब |
1971 | दुश्मन | जज |
1968 | आबरू | |
1968 | शिकार | |
1964 | गज़ल | अख्तर नवाब |
1963 | ये रास्ते हैं प्यार के | |
1963 | मेरे महबूब | |
1963 | ताजमहल | |
1962 | साहिब बीबी और ग़ुलाम | छोटे सरकार |
1961 | धर्मपुत्र | जावेद |
1960 | चौदहवीं का चाँद | |
1958 | फिर सुबह होगी | रहमान |
1957 | प्यासा | मि. घोष |
व्यक्तित्व
रहमान ने स्वयं को कभी स्टार नहीं माना। वे हमेशा स्कैंडल्स से बचे रहे और फ़िल्मी चकाचौंध से दूर रहे। फ़िल्म-जगत की चमक-दमक से अलग वे किताबें पढ़ने, शतरंज खेलने और बढ़िया भोजन करने में ही अपना वक्त गुजारना पसंद करते थे। इनके खानदानी व्यक्तित्व को देख कर ही लोग इन्हें फ़िल्म 'साहिब बीबी और ग़ुलाम' के बाद साहब कहने लगे थे।
निधन
सन 1979 में रहमान का गले में हुए कैंसर की वजह से निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 व्यक्तित्व के साहब नवाबी (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) डेली न्यूज़। अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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