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||[[चित्र:Humayun.jpg|right|100px|border|हुमायूँ]]'हुमायूँ' प्रसिद्ध [[मुग़ल]] शासक था। उसका जन्म [[बाबर]] की पत्नी माहम बेगम के गर्भ से [[6 मार्च]], 1508 ई. को [[काबुल]] में हुआ था। बाबर के 4 पुत्रों- [[हुमायूँ]], [[कामरान शाहज़ादा|कामरान]], [[अस्करी]] और [[हिन्दाल]] में हुमायूँ सबसे बड़ा था। बाबर ने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। [[भारत]] में राज्याभिषेक के पूर्व 1520 ई. में 12 वर्ष की अल्पायु में उसे [[बदख्शां]] का [[सूबेदार]] नियुक्त किया गया। बदख्शां के सूबेदार के रूप में हुमायूँ ने भारत के उन सभी अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था। जिस समय हुमायूँ की मृत्यु हुई उस समय उसका पुत्र [[अकबर]] 13−14 वर्ष का बालक था। हुमायूँ के बाद उसके पुत्र अकबर को उत्तराधिकारी घोषित किया गया और उसका संरक्षक [[बैरम ख़ाँ]] को बनाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हुमायूँ]], [[मुग़ल वंश]] | ||[[चित्र:Humayun.jpg|right|100px|border|हुमायूँ]]'हुमायूँ' प्रसिद्ध [[मुग़ल]] शासक था। उसका जन्म [[बाबर]] की पत्नी माहम बेगम के गर्भ से [[6 मार्च]], 1508 ई. को [[काबुल]] में हुआ था। बाबर के 4 पुत्रों- [[हुमायूँ]], [[कामरान शाहज़ादा|कामरान]], [[अस्करी]] और [[हिन्दाल]] में हुमायूँ सबसे बड़ा था। बाबर ने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। [[भारत]] में राज्याभिषेक के पूर्व 1520 ई. में 12 वर्ष की अल्पायु में उसे [[बदख्शां]] का [[सूबेदार]] नियुक्त किया गया। बदख्शां के सूबेदार के रूप में हुमायूँ ने भारत के उन सभी अभियानों में भाग लिया, जिनका नेतृत्व बाबर ने किया था। जिस समय हुमायूँ की मृत्यु हुई उस समय उसका पुत्र [[अकबर]] 13−14 वर्ष का बालक था। हुमायूँ के बाद उसके पुत्र अकबर को उत्तराधिकारी घोषित किया गया और उसका संरक्षक [[बैरम ख़ाँ]] को बनाया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हुमायूँ]], [[मुग़ल वंश]] | ||
{[[सुमित्रानंदन पंत]] को किस रचना के लिए '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' मिला था? | |||
|type="()"} | |||
+[[कला और बूढ़ा चाँद -सुमित्रानन्दन पंत|कला और बूढ़ा चाँद]] | |||
-[[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]] | |||
-[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]] | |||
-[[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]] | |||
||[[चित्र:Kala-Aur-Budha-Chand.jpg|right|100px|border|कला और बूढ़ा चाँद]]'सुमित्रानंदन पंत' [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार स्तंभों में से एक थे। [[सुमित्रानंदन पंत]] नये युग के प्रवर्तक के रूप में आधुनिक हिन्दी साहित्य में उदित हुए। वे ऐसे साहित्यकारों में गिने जाते हैं, जिनका प्रकृति चित्रण समकालीन कवियों में सबसे बेहतरीन था। "हिंदी साहित्य के विलियम वर्ड्सवर्थ" कहे जाने वाले इस कवि ने महानायक [[अमिताभ बच्चन]] को ‘अमिताभ’ नाम दिया था। सुमित्रानंदन पंत को [[पद्म भूषण]] ([[1961]]) और [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] ([[1968]]) से सम्मानित किया गया था। [[कला और बूढ़ा चाँद -सुमित्रानन्दन पंत|कला और बूढ़ा चाँद]] के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]], [[लोकायतन -सुमित्रनन्दन पंत|लोकायतन]] पर 'सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार' एवं '[[चिदंबरा -सुमित्रानन्दन पंत|चिदंबरा]]' पर उन्हें 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुमित्रानंदन पंत]] | |||
{'[[वेद|वेदों]] में सम्पूर्ण सच्चाई निहित है।" यह व्याख्या किसके द्वारा की गई थी? | |||
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-[[स्वामी विवेकानंद]] | |||
+[[दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद]] | |||
-[[स्वामी श्रद्धानंद]] | |||
-[[एस. राधाकृष्णन]] | |||
||[[चित्र:Dayanand-Saraswati.jpg|right|100px|border|दयानंद सरस्वती]]'दयानंद सरस्वती' [[आर्य समाज]] के प्रवर्तक और प्रखर सुधारवादी संन्यासी थे। जिस समय [[केशवचन्द्र सेन]] [[ब्रह्मसमाज]] के प्रचार में संलग्न थे, लगभग उसी समय दण्डीस्वामी विरजानन्द की [[मथुरा|मथुरापुरी]] स्थित कुटी से प्रचण्ड अग्निशिखा के समान तपोबल से प्रज्वलित, वेदविद्यानिधान एक संन्यासी निकला, जिसने पहले-पहल संस्कृतज्ञ विद्वात्संसार को वेदार्थ और शास्त्रार्थ के लिए ललकारा। यह संन्यासी [[दयानंद सरस्वती|स्वामी दयानंद सरस्वती]] थे। स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने विचारों के प्रचार के लिए [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] को अपनाया। उनकी सभी रचनाएं और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ '[[सत्यार्थ प्रकाश]]' मूल रूप में हिन्दी भाषा में लिखा गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दयानंद सरस्वती]] | |||
{'पावर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया' के लेखक कौन थे? | |||
|type="()"} | |||
+[[दादा भाई नौरोजी]] | |||
-[[रमेशचन्द्र दत्त]] | |||
-[[जवाहरलाल नेहरू]] | |||
-[[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] | |||
||[[चित्र:Dadabhai-Naoroji-1.jpg|right|100px|border|दादा भाई नौरोजी]]'दादा भाई नौरोजी' को 'भारतीय राजनीति का पितामह' कहा जाता है। वह दिग्गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद और विचारक भी थे। [[दादा भाई नौरोजी]] का शैक्षिक पक्ष अत्यन्त उज्ज्वल रहा। 1845 में वे एल्फिन्स्टन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक हुए। यहाँ के एक [[अंग्रेज़ी]] प्राध्यापक ने उन्हें 'भारत की आशा' की संज्ञा दी थी। [[1885]] में दादा भाई नौरोजी 'बम्बई विधान परिषद' के सदस्य बने। [[1886]] में 'होलबार्न क्षेत्र' से पार्लियामेंट के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन असफल रहे। 1886 में ही फिन्सबरी क्षेत्र से पार्लियामेंट के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने 'पावर्टी एण्ड अनब्रिटिश रूल इन इण्डिया' नामक पुस्तक लिखी, जो अपने समय की महती कृति थी। 1886 व [[1906]] में वह 'इंडियन नेशनल कांग्रेस' के अध्यक्ष बनाए गए थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दादा भाई नौरोजी]] | |||
{'चिपको आंदोलन' के कारण कौन विश्वभर में '''वृक्षमित्र''' के नाम से प्रसिद्ध हुए। | |||
|type="()"} | |||
-[[अनुपम मिश्र]] | |||
-[[विनोबा भावे]] | |||
+[[सुन्दरलाल बहुगुणा]] | |||
-[[कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह]] | |||
||[[चित्र:Sunderlal-Bahuguna.jpg|right|100px|border|सुन्दरलाल बहुगुणा]]'सुन्दरलाल बहुगुणा' प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और '[[चिपको आंदोलन]]' के प्रमुख नेता थे। उनका जन्म देवों की भूमि [[उत्तराखंड]] के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ था। अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से [[सुन्दरलाल बहुगुणा]] ने सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना की थी। [[1949]] में [[मीराबेन]] व [[ठक्कर बाप्पा]] के सम्पर्क में आने के बाद वे दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए [[टिहरी गढ़वाल|टिहरी]] में 'ठक्कर बाप्पा होस्टल' की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने आन्दोलन भी छेड़ा। '[[चिपको आंदोलन]]' के कारण वे विश्वभर में '''वृक्षमित्र''' के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। उन्हें सन [[1984]] के 'राष्ट्रीय एकता पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुन्दरलाल बहुगुणा]] | |||
{'एशियाई नोबेल पुरस्कार' के नाम से किस पुरस्कार को जाना जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[ध्यानचंद पुरस्कार]] | |||
+[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]] | |||
-[[भारत रत्न]] | |||
-[[नारी शक्ति पुरस्कार]] | |||
||[[चित्र:Magsaysay-award-medal.png|right|100px|border|रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' [[एशिया]] के व्यक्तियों एवं संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिये प्रदान किया जाता है। इसे प्राय: '''एशिया का नोबेल पुरस्कार''' भी कहा जाता है। यह 'रमन मैगसेसे पुरस्कार फाउन्डेशन' द्वारा फ़िलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रमन मैगसेसे की याद में दिया जाता है। प्रारम्भ से ही [[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]] की संकल्पना 'जनता की सेवा में भावनाओं की महानता प्रदर्शित करने के लिए' की गयी थी। इस पुरस्कार की क्षेत्र सीमा के अंतर्गत पूर्वी, दक्षिण पूर्वी तथा दक्षिण एशिया तथा एशिया में रहने वाला कोई भी व्यक्ति, उसकी जाति, लिंग अथवा धर्म का भेदभाव किए बिना शामिल होते हैं। यद्यपि राष्ट्राध्यक्ष तथा शासनाध्यक्ष तथा उनके पति या पत्नी अपने कार्यकाल के समय इस पुरस्कार के पात्र नहीं होते।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]] | |||
{किस भारतीय राजनीतिज्ञ को 'राजाजी' के नाम से भी जाना जाता था? | |||
|type="()"} | |||
+[[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] | |||
-[[जयप्रकाश नारायण]] | |||
-[[ मोरारजी देसाई]] | |||
-[[गुलज़ारीलाल नन्दा]] | |||
||[[चित्र:Chakravarthi-Rajagopalachari.jpg|right|100px|border|चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]]'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे, जो '''राजाजी''' के नाम से भी जाने जाते थे। वे एक वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] स्वतन्त्र [[भारत]] के द्वितीय गवर्नर जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल थे। अपने अद्भुत और प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण 'राजाजी' के नाम से प्रसिद्ध महान् स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, गांधीवादी राजनीतिज्ञ सी. राजगोपालाचारी को '''आधुनिक भारत के इतिहास का चाणक्य''' माना जाता है। राजगोपालाचारी जी की बुद्धि चातुर्य और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण [[जवाहरलाल नेहरू]], [[महात्मा गांधी]] और [[सरदार पटेल]] जैसे अनेक उच्चकोटि के कांग्रेसी नेता भी उनकी प्रशंसा करते नहीं अघाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] | |||
{[[जवाहरलाल नेहरू]] के बाद 'भारत का दूसरा स्टेट्समैन' किसे कहा जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[विश्वनाथ प्रताप सिंह]] | |||
+[[अटल बिहारी वाजपेयी]] | |||
-[[चन्द्रशेखर]] | |||
-[[मनमोहन सिंह]] | |||
||[[चित्र:Atal-Bihari-Vajpayee.jpg|right|100px|border|अटल बिहारी वाजपेयी]]'अटल बिहारी वाजपेयी' का नाम [[भारत]] के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों में लिया जाता है। [[नरसिम्हा राव]] के बाद [[1996]] में [[अटल बिहारी वाजपेयी]] मात्र 13 दिन के लिए ही [[प्रधानमंत्री]] बने। इसके बाद [[1998]] में हुए चुनावों के माध्यम से वह दोबारा प्रधानमंत्री बने। इस कारण 1996 और 1998 के मध्य बने दो प्रधानमंत्रियों- [[एच. डी. देवगौड़ा]] तथा [[इन्द्र कुमार गुजराल]] को आगे स्थान दिया गया है। [[जवाहरलाल नेहरू]] के बाद इनको '''देश का दूसरा स्टेट्समैन''' कहा गया। इनकी सादगी, नैतिकता और उच्च आदर्शों का लोहा विपक्षी भी मानते हैं। राजनीति में अमूल्य योगदान के लिए [[भारत सरकार]] ने इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[भारत रत्न]]' से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त ये '[[पद्म विभूषण]]' से भी सम्मानित हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अटल बिहारी वाजपेयी]] | |||
{'मुर्दों का गाँव' नामक कहानी संग्रह के लेखक कौन थे? | |||
|type="()"} | |||
+[[धर्मवीर भारती]] | |||
-[[शरत चंद्र चट्टोपाध्याय]] | |||
-[[माखन लाल चतुर्वेदी]] | |||
-[[जयशंकर प्रसाद]] | |||
||[[चित्र:Dr.Dharamvir-Bharati.jpg|right|100px|border|धर्मवीर भारती]]'धर्मवीर भारती' आधुनिक [[हिन्दी साहित्य]] के प्रमुख लेखक, [[कवि]], नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे साप्ताहिक पत्रिका '[[धर्मयुग पत्रिका|धर्मयुग]]' के प्रधान संपादक भी रहे। [[धर्मवीर भारती|डॉ. धर्मवीर भारती]] को [[1972]] में '[[पद्मश्री]]' से सम्मानित किया गया था। उनका [[उपन्यास]] '[[गुनाहों का देवता-धर्मवीर भारती|गुनाहों का देवता]]' हिन्दी साहित्य के इतिहास में सदाबहार माना जाता है। धर्मवीर भारती ने कुछ समय तक 'हिंदुस्तानी एकेडेमी' में भी काम किया था। उन्हीं दिनों ख़ूब कहानियाँ भी लिखीं। 'मुर्दों का गाँव' और 'स्वर्ग और पृथ्वी' नामक दो कहानी संग्रह छपे। छात्र जीवन में भारती जी पर [[शरत चंद्र चट्टोपाध्याय]], [[जयशंकर प्रसाद]] और ऑस्कर वाइल्ड का बहुत प्रभाव था। उन्हीं दिनों वे [[माखन लाल चतुर्वेदी]] के सम्पर्क में आये और उन्हें पिता तुल्य मानने लगे। दादा माखनलाल चतुर्वेदी ने उनको बहुत प्रोत्साहित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धर्मवीर भारती]] | |||
{अमृतधारा जलप्रपात किस भारतीय राज्य में स्थित है? | |||
|type="()"} | |||
-[[हिमाचल प्रदेश]] | |||
+[[छत्तीसगढ़]] | |||
-[[मध्य प्रदेश]] | |||
-[[उत्तरांचल]] | |||
||[[चित्र:Amritdhara-Waterfall.jpg|right|100px|border|अमृतधारा जलप्रपात]]'अमृतधारा जलप्रपात' [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] के [[कोरिया ज़िला|कोरिया ज़िले]] में स्थित है। सम्पूर्ण [[भारत]] में कोरिया को प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इस ज़िले को प्रकृति ने अपनी अमूल्य निधियों से सजाया और सँवारा है। यहाँ चारों ओर प्रकृति के मनोरम दृश्य बिखरे पड़े हैं। इन्हीं में से एक '[[अमृतधारा जल प्रपात|अमृतधारा जलप्रपात]]' है, जो कि [[हसदो नदी]] पर स्थित है। अमृतधारा जलप्रपात एक बहुत ही शुभ शिवमंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस जगह के आस-पास एक प्रसिद्ध मेला हर साल आयोजित किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमृतधारा जल प्रपात|अमृतधारा जलप्रपात]] | |||
{[[ऋग्वेद]] में कुल कितने सूक्त हैं? | |||
|type="()"} | |||
-1011 | |||
-1017 | |||
-1021 | |||
+1028 | |||
||[[चित्र:Rigveda.jpg|right|100px|border|ऋग्वेद]]'ऋग्वेद' सनातन धर्म अथवा [[हिन्दू धर्म]] का स्रोत है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जिनमें [[देवता|देवताओं]] की स्तुति की गयी है। इस ग्रंथ में देवताओं का [[यज्ञ]] में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं। यही सर्वप्रथम [[वेद]] है। [[ऋग्वेद]] को दुनिया के सभी [[इतिहासकार]] हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की सबसे पहली रचना मानते हैं। ये दुनिया के सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है। ऋक् संहिता में 10 मंडल, बालखिल्य सहित 1028 सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को 'सूक्त' कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद के सूक्त विविध देवताओं की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ऋग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्रोतों की प्रधानता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]] | |||
{'यक्षगान' नामक नृत्य शैली [[भारत]] के किस प्रान्त से सम्बद्ध है? | |||
|type="()"} | |||
-[[पंजाब]] | |||
+[[कर्नाटक]] | |||
-[[असम]] | |||
-[[राजस्थान]] | |||
||[[चित्र:Yakshagana-Dance.jpg|right|100px|border|यक्षगान नृत्य]]'यक्षगान नृत्य' [[कर्नाटक]] का लोक नृत्य है। यह कर्नाटक का पारम्परिक नृत्य नाट्य रूप है जो एक प्रशंसनीय शास्त्रीय पृष्ठभूमि के साथ किया जाने वाला अनोखा नृत्य रूप है। लगभग 5 शताब्दियों की सशक्त नींव के साथ [[यक्षगान नृत्य|यक्षगान]] लोक कला के एक रूप के तौर पर मज़बूत स्थिति रखता है, जो [[केरल]] के [[कथकली]] के समान है। नृत्य नाटिका के इस रूप का मुख्य सार धर्म के साथ इसका जुड़ाव है, जो इसके [[नाटक|नाटकों]] के लिए सर्वाधिक सामान्य विषयवस्तु प्रदान करता है। जनसमूह के लिए एक नाट्य मंच होने के नाते यक्षगान [[संस्कृत]] नाटकों के कलात्मक तत्वों के मिले-जुले परिवेश में मंदिरों और गांवों के चौराहों पर बजाए जाने वाले पारम्परिक संगीत तथा [[रामायण]] और [[महाभारत]] जैसे महान् ग्रंथों से ली गई युद्ध संबंधी विषयवस्तुओं के साथ प्रदर्शित किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यक्षगान नृत्य]] | |||
{आदि शंकराचार्य ने किस प्रान्त में [[अवतार]] लिया था? | |||
|type="()"} | |||
+[[केरल]] | |||
-[[मध्य प्रदेश]] | |||
-[[तमिलनाडु]] | |||
-[[आन्ध्र प्रदेश]] | |||
||[[चित्र:Adi-Shankaracharya.jpg|right|100px|border|आदि शंकराचार्य]]'आदि शंकराचार्य' अद्वैत वेदान्त के प्रणेता, [[संस्कृत]] के विद्वान, [[उपनिषद]] व्याख्याता और [[हिन्दू धर्म]] प्रचारक थे। हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको [[शिव|भगवान शंकर]] का [[अवतार]] माना जाता है। [[आदि शंकराचार्य]] ने लगभग पूरे [[भारत]] की यात्रा की और इनके जीवन का अधिकांश भाग [[उत्तर भारत]] में बीता। चार पीठों (मठ) की स्थापना करना इनका मुख्य रूप से उल्लेखनीय कार्य रहा, जो आज भी मौजूद है। शंकराचार्य का जन्म [[दक्षिण भारत]] के [[केरल]] में अवस्थित नम्बूदरीपाद ब्राह्मणों के 'कालडी़ ग्राम' में 788 ई. में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय उत्तर भारत में व्यतीत किया। उनके द्वारा स्थापित 'अद्वैत वेदांत सम्प्रदाय' 9वीं शताब्दी में काफ़ी लोकप्रिय हुआ। उन्होंने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवन प्रदान करने का प्रयत्न किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[आदि शंकराचार्य]] | |||
{'छत्तीसगढ़ का गाँधी' किसे कहा जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[अनंत लक्ष्मण कन्हेरे]] | |||
-[[दादा धर्माधिकारी]] | |||
+[[सुन्दरलाल शर्मा]] | |||
-[[वामनराव बलिराम लाखे]] | |||
||[[चित्र:Sundarlal-Sharma.jpg|right|100px|border|सुन्दरलाल शर्मा]]'सुन्दरलाल शर्मा' बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सामाजिक क्रांति के अग्रदूत तथा [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] में जनजागरणकर्ता थे। वे एक कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सेवक, [[इतिहासकार]] तथा स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी थे। उन्हें '''छत्तीसगढ़ का गाँधी''' की उपाधि दी गई है। छत्तीसगढ़ में [[सुन्दरलाल शर्मा]] के नाम पर ही 'पण्डित सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय' की स्थापना की गई है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में व्याप्त रुढ़िवादिता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता तथा कुरीतियों को दूर करने के लिए पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने अथक प्रयास किया। उनके हरिजनोद्धार कार्य की प्रशंसा [[महात्मा गाँधी]] ने मुक्त कंठ से करते हुए इस कार्य में उन्हें अपना गुरू माना था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुन्दरलाल शर्मा]] | |||
{किस शासक ने स्वयं को 'ख़लीफ़ा' घोषित किया था? | |||
|type="()"} | |||
+[[क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी|मुबारक ख़िलजी]] | |||
-[[इल्तुतमिश]] | |||
-[[महमूद ग़ज़नवी]] | |||
-[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] | |||
||'क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी' [[अलाउद्दीन ख़िलजी|सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी]] का तृतीय पुत्र था। अलाउद्दीन के प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक [[मलिक काफ़ूर]] उसका संरक्षक था। कुछ समय बाद मलिक काफ़ूर स्वयं सुल्तान बनने का सपना देखने लगा और उसने षड़यंत्र रचकर मुबारक ख़िलजी की हत्या करने की योजना बनाई। किंतु मलिक काफ़ूर के षड़यंत्रों से बच निकलने के बाद [[क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी]] ने चार वर्ष तक सफलतापूर्वक राज्य किया। इसके शासनकाल में राज्य में प्राय: शांति व्याप्त रही। क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने 'अल इमाम', 'उल इमाम' एवं 'ख़िलाफ़त-उल्लाह' की उपाधियाँ धारण की थीं। उसने ख़िलाफ़त के प्रति भक्ति को हटाकर अपने को 'इस्लाम धर्म का सर्वोच्च प्रधान' और 'स्वर्ण तथा पृथ्वी के अधिपति का ख़लीफ़ा' घोषित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[क़ुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी]] | |||
{कौन-सा प्रसिद्ध मंदिर [[खजुराहो]] में स्थित नहीं है? | |||
|type="()"} | |||
-[[कन्दारिया महादेव मन्दिर]] | |||
-[[चित्रगुप्त मंदिर, खजुराहो|चित्रगुप्त मन्दिर]] | |||
-[[पार्श्वनाथ मंदिर, खजुराहो|पार्श्वनाथ मन्दिर]] | |||
+[[लिंगराज मन्दिर]] | |||
||[[चित्र:Lingaraj-Temple-Orissa.jpg|right|100px|border|लिंगराज मन्दिर]]'लिंगराज मन्दिर' [[भारत]] के [[ओडिशा|ओडिशा प्रांत]] की राजधानी [[भुवनेश्वर]] में स्थित है। यह इस शहर के प्राचीनतम मन्दिरों में से एक है। हालांकि भगवान त्रिभुवनेश्वर को समर्पित इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप 1090-1104 ई. में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। यह जगत प्रसिद्ध मन्दिर [[उत्तरी भारत]] के मन्दिरों में रचना सौंदर्य तथा शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। [[लिंगराज मन्दिर|लिंगराज]] का विशाल मन्दिर अपनी अनुपम स्थात्य कला के लिए भी प्रसिद्ध है। मन्दिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार है। इस मन्दिर का शिखर भारतीय मन्दिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का शिखर माना जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लिंगराज मन्दिर]] | |||
{'हितोपदेश' नामक पुस्तक के लेखक कौन थे? | |||
|type="()"} | |||
-[[बाणभट्ट]] | |||
-[[भवभूति]] | |||
+[[नारायण पंडित]] | |||
-[[विष्णु शर्मा]] | |||
||'हितोपदेश' भारतीय जनमानस तथा परिवेश से प्रभावित उपदेशात्मक कथाएँ हैं। इसकी रचना का श्रेय [[नारायण पंडित]] को जाता है, जिन्होंने [[पंचतंत्र]] तथा अन्य नीति के ग्रंथों की मदद से '[[हितोपदेश]]' नामक इस ग्रंथ का सृजन किया। नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। विभिन्न उपलब्ध अनुवादों के आधार पर इसकी रचना तीसरी शताब्दी के आस- पास निर्धारित की जाती है। 'हितोपदेश' की रचना का आधार पंचतंत्र ही है। कथाओं से प्राप्त साक्ष्यों के विश्लेषण के आधार पर डॉ. फ्लीट का मानना है कि इसकी रचना 11वीं शताब्दी के आस- पास होनी चाहिये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हितोपदेश]], [[नारायण पंडित]] | |||
{मानव द्वारा सर्वप्रथम प्रयुक्त किया जाने वाला अनाज कौन-सा था? | |||
|type="()"} | |||
-[[गेहूँ]] | |||
+[[चावल]] | |||
-[[जौ]] | |||
-[[बाजरा]] | |||
||[[चित्र:Rice.jpg|right|100px|border|चावल]]'चावल' विश्व की दूसरी सर्वाधिक क्षेत्रफल पर उगाई जाने वाली फ़सल है। विश्व में लगभग 15 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर 45 करोड़ टन [[चावल]] का उत्पादन होता है। [[भारत]] विश्व में चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ पर विश्व के कुल उत्पादन का 20% चावल पैदा किया जाता है। मात्रा की दृष्टि से घटते क्रम में प्रमुख चावल उत्पादक राज्य हैं- [[पश्चिम बंगाल]], [[आंध्र प्रदेश]], [[उत्तर प्रदेश]], [[पंजाब]], [[तमिलनाडु]] तथा [[बिहार]]। चावल धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। कोई भी [[पूजा]], [[यज्ञ]] आदि अनुष्ठान बिना चावल के पूर्ण नहीं हो सकता। चावल अर्थात् अक्षत का मतलब है- 'जिसका क्षय नहीं हुआ है।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चावल]] | |||
{[[प्राचीन भारत]] में कौन-सी [[लिपि]] दायीं से बायीं ओर लिखी जाती थी? | |||
|type="()"} | |||
-[[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] | |||
-[[शारदा लिपि|शारदा]] | |||
-[[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] | |||
+[[खरोष्ठी]] | |||
||[[चित्र:Kharoshthi Script 5.jpg|right|100px|border|खरोष्ठी वर्णमाला]]'खरोष्ठी लिपि' गान्धारी लिपि के नाम से भी जानी जाती है, जो गान्धारी और [[संस्कृत|संस्कृत भाषा]] को लिपिबद्ध करने में प्रयोग में आती है। इसका प्रयोग तीसरी शताब्दी ई.पू. से तीसरी शताब्दी तक प्रमुख रूप से [[एशिया]] में होता रहा। [[खरोष्ठी]] एक प्राचीन भारतीय लिपि थी, जो अरबी लिपि की तरह दांये से बांये को लिखी जाती थी। चौथी-तीसरी शताब्दी ई.पू. में [[भारत]] के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांतों में इस लिपि का प्रचलन था। शेष भागों में [[ब्राह्मी लिपि]] का प्रचलन था, जो बांये से दांये को लिखी जाती थी। इस लिपि के प्रसार के कारण खरोष्ठी लिपि लुप्त हो गई। खरोष्ठी लिपि में लिखे हुए कुछ सिक्के और [[अशोक]] के दो [[अशोक के शिलालेख|शिलालेख]] प्राप्त हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[खरोष्ठी]] | |||
{[[खड़ी बोली]] के प्रसिद्ध कवि अमीर ख़ुसरो किसके दरबार में रहे थे? | |||
|type="()"} | |||
+[[अलाउद्दीन ख़िलजी]] | |||
-[[इल्तुतमिश]] | |||
-[[मुहम्मद बिन तुग़लक़]] | |||
-[[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] | |||
||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|100px|border|अमीर ख़ुसरो और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया]]'अमीर ख़ुसरो' [[खड़ी बोली|हिन्दी खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय [[कवि]] थे, जिन्होंने कई [[ग़ज़ल]], [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] और तराना आदि की रचनाएँ की थीं। [[ग़ुलाम वंश]] के पतन के बाद [[जलालुद्दीन ख़िलजी]] [[दिल्ली]] का सुल्तान हुआ। उसने [[अमीर ख़ुसरो|ख़ुसरो]] को 'अमीर' की उपाधि से विभूषित किया। अमीर ख़ुसरो ने जलालुद्दीन की प्रशंसा में 'मिफ्तोलफ़तह' नामक ग्रन्थ की रचना की। जलालुद्दीन के हत्यारे उसके भतीजे [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] ने भी सुल्तान होने पर अमीर ख़ुसरो को उसी प्रकार सम्मानित किया और उन्हें राजकवि की उपाधि प्रदान की। अलाउद्दीन की प्रशंसा में ख़ुसरो ने जो रचनाएँ कीं, वे अभूतपूर्व थीं। ख़ुसरो की अधिकांश रचनाएँ अलाउद्दीन के राजकाल की ही हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | |||
{'यक्षगान' किस भारतीय राज्य का लोक नृत्य है? | |||
|type="()"} | |||
-[[मध्य प्रदेश]] | |||
-[[महाराष्ट्र]] | |||
-[[उत्तर प्रदेश]] | |||
+[[कर्नाटक]] | |||
||[[चित्र:Yakshagana-Dance.jpg|right|100px|border|यक्षगान नृत्य]]'यक्षगान' [[कर्नाटक|कर्नाटक राज्य]] का लोक नृत्य है। यह कर्नाटक का पारम्परिक नृत्य नाट्य रूप है, जो एक प्रशंसनीय शास्त्रीय पृष्ठभूमि के साथ किया जाता है। लगभग 5 शताब्दियों की सशक्त नींव के साथ [[यक्षगान नृत्य|यक्षगान]] लोक कला के एक रूप के तौर पर मज़बूत स्थिति रखता है, जो [[केरल]] के [[कथकली]] के समान है। नृत्य नाटिका के इस रूप का मुख्य सार [[धर्म]] के साथ इसका जुड़ाव है, जो इसके नाटकों के लिए सर्वाधिक सामान्य विषयवस्तु प्रदान करता है। जनसमूह के लिए एक नाट्य मंच होने के नाते यक्षगान [[संस्कृत]] नाटकों के कलात्मक तत्वों के मिले-जुले परिवेश में मंदिरों और गांवों के चौराहों पर बजाए जाने वाले पारम्परिक [[संगीत]] तथा [[रामायण]] और [[महाभारत]] जैसे महान् ग्रंथों से ली गई युद्ध संबंधी विषयवस्तुओं के साथ प्रदर्शित किया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यक्षगान नृत्य]] | |||
{किस राजनीतिज्ञ को 'भारतीय राजनीति का चाणक्य' कहा जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[अटल बिहारी वाजपेयी]] | |||
+[[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] | |||
-[[पी. वी. नरसिंहराव]] | |||
-[[विश्वनाथ प्रताप सिंह]] | |||
||[[चित्र:Chakravarthi-Rajagopalachari.jpg|right|100px|border|चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]]'चक्रवर्ती राजगोपालाचारी' भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष थे, जो 'राजाजी' के नाम से भी जाने जाते हैं। वे एक वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। वे स्वतन्त्र [[भारत]] के द्वितीय गवर्नर-जनरल और प्रथम भारतीय गवर्नर-जनरल थे। सन [[1954]] में 'भारतीय राजनीति के चाणक्य' कहे जाने वाले [[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] को '[[भारत रत्न]]' से सम्मानित किया गया था। राजगोपालाचारी जी विद्वान् और अद्भुत लेखन प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। जो गहराई और तीखापन उनके बुद्धिचातुर्य में था, वही उनकी लेखनी में भी था। वह [[तमिल भाषा|तमिल]] और [[अंग्रेज़ी]] के बहुत अच्छे लेखक थे। '[[गीता]]' और '[[उपनिषद|उपनिषदों]]' पर उनकी टीकाएं प्रसिद्ध हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चक्रवर्ती राजगोपालाचारी]] | |||
{[[जयपुर]] स्थित 'सिटी पैलेस' का निर्माण किसने करवाया था? | |||
|type="()"} | |||
-[[भामाशाह]] | |||
-[[राणा साँगा]] | |||
+[[सवाई जयसिंह|सवाई जयसिंह द्वितीय]] | |||
-[[राणा उदयसिंह]] | |||
||[[चित्र:City-Palace-Jaipur-1.jpg|right|100px|border|सिटी पैलेस जयपुर]]'सिटी पैलेस' [[राजस्थान]] के सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक तथा पर्यटन स्थलों में से एक है। यह एक महल परिसर है। 'गुलाबी शहर' [[जयपुर]] के बिल्कुल बीच में यह स्थित है। इस खूबसूरत परिसर में कई इमारतें, विशाल आंगन और आकर्षक बाग़ हैं, जो इसके राजसी इतिहास की निशानी हैं। [[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस]] का निर्माण [[सवाई जयसिंह द्वितीय|महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय]] ने 1729 से 1732 ई. के मध्य कराया था। शाही वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य और [[अंग्रेज़]] शिल्पकार सर सैमुअल स्विंटन जैकब ने उस समय बींसवी सदी का आधुनिक नगर रचा था। साथ ही बेहतरीन, खूबसूरत, सभी सुविधाओं और सुरक्षा से लैस शाही प्रासाद।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिटी पैलेस जयपुर|सिटी पैलेस, जयपुर]] | |||
{[[भारत]] के किस प्रदेश की सीमाएँ तीन देशों क्रमश: [[नेपाल]], [[भूटान]] एवं [[चीन]] से मिलती हैं? | |||
|type="()"} | |||
-[[अरुणाचल प्रदेश]] | |||
-[[मेघालय]] | |||
-[[पश्चिम बंगाल]] | |||
+[[सिक्किम]] | |||
||[[चित्र:Sikkim-map.jpg|right|100px|border|सिक्किम का नक्शा]]'सिक्किम' [[भारत]] का एक पर्वतीय राज्य है। इसकी जनसंख्या भारत के राज्यों में न्यूनतम है और क्षेत्रफल [[गोवा]] के बाद न्यूनतम है। [[सिक्किम]] नामग्याल राजतन्त्र द्वारा शासित स्वतन्त्र राज्य था। सन [[1975]] में हुए जनमत-संग्रह के बाद यह भारत में विलीन हो गया। अंगूठे के आकार का यह राज्य पश्चिम में [[नेपाल]], उत्तर और पूर्व में चीनी तिब्बत क्षेत्र और दक्षिण-पूर्व में [[भूटान]] से घिरा हुआ है। भारत का [[पश्चिम बंगाल|पश्चिम बंगाल राज्य]] इसके दक्षिण में है। [[अंग्रेज़ी]], नेपाली, [[लेप्चा भाषा|लेप्चा]], भूटिया, लिंबू तथा [[हिन्दी]] इसकी आधिकारिक भाषाएँ हैं, परन्तु शासकीय कार्य में अंग्रेज़ी का ही प्रयोग होता है। [[हिन्दू धर्म]] और [[वज्रयान]] [[बौद्ध धर्म]] यहाँ के प्रमुख धर्म हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिक्किम]] | |||
{किस व्यक्ति को "नये मध्य प्रदेश के पुरोधा" के रूप में याद किया जाता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[द्वारका प्रसाद मिश्रा]] | |||
+[[रविशंकर शुक्ल]] | |||
-[[शिवराज सिंह चौहान]] | |||
-[[बाबूलाल गौर]] | |||
||[[चित्र:Pandit-Ravishankar-Shukla.jpg|right|100px|border|रविशंकर शुक्ल]]'रविशंकर शुक्ल' [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के प्रसिद्ध नेता तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। वे [[1 नवम्बर]], [[1956]] को अस्तित्व में आये नये राज्य [[मध्य प्रदेश]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] नियुक्त हुए थे। [[रविशंकर शुक्ल|पण्डित रविशंकर शुक्ल]] को '''नये मध्य प्रदेश के पुरोधा''' के रूप में स्मरण किया जाता है। रविशंकर शुक्ल ने [[1906]] से रायपुर में वकालत प्रारंभ की थी। वे स्वतंत्रता आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे। सन [[1926]] से [[1937]] तक वे 'रायपुर ज़िला बोर्ड' के सदस्य रहे। [[1936]] में प्रांतीय धारा सभा के चुनाव में शुक्ल जी विजयी हुए और डॉ. खरे द्वारा त्यागपत्र देने के बाद [[अगस्त]], [[1938]] से [[10 नवम्बर]], [[1939]] तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रविशंकर शुक्ल]] | |||
{'द ग्रेट ओशन ट्रेड मार्ग' किस [[महासागर]] से होकर गुजरता है? | |||
|type="()"} | |||
-[[हिन्द महासागर]] | |||
-[[प्रशान्त महासागर]] | |||
+[[अटलांटिक महासागर|उत्तरी अटलांटिक महासागर]] | |||
-[[आर्कटिक महासागर]] | |||
||[[चित्र:Atlantic-Ocean.jpg|right|100px|border|अटलांटिक महासागर]]'अटलांटिक महासागर' अथवा 'अंध महासागर' उस विशाल जलराशि को कहते हैं, जो [[यूरोप]] तथा [[अफ़्रीका|अफ़्रीका महाद्वीप]] को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक् करती है। इस [[महासागर]] का आकार लगभग [[अंग्रेज़ी]] के अंक '8' के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। [[आर्कटिक महासागर]], जो बेरिंग जल डमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक विस्तृत है, मुख्यतः [[अटलांटिक महासागर]] का ही एक भाग है। संसार की कुछ बहुत ही ख़तरनाक जगहों में से एक '[[बरमूडा त्रिकोण]]' अटलांटिक महासागर में ही है। यह त्रिकोण अटलांटिक महासागर का वह भाग है, जिसे 'दानवी त्रिकोण', 'शैतानी त्रिभुज', 'मौत का त्रिकोण' या 'भुतहा त्रिकोण' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अटलांटिक महासागर]] | |||
{अविश्वास प्रस्ताव के कारण सर्वप्रथम किस [[प्रधानमंत्री]] को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था? | |||
|type="()"} | |||
+[[मोरारजी देसाई]] | |||
-[[चरण सिंह]] | |||
-[[विश्वनाथ प्रताप सिंह]] | |||
-[[इंदिरा गाँधी]] | |||
||[[चित्र:Morarji Desai.jpg|right|100px|border|मोरारजी देसाई]]'मोरारजी देसाई' को [[भारत]] के चौथे [[प्रधानमंत्री]] के रूप में जाना जाता है। वह 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की, परंतु असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें [[पंडित नेहरू]] और [[लालबहादुर शास्त्री]] के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। [[मोरारजी देसाई]] [[मार्च]], [[1977]] में देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया और [[चौधरी चरण सिंह]] से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोरारजी देसाई]] | |||
</quiz> | </quiz> | ||
{{पहेली क्रम |पिछली=[[पहेली | {{पहेली क्रम |पिछली=[[पहेली दिसम्बर 2017]] |अगली=[[पहेली फ़रवरी 2018]]}} | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}} | ||
[[Category:भारतकोश पहेली]] | [[Category:भारतकोश पहेली]] | ||
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11:33, 9 जून 2018 के समय का अवतरण
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