"श्राद्ध फलसूची": अवतरणों में अंतर
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09:31, 20 सितम्बर 2013 का अवतरण
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श्राद्ध फलसूची
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अनुयायी | सभी हिन्दू धर्मावलम्बी |
उद्देश्य | श्राद्ध पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं। पितरों के निमित्त विधिपूर्वक जो कर्म श्रद्धा से किया जाता है, उसी को 'श्राद्ध' कहते हैं।। |
प्रारम्भ | वैदिक-पौराणिक |
तिथि | भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से सर्वपितृ अमावस्या अर्थात आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक |
अनुष्ठान | श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो 'पिण्ड' बनाते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक पारंपरिक विश्वास है, कि हर पीढ़ी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढ़ियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित होते हैं। यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान जिन जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है। |
संबंधित लेख | पितृ पक्ष, श्राद्ध के नियम, अन्वष्टका कृत्य, अष्टका कृत्य, अन्वाहार्य श्राद्ध, श्राद्ध विसर्जन, पितृ विसर्जन अमावस्या, तर्पण, माध्यावर्ष कृत्य, मातामह श्राद्ध, पितर, श्राद्ध और ग्रहण, श्राद्ध करने का स्थान, श्राद्ध की आहुति, श्राद्ध की कोटियाँ, श्राद्ध की महत्ता, श्राद्ध प्रपौत्र द्वारा, श्राद्ध वर्जना, श्राद्ध विधि, पिण्डदान, गया, नासिक, आदित्य देवता और रुद्र देवता |
अन्य जानकारी | ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध की परिभाषा- 'जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित (शास्त्रानुमोदित) विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है', श्राद्ध कहलाता है। |
संक्रान्ति पर किया गया श्राद्ध अनन्त काल तक के लिए स्थायी होता है, इसी प्रकार जन्म के दिन एवं कतिपय नक्षत्रों में श्राद्ध करना चाहिए। आपस्तम्ब धर्मसूत्र[1], अनुशासन पर्व[2], वायु पुराण[3], याज्ञवल्क्य[4], ब्रह्म पुराण[5], विष्णु धर्मसूत्र[6], कूर्म पुराण[7], ब्रह्म वैवर्त पुराण[8] ने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक किये गये श्राद्धों के फलों का उल्लेख किया है। ये फलसूचियाँ एक-दूसरी से पूर्णतया नहीं मिलतीं।
आपस्तम्ब द्वारा प्रस्तुत सूची, जो सम्भवत: अत्यन्त प्राचीन है, यहाँ पर प्रस्तुत की जा रही है – कृष्ण पक्ष की प्रत्येक तिथि में किया गया श्राद्ध क्रम से अधोलिखित फल देता है – संतान[9], पुत्र जो चोर होंगे, पुत्र जो वेदज्ञ और वैदिक व्रतों को करने वाले होंगे, पुत्र जिन्हें छोटे घरेलू पशु प्राप्त होंगे, बहुत से पुत्र जो[10] यशस्वी होंगे और कर्ता संतानहीन नहीं मरेगा, बहुत बड़ा यात्री एवं जुआरी, कृषि] में सफलता, समृद्धि, एक खुर वाले पशु, व्यापार में लाभ, काला लौह, काँसा एवं सीसा, पशु से युक्त पुत्र, बहुत से पुत्र एवं बहुत से मित्र तथा शीघ्र ही मर जाने वाले सुन्दर लड़के, शस्त्रों में सफलता[11] एवं सम्पत्ति।[12] गार्ग्य[13] ने व्यवस्था दी है कि नन्दा, शुक्रवार, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, जन्म नक्षत्र और इसके एक दिन पूर्व एवं पश्चात वाले नक्षत्रों में श्राद्ध नहीं करना चाहिए, क्योंकि पुत्र एवं सम्पत्ति के नष्ट हो जाने का डर होता है। अनुशासन पर्व ने व्यवस्था दी है कि जो व्यक्ति त्रयोदशी को श्राद्ध करता है वह पूर्वजों में श्रेष्ठ पद की प्राप्ति करता है। किन्तु उसके फलस्वरूप घर के युवा व्यक्ति मर जाते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आपस्तम्ब धर्मसूत्र (2|7|16|8-22
- ↑ अनुशासन पर्व (87
- ↑ वायु पुराण (99|10-19
- ↑ याज्ञवल्क्य (1|262-263
- ↑ ब्रह्म पुराण (220|15|21
- ↑ विष्णु धर्मसूत्र (78|36-50
- ↑ कूर्म पुराण (2|20|17-22
- ↑ ब्रह्म वैवर्त पुराण (3|17|10-22
- ↑ मुख्यत: कन्याएँ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को
- ↑ अपनी विद्या से
- ↑ चतुर्दशी को
- ↑ अमावस्या को
- ↑ परा. मा. 1|2, पृ. 324
संबंधित लेख