"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर
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-[[चिनाब नदी|चिनाब]] तथा [[रावी नदी|रावी]] | -[[चिनाब नदी|चिनाब]] तथा [[रावी नदी|रावी]] | ||
-[[रावी नदी|रावी]] तथा [[व्यास नदी|व्यास]] | -[[रावी नदी|रावी]] तथा [[व्यास नदी|व्यास]] | ||
||[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|right|100px|सिन्धु नदी]]'सिन्धु नदी' संसार की प्रमुख नदियों में से एक [[पाकिस्तान]] की सबसे बड़ी नदी है। [[तिब्बत]] के [[कैलाश मानसरोवर|मानसरोवर]] के निकट 'सिन-का-बाब' नामक जलधारा [[सिन्धु नदी]] का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और [[कश्मीर]] के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर [[अरब सागर]] में मिलती है। वैदिक संस्कृति में सिन्धु नदी तथा मानसरोवर का उल्लेख अत्यंत श्रद्धा के साथ किया जाता रहा है। [[तिब्बत]], [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] से होकर बहने वाली इस नदी में कई अन्य नदियाँ आकर मिलती हैं, जिनमे [[क़ाबुल नदी]], स्वात, [[झेलम नदी|झेलम]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], [[रावी नदी|रावी]] और [[सतलुज नदी|सतलुज]] मुख्य हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिन्धु नदी|सिन्धु]] तथा [[झेलम नदी|झेलम]] | |||
{[[मोहनजोदड़ो]] में पाई गई मुहरें किससे निर्मित हैं?(पृ.सं. 177 | {[[मोहनजोदड़ो]] में पाई गई मुहरें किससे निर्मित हैं?(पृ.सं. 177 | ||
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-[[पीतल]] | -[[पीतल]] | ||
+पकाई हुई [[मिट्टी]] | +पकाई हुई [[मिट्टी]] | ||
||[[चित्र:Mohenjo-Daro-Seal.gif|right|100px|मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर]]'मोहनजोदड़ो' के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को 'स्तूप टीला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में, कुम्भकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपाल खण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबें]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं [[कांसा|कांसे]] की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं, जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मुहरे, बर्तन पकाने के छः भट्टे, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र था। जालीदार अलंकरण युक्त [[मिट्टी]] का बर्तन, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, [[शिव]] की मूर्ति, [[ध्यान]] की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]] | |||
{[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी350) | {[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी350) | ||
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-मोहम्मद हनीफ़ | -मोहम्मद हनीफ़ | ||
-अमानत ख़ाँ | -अमानत ख़ाँ | ||
||[[चित्र:Tajmahal-03.jpg|right|100px|ताजमहल]]'[[ताजमहल]]' [[उत्तर प्रदेश]] के [[आगरा]] शहर के बाहरी इलाके में [[यमुना नदी]] के दक्षिणी तट पर बना हुआ है। इसे प्रेम की निशानी कहा जाता है। ताजमहल [[मुग़ल कालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल कालीन शासन]] की सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। सफ़ेद संगमरमर की यह कृति संसार भर में प्रसिद्ध है और पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंन्द्र है। ताजमहल विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है। [[मुग़ल]] [[शाहजहाँ|बादशाह शाहजहाँ]] ने [[ताजमहल]] को अपनी पत्नी [[अर्जुमंद बानो बेगम]], जिन्हें 'मुमताज़ महल' भी कहा जाता था, की याद में बनवाया था। ताजमहल को शाहजहाँ ने मुमताज़ महल की क़ब्र के ऊपर बनवाया था। मृत्यु के बाद शाहजहाँ को भी वहीं दफ़नाया गया। मुमताज़ महल के नाम पर ही इस मक़बरे का नाम 'ताजमहल' पड़ा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ताजमहल]], [[शाहजहाँ]], [[मुमताज़ महल]] | |||
{'करोड़ी' नामक नये अधिकारी की नियुक्ति किस [[मुग़ल]] शासक ने की थी?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी351) | {'करोड़ी' नामक नये अधिकारी की नियुक्ति किस [[मुग़ल]] शासक ने की थी?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी351) | ||
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+[[अकबर]] | +[[अकबर]] | ||
-[[औरंगज़ेब]] | -[[औरंगज़ेब]] | ||
||[[चित्र:Akbar.jpg|right|100px|अकबर]]'अकबर' [[भारत]] का महानतम [[मुग़ल]] शंहशाह (शासनकाल 1556-1605 ई.) था, जिसने मुग़ल शक्ति का भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में विस्तार किया। अपने साम्राज्य की एकता बनाए रखने के लिए [[अकबर]] द्वारा ऐसी नीतियाँ अपनाई गईं, जिनसे गैर [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] की राजभक्ति जीती जा सके। '[[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]]' में आज अकबर का नाम काफ़ी प्रसिद्ध है। उसने अपने शासन काल में सभी [[धर्म|धर्मों]] का बराबर सम्मान किया और उन्हें पूरी इज्जत दी। सभी जाति-वर्गों के लोगों को एक समान माना और उनसे अपने मित्रता के सम्बन्ध स्थापित किये थे। [[अकबर|बादशाह अकबर]] ने अपने शासन काल में सारे [[भारत]] को एक साम्राज्य के अंतर्गत लाने का प्रयास किया, जिसमें वह काफ़ी हद तक सफल भी रहा था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अकबर]] | |||
{[[मुस्लिम]] शासन के दौरान [[दिल्ली]] के सिंहासन पर अधिकार करने वाला एक मात्र [[हिन्दू]] कौन था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी350) | {[[मुस्लिम]] शासन के दौरान [[दिल्ली]] के सिंहासन पर अधिकार करने वाला एक मात्र [[हिन्दू]] कौन था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी350) | ||
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-[[बीरबल]] | -[[बीरबल]] | ||
-[[शिवाजी]] | -[[शिवाजी]] | ||
||'हेमू' या 'हेमचन्द्र' का [[पिता]] राय पूरनमल [[राजस्थान]] के [[अलवर ज़िला|अलवर ज़िले]] से आकर [[रेवाड़ी ज़िला|रेवाड़ी]] के कुतुबपुर में बस गया था। इस समय [[हेमू]] अल्प आयु ही था। युवा होने पर वह भी अपने [[पिता]] के व्यवसाय में जुट गया। हेमू [[शेरशाह सूरी]] की सेना को शोरा की आपूर्ति किया करता था। शेरशाह उसके व्यक्तित्व से काफ़ी प्रभावित था। उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया। सेना में आने के बाद हेमू ने अपने रणकौशल से 22 युद्ध जीते और '[[दिल्ली सल्तनत]]' का सम्राट बना। [[मुग़ल|मुग़लों]] से हुए युद्ध में [[हेमू]] को [[बैरम ख़ाँ]] की रणनीति पर छल से मारा गया। हेमचंद्र शेरशाह सूरी का योग्य [[दीवान]], कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का हाथ सबसे बड़ा हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हेमू]], [[शेरशाह सूरी]] | |||
{[[मराठा|मराठों]] से पूर्व 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' का प्रयोग किसने किया था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी352) | {[[मराठा|मराठों]] से पूर्व 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' का प्रयोग किसने किया था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी352) | ||
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-[[राणा प्रताप]] | -[[राणा प्रताप]] | ||
-[[मलिक काफ़ूर]] | -[[मलिक काफ़ूर]] | ||
||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था। वह तरक्की करके वज़ीर के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में उस समय नाम क़माया, जब एक भीषण युद्ध में [[मुग़ल]] सेना को हरा दिया। [[मलिक अम्बर]] एक 'अबीसीनियायी' था और उसका जन्म 'इथियोपिया' में हुआ था। अम्बर 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' में निपुण था, उसने [[मराठा|मराठों]] को भी इस युद्ध पद्धति में निपुणता प्रदान कर दी थी। 'गुरिल्ला युद्ध प्रणाली' [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और [[मलिक अम्बर]] के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए, लेकिन मुग़ल इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | |||
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08:09, 10 जून 2013 का अवतरण
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