"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। '[[साबरमती आश्रम]]' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से [[महात्मा गाँधी]] आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली थी। [[जुलाई]], [[1891]] में जब गाँधीजी [[भारत]] लौटे, तो उनकी अनुपस्थिति में उनकी [[माता]] का देहान्त हो चुका था और उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि बैरिस्टर की डिग्री से अच्छे पेशेवर जीवन की गारंटी नहीं मिल सकती। वकालत के पेशे में पहले ही काफ़ी भीड़ हो चुकी थी और गाँधीजी उनमें अपनी जगह बनाने के मामले में बहुत संकोची थे। बंबई न्यायालय में पहली ही बहस में वह नाकाम रहे थे। यहाँ तक की 'बंबई उच्च न्यायालय' में अल्पकालिक शिक्षक के पद के लिए भी उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गाँधी]] | ||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|right|100px|महात्मा गाँधी]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। '[[साबरमती आश्रम]]' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से [[महात्मा गाँधी]] आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली थी। [[जुलाई]], [[1891]] में जब गाँधीजी [[भारत]] लौटे, तो उनकी अनुपस्थिति में उनकी [[माता]] का देहान्त हो चुका था और उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि बैरिस्टर की डिग्री से अच्छे पेशेवर जीवन की गारंटी नहीं मिल सकती। वकालत के पेशे में पहले ही काफ़ी भीड़ हो चुकी थी और गाँधीजी उनमें अपनी जगह बनाने के मामले में बहुत संकोची थे। बंबई न्यायालय में पहली ही बहस में वह नाकाम रहे थे। यहाँ तक की 'बंबई उच्च न्यायालय' में अल्पकालिक शिक्षक के पद के लिए भी उन्हें अस्वीकार कर दिया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गाँधी]] | ||
{सन [[1917]] से [[1924]] तक [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में किसने सेवाएँ प्रदान की थीं? | {सन [[1917]] से [[1924]] तक [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में किसने सेवाएँ प्रदान की थीं? | ||
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||'बहलोल लोदी' [[दिल्ली]] में प्रथम [[अफ़ग़ान]] राज्य का संस्थापक था। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के 'गिलजाई कबीले' की महत्त्वपूर्ण शाखा 'शाहूखेल' में पैदा हुआ था। [[19 अप्रैल]], 1451 को [[बहलोल लोदी]] 'बहलोल शाह गाजी' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। चूँकि वह लोदी कबीले का अग्रगामी था, इसलिए उसके द्वारा स्थापित वंश को '[[लोदी वंश]]' कहा जाता है। बहलोल अपने सरदारों को 'मसनद-ए-अली' कहकर पुकारता था। उसका राजत्व सिद्धान्त समानता पर आधारित था। वह [[अफ़ग़ान]] सरदारों को अपने समकक्ष मानता था। अपने सरदारों के खड़े रहने पर वह खुद भी खड़ा रहता था। बहलोल लोदी ने 'बहलोली सिक्के' का प्रचलन करवाया, जो [[अकबर]] के समय तक [[उत्तर भारत]] में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | ||'बहलोल लोदी' [[दिल्ली]] में प्रथम [[अफ़ग़ान]] राज्य का संस्थापक था। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के 'गिलजाई कबीले' की महत्त्वपूर्ण शाखा 'शाहूखेल' में पैदा हुआ था। [[19 अप्रैल]], 1451 को [[बहलोल लोदी]] 'बहलोल शाह गाजी' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। चूँकि वह लोदी कबीले का अग्रगामी था, इसलिए उसके द्वारा स्थापित वंश को '[[लोदी वंश]]' कहा जाता है। बहलोल अपने सरदारों को 'मसनद-ए-अली' कहकर पुकारता था। उसका राजत्व सिद्धान्त समानता पर आधारित था। वह [[अफ़ग़ान]] सरदारों को अपने समकक्ष मानता था। अपने सरदारों के खड़े रहने पर वह खुद भी खड़ा रहता था। बहलोल लोदी ने 'बहलोली सिक्के' का प्रचलन करवाया, जो [[अकबर]] के समय तक [[उत्तर भारत]] में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | ||
{[[1 अगस्त]], [[1920]] को कौन-सा आन्दोलन [[महात्मा गाँधी]] द्वारा प्रारम्भ किया गया? | |||
|type="()"} | |||
-[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] | |||
-[[सत्याग्रह आन्दोलन]] | |||
-[[भारत छोड़ो आन्दोलन]] | |||
+[[असहयोग आन्दोलन]] | |||
||[[चित्र:Gandhistatue.jpg|right|100px|गाँधीजी की प्रतिमा]]'असहयोग आन्दोलन' स्वराज की माँग को लेकर चलाया गया था। इस आन्दोलन को शुरू करने से पहले [[गाँधीजी]] ने "कैसर-ए-हिन्द" पुरस्कार को लौटा दिया था। अन्य सैकड़ों लोगों ने भी गाँधीजी के पदचिह्नों पर चलते हुए अपनी पदवियों एवं उपाधियों को त्याग दिया। 'रायबहादुर' की उपाधि से सम्मानित जमनालाल बजाज ने भी यह उपाधि वापस कर दी। '[[असहयोग आन्दोलन]]' महात्मा गाँधी ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया। [[पश्चिमी भारत]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] तथा [[उत्तरी भारत]] में 'असहयोग आन्दोलन' को अभूतपूर्व सफलता मिली। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ, जैसे- '[[काशी विद्यापीठ]]', 'बिहार विद्यापीठ', 'गुजरात विद्यापीठ', 'बनारस विद्यापीठ', 'तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ' एवं '[[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]]' आदि स्थापित की गईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]], [[महात्मा गाँधी]] | |||
{प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था? (पृ.सं. 30 | {प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था? (पृ.सं. 30 |
05:30, 17 जून 2013 का अवतरण
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