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{वैदिककालीन लोगों ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया? | |||
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{हल सम्बन्धी अनुष्ठान का पहला व्याख्यात्मक वर्णन कहाँ से मिला है? | |||
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- [[गोपथ ब्राह्मण]] में | |||
+ [[शतपथ ब्राह्मण]] में | |||
- [[ऐतरेय ब्राह्मण]] | |||
- [[पंचविंश ब्राह्मण]] | |||
{किस [[वेद]] की रचना गद्य एवं पद्य दोनों में की गई है? | |||
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- [[ऋग्वेद]] | |||
- [[सामवेद]] | |||
+ [[यजुर्वेद] | |||
- [[अथर्ववेद] | |||
||'यजुष' शब्द का अर्थ है- '[[यज्ञ]]'। यर्जुवेद मूलतः कर्मकाण्ड ग्रन्थ है। इसकी रचना [[कुरुक्षेत्र]] में मानी जाती है। [[चित्र:Yajurveda.jpg|thumb|150px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]यजुर्वेद में आर्यो की धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झांकी मिलती है। इस ग्रन्थ से पता चलता है कि [[आर्य]] 'सप्त सैंधव' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे। यर्जुवेद के मंत्रों का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक पुरोहित करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के यज्ञों को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह गद्य तथा पद्य दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है। यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय [[ईशावास्योपनिषद|ईशावास्य उपनिषयद]] है, जिसका सम्बन्ध आध्यात्मिक चिन्तन से है। उपनिषदों में यह लघु [[उपनिषद]] आदिम माना जाता है क्योंकि इसे छोड़कर कोई भी अन्य उपनिषद संहिता का भाग नहीं है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[यजुर्वेद]] | |||
{वेदान्त किसे कहा गया है? | |||
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- [[वेद|वेदों]] को | |||
- [[आरण्यक|आरण्यकों]] को | |||
- [[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण ग्रंथों]] को | |||
+ [[उपनिषद|उपनिषदों]] को | |||
||[[वेद]] का वह भाग जिसमें विशुद्ध रीति से आध्यात्मिक चिन्तन को ही प्रधानता दी गयी है और फल सम्बन्धी कर्मों के दृढानुराग को शिथिल करना सुझाया गया है, 'उपनिषद' कहलाता है। उपलब्ध उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से ईशादि 10 उपनिषद तो सर्वमान्य हैं। इनके अतिरिक्त 5 और उपनिषद (श्वेताश्वतरादि), जिन पर आचार्यों की टीकाएँ तथा प्रमाण-उद्धरण आदि मिलते हैं, सर्वसम्मत कहे जाते हैं। इन 15 के अतिरिक्त जो उपनिषद उपलब्ध हैं, उनकी शब्दगत ओजस्विता तथा प्रतिपादनशैली आदि की विभिन्नता होने पर भी यह अवश्य कहा जा सकता है कि इनका प्रतिपाद्य ब्रह्म या आत्मतत्त्व निश्चयपूर्वक अपौरूषेय, नित्य, स्वत:प्रमाण वेद-शब्द-राशि से सम्बद्ध है। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उपनिषद]] | |||
{'असतो मा सदगमय' कहाँ से लिया गया है? | |||
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+ [[ऋग्वेद]] से | |||
- [[सामवेद]] से | |||
- [[यजुर्वेद]] से | |||
- [[अथर्ववेद]] से | |||
||[[सबसे प्राचीनतम है। 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। चित्र:Rigveda.jpg|thumb|150px|ॠग्वेद का आवरण पृष्ठ]] ॠग्वेद के सूक्त विविध [[देवता|देवताओं]] की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है। ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1,029 सूक्त हैं और कुल 10,580 ॠचाएँ हैं। ये स्तुति मन्त्र हैं। ॠग्वेद के दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ॠग्वेद]] | |||
{किस [[उपनिषद]] को बुद्ध से भी प्राचीन माना जाता है? | |||
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+ [[कठोपनिषद]] | |||
- [[छान्दोग्य उपनिषद]] | |||
- [[बृहदारण्यकोपनिषद]] | |||
- [[मुण्डकोपनिषद]] | |||
||कृष्ण [[यजुर्वेद]] शाखा का यह उपनिषद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपनिषदों में है। इस उपनिषद के रचयिता कठ नाम के तपस्वी आचार्य थे। वे मुनि वैशम्पायन के शिष्य तथा यजुर्वेद की कठशाखा के प्रवृर्त्तक थे। इसमें दो अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में तीन-तीन वल्लियां हैं, जिनमें वाजश्रवा-पुत्र [[नचिकेता]] और यम के बीच संवाद हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कठोपनिषद]]{वैदिककालीन लोगों ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया? | |||
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- लोहा | |||
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+ तांबा | |||
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{हल सम्बन्धी अनुष्ठान का पहला व्याख्यात्मक वर्णन कहाँ से मिला है? | |||
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- [[गोपथ ब्राह्मण]] में | |||
+ [[शतपथ ब्राह्मण]] में | |||
- [[ऐतरेय ब्राह्मण]] | |||
- [[पंचविंश ब्राह्मण]] | |||
{किस [[वेद]] की रचना गद्य एवं पद्य दोनों में की गई है? | |||
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- [[ऋग्वेद]] | |||
- [[सामवेद]] | |||
+ [[यजुर्वेद] | |||
- [[अथर्ववेद] | |||
||'यजुष' शब्द का अर्थ है- '[[यज्ञ]]'। यर्जुवेद मूलतः कर्मकाण्ड ग्रन्थ है। इसकी रचना [[कुरुक्षेत्र]] में मानी जाती है। [[चित्र:Yajurveda.jpg|thumb|150px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]यजुर्वेद में आर्यो की धार्मिक एवं सामाजिक जीवन की झांकी मिलती है। इस ग्रन्थ से पता चलता है कि [[आर्य]] 'सप्त सैंधव' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक पूजा के प्रति उदासीन होने लगे थे। यर्जुवेद के मंत्रों का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक पुरोहित करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के यज्ञों को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह गद्य तथा पद्य दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है। यजुर्वेद का अन्तिम अध्याय [[ईशावास्योपनिषद|ईशावास्य उपनिषयद]] है, जिसका सम्बन्ध आध्यात्मिक चिन्तन से है। उपनिषदों में यह लघु [[उपनिषद]] आदिम माना जाता है क्योंकि इसे छोड़कर कोई भी अन्य उपनिषद संहिता का भाग नहीं है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[यजुर्वेद]] | |||
{वेदान्त किसे कहा गया है? | |||
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- [[वेद|वेदों]] को | |||
- [[आरण्यक|आरण्यकों]] को | |||
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+ [[उपनिषद|उपनिषदों]] को | |||
||[[वेद]] का वह भाग जिसमें विशुद्ध रीति से आध्यात्मिक चिन्तन को ही प्रधानता दी गयी है और फल सम्बन्धी कर्मों के दृढानुराग को शिथिल करना सुझाया गया है, 'उपनिषद' कहलाता है। उपलब्ध उपनिषद-ग्रन्थों की संख्या में से ईशादि 10 उपनिषद तो सर्वमान्य हैं। इनके अतिरिक्त 5 और उपनिषद (श्वेताश्वतरादि), जिन पर आचार्यों की टीकाएँ तथा प्रमाण-उद्धरण आदि मिलते हैं, सर्वसम्मत कहे जाते हैं। इन 15 के अतिरिक्त जो उपनिषद उपलब्ध हैं, उनकी शब्दगत ओजस्विता तथा प्रतिपादनशैली आदि की विभिन्नता होने पर भी यह अवश्य कहा जा सकता है कि इनका प्रतिपाद्य ब्रह्म या आत्मतत्त्व निश्चयपूर्वक अपौरूषेय, नित्य, स्वत:प्रमाण वेद-शब्द-राशि से सम्बद्ध है। उपनिषदों की कुल संख्या 108 है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उपनिषद]] | |||
{'असतो मा सदगमय' कहाँ से लिया गया है? | |||
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+ [[ऋग्वेद]] से | |||
- [[सामवेद]] से | |||
- [[यजुर्वेद]] से | |||
- [[अथर्ववेद]] से | |||
||[[सबसे प्राचीनतम है। 'ॠक' का अर्थ होता है छन्दोबद्ध रचना या श्लोक। चित्र:Rigveda.jpg|thumb|150px|ॠग्वेद का आवरण पृष्ठ]] ॠग्वेद के सूक्त विविध [[देवता|देवताओं]] की स्तुति करने वाले भाव भरे गीत हैं। इनमें भक्तिभाव की प्रधानता है। यद्यपि ॠग्वेद में अन्य प्रकार के सूक्त भी हैं, परन्तु देवताओं की स्तुति करने वाले स्त्रोतों की प्रधानता है। ॠग्वेद में कुल दस मण्डल हैं और उनमें 1,029 सूक्त हैं और कुल 10,580 ॠचाएँ हैं। ये स्तुति मन्त्र हैं। ॠग्वेद के दस मण्डलों में कुछ मण्डल छोटे हैं और कुछ मण्डल बड़े हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[ॠग्वेद]] | |||
{किस [[उपनिषद]] को बुद्ध से भी प्राचीन माना जाता है? | |||
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+ [[कठोपनिषद]] | |||
- [[छान्दोग्य उपनिषद]] | |||
- [[बृहदारण्यकोपनिषद]] | |||
- [[मुण्डकोपनिषद]] | |||
||कृष्ण [[यजुर्वेद]] शाखा का यह उपनिषद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपनिषदों में है। इस उपनिषद के रचयिता कठ नाम के तपस्वी आचार्य थे। वे मुनि वैशम्पायन के शिष्य तथा यजुर्वेद की कठशाखा के प्रवृर्त्तक थे। इसमें दो अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय में तीन-तीन वल्लियां हैं, जिनमें वाजश्रवा-पुत्र [[नचिकेता]] और यम के बीच संवाद हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कठोपनिषद]] | |||
{Offensive player receives the disc while running at high speed, does not change direction but fakes a throw then delivers a quick pass before his third step after catching. Can 'travel' legitimately be called? | {Offensive player receives the disc while running at high speed, does not change direction but fakes a throw then delivers a quick pass before his third step after catching. Can 'travel' legitimately be called? |
11:40, 22 दिसम्बर 2010 का अवतरण
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