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*उत्तर-पश्चिम [[भारत]] का 'हिन्दी-यूनानी' राजा 'मनेन्दर' 165-130 ई. पू. लगभग ( भारतीय उल्लेखों के अनुसार 'मिलिन्द') था। | |||
*प्रथम पश्चिमी राजा जिसने [[बौद्ध धर्म]] अपनाया और [[मथुरा]] पर शासन किया। | |||
*राज्य की सीमा- बैक्ट्रिया, [[पंजाब]], [[हिमाचल प्रदेश|हिमाचल]], [[जम्मू]] से [[मथुरा]] । | |||
*[[डेमेट्रियस]] के समान मिनान्डर नामक यवन राजा के भी अनेक सिक्के उत्तर - पश्चिमी भारत में उपलब्ध हुए हैं। | |||
*मिनान्डर की राजधानी शाकल (सियालकोट) थी। | |||
*भारत में राज्य करते हुए वह [[बौद्ध]] श्रमणों के सम्पर्क में आया और आचार्य नागसेन से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। | |||
*बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम 'मिलिन्द' आया है। | |||
*'मिलिन्द पञ्हो' नाम के पालि ग्रंथ में उसके [[बौद्ध धर्म]] को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है। | |||
*मिनान्डर के अनेक सिक्कों पर बौद्ध धर्म के 'धर्मचक्र' प्रवर्तन का चिह्न 'धर्मचक्र' बना हुआ है, और उसने अपने नाम के साथ 'ध्रमिक' (धार्मिक) विशेषण दिया है। | |||
*यूनानी लेखक स्ट्रैबो के लेखों से सूचित होता है, कि डेमेट्रियस के भारत आक्रमण में मिनान्डर उसका सहयोगी था। | |||
*स्ट्रैबो के अनुसार इन विजयों का लाभ कुछ मिनान्डर ने और कुछ युथिडिमास के पुत्र डेमेट्रियस ने प्राप्त किया। इससे अनेक इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है, कि मिनान्डर और डेमेट्रियस ने एक ही समय में सम्मिलित रूप से भारत पर आक्रमण किया था, और मिनान्डर डेमेट्रियस का ही सेनापति था। | |||
*श्री टार्न इस मत के प्रमुख प्रतिपादकों में हैं। बाद में मिनान्डर ने भी अपना पृथक व स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। | |||
*इण्डो-यूनानी शासकों में [[डेमेट्रियस]] कुल मेनांडर निःसंदेह सबसे योग्य शासक था। बौद्ध साहित्य 'मिलिन्दपन्हो' में इसे मिलिन्द के नाम से जाना जाता है। | |||
[[चित्र:Menandros-Coin.jpg|thumb|250px|मिलिंद (मिनांडर) का सिक्का]] | |||
*मिलन्दपन्हो में मेनांडर एवं बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य सम्पन्न वाद-विवाद, एवं जिसके परिणामस्वरूप मेनाडर एवं बौद्ध भिक्षु स्वीकार, किया, की कथा का वर्णन है। | |||
*मेनांडर ने भारत में अपनी सीमाओं के विस्तार के साथ प्रशासन को स्थायित्व प्रदान किया। सम्भवतः मेनांडर का अधिकार स्कात घाटी, हज़ारज़िला एवं [[पंजाब]] में [[रावी नदी]] तक था। *स्ट्रैबो के वर्णन के अनुसार यूनानियों ने गंगाघाटी तथा [[पाटिलिपुत्र]] तक आक्रमण किया। | |||
*महाभाष्य के वर्णन के आधार पर माना जा सकता है कि यूनानियों ने [[अवध]] के [[साकेत]], [[राजस्थान]] में [[चित्तौड़]] के समीप स्थित 'माध्यमिका' पर अधिकार करने का प्रयत्न किया। | |||
*मेनांडर के सिक्के हमें उत्तर में [[काबुल]] तक एवं [[दिल्ली]] से [[मथुरा]] तक मिले हैं। | |||
*पेरीप्लस के अनुसार मेनांडर के सिक्के भड़ौच के बाज़ारों में खूब प्रचलित थे। उसकी कतिपय कांस्य मुद्राओं पर धर्म चक्र प्रतीक 'महरजत' धमिकस प्रचलित थे। मैनण्डरस विरुद मिलता है। | |||
*'मिलिन्दपन्हों' के उल्लेख के अनुसार साकेत मिनांडर की राजधानी थी। | |||
*साकल तत्कालीन शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, साथ ही सम्पन्नता में यह पाटिलपुत्र के समकक्ष था। | |||
*मिनेण्डर की कांस्यमुद्राओं पर धर्मचक्र का चिन्ह मिलता है। | |||
*पेरीप्लस के अनुसार मेनाण्डर के सिक्के भड़ौच में चलते थे। [[मथुरा]] से उसके तथा उसके पुत्र स्टेटो के सिक्के मिले हैं। | |||
*कालान्तर में मध्य एशिया के खानाबदोश कबीलों ने, जिनमें 'सीथियन' लोग भी थे, [[बैक्ट्रिया]] पर धावा बोल दिया। | |||
*चीनी सम्राट शी-हुआंग-ती द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पू. [[चीन]] की विशाल दीवार बना देने के कारण कबीलों को पश्चिम में बढ़ने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप सीथियनों को विस्थापित होकर [[भारत]] के इण्डो-ग्रीक भागों पर आक्रमण करना पड़ा। | |||
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13:46, 5 नवम्बर 2011 का अवतरण
मिलिन्द या मनेन्दर

- उत्तर-पश्चिम भारत का 'हिन्दी-यूनानी' राजा 'मनेन्दर' 165-130 ई. पू. लगभग ( भारतीय उल्लेखों के अनुसार 'मिलिन्द') था।
- प्रथम पश्चिमी राजा जिसने बौद्ध धर्म अपनाया और मथुरा पर शासन किया।
- राज्य की सीमा- बैक्ट्रिया, पंजाब, हिमाचल, जम्मू से मथुरा ।
- डेमेट्रियस के समान मिनान्डर नामक यवन राजा के भी अनेक सिक्के उत्तर - पश्चिमी भारत में उपलब्ध हुए हैं।
- मिनान्डर की राजधानी शाकल (सियालकोट) थी।
- भारत में राज्य करते हुए वह बौद्ध श्रमणों के सम्पर्क में आया और आचार्य नागसेन से उसने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
- बौद्ध ग्रंथों में उसका नाम 'मिलिन्द' आया है।
- 'मिलिन्द पञ्हो' नाम के पालि ग्रंथ में उसके बौद्ध धर्म को स्वीकृत करने का विवरण दिया गया है।
- मिनान्डर के अनेक सिक्कों पर बौद्ध धर्म के 'धर्मचक्र' प्रवर्तन का चिह्न 'धर्मचक्र' बना हुआ है, और उसने अपने नाम के साथ 'ध्रमिक' (धार्मिक) विशेषण दिया है।
- यूनानी लेखक स्ट्रैबो के लेखों से सूचित होता है, कि डेमेट्रियस के भारत आक्रमण में मिनान्डर उसका सहयोगी था।
- स्ट्रैबो के अनुसार इन विजयों का लाभ कुछ मिनान्डर ने और कुछ युथिडिमास के पुत्र डेमेट्रियस ने प्राप्त किया। इससे अनेक इतिहासकारों ने यह परिणाम निकाला है, कि मिनान्डर और डेमेट्रियस ने एक ही समय में सम्मिलित रूप से भारत पर आक्रमण किया था, और मिनान्डर डेमेट्रियस का ही सेनापति था।
- श्री टार्न इस मत के प्रमुख प्रतिपादकों में हैं। बाद में मिनान्डर ने भी अपना पृथक व स्वतंत्र राज्य स्थापित किया।
- इण्डो-यूनानी शासकों में डेमेट्रियस कुल मेनांडर निःसंदेह सबसे योग्य शासक था। बौद्ध साहित्य 'मिलिन्दपन्हो' में इसे मिलिन्द के नाम से जाना जाता है।

- मिलन्दपन्हो में मेनांडर एवं बौद्ध भिक्षु नागसेन के मध्य सम्पन्न वाद-विवाद, एवं जिसके परिणामस्वरूप मेनाडर एवं बौद्ध भिक्षु स्वीकार, किया, की कथा का वर्णन है।
- मेनांडर ने भारत में अपनी सीमाओं के विस्तार के साथ प्रशासन को स्थायित्व प्रदान किया। सम्भवतः मेनांडर का अधिकार स्कात घाटी, हज़ारज़िला एवं पंजाब में रावी नदी तक था। *स्ट्रैबो के वर्णन के अनुसार यूनानियों ने गंगाघाटी तथा पाटिलिपुत्र तक आक्रमण किया।
- महाभाष्य के वर्णन के आधार पर माना जा सकता है कि यूनानियों ने अवध के साकेत, राजस्थान में चित्तौड़ के समीप स्थित 'माध्यमिका' पर अधिकार करने का प्रयत्न किया।
- मेनांडर के सिक्के हमें उत्तर में काबुल तक एवं दिल्ली से मथुरा तक मिले हैं।
- पेरीप्लस के अनुसार मेनांडर के सिक्के भड़ौच के बाज़ारों में खूब प्रचलित थे। उसकी कतिपय कांस्य मुद्राओं पर धर्म चक्र प्रतीक 'महरजत' धमिकस प्रचलित थे। मैनण्डरस विरुद मिलता है।
- 'मिलिन्दपन्हों' के उल्लेख के अनुसार साकेत मिनांडर की राजधानी थी।
- साकल तत्कालीन शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, साथ ही सम्पन्नता में यह पाटिलपुत्र के समकक्ष था।
- मिनेण्डर की कांस्यमुद्राओं पर धर्मचक्र का चिन्ह मिलता है।
- पेरीप्लस के अनुसार मेनाण्डर के सिक्के भड़ौच में चलते थे। मथुरा से उसके तथा उसके पुत्र स्टेटो के सिक्के मिले हैं।
- कालान्तर में मध्य एशिया के खानाबदोश कबीलों ने, जिनमें 'सीथियन' लोग भी थे, बैक्ट्रिया पर धावा बोल दिया।
- चीनी सम्राट शी-हुआंग-ती द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पू. चीन की विशाल दीवार बना देने के कारण कबीलों को पश्चिम में बढ़ने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप सीथियनों को विस्थापित होकर भारत के इण्डो-ग्रीक भागों पर आक्रमण करना पड़ा।
- सीथियनों को ही भारतीय ग्रंथों में शक नाम से जाना जाता है।
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